बच्चे से कोई भी ग़लती हो जाये ज़रा सी गलती पर डॉट-डपट करने बैठ जाना यह अच्छी माँओं की आदत नहीं होती। बच्चे को इज़्ज़त के साथ डील करें और आपने बच्चे को इज़्ज़त के साथ डील किया तो बच्चे के अन्दर अच्छी शख़्सियत पैदा होगी।
अगर आपने बात-बात पर डाँटना शुरू कर दिया तो बच्चे की सिफात खुल नहीं सकेंगी। उसकी शख़्सियत के अन्दर कभी कायदाना यानी रहनुमा और लीडर बनने की सिफात पैदा नहीं होंगी। इसलिये बच्चे की तरबियत करना माँ का सबसे पहला फरीज़ा होता है। अगर बच्चे से ग़लती हो जाये या नुकसान हो जाये तो बच्चे को प्यार से समझायें।
मिसाल के तौर पर आपकी बेटी है, उसको पानी पीना है, आप किसी काम में लगी हुई हैं। उसने फ्रिज का दरवाज़ा खोल दिया और दरवाज़ा खोलकर पानी निकालने लगी। उसमें कोई खाना बना रखा था, जो दावत के लिये आपने पकाया था। मेहमान आने वाले थे। वह खाना प्लेट से नीचे गिरकर ज़ाया हो गया। अब देखते ही गुस्से में आकर बेटी को कोसना और डाँटना अच्छी बात नहीं।
आप आयें और बेटी को प्यार से कहें कि बेटी कोई बात नहीं, यह तो मुकद्दर में ऐसे ही था। यह ऐसे ही अल्लाह ने लिखा था। इसको नीचे गिरना था। बेटी कोई बात नहीं, आईन्दा अगर तुम्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मैं तुम्हें उठाकर दे दिया करूँगी। मुझसे कह दिया करो। आप बिल्कुल परेशान न हों। यह तो अल्लाह की तरफ से ऐसे ही होना था।
जब आप ऐसा कहेंगी तो बेटी जवाब देगी कि अम्मी में आईन्दा से एहतियात करूँगी। मैं गन्दी बच्ची नहीं बनूँगी। मैं आपको ही ऐसी बातें बता दिया करूँगी तो फिर बेटी आपसे पूछेगी कि अम्मी अब्बू आयेंगे तो आपको डाँटेंगे तो नहीं? अम्मी ! अब्बू को अगर पता चल गया कि मैंने यह नुक्सान किया है तो वह मुझे मारेंगे तो नहीं?
खूबसूरत वाक़िआ:-माँ-बाप की मग़फिरत का ज़रिया
आप बच्ची को तसल्ली दें कि नहीं! हरगिज़ नहीं! मैं तुम्हारा नाम नहीं बताऊँगी। यही कहूँगी कि यह गिरकर ज़ाया हो गया। मैं तुम्हारे अब्बू को फोन कर देती हूँ कि वह आते हुए कुछ और खाने का बन्दोबस्त करके ले आयें ताकि मेहमानों के सामने कुछ स्वीट डिश रखी जा सके।
ऐसी बात में आप देखेंगी कि बच्ची आपको अपना निगहबान समझेगी। सर का साया समझेगी। वह समझेगी कि माँ मेरी ग़लतियों को छुपाती है और मेरा साथ देती है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
