कुरआन शरीफ “ अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है: “हलाल व पाक खाना खाओ और अच्छे अमल करो।”
जो कोई इस इरादे से खाना खाए कि मुझे इल्म व अमल की कुव्वत और आखिरत की राह चलने की कुदरत हासिल हो, उसका खाना, पीना भी इबादत है। इसलिए रसूले कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि मुसलमान को हर चीज़ पर सवाब मिलता है।
यहाँ तक कि उस लुकमे पर भी जो अपने मुंह या अपने बाल बच्चों के मुंह में डाले। बसा औकात खाना खाना ज़रूरी व फर्ज हो जाता है। लिहाज़ा हमें चाहिए कि जब खाना खाएं तो सुन्नते नबवी के मुताबिक खाएं। इस तरह खाने में खाना भी खा लिया जाएगा और मुफ़्त में सवाब भी मिल जाएगा। (कीमिया-ए-सआदत पेज 240)
हदीस :- हज़रत अबु हरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “तुम में से कोई खाना खाए तो दाएं हाथ से और पिये तो दायें हाथ से और किसी से कुछ ले तो दाएं हाथ से और दे तो दाएं हाथ से क्योंकि शैतान बाएं हाथ से खाता, पीता और बाएं हाथ से ही लेता-देता है। (इब्ने माजा पेज 235)Khana Khane ki Fazilat.
हदीस :- हज़रत आयशा सिद्दीका रदियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः “जब कोई आदमी खाना खाए तो बिस्मिल्लाह पढ़ें और अगर शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना भूल जाए तो यूं कहे “बिस्मिल्लाहि अव्वलहू व आखिरहू”(अबू दाऊद पेज 529)
हदीस :- उमय्या बिन मख़शी रजिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ फ़रमा थे और एक आदमी बगैर बिस्मिल्लाह पढ़े खाना खा रहा था, जब खाना खा चुका सिर्फ एक लुकमा बाकी रह गया तो जब यह लुक्मा उठाया और पढ़ा “बिस्मिल्लाहि अव्वलहू व आखिरहूं” तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम देख कर मुस्कुरा उठे और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “शैतान इसके साथ खा रहा था, जब इसने अल्लाह का नाम लिया तो जो कुछ उसके पेट में था उगल दिया।” (अबू दाऊद पेज 529) बच्चों का बचपन में दीन का एहतमाम।
हदीस :- “हज़रत सलमान रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा मैंने ‘तोरात’ में पढ़ा था कि खाने की बरकत का सबब इससे पहले वजू करना (यानी हाथ, मुंह धोना है) मैंने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इसका ज़िक्र किया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः “खाने की बरकत खाने से पहले और खाने के बाद वज़ू करने यानी हाथ, मुंह धोने में है।” (अबू दाऊद पेज 528)Khana Khane ki Fazilat.
हदीस :- हज़रत जाबिर रजिअल्लाहु अन्हु मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “तहकीक कि शैतान तुम्हारे हर काम में हाज़िर हो जाता है, यहाँ तक कि खाना खाने के वक़्त भी हाज़िर हो जाता है। जिहाज़ा अगर कोई लुकमा गिर जाए और उसमें कुछ लग जाए तो साफ करके खा ले, उसे शैतान के लिए न छोड़े और जब खाने से फारिग हो जाए तो उंगलियां चाट ले क्योंकि यह मालूम नहीं कि खाने के किस हिस्से में बरकत है।” (मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 176)
हदीस :- हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दौलतकदे में तशरीफ लाए, रोटी का टुकड़ा पड़ा हुआ देखा, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे लेकर साफ किया, फिर तनावुल फ़रमाया लिया और कहाः “ऐ आयशा! अच्छी चीज़ का एहतिराम करो कि यह चीज़ यानी रोटी वगैरह जब किसी कोम से भागती है तो लोट कर नहीं आती।” (इब्ने माजा 240)
हदीस :- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः “आदमी ने पेट से ज़्यादा बुरा कोई बर्तन नहीं भरा। इब्ने आदम को चन्द लुकमे काफी हैं जो उसकी पीठ को सीधा रखें। अगर ज़्यादा खाना ज़रूरी हो तो तिहाई पेट खाने के लिए और तिहाई पानी के लिए और तिहाई सांस के लिए।” (इब्ने माजा 240)
हदीस :- हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः “जब कोई खाना खाए या पानी पिये तो यह दुआ पढ़ लेः
“बिस्मिल्लाहि व बिल्लाहिल्लज़ी ला यदुरों मअ इस्मिही शैउन फिल अरदि वला फिस्समाइ या हय्यु या कय्यूम०” फिर उसे कोई बीमारी न होगी अगरचे उसमें ज़हर हो।(बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 6)
हदीस :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः “खाने को ठण्डा करके खाओ, गर्म खाने में बरकत नहीं और खाने को न सूंघो कि यह चोपायों का तरीक़ा है।” (बुस्तान पेज 81)Khana Khane ki Fazilat.
हदीस :- हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इरशाद फ़रमाते सुनाः “जब आदमी अपने घर में दाखिल हो और दाखिल होने से पहले और खाने से पहले बिस्मिल्लाह कह ले तो शैतान अपनी जुर्रियत से कहता है कि अब तुम इस घर में न रात को रह सकोगे, न यहाँ खाने में शरीक हो सकोगे, अब यहाँ से भागो। इसके बरखिलाफ जब कोई आदमी घर में दाखिल होते वक़्त और खाना खाते वक़्त अल्लाह का नाम नहीं लेता तो शैतान अपनी जुर्रियत से कहता है कि तुमको आज रात का ठिकाना मिल गया और रात का खाना भी मिल गया।”(मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 172)
मसअलाः- भूख से कम खाना चाहिए और पूरी भूख खा लेना मुबाह है यानी न सवाब है, न गुनाह क्योंकि इसका भी सही मक्सद हो सकता है कि ताकत ज़्यादा होगी। शहवत पैदा करने के लिए भूक से ज़्यादा खा लेना हराम है यानी इतना खा लेना जिससे मैदा खराब होने का अन्देशा हो। (दुर्रे मुख्तार जिल्द 5, पेज 235)
मसअलाः – रोज़े की कुव्वत हासिल करने के लिए या मेहमान का साथ देने के लिए इतना ज़्यादा खाना मुसतहब है जितने में मैदा खराब होने का अन्देशा न हो। (फिकही पहेलियाँ पेज 247)
मसअलाः- भूख का इतना गल्बा हो कि न खाने से मर जाएगा तो इतना खा लेना जिससे जान बच जाए फर्ज़ है। इस सूरत में अगर नहीं खाया यहाँ तक कि मर गया तो गुनाहगार हुआ, इतना खा लेना कि खड़े होकर नमाज़ पढ़ने की ताकत आ जाए और रोज़ा रख सके तो इतनी मिक्दार खा लेना ज़रूरी है और इसमें सवाब भी है। (दुरें मुख्तार जिल्द 5, पेज 235) बिस्मिल्लाह की बरकतें,
मसअलाः- इज़तिरार की हालत में जबकि जान जाने का अन्देशा है अगर हलाल चीज़ खाने के लिए नहीं मिलती तो हराम चीज़ या मुरदार या दूसरे की चीज़ खाकर अपनी जान बचाए और इन चीज़ों के खा लेने पर मुवाखिज़ा (पकड़) नहीं बल्कि न खाकर मर जाने में मुवाखिज़ा है, अगरचे दूसरे की चीज़ खाने में तावान देना पड़े। (दुर्रे मुख्तार जिल्द 5, पेल 235)Khana Khane ki Fazilat.
मसअलाः- यूं ही प्यास से हलाक होने का अन्देशा हो तो कोई भी चीज़ पी कर अपने को हलाकत से बचाना फर्ज़ है। पानी नहीं है और शराब मौजूद है और मालूम है कि इसके पी लेने से जान बच जाएगी तो इतनी पी ले जिससे यह अन्देशा जाता रहे। (रूददुलमोहतार जिल्द 5, पेज 235)
मसअलाः- सेर होकर खाना ताकि नवाफिल कसरत से पढ़ सकेगा और पढ़ने-पढ़ाने में कमज़ोरी पैदा न होगी मुसतहब और सेरी से ज़्यादा खाना मगर इतना ज़्यादा नहीं कि शिकम ख़राब हो जाए, मकरूह है। इबादत गुज़ार आदमी को इख्तियार है कि बकदरे मुबाह तनावुल करे या बक्दरे मनदूब मगर उसे यह नियत करना चाहिए कि इसलिए खाता हूं कि इबादत की कुव्वत पैदा होगी, इस नियत से खाना एक किस्म की ताअत है और खाने से मक्सद तलज़्ज़ुज़ व तनउम न हो कि यह बुरी सिफ्त है।(रूददुल मोहतार जिल्द 5, पेज 235)
मसअलाः- रियाज़त व मुजाहिदा में इतना कम खाना कि इबादते मरूज़ा की अदायगी में कमज़ोरी लाहिक हो जाएगी मसलन इतनी कमज़ोरी लाहिक हो जाएगी कि खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकेगा, यह नाजाइज़ है और अगर इस हद की कमज़ोरी पैदा न हो तो हरज नहीं। (दुरेॅ मुख्तार व रूददुल मोहतार जिल्द 5. पेज 235)
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम (स.व) से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…