
जिमाअ यानी हमबिस्तरी की ख़्वाहिश एक फितरी यानी कुदरती जज़्बा है जो हर ज़ीरूह में खिलकतन पाया जाता है। इसे बताने की ज़रूरत नहीं होती।
हर एक अपनी नौअ की मादा की तरफ तबई एतबार से माइल होता है और यह जज़्बा ही इज़्दिवाजी ज़िन्दगी और जिन्सी तअल्लुकात की जान है। जब इश्क व महब्बत का जज़्बा हैवानात में पाया जाता है और वे भी अपनी मिलने की ख़्वाहिश पुरी करते हैं।
नर को मादा की तलाश रहती है और मादा को नर की तो फिर इन्सान जो जज़्बात का मअदिन है उसका दिल जिमाअ और ख़्वाहिशे विसाल से क्योंकर खाली रह सकता है? और वह औरत जैसी सिनफे नाजूक से क्यों न लुत्फ अन्दोज़ हो ?
इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि फरमाते हैं:”जिमाअ की ख्वाहिश को इन्सान पर मुसल्लत कर दिया गया है ताकि नस्ले इन्सानी की बक़ा के लिए वह तुख्म रेज़ी करे। जिमाअ जन्नत की लज़्ज़तों में से एक लज़्ज़त है।” (कीमिया ए सआदत पेज 496)
हज़रत जुनैद बगदादी रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि फरमाते हैं: “मुझको जिमाअ की हाजत ऐसी है जैसी ग़िज़ा की क्योंकि बीवी ग़िज़ा और दिल की तहारत का सबब है। इसी वजह से नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जिस शख़्स की नज़र किसी अजनबी औरत पर पड़े और उसका नफ़्स उसकी तरफ माइल हो तो चाहिए कि अपनी बीवी से सोहबत करे। इसलिए कि यह दिल के वसवसे को दूर कर देगा।” (अहयाउल उलूम जिल्द 2 पेज 29)
हदीस :- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः “तुम में से किसी का अपनी बीवी से मुबाशिरत करना भी सदका है।” सहाबा किराम ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! कोई शख़्स अपनी शहवत पूरी करेगा और उसे अज्र भी मिलेगा? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया “हाँ, अगर वह हराम मुबाशिरत करता तो क्या वह गुनाहगार न होता! इसी तरह वह जाइज़ मुबाशिरत करने पर अज्र का मुस्तहिक है। (मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 पेज 324)
हदीस :- उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः “जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है तो अल्लाह तआला उसके लिए एक नेकी लिख देता है। जब मर्द मोहब्बत से औरत के गले में हाथ डालता है तो उसके हक़ में दस नेकियां लिखी जाती हैं और जब औरत से जिमाअ करता है तो दुनिया व माफीहा से बेहतर हो जाता है और जब गुस्ले जनाबत करता है तो बदन के जिस बाल पर से पानी गुज़रता है, हर बाल के बदले एक नेकी लिखी जाती है और एक गुनाह कम कर दिया जाता है और एक दर्जा ऊंचा कर दिया जाता है।(गुनिय्या पेज 113) जिमाअ के फायदे।
मर्द को जिमाओं की ख़्वाहिश न हो तब भी जिमाअ छोड़ दे जाइज़ नहीं क्योंकि इस मामले में औरत का हक़ भी है और जिमाअ छोड़ देने से औरत को ज़रर पहुंचने का अन्देशा है। हज़रत अबू हुरेरह रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फरमायाः “औरत की ख़्वाहिशे जिमाअ, मर्द की ख़्वाहिशे जिमाअ से 99 दर्जा ज़्यादा है मगर अल्लाह ने उस पर हया को मुसल्लत कर दिया है।” (गुनिय्या पेज 117)
औरत का बीवी होना इस बात को लाज़िम नहीं कि हर हाल में शौहर को उससे सोहबत जाइज़ हो। नमाज़, रोज़ा, अहराम, एतिकाफ हैज़ यानी माहवारी, निफास और बहुत सी सूरतें हैं कि उनमें मनकूहा से भी सोहबत हराम है। जैसे वक़्त ऐसा है कि हमबिस्तरी के बाद गुस्ल करके नमाज़ का वक़्त न मिलेगा तो ऐसी सूरत में सोहबत ही हराम है कि जान बूझ कर नमाज़ को फोत करना है।(फतावा रज़विया जिल्द 1 पेज 584)
मसअला :- जहाँ कुराने करीम की कोई आयत लिखी हो काग़ज़ या किसी चीज़ पर अगरचे ऊपर शीशा हो जो उसे हाजिब न हो, जब तक कि उस पर गिलाफ न डाल लें, वहाँ जिमाअ या नंगा होना बेअदबी है।(फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 522)
मसअला :- जो बच्चा समझता और दुसरों के सामने बयान कर सकता हो उसके सामने जिमाअ करना मकरूह है, वरना हरज नहीं। (अलमलफूज़ हिस्सा 1 पेज 14)
मसअला :- बीवी का हाथ पकड़ कर मकान के अन्दर ले गया और दरवाज़ा बन्द कर लिया और लोगों को मालूम हो गया कि वती करने यानी हमबिस्तरी के लिए ऐसा किया है, यह मकरूह है। यूं ही सोतन के सामने बीवी से वती करना मकरूह है। (बहारे शरीअत हिस्सा 16 पेज 77)
मसअला :- किसी की दो बीवी हों तो उनमें से किसी एक से दूसरे के सामने हमबिस्तरी करना मकरूह व बेहयाई है। अगरचे मर्द को बीवी से पर्दा नहीं लेकिन एक बीवी को दूसरे से पर्दा लाज़िम है।(फतावा रज़विया जिल्द 9 पेज 207)
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…
2 thoughts on “जिमाअ का बयान। Jima ka bayan.”