
इब्ने ज़्याद ने अपने घर वालों के अलावा पाँच सौ आदमी अपने साथ लिए बसरा से चला। उनमें से कुछ रास्ते ही में ठहर गए मगर उसने उनकी कुछ परवाह न की और बराबर चलता रहा। कादसीया पहुँच कर उसने अपने सिपाहियों को वहीं छोड़ा और बराहे फरेब हिजाज़ी लिबास पहना, ऊंट पर सवार हुआ और बीस आदमी अपने साथ लेकर उस रास्ता से जो हिजाज़ से कूफा आता था, मगरिब व इशा के दरमियान रात की तारीकी में कूफा आया।
इस मक्र व फरेब से इसका मतलब यह था कि इस वक़्त कूफियों में बहुत जोश है, यज़ीद के खिलाफ एक लहर दौड़ी हुई है, ऐसे तौर पर दाखिल होना चाहिए कि लोग न पहचानें बल्कि यह समझें कि इमाम हुसैन तशरीफ ले आए और वह इस तरह अम्न व आफियत के साथ कूफा में दाखिल हो जाए, नीज़ लोगों के जज़्बात का भी पता चल जाएगा और यह भी मालूम हो जाएगा कि ज़्यादा कौन लोग पेश पेश हैं।
अहले कूफा जो हमा तन चश्मे इंतिज़ार हज़रत इमामे अबरार थे, उन्होंने शब की तारीकी में हिजाज़ी लिबास और हिजाज़ी राह से आते देख कर धोखा खाया, समझे कि हज़रत इमाम तशरीफ ले आए। नारा हाए मुसर्रत बलन्द किए, मरासिम अकीदत व सलाम बजा लाए और मरहबन बिक या इब्न रसूलिल्लाहे और कदिम्त खैरा मक्दम कहते हुए उसके आगे पीछे चले, शोर सुन कर और लोग भी घरों से बाहर आ गए और एक अच्छे खासे जुलूस की शक्ल बन गई।
इब्ने ज़्याद बद निहाद दिल में जलता और कुढ़ता हुआ चुप चाप चलता रहा। उसने अच्छी तरह समझ लिया कि यह लोग इमाम के बेचैनी और शिद्दत से मुंतज़िर हैं और उनके दिल किस कद्र उनकी तरफ माइल हैं। जब वह दारुल इमारत (गवर्नर हाउस) के करीब पहुँचा तो हज़रत नौमान बिन बशीर ने शोर व गुल सुन कर और कसरते हुजूम देख कर समझ लिया कि इमाम तशरीफ ले आए। उन्होंने दरवाज़ा बन्द कर लिया और छत पर चढ़ कर पुकारे कि ऐ इब्ने रसूलुल्लाह। आप यहाँ से चले जाएं।
खुदा की कसम ! मैं अपनी अमानत आपके हवाले नहीं करूँगा और न मैं आप से लडूंगा, यह सुन कर इब्ने ज़्याद करीब हुआ और कहाः अरे दरवाज़ा खोल तेरा भला न हो। उसके पीछे एक आदमी खड़ा था। उसने उसकी आवाज़ से उसको पहचान लिया और पीछे हट कर लोगों से कहा खुदा की कसम ! यह तो इब्ने मरजाना है। नौमान ने दरवाज़ा खोल दिया। इब्ने ज्याद ने क्सरे इमारत में दाखिल हो कर दरवाज़ा बन्द कर लिया और लोग बड़े अफसोस और मायूसी के साथ मुंतशिर हो गए। रात गुज़ार कर सुबह इब्ने ज़्याद ने लोगों को जमा किया और उनके सामने यह तक़रीर की।
खूबसूरत वाक़िआ :- मोहर्रम में क्या करें क्या ना करें?
“अमीरुल-मुोमिनीन यज़ीद ने मुझे कूफा का गवर्नर मुकर्रर किया है और मुझे हुक्म दिया है कि मैं मज़्लूम के साथ इंसाफ करूँ और मुतीअ व फ्रमां बरदार के साथ एहसान करूं और नाफमानों के साथ सख़्ती करूं। मैं इस हुक्म की सख्ती से पाबन्दी करूंगा। जो शख्स मुतीअ व फ्रमांबरदार है उसके साथ शफकत से पेश आऊंगा और जो शख़्स नाफरमान है उसके लिए मेरा चाबुक और मेरी तल्वार है। तुम्हें चाहिए तुम अपनी खैर मनाओ और अपने ऊपर रहम करो।”
इस तक़रीर के बाद उसने मशाहीरे कूफा को गिरफ्तार किया और उन सबसे कहा कि तहरीरी जमानत दो कि तुम और तुम्हारे कबीले के लोग किसी मुखालिफ को अपने यहां पनाह नहीं देंगे और न किसी किस्म की मुखालिफाना सरगर्मियों में हिस्सा लेंगे और अगर किसी ने किसी मुखालिफ को पनाह दे रखी है तो वह उसको पेश करेगा। जो लिख कर देगा और उस पर पाबन्दी करेगा वह बरी हो जाएगा और जो ऐसा नहीं करेगा उसका माल व जान दोनों हम पर हलाल होंगे।
हम उसको कत्ल करके उसी के दरवाज़ा पर लटका देंगे और उसके तमाम मुतअल्लेकीन को भी नहीं छोड़ेंगे। इब्ने ज़्याद के आने और डराने धमकाने से अहले कूफा घबरा गए – और ख़ौफ़ज़दा हो गए और उनके ख़्यालात में तब्दीली आने लगी। हालात के पेशे नज़र हज़रत मुस्लिम ने मुख़्तार बिन उबैदा के यहां रहना मुनासिब न समझा और रात के वक़्त वहाँ से निकल कर अकाबिरे कूफा में से एक मुहिब्बे अहले बैत हानी बिन उरवा मज़हजी के यहां आए। हानी को आपका आना सख़्त नागवार हुआ कहने लगा अगर आप यहाँ न आते तो अच्छा था। आपने फरमाया : मैं खानदाने रिसालत का एक गरीबुल-वतन मुसाफिर हूँ, मुझे पनाह दो।
हानी ने कहा अगर आप मेरे मकान में दाखिल न हो गए होते तो मैं यही कहता कि आप चले जाएं। लेकिन अब यह मेरी गैरत के ख़िलाफ़ है कि आपको घर से निकाल दूँ। हानी ने मकान के ज़नाना हिस्से के एक महफूज़ कमरे में आपको छुपा दिया।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….