इस्तेहाजा उस खून को कहते हैं जो हमेशा जारी रहता है कभी बन्द नहीं होता है। या बहुत कम दिनों यानी महीने में दो तीन दिनों के लिए रुकता हो ,और एक दूसरी बात ये है कि जो खून पंद्रह दिनों से ज़्यादा आता है उसे इसतेहाजा कहते हैं मगर ये कि किसी औरत को पंद्रह दिन से ज्यादा खून आता हो। हमल के दौरान हमबिस्तरी करना।
मुस्तहाज़ा की तीन हालत है I
पहली हालतः- इसतेहाजा से पहले औरत को हैज की मुद्दत मालूम हो तो ऐसी सूरत में वो पहले हैज़ की मालूम मुद्दत में उस पर हैज के हुक्म साबित होंगे और उस के बाद इसतेहाजा का होगा और उस पर मुस्तहाजा के हुक्म होंगे।
मिसाल के तौर पर औरत को हर महीने के शुरू में छह दिनों तक हैज़ आता था, फिर उसे इसतेहाजा तारी होता हो और उसे बराबर खून आने लगे तो उस के लिए हर महीने शुरू के छह दिन हैज के होंगे और उसके बाद जो खून आयेगा वो इसतेहाजा का होगा, इस बुनियाद पर जिस हायजा को हैज की मुद्दत मालूम होगी उतने समय वह बैठेगी फिर गुस्ल करके नमाज पढ़े और उस वक्त गिरने वाले खून की परवा न करे।Istehaza aur uska huqm
दूसरी हालतः- इस्तेहाजा से पहले औरत को हैज की मुद्दत मालूम न हो, यानी जब से उसे हैज (माहवारी) का खून आया हो तभी से उसे इस्तेहाजा का खून भी आया हो तो ऐसी सूरत में वो हैज और इसतेहाजा के बीच फर्क करेगी। ज़्यादा सोहबत (हमबिस्तरी) नुक़सानदेह ।
उस का हैज काले रंग का या गाड़ा या बदबूदार होगा तो उस पर हैज का हुक्म साबित होता है और उस के बाद जो खून आयेगा वो इसतेहाजा का खून होगा। इसकी मिसाल ये है कि औरत ने पहली बार जो खून देखा वो ऐसे जारी रहता है।
बल्कि वो दोनो खून के बीच फर्क कर सकती है जैसे दस दिन वह काला खून देखती है और महीने के बाकी दिनों में सुर्ख खून देखती है या दस दिन का खून गाढ़ा होता है और महीने के बाकी दिनों का खून पतला होता है या दस दिनों में हैज की बदबू आती है और बाकी महीने में बदबू नहीं आती है तो पहली मिसाल में काला खून वाला, दूसरी मिसाल में गाढ़ा खून और तीसरी मिसाल में बदबूदार खून हैज का होगा और उस के बाद का इस्तेहाजा का खून होगा।
तीसरी हालतः- औरत को न तो हैज की मुद्दत मालूम हो और न ही वह हैज और इस्तेहाजा के बीच फर्क कर पाती हो यानी जब से उस ने खून देखा तभी से खून जारी हो और एक ही जैसा या अलग अलग तरह का हो और शायद वह हैज हो ही न तो औरत इस बात को माने कि हैज की अवधि हर महीने के छह सात दिन होगी।Istehaza aur uska huqm
जब से खून दिखाई दिया जब से हैज की शुरूआत मानी जाएगी इसके अलावा बाकी दिनों का खून इस्तेहाजा होगा । मुस्तहाजा के लिए वही हुक्म है जो पाकी के हैं। मुस्तहाजा और पाक औरत के बीच कोई फर्क नहीं है सिवाय उस दौरान आने वाली परेशानियों के ।
मुस्तहाज़ा के लिये हर नमाज़ के लिए वजू जरूरी है।
जब वह वजू करना चाहे तो खून देख लेगी और शर्मगाह पर पट्टी बांधेगी ताकि खून रोका जा सके । नफास उस खून को कहते हैं जो बच्चे की पैदाइश के बाद या दो तीन दिन पहले दर्द के साथ जारी होता है । जब नफास का खून खत्म हो जाए तो औरत पाक हो जाएगी। अगर खून चालीस दिनों तक भी आये तो वो चालीस दिनों बाद गुस्ल कर लेगी।
इस लिए की नफास की अधिक से अधिक मुद्दत चालीस दिनो की है। अगर इस के बाद जारी खून हैज हो तो उससे पाक होने का इंतजार करे और फिर गुस्ल करेगी। हमबिस्तरी के दौरान शर्मगाह देखना।
नफास गर्भ के बाद ही होगा जिस में इन्सान का ढाचां बन चुका हो। अगर वो पैदाइश वाजेह न हो तो वो नफास का खून नहीं होगा बल्कि वो रग का खून होगा और उस का हुक्म मुस्तहजाह का होगा और गर्भ ठहरने के दिनों में इन्सान की तखलीक अस्सी दीन में वाजेह होती है और ज्यादा से ज्यादा नब्बे दीनों में।Istehaza aur uska huqm
नफास के भी वही हुक्म हैं जो हैज के होते हैं जिन को उपर बयान किया गया है:-
हैज़ और हमल (गर्भ) को रोकने वाली चीज़ों का इस्तेमाल औरत के लिए हैज को रोकने वाली दवाइयों का इस्तेमाल दो शर्तों के साथ जायज़ है।
पहली शर्तः- इस से औरत को नुकसान न पहुंचे अगर हैज रोकने वाली दवा इस्तेमाल करने की सूरत में औरत को नुकसान होता हो तो उस का इस्तेमाल करना जायज़ नहीं
दूसरी शर्त:- अगर उस का सम्बन्ध शौहर से है तो शौहर की इजाजत से किया जाए ,हैज जारी करने वाली दवाइयों के इस्तेमाल की भी दो शर्तें हैं।Istehaza aur uska huqm
1. शौहर की इजाज़त
2. इस का मकसद वाजिब इबादतों को छोड़ना न हो,
जैसे रोजे छोड़ना या नमाज़ छोड़ देना वगैरह ।
हमल रोकने वाली चीज़ों के इस्तेमाल की भी दो शर्तें हैं:
इस के इस्तेमाल से हमल ठहरने की हमेशा के लिए रोक दिया जाए तो यह जायज नहीं ।
इस के इस्तेमाल से कुछ वक्त के लिए हमल ठहरने को रोकना, हमबिस्तरी करने से पहले ख़ुशबू का इस्तेमाल।
मिसाल के तौर पर अगर औरत को जल्दी जल्दी गर्भ ठहर जाता हो और उससे वह कमजोर हो रही हो जिस की वजह से वह अपने हमल को दो साल या उस जैसी मुद्दत तक रोकना चाहती हो तो वो जायज़ है। बशर्ते कि उसका शौहर इजाज़त दे दे और उससे औरत को कोई नुकसान न होता हो ।
इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…