हुक़ूक़े वालिदैन । Huqoqe Walidain.

Huqoqe Walidain.
Huqoqe Walidain.

माँ बाप के हुक़ूक़ :-

मां बाप के साथ हुसने सलूक यानी भलाई से पेश आना वाजिब है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का इरशाद है:

तर्जुमाः- अगर तेरी ज़िन्दगी में वालिदैन में से एक या दोनों बुढ़ापे को पहुंच जायें तो उनको उफ भी न कह और कोई झिड़की की बात न कर , उनसे बात करते वक्त नरमी एख़्तियार कर।

एक और जगह इरशाद हुआ हैः तर्जुमाः- और दुनिया में उन दोनों का अच्छा साथ दो। एक और जगह इरशाद हैः तर्जुमाः मेरा और अपने वालिदैन का शुक्र अदा कर और तुझे मेरी ही तरफ लौट कर आना है।

हज़रत इब्ने अब्बास रजिअल्लाहो तआला अन्हो की रिवायत है कि अगर कोई शख़्स मां बाप को रात भर नाराज़ रखे यहां तक कि सुबह हो जाए तो उसके लिए दोज़ख के दरवाजे खोल दिये जाते हैं और सुबह से शाम तक मां बाप को नाराज़ रखे उसके लिए भी दोज़ख के दो दरवाज़े खोल दिये जाते हैं अगर मां बाप में किसी एक को नाराज़ करे तो उसके लिए दोज़ख का एक दरवाज़ खोल दिया जाता है ख़्वाह उस नाराज़गी में ज़्यादती मां बाप ही की तरफ से क्यों न हो।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया अल्लाह की रजामंदी मां बाप की रजामंदी में है और अल्लाह की नाराजगी मां बाप नाराजगी में है। यह भी हज़रत अब्दुलाह इब्ने उमर से मरवी है कि एक शख़्स ने रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की ख़िदमते गिरामी में हाज़िर हो कर अर्ज किया मैं जिहाद का इरादा रखता हूं हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया क्या तेरे वालिदैन हैं? उसने जवाब दिया हां आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया उन्ही की ख़िदमत में जिहाद है।Huqoqe Walidain.

वालिदैन के साथ भलाई करने की सूरत यह है कि उनकी ज़रूरतों को पूरा करे उन्हें तकलीफ न पहुंचने दे, वालिदैन के साथ बच्चों जैसी नरमी और मोहब्बत की बातें करे, उन की ख़िदमत करने में कोताही न करे, वालिदैन से खिचकर न रहे सच्चे दिल और मोहब्बत से उनकी खिदमत करे, उनकी तरफ से दुख बर्दाश्त करे उनकी आवाज़ से अपनी आवाज़ ऊंची न करे। माँ की बद्दुआ ।

शरई मुखालफत न हो तो किसी काम में उनकी मुखालफत न करे। अगर वह किसी ऐसे काम के लिए कहें यानी जो खिलाफे शरअ हो तो उस हुक्म को न माने जैसे हज नमाज़, ज़कात, कफ्फारा और अल्लाह तआला की नज़र वगैरह तर्क करने का हुक्म न माने अगर वालिदैन के हुक्म से किसी हराम काम का इरतेकाब होता हो जैसे ज़िना, शराब नोशी, कत्ले ज़िना की तोहमत लगाना नाजायज़ माल लेना यानी चोरी और डाका वगैरह तो इस हुक्म की इताअत न करे।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि इन बातों या कामों में मख़लूक की ताबेदारी न करो जो ख़ालिक की नाराज़गी का बाइस हैं और अल्लाह तआला का इरशाद है:

तर्जुमाः- और अगर तेरे वालिदैन तुझे इस लिए तकलीफ़ में डालें कि तू उस चीज़ को खुदा का शरीक करार दे जिस का तुझे इल्म ही नहीं तो तू उनका कहना न मान, हां दुनियां में उनका सिर्फ नेकी में साथ दे।

मन्दरजा हदीस और इरशादाते रब्बानी से मालूम होता है कि जो भी अल्लाह की ना फरमानी या अल्लाह की इताअत तर्क करने का हुक्म दे उसकी बात न मानी जाए। इमाम अहमद, अबू तालिब से रिवायत करते हैं कि एक शख़्स को उसके वालिदैन नमाज़े बा जमाअत में शिरकत से मना किया करते थे तो आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उस शख़्स से फराएज़ को तर्क करने के बारे में मां बाप के हुक्म की इताअत मत करो।

इताअते वालिदैन के मजीद अहकाम :-

वालिदैन की फरमांबरदारी के लिए नफ़्लों को तर्क किया जा सकता है और यह अफज़ल है। वालिदैन के साथ भलाई की एक सूरत यह भी है कि वालिदैन ने जिन लोगों से मिलना जुलना छोड दिया उनसे खुद भी तर्के ताल्लुक करे और जिन लोंगो से वालिदैन के ताल्लुकात हों उनसे खुद भी ताल्लुक रखे।

वालिदैन के मामले में मुखालिफों पर ऐसा ही गुस्सा करे जैसा अपनी जात के लिए करता है। अगर वालिदैन की किसी बात पर गुस्सा आये तो उस वक्त वालिदैन की उन तकालीफ उनके ईसार कुरबानी और खुलुस व मोहब्बत को याद करो जो उन्होंने तुम्हारी परवरिश के दौरान की हैं और उस वक्त अल्लाह के उस फरमान को भी याद करो “वालिदैन के साथ इज़्ज़त के साथ बात करो” अगर वालिदैन की शफकत की याद भी गुस्सा को फुरु न कर सके तो समझ ले कि वह बद नसीब है और अल्लाह की नाराज़गी में गिरफ़्तार है। माँ-बाप की दुआओं के असरात।

अगर तुमने अल्लाह तआला के हुक्म के खिलाफ मां बाप के साथ कोई सुलूक किया है तो गुस्सा फुरु हो जाने के बाद अल्लाह तआला से इसकी माफी चाहो और तौबा करो। अगर किसी ऐसे सफर पर चाहो जो तुम पर वाजिब नहीं है तो वालिदैन की रजामन्दी के बगैर मत जाओ। मां बाप की रजामन्दी के बगैर जिहाद पर भी न जाओ, वालिदैन को कोई दुख न पहुंचाओ इस का ख़्याल रखो कि तुम्हारी वजह से तुम्हारे वालिदैन को कोई शख़्स आजार पहुंचाने का बाइस न बने।

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उस शख़्स पर लानत की है जो मां और बच्चे जुदाई का बाइस हो अगर कहीं से खाने पीने की चीजें लाओ तो सबसे अच्छा खाना मां बाप को दो क्योंकि वह भी तुम्हारी ख़ातिर अक्सर भूखे रहे हैं और तुम को अपने ऊपर तरजीह दी है और तुम्हारा पेट भरा है खुद बेदार रहे हैं और तुम को सुलाया है।Huqoqe Walidain.

अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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