19/05/2025
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हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम का वाक्या।Hazrat mariyam Alehissalam ka waqia.

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हज़रत मरयम किसी की बीवी नहीं हैं। हां एक पैग़म्बर की मां हैं। हज़रत मरयम अलैहस्सलाम के वालिद इमरान और जकरिया अलैहिस्सलाम दोनों हम जुल्फ़ थे। इमरान की बीवी का नाम हन्ना था और ज़करिया अलैहिस्सलाम की बीवी का नाम ईशान था।

इमरान की बीवी हज़रत हन्ना से एक ज़माना तक औलाद न हुई यहाँ तक कि बुढ़ापा आ गया और मायूसी हो गई। यह नेक लोगों का खानदान था और यह सब लोग अल्लाह के मक़बूल बन्दे थे।

एक रोज़ हन्ना ने एक दरख़्त के सायातले एक चिड़िया अपने बच्चे समेत देखी तो यह देखकर आपके दिल में औलाद का शौक पैदा हुआ।

और बारगाहे इलाही में दुआ की यारब अगर तू मुझे बच्चा दे तो मैं उसको बैतुल मुकद्दस का ख़ादिम बनाऊँ और उसे खिदमत के लिए हाज़िर कर दूँ , चुनांचे ख़ुदा ने आपकी दुआ सुन ली और जब वह हामिला हुई और उन्होंने यह नज़र मान ली तो उनके शौहर ने फरमाया कि यह तुमने क्या किया अगर लड़की हो गई तो वह इस काबिल कहाँ है -उस जमाना में लड़कों को खिदमते बैतुल मुकद्दस के लिए दिया जाता था और लड़कियाँ और मर्दों के साथ न रह सकने के बाइस इस काबिल नहीं समझी जाती थीं, वज़ए हमल से पहले इमरान का इन्तिकाल हो गया और हज़रत हन्ना के यहां लड़की पैदा हुई और अल्लाह के फज्ल से ऐसी लड़की पैदा हुई जो फ़रज़न्द से ज़्यादा फजीलत रखने वाली थी।

यह साहबज़ादी ही हज़रत मरयम थीं और अपने ज़माने की औरतों में सबसे अजमल व अफ़ज़ल हसीन और नेक थीं। उनका नाम मरयम इसलिए रखा गया कि मरयम का माना है।( आबिदा )इबादत करने वाली अल्लाह तआला अपने नेक बन्दों की दुआएँ सुनता और कुबूल करता है। हज़रत हन्ना को बुढ़ापे में बच्चा अता फरमा दिया और हज़रत हन्ना की तमन्ना भी हमारे लिए मशअले राह है।

नज़र यह मानी कि खुदा मुझे बच्चा दे तो मैं उसे बैतुल मुकद्दस की खिदमत के लिए वाकिफ छोड़ दूँगी आजकल की माओं की तरह नहीं कि खुदा बच्चा अता करे तो उसे मैं लंदन भेजूँगी उसे डी-सी पी बनाऊँगी और थानेदार बनाऊँगी वह अलग बात है कि थानेदार साहब अपनी माँ ही को हथकड़ी लगाने आ धमके मालूम हुआ , कि अल्लाह से औलाद की तलब की जाए तो तमन्ना यह होनी चाहिए कि मेरा बच्चा दीन का ख़ादिम बने। मस्जिदें आबाद करे और ख़ुदा को याद करे। यह नहीं कि दिन भर हाकी का मैच ही खेलता रहे।

हन्ना ने जो नज़्र मानी थी। खुदा-ए-तआला ने कुबूल फरमा ली । हज़रत हन्ना ने हज़रत मरयम के पैदा होने के बाद एक कपड़े में लपेट कर बैतुल मुकद्दस में अहवार के सामने पेश कर दिया।

यह अहवार हज़रत हारून अलैहिस्सलाम की औलाद में से थे। चूंकि हजरत मरयम उनके इमाम की बेटी थीं और उनका खानदान बनी इसराईल में बड़ा ऊँचा खानदान था इसलिए उन सबने जिनकी तादाद सत्ताईस थी हज़रत मरयम को लेने और उनका ज़िम्मेदार बनने की ख़्वाहिश की। हज़रत जकरिया ने फरमाया मैं चूंकि मरयम का खालू हूँ। इसलिए सबसे ज़्यादा हकदार मैं हूँ ।हमारे नबी (स.व)का निकाह।

मामला इस पर ख़त्म हुआ कि कुरआ डाला जाए। कुरआ डाला तो कुरआ हज़रत जकरिया का नाम ही निकला और आप हज़रत मरयम के जिम्मेदार बने।

आपने फिर बैतुल मुकद्दस में हज़रत मरयम के लिए मेहराब के पास एक कमरा बनाया उसमें आपको रखा। हज़रत मरयम की यह करामत थी कि आप एक दिन में इतना बढ़तीं जितना दूसरा बच्चा साल भर में बढ़ता है

और आपने किसी औरत का दूध भी नहीं पिया बल्कि हज़रत ज़करिया- जब कमरा बन्द करके उसे ताला लगाकर बाहर तशरीफ ले जाते और वापस वहाँ आते तो उनके पास रंग-रंग के बे-मौसम फल मौजूद पाते।

एक रोज़ आपने यह मंज़र देखा तो पूछा। ऐ मरयम ! यह मेवे तेरे पास कहाँ से आए आपने जवाब दिया। वह अल्लाह के पास से है।

यह भी हज़रत मरयम की करामत थी कि बचपन में आपने बात सुनकर उसका जवाब दिया और फरमाया कि यह बे-मौसम का फल अल्लाह के पास से आया है।

हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम ने जब यह देखा कि अल्लाह तआला मरयम के पास बे-मौसम फल भेज रहा है तो फरमाया कि जो जाते पाक मरयम को बे वक्त बे फल और बेगैर सबब के मेवा अता फरमाने पर कादिर है।

वह बेशक इस पर भी कादिर है कि मेरी बांझ बीवी को नई तन्दुरुस्ती दे। और मुझे बुढ़ापे की उम्र में उम्मीद ख़त्म हो जाने के बाद बेटा अता फरमाए ।

यहाँ पुकारा जकरिया ने अपने रब को बोला ऐ मेरे रब मुझे अपने पास से साफ सुथरी औलाद दे बेशक तू ही है दुआ सुनने वाला।

चुनांचे वहाँ मांगने का यह असर हुआ कि जिब्रीले अमीन हाजिर हुए और अर्ज़ किया।

आपको खुशखबरी देता हुं यहया का । चुनांचे मुकद्दस बुढ़ापे में आपको अल्लाह तआला ने यहया अलैहिस्सलाम अता फरमाए।

करामाते औलिया हक हैं हज़रत मरयम बेगैर किसी औरत का दूध पिए दिन में इतना पढ़ती जितना दूसरा बच्चा साल भर में बढ़ता है और आपके लिए खाने पीने का सामान जन्नत से आता।

मालूम हुआ कि अल्लाह तआला हर चीज़ पर कादिर है यह जो आम कवानीने कुदरत नज़र आते हैं ख़ुदा तआला उनका पाबन्द नहीं बल्कि यह कवानीन खुद ख़ुदा की मर्ज़ी के पाबन्द हैं वह अपने कानून के खिलाफ भी जो चाहे कर सकता है यानी उसका एक कानून यह भी है कि आम क़वानीन के बरअक्स जो चाहे कर दिखाए ।

जो लोग मोजज़ात व करामात के मुंकिर हैं वह शाने उलूहीयत से बेखबर हैं वह ख़ुदा को उन क्वानीन का तावे समझते हैं।

मआज़ल्लाह हालांकि सब कवानीन उसके ताबे हैं। यह भी मालूम हुआ कि खुदा तआला अपने मख़्सूस बन्दों की खास तरबियत फरमाता है और यह भी मालूम हुआ कि जहाँ किसी अल्लाह के नेक बन्दे के कदम लग जाएं।

उस जगह में यह तासीर पैदा हो जाती है कि वहाँ जो भी दुआ मांगी जाए अल्लाह कुबूल फरमा लेता है इसीलिए तो हज़रत जकरिया ने उस के मुताबिक वहाँ खड़े हो कर दुआ मांगी जहाँ मरयम बैठी थीं गोया हज़रत मरयम के कदमों की बरकत से वह पाक ज़मीन ऐसा पाक बन गया था कि वहाँ जो दुआ मांगो कुबूल हो जाती थी वरना हज़रत ज़करीया ने वही जगह दुआ के लिए क्यों मुंतख़ब की

बेशक सारी ज़मीन अल्लाह ही की ज़मीन है मगर उस ज़मीन के बाज़ हिस्से शोरज़दा और बाज़ पैदावार के हक में मुफीद होते हैं कुसूर की ज़मीन से मेथी खुशबूदार पैदा होती है पसरूर की ज़मीन हांडियों के लिए मशहूर है

हमारे सियालकोट का खित्ता इल्मखेज़ मशहूर है मुल्ला अब्दुल हकीम सियालकोटी रहमतुल्लाह अलैहि के अलावा यहाँ से बड़े-बड़े अहले इल्म पैदा हुए नज्द की सरज़मीन फ़ितनों की ज़मीन है

इंग्लिस्तान की ज़मीन फरेब और मक्कारी पैदा करती है। मदीना मुनव्वरा की सरज़मीन रश्के जन्नत और मुहीते मलाइका है।

अलगर्ज जहाँ किसी अल्लाह के बन्दे के क़दम लग जाएं। वह कतआ ज़मीन मुतबर्रक हो जाता है। हज़रत ज़करीया अलैहिस्सलाम ने इसलिए उसी जगह दुआ मांगी जहाँ मरयम बैठी थीं।

इसी तरह हम जो दाता साहब के मज़ार पर अजमेर शरीफ़ की हाज़िरी देकर वहाँ दुआ माँगते हैं इसीलिए कि यह कृतआत ज़मीन अल्लाह वालों के क़दमों की बरकत से मुकद्दस हो चुके हैं

जहाँ अल्लाह से जो भी दुआ मांगी जाएगी। ख़ुदा दुआ कुबूल फरमाएगा और मदीना मुनव्वरा की हाज़िरी नसीब हो जाए तो फिर कहने ही किया । वह सरज़मीन तो है ही जन्नत और मुहीते मलाइका वहाँ जो मांगो पाओ।

हज़रत मरयम जब जवान हुई तो एक बार उनको ख़ूबसूरत आदमी की शक्ल में ख़ुदा का फ़रिश्ता जिब्रील अलैहिस्सलाम नज़र आये।

कुरआन पाक में है उसकी तरफ हमने रूहानी (जिब्रील) भेजा। वह उसके सामने एक तन्दुरुस्त आदमी बन कर ज़ाहिर हुआ”.मरयम घबरा गई और कहा मैं तुझसे अल्लाह की पनाह माँगती हूँ।

अगर तुझे ख़ुदा का डर है। जिब्रील ने कहा । मैं इंसान नहीं बल्कि मैं तो तेरे रब का भेजा हुआ हूँ। ताकि तुम्हें मैं एक सुथरा बेटा दूँ बोली यह क्योंकर होगा।

मुझे तो किसी आदमी ने हाथ नहीं लगाया न मैं बदकार हूँ फरिश्ते ने कहा। यूंही तेरे रब ने फरमाया है कि यह मुझे आसान है वह अपनी कुदरते कामिला से बेगैर बाप के बच्चा पैदा कर सकता है।

वह फ़रमाता है कि हम इस तरह बच्चा पैदा फरमा कर उस बच्चे को लोगों के वास्ते निशानी बनाएंगे। तब जिब्रील ने उनके कुर्ते के गिरेबान में दम कर दिया यानी फूंक दिया इसके बाद मरयम को हमल हो गया उस वक्त आपकी उम्र शरीफ तेरा साल की थी सबसे पहले जिस शख़्स को हज़रत मरयम के हमल का इल्म हुआ व उनका चचा ज़ाद भाई यूसुफ नज़ार है।

जो मस्जिदे बैतुल मुकद्दस का खादिम था और बहुत बड़ा आबिद शख्स था उसको जब मालूम हुआ मरयम हामिला हैं तो निहायत हैरत हुई।

जब चाहता था कि उन पर तोहमत लगाए तो उनकी इबादत, जुह्द व तक्वा और हर वक्त का हाज़ि रहना किसी वक्त गायब न होना याद करके खामोश हो जाता था और ज हमल का ख़्याल करता था तो उनको बुरी ख़्याल करना मुश्किल नज़र आता था बिला- आखिर उसने हज़रत मरियम से कहा कि मेरे दिल में एक बात आई है हर चन्द चाहता हूँ कि जुबान पर न लाऊँ मगर अब सहन नही होता । आप इजाजत दें कि मैं कह गुज़रू ताकि मेरे दिल की परेशानी दू हो जाए।

हज़रत मरयम ने कहा अच्छी बात है कहो तो उसने कहा मरयम मुझे बताओ कि क्या खेती बेगैर बीज और दरख़्त बेगैर बारिश और बच्चा बेगैर बाप के पैदा हो सकता है ?

हज़रत मरयम ने फरमाया कि हाँ तुझे मालूम नहीं कि अल्लाह तआला ने जो सबसे पहले खेती पैदा की और दरख्त अपनी कुदरत से बेग़ैर बारिश के उगाए क्या तू यह कह सकता है कि अल्लाह तआला पानी की मदद के बगैर दरख्त पैदा करने पर कादिर नहीं। यूसुफ ने कहा मैं तो यह नहीं कह सकता। बेशक मैं उसका काइल हूँ कि अल्लाह हर शय पर कादिर है जिसे फरमाए वह हो जाती है। हज़रत मरयम ने कहा क्या तुझे मालूम नहीं कि अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और उनकी बीबी को बेगैर मां-बाप के पैदा किया।

हज़रत मरियम के इस कलाम से यूसुफ का शुबहा दूर हो गया और हज़रत मरयम हमल के सबब से कमज़ोर हो गई थीं। इसलिए मस्जिद में यूसुफ उनकी जगह पर करने लगा।

अल्लाह तआला ने हज़रत मरयम को इल्हाम किया कि वह अपनी कौम से इलाहिदा चली जाएं इसलिए वह बैतुल-लहम में चली गई।

फिर उसे दर्दे ज़ेह (बच्चा पैदा होने के वक्त जो दर्द होता है) एक खुजूर की जड़ में ले आया…..उस खुजूर का दरख्त बिल्कुल सूख चुका था

और यह एक ऐसी दूर उफ्तादा वीरान जगह थी जहाँ पानी का नाम तक न था न कुछ खाने का सामान वहाँ था ऐसी जगह पहुँच कर आपने खुश्क खुजूर के दरख्त की जड़ से टेक लगाई और रुसवाई और बंदनामी के ख्याल से फरमाया।

हाय किसी तरह मैं इससे पहले मर गई होती और भूली बिसरी हो जाती ऐसे वक़्त में ख़ुदा तआला ने हज़रत मरियम की मदद फरमाई तो जिब्रील उसी वादी के बीच से आवाज़ दी। तेरे रब तेरे नीचे नहर बहा दी है।

हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हु फरमाते कि ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए तो आपने अपनी एड़ी ज़मीन पर मारी तो आबे शीरी का (मीठे पानी का) चश्मा जारी हो गया यह तो पीने का इन्तिज़ाम फरमाया और खाने के लिए फरमाया और खुजूर की जड़ पकड़ कर अपनी तरफ हिला तुझ पर ताज़ी पक्की खुजूरें गिरेंगी तू खा और पी और आंख ठंडी रख… फिर तू अगर किसी आदमी को देखे और कुछ पूछे तो इशारे से कह देना कि मैंने आज का दिन चुप रहने का रोज़ा रखा है। इसलिए आज किसी से बात न करूँगी।

इसके बाद जब आप ईसा अलैहिस्सलाम को गोद में लिए अपनी कौम के पास आई तो वह बोले। ऐ मरयम तूने बहुत बुरी बात की ऐ हारून की बहन तेरा बाप बुरा आदमी न था।

और न तेरी मां बदकार थी तुमने यह क्या किया ? उस पर मरयम ने बच्चे की तरफ इशारा किया कि उसी से पूछ लो बात क्या है ? वह बोले हम क्या पागल हैं जो एक दिन के बच्चे से जो अभी पालने में बच्चा है बात करें। आपने इशारा किया कि तुम उससे पूछो तो उन्होंने पूछा तो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पहले रोज़ ही बोल उठे कि मैं अल्लाह का बन्दा हूँ।

उसने मुझे किताब दी और मुझे नबी बनाया और मुबारक बनाया. ..मैं कहीं हूँ और मुझे नमाज व जकात की ताकीद फरमाई मैं जब तक जियूँ और अपनी माँ से अच्छा सुलूक करने वाला और मुझे ज़बरदस्त बदबख्त न किया और सलामती हो मुझ पर जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन विसाल हो और जिस दिन ज़िन्दा उठाया जाऊं जब हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने यह कलाम फरमाया तो लोगों को हजरत मरयम की पाकी और नेक होने का यकीन हो गया और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम इतना फरमा कर खामोश हो गए और उसके बाद कलाम न किया जब तक कि उस उम्र को पहुंचे जिसमें बच्चे बोलने लगते हैं।

अल्लाह तआला ने हज़रत मरयम को बेग़ैर बाप के बच्चा अता फरमाया और यह उसकी कुदरते कामिला की निशानी है आम कानून तो यह है कि मां-बाप दोनों के होते हुए बच्चा पैदा होता है मगर ख़ुदा तआला किसी कानून का पाबन्द नहीं कानून उसका पाबन्द है। वह चाहे तो बेगैर बाप के भी बच्चा पैदा कर सकता है जैसा कि उसने मरयम के यहाँ बच्चा पैदा कर दिखाया ।

और फरमाया यह बात मेरे लिए आसान है अगर कोई शख्स यह ख़्याल करे कि ईसा अलैहिस्सलाम बाप के बेगैर पैदा हुए लेकिन मां तो उनकी थी यानी मां का होना जरूरी है तो अल्लाह तआला ने हज़रत हव्वा को हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पसली से पैदा फरमा कर बता दिया कि मैं बेग़ैर मां के भी बच्चा पैदा कर सकता हूँ और अगर कोई यह ख्याल करे कि मां-बाप में से कम अज़ कम एक का होना ज़रूरी है तो खुदा ताआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को बेगैर मां-बाप के पैदा फरमा कर बता दिया कि मैं बेग़ैर मां-बाप के भी बच्चा पैदा कर सकता हूँ अल्लाह की अपने बन्दो पर रहमत।हज़रत आदम व हव्वा और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश ख़वारिके आदत और अल्लाह की कुदरते कामिला का नमूना है वैसे आम कानून यही है कि मां-बाप के होते हुए बच्चा पैदा होता है।

लतीफा एक दफा एक साहब वअज़ फरमा रहे थे कि जो देता है अल्लाह ही देता है। गैरुल्लाह के पास हरगिज़ नहीं जाना चाहिए। एक मंचले ने उठकर कहा।

मौलवी साहब! अगर कोई औरत दिन रात अल्लाह से बच्चा तलब करती रहे। अल्लाह तआला उसे हरगिज़ बच्चा न देगा जब तक वह गैरुल्लाह यानी अपने शौहर के पास न जाएगी।

अल-गर्ज़ हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश अल्लाह की ख़ास निशानी है आप वेगैर बाप के पैदा हुए हैं जिस पर कुरआन पाक की -मुतअद्दिद आयात शाहिद हैं।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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