आप एशिया-ए-हिन्द व पाकिस्तान में बड़े-बड़े औलिया-ए-किराम के सरदार और चिश्तिया सिलसिले के बानी हैं, आप हनफी मज़हब के थे खुरासान में 14 रजब 527 हि0 में पैदा हुए। आपके अब्बाजान का नाम ग्यासुद्दीन है जो हुसैनी सैय्यद थे।
आपकी वालिदा मुहतरमा का नाम “माहे नूर” है जो हसनी सैय्यदा थीं। ख़्वाजा मुईनुद्दीन रहमतुललाहि तआला अलैहिमा 9 साल की उम्र में आपने कुरआन मजीद हिफ़्ज़ कर लिया। और 14 साल की उम्र में तफ्सीरो हदीस और फ़िक़ह की तालीम से फारिग हो गए।
और बाज़ रिवायतों में है कि 20 साल की उम्र तक तालीम हासिल की।हुकूमत के इन्कलाब की वजह से आपके वालिद अहलो अयाल के साथ खुरासान से इराक चले आए थे वहीं उनका इन्तिकाल हुआ जब कि हज़रत ख़्वाजा की उम्र पन्द्रह साल थी। वालिदे गिरामी के इन्तिकाल फरमाने के बाद आप अपनी वालिदा मुहतरमा के साथ खुरासान गए। जायदाद में आपको एक बाग़ और पनचक्की मिली जिस की आमदनी से आपके खर्च चलते थे।
एक दिन आप अपने बाग़ में थे कि अचानक हज़रत ख़्वाजा इब्राहीम मजजूब वहाँ गए। आपने बड़े अदब से अंगूर का खोशा उनकी ख़िदमत में पेश किया। मजजूब ने बड़ी रगबत से उनको खाया फिर अपनी जंबील (झोली) से खली का टुकड़ा निकाला और दाँत से काट कर आपको खाने के लिए दिया।
उस के खाते ही आपका दिल दुनिया से सर्द हो गया। बाग़ व पनचक्की बेच कर फुकरा में तकसीम कर दिया और सफर के लिए निकल पड़े, बुखारा वगैरह होते हुए बगदाद शरीफ पहुंचे, वहाँ सुलतानुलमुर्शिदीन हज़रत ख़्वाजा उसमान हारूनी अलैहिर्रहमतु वरिज़वान से शर्फे वैअत (मुरीद होना) हासिल किया।
और बीस साल तक सफर व हज़र में अपने पीर व मुर्शिद की खिदमत में रहे और उनके बर्तन व बिस्तर ले कर साथ में चलते रहे उसके बाद हज़रत ने आपको नेअमते खिलाफत (जानशीनी) से सरफराज़ फ़रमाया।Hazrat Khwaja Moinuddin Chisti ka aqida.
7 मुहर्रम 561 हि0 में आप अजमेर शरीफ तशरीफ लाए और 6 रजब 633 हि0 106 साल की उम्र में इन्तिकाल फरमाया। मशहूर है कि हज़रत की मौत के बाद आपकी पेशानी पर यह नक़्श ज़ाहिर हुआ। “अल्लाह का हबीब अल्लाह की मुहब्बत में दुनिया से रूख़्सत हुआ।” हज़रत गौसे पाक का अक़ीदा ।
हज़रत शैख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी बुखारी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते हैं कि आप पिथौरा राय के दौरे हुकुमत में अजमेर तशरीफ लाए और इबादते इलाही में मशगूल हो गए पिथौरा राय उस ज़मानें में अजमेर ही का नीवासी था। एक रोज़ उसने आपके एक मुसलमान अकीदतमन्द को किसी वजह से सताया।
वह बेचारा आपके पास फरियाद ले कर पहुंचा। आपने उसकी सिफारिश में पिथौरा राय के पास एक पैग़ाम (कासिद) भेजा लेकिन उसने आपकी सिफारिश कुबूल न की और कहने लगा कि यह शख़्स यहाँ आ कर बैठ गया है और गैब की बातें करता है। जब ख़्वाजा अजमेरी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि को यह बात मालूम हुई तो फरमाया कि हम ने पिथौरा को ज़िन्दा गिरफ़्तार करके हवाले कर दिया।
उसी ज़माने में सुलतान मुइज़्जुद्दीन उर्फ शहाबुद्दीन गौरी की फौज गज़नी से पहुंची। पिथौरा लश्करे गौरी से मुकाबिले के लिए निकला और सुलतान शहाबुद्दीन के हाथों गिरफ्तार हो गया। (अखवारूलअख्यार उर्दू पेज: 56)
और अहले तारीख ने लिखा है कि हज़रत ख़्वाजा अलैहिर्रमतु वरिज़वान जब अजमेर शरीफ में रौनके अफरोज़ हुए और एक दरख़्त के नीचे आपने आराम फरमाना चाहा तो एक शख़्स ने आवाज़ दी कि यहाँ न ठहरो क्योंकि यहाँ राजा के ऊँट बांधे जाते हैं। वहाँ से उठ कर हज़रत ख़्वाजा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि एक तालाब के किनारे जा कर ठहर गए।
ऊँटवानों ने रात हस्बे कायदा उसी दरख़्त के नीचे ऊँट बांध दिए और जब सुबह हुई और ऊँटों को उठाने लगे तो ऊँट ज़मीन से न उठ सके और उनके सीने ज़मीन से चिपके रह गए। यह माजरा देख कर ऊँटवान हैरान रह गए और गौर करने से इस मुसीबत के आने की वजह उनके ज़ेहन में यही आई कि कल जो हमने एक फ़कीर को सताया और यहाँ न बैठने दिया उसी की बद्दुआ लगी है।
आखिर कार हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन अलैहिर्रहमतु वरिज़वान की खिदमत में हाज़िर हुए और माफी चाही। आपने फ़रमाया जाओ तुम्हारे ऊँट खड़े हो जाएंगे, चुनाँचे वह लोग जब वापस हुए और ऊँटों को उठाया तो सारे के सारे ऊँट खड़े हो गए। जब यह वाकिआ शहर में मशहूर हो गया तो शहर के हिन्दू बाशिन्दों ने राजा से कहा कि प्रदेसी गैर मज़हब का आदमी हमारे मन्दिरों के करीब ठहरा हुआ है जो तालाब के किनारे पर है यहाँ उस का ठहरना मुनासिब नहीं है।
यह सुन कर राजा ने हुक्म दिया उस शख़्स को वहाँ से उठा दो और हमारी हुकूमत से निकाल दो। चुनाँचे बहुत बड़ा मजमा ख़्वाजा अजमेरी के पास पहुंचा और आपको तकलीफ पहुंचाने का इरादा कर ही रहे थे कि ख़्वाजा अजमेरी ने एक मुट्ठी ख़ाक ज़मीन से उठाई और उस पर आयतुलकुर्सी पढ़ कर दुश्मनों के हुजूम की तरफ फेंक दी और जिस पर भी उस मिट्टी के कुछ ज़र्रे गिरे, उस वक़्त उस का जिस्म खुश्क हो कर बेहिस व हरकत हो गया, बाकी लोग भाग कर शहर में आए।
ख़्वाजा के इन कमालात को देख कर अजमेर के लोगों ने समझा कि यह कोई बहुत पड़ा जादूगर है। उस का मुकाबला हर शख़्स के बस का नहीं है। कोई बड़ा ही जादूगर उस से जीत सकता है। चुनाँचे उन्हों ने हिन्दुस्तान के मशहूर जोगी जैपाल को ख़्वाजा अजमेरी के मुकाबले के लिए बुलाया।Hazrat Khwaja Moinuddin Chisti ka aqida.
जैपाल जोगी जो हिन्दुस्तान में अपना जवाब न रखता था अपने डेढ़ हज़ार चेलों के साथ अजमेर पहुंचा और उस तालाब की तरफ बढ़ा जहाँ हज़रत ख़्वाजा अलैहिर्रहमतु वरिज़वान तशरीफ फरमा थे। जब ख़्वाजा अजमेरी को उसके आने की ख़बर हुई तो आपने वुजू फरमाया और अपने असाए मुबारक (लाठी) से एक हिसार (घेरा) खींच दिया और अपने साथियों के हमराह उसी हिसार (घेरा) में तशरीफ फमा रहे।
हिसार खींच कर फरमाया कि इन्शाअल्लाहु तआला दुश्मन इसके अंदर न आसकेंगे। चुनाँचे ऐसा ही हुआ और जैपाल के साथियों में से जिस का भी पावँ उसके अंदर पड़ा बेहोश हो कर गिर गया। (बरकातुस्सालिहीन हिस्साः 2 स0: 67)
और रिवायत किया गया है जैपाल जोगी को बुलाने के साथ शहर वालों ने आपको सताने की एक तरकीब की और वह यह कि जिस तालाब के पास हज़रत ख़्वाजा अलैहिर्रहमतु वरिज़वान ठहरे थे उस पर पहरा लगा दिया, ताकि हज़रत ख़्वाजा अजमेरी के साथी उस में से पानी न ले सकें।
जब आपको उनकी इस हरक़त का पता चला तो आपने एक मुरीद से फरमाया कि तुम किसी तरीक़े से उस तालाब से एक प्याला पानी भर लो। चुनाँचे मुरीद ने हुक्म के मुताबिक उस तालाब से एक प्याला पानी भर लिया। प्याले के भरते ही तालाब का तमाम पानी खुश्क हो गया। और ऐसा खुश्क हुआ कि गोया उसमें कभी पानी मौजूद ही न था।
ख़्वाजा गरीब नवाज और उनके साथी उसी एक प्याले पानी का इस्तेमाल करते रहे। और जिस कद्र उस में खर्च करते रहे उसी कुद्र उस में पानी बढ़ जाता था।
जब श्हरवालों को तालाब का पानी खुश्क हो जाने से तकलीफ पहुंची तो जैपाल जोगी ने हिसार (घेरे) के करीब आवाज़ दे कर ख़्वाजा अजमेरी से कहा कि लोग प्यास से मर रहे हैं, फ़कीर का काम मखलूक को आराम पहुंचाना है। जब आप अपने को फ़कीर कहते हैं तो मख़लूक को सताना आप की शान के खिलाफ है। फ़कीर को चाहिए कि मखलूक को नफा पहुंचाए।
जैपाल की बात सुन कर आपने पानी से भरा हुआ वह प्याला उसी तालाब में डलवा दिया। जिसकी वजह से यकायक तालाब पानी से भर कर लहरें मारने लगा।
(बरकातुस्सालिहीन हिस्साः 2 स०ः 68)
और रिवायत किया गया है कि जादूगरों ने जब अपना जादू शरू किया तो हज़रत ख़्वाजा अजमेरी का कुछ बिगाड़ न सके। जैपाल और उसके चेलों के जादू के असर से पहाड़ की तरफ से हज़ारों काले सांप निकल निकल कर हज़रत ख़्वाजा अजमेरी की तरफ बढ़े मगर जो सांप हिसार (घेरे की लकीर) के करीब आया लकीर पर सर रख कर रह गया। Hazrat Khwaja Moinuddin Chisti ka aqida.
जब यह अमल कारगर न हुआ तो जादूगरों ने दूसरा अमल किया जिसके सबब आसमान से आग बरसनी शुरू हुई यहाँ तक कि आग के ढेर लग गए और हज़ारों दरख़्त जल कर राख हो गए मगर अल्लाह तआला के फज़्लों करम से हज़रत ख़्वाजा अजमेरी के हिसार में कुछ असर न पहुंचा। गौसे पाक और ग्यारहवीं शरीफ।
अब जैपाल हिरन की खाल पर बैठ कर आसमान की तरफ उड़ा यहाँ तक कि नज़रों से गायब हो गया। हज़रत ने अपनी खड़ाउं हवा में फेंक दी वह आसमान में गई और जैपाल जोगी के सर पर पड़ने लगी यहाँ तक कि उसे मार-मार कर ज़मीन पर नीचे ले आई।
जैपाल अपने हाल पर रोने लगा फिर ख़्वाजा अजमेरी के कदमों पर गिर पड़ा और सच्चे दिल से मुसलमान हो गया। (बरकातुस्सालिहीन हिस्साः 2 स0: 69)
हज़रत ख़्वाजा अजमेरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने यह फरमाया कि हमने पिथौरा को ज़िन्दा गिरफ्तार करके हवाले कर दिया। और ऊँटों के पेट ज़मीन से चिपक गए फिर आपके हुक्म देने पर ही वह खड़े हुए और आपके फेंके हुए मिट्टी के ज़रों से दुश्मनों के जिस्म बेहिस व हरकत हो गए। और पूरे तालाब का पानी एक प्याले में ले लिया।
और अपनी खड़ाउं बगैर किसी मशीन के हवा में उड़ा दी जो जैपाल को मार कर नीचे ले आई। इन सारे वाकिआत से हज़रत ख़्वाजा अजमेरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपना यह अकीदा साबित कर दिया कि खुदा-ए-तआला ने मुझे कायनात में तसर्रूफ की बे-पनाह ताकत अता फरमाई है।
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…