
फ़िक़ही मसाइल :-
मसअला :- हर मुकल्लफ़ यानी आक़िल बालिग पर नमाज़ फ़र्ज़ ऐन है इसकी फ़ज़ियत का मुन्किर काफ़िर है और जो क़स्दन छोड़े अगरचेह एक ही वक़्त की वह फ़ासिक़ है, और जो न पढ़ता हो वह क़ैद किया जाए,
यहाँ तक कि तौबह करे और नमाज़ पढ़ने लगे बल्कि अइम्मए सलासा इमामे मालिक, इमामे शाफ़ई और इमाम अहमद बिन हंबल रज़ियल्लाहो अन्हुम के नज़दीक बादशाहे इस्लाम को उसको (बेनमाज़ी) क़त्ल का हुक्म है। (दुर्रे मुख्तार, बहारे शरीअत)
मसअला :- बच्चे की उम्र जब सात बरस की हो जाए तो उसे नमाज़ पढ़ना सिखाया जाए, और जब दस बरस का हो जाए तो मारकर पढ़वाना चाहिये। (अबू दाऊद, तिर्मिज़ी)
मस्अला :- नमाज़ खालिस बदनी इबादत है, इसमें नयाबत जारी नहीं हो सकती यानी एक की तरफ़ से दूसरा नहीं पढ़ सकता न यह हो सकता है कि जिन्दगी में नमाज के बदले कुछ माल बतौरे फ़िदया अदा करे, अलबत्ता अगर किसी पर कुछ नमाजें रह गई हैं और इन्तिकाल कर गया और वसिय्यत कर गया कि उसकी नमाज़ों का फ़िदया अदा किया जाए तो उम्मीद है कि इंशाअल्लाह तआला कुबूल होगा, और बे वसिय्यत भी वारिस उसकी तरफ़ से दे कि कुबूल और मुआफी की उम्मीद है।
तर्के नमाज़ पर सज़ाएँ :-
नमाज़ छोड़ने वाले और उनको क़ज़ा करने वालों के लिये सख़्त और शदीद सज़ाएँ की गई हैं, नमाज़ का बिल्कुल तर्क कर देना तो सख़्त हलाकत खेज़ है उनको वक़्तों पर अदा न करने वालों के लिये खुदा फरमाता है वैल है उन नमाज़ियों के लिये जो अपनी नमाज़ से वे खबर हैं, वक़्त गुज़ार कर पढ़ते हैं, (कुरआन) वैल, जहन्म की एक वादी का नाम है, जिसकी सख़्ती से जहन्नम भी पनाह मांगता है, नमाज़ क़ज़ा करके पढ़ने वालों को उसमें डाला जाएगा। सोने से पहले का खास वजिफा। Sone Se pahle Ka khas wazifa.
अल्लाह अपनी पनाह में रखे और फ़रमाता है उनके बाद कुछ नाखलफ़ पैदा हुए, जिन्होंने नमाजें जाए कर दीं और अपनी नफ़्सानी ख्वाहिशों का इत्तिबा किया अनक़रीब उन्हें गय्य में डाला जाएगा । (कुरआन, पारा 16, रुकू नं. 7)
ग़य्या जहन्नम में एक वादी है जिस की गर्मी और गहराई सबसे ज़्यादा है, उसमें एक कुआँ है, जिसका नाम हबदब है। जब जहन्नम की आग बुझने पर आती है तो अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल उस कुंए को खोल देता है, जिससे, वह बदस्तूर भड़कने लगती है, यह कुंआ बे नमाजियों, ज़ानियों, शराबियों, सूद (ब्याज) खाने वालों और मां बाप को ईज़ा (तकलीफ़) देने वालों के लिये है।
खुदा अपने महबूबे पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़े में ऐसे दर्द नाक अज़ाबों से महफूज़ रखे आमीन। नमाज़ तर्क करने वालों के लिये हदीसे पाक में और कैसी सख़्त सजाएं बयान की गई हैं, उन्हें भी मुलाहज़ा कीजिये ।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अलआस रज़ियल्लाहो तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने एक रोज़ नमाज़ का ज़िक्र किया तो फ़रमाया, जो शख़्स नमाज़ की पाबन्दी करेगा तो नमाज़ उसके लिये नूर का सबब होगी, कमाले ईमान की दलील होगी और क़ियामत के दिन बख़्शिश का ज़रीआ बनेगी और जो नमाज़ की पाबन्दी नहीं करेगा, उसके लिये न तो नूर का सबब होगी न कमाले ईमान की दलील होगी, और न बख़्शिश का जरीआ होगी और वह बे नमाज़ी क़ारून, फ़िरऔन, हामान और उबय्यि इब्ने खलफ़ बदतरीन काफ़िरों के साथ होगा।
हजरत अबू नुऐम हज़रत अबू सईद रज़ियल्लाहो तआला अन्हु से रिवायत करते हैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, जिसने क़सदन नमाज़ छोड़ी जहन्नम के दरवाज़े पर उसका नाम लिख दिया जाता है।
हज़रत इमाम अहमद, उम्मे, अयमन रज़ियल्लाहो तआला अन्हुमा से मरवीहै कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया क़स्दन नमाज़ तर्क न करो कि जो कस्दन नमाज़ तर्क कर देता है, अल्लाहो रसूल उससे बरिज़्ज़िम्मा हैं।
हज़रते उमर रज़ियल्लाहो तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि जिसने नमाज़ छोड़ दी उसका कोई दीन नहीं नमाज़ दीन का सुतून है। (बैहक़ी)
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…
One thought on “फ़िक़ही मसाइल और तर्के नमाज़ की सजाएं।Fiqhi masail aur tark-e-namaz ki sazaein.”