यह बात ज़ेहन में बैठा लेना, सारी दुनिया मिल जाए यह तलवार का मुकाबला तो कर सकती है किरदार का मुकाबला नहीं कर सकती। अपने किरदार को बनाईये। हज़रत मुजद्दिद् अल्फे सानी रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते हैं:
आँख बिगड़ने से दिल की हिफाज़त मुश्किल है। और दिल के बिगड़ने के बाद शर्मगाह की हिफाज़त बहुत मुश्किल है। और अक़्लमन्द लोग वो होते हैं जो दूसरों की ग़लतियों से सबक सीखते हैं और बेवकूफ लोग वे होते हैं जो अपनी गलतियाँ करते हैं फिर उनको धक्के पड़ते हैं। तब उनको समझ आती है।
उसूली बात यह है कि हुस्न ही औरत की तबाही का ज़रिया बनता है। औरत पर जितनी भी आफतें आती हैं सबकी सब उसके हुस्न की वजह से आती हैं। इसलिए शरीअत ने मर्दों को कहा कि तुम शरीर (बुरी) औरतों से दूर रहो और अगर भली औरतें भी हों तो उनसे होशियार रहो।
जैसे दिल के ऊपर मुसीबतें आँखों की वजह से आती हैं, अगर अम्माँ हवा ‘शजरे-ममनूआ’ यानी जिस पौधे से खाने और उसके करीब भी जाने को मना किया गया था को न देखती तो उनको जन्नत से न निकलना पड़ता। अगर काबील, हाबील की बीवी की तरफ निगाह उठाकर न देखता तो उसको कत्ल का जुर्म अपने सर पर न उठाना पड़ता। अगर जुलैखा यूसुफ को निगाह उठाकर न देखती तो कुरआन ने उसके गुनाह के यूँ खोलकर तज़किरे न किये होते।
और यह जो लोग कहते हैं कि जी फ्लॉ की शक्ल अच्छी लगी Personality अच्छी लगी, यह सब बकवास होता है। हकीकत में तो मुहब्बत वह होती है जो इनसान की नेकी की वजह से होती है। चेहरे की सजावट और सिंगार यह तो आरज़ी (वक़्ती और अस्थाई) चीज़ है।
आज जो बच्ची जवान उम्र की है और उसके चेहरे पर जवानी की खूबसूरती है, एक दो बच्चे होने के बाद उसके चेहरे की कशिश वह नहीं रहती, और जब ज़रा और उम्र गुज़र जाती है फिर तो इनसान की शक्ल व सूरत कुछ और ही हो जाती है।
अगर शौहर को औरत की सिर्फ खूबसूरती की वजह से ताल्लुक होगा, तो चन्द सालों के बाद वह किसी और को ढूँढ़ना शुरू कर देगा। इसलिए अच्छी ज़िन्दगियों की बुनियाद ज़ाहिरी हुस्न नहीं होता। बातिनी हुस्न हुआ करता है, अच्छे अख़लाक हुआ करते हैं। ज़ाहिरी हुस्न फानी यानी ख़त्म हो जाने वाला होता है और अख़्लाक का हुस्न हमेशा बाकी रहता है।
खूबसूरत वाक़िआ:ईमान की महक | Iman ki Mahak.
वैसे भी अगर दूर से किसी को देखें तो वह ज़्यादा खूबसूरत नज़र आता है, करीब की तुलना में, अगर दूर से किसी की आवाज़ ज़्यादा दिलकश मालूम होती है करीब से सुनने के मुकाबले में, तो कहा जायेगा कि हुस्न की हक़ीक़त फासला है, कि इनसान फासले से रहे तो हुस्न महसूस होता ही है और करीब आए तो हुस्न ख़त्म हो जाता है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
