
बाबा रतन लाल हिंदी रजिअल्लाहो तआला अन्हु को सहाबीए रसूल होने का शरफ़ हासिल है। आपकी सवाने हयात से ज्यादा जानकारी तो अभी तक नही मिलती है लेकिन आप सहाबीए रसूल है इसको कई मोतबर वली अल्लाह और मुहद्दिसीन ने अपनी किताब में दर्ज़ किया है। आप का आस्ताना हिंदुस्तान के राज्य पंजाब के शहर भटिंडा में है।
आपका खानदान और मक्का आमद :-
आप के खानदान का काम तिजारत करना था। आप अपने खानदान के साथ मसालो यानी लौंग, अदरक, इलायची, सागवन जो उन दिनों अरब में बहुत मशहूर था वहां ले जाते आप तिजारत के लिए मुल्क शाम जाते तो उसी रास्ते पर आपको मक्का शरीफ मिलता था। अल्लामा हाफ़िज़ इब्ने हजर असकलानी अलैहिर्रहमा लिखते हैं कि एक दिन आप तिजारत के लिए मुल्के शाम रवाना हुए उस वक़्त आपकी उम्र करीब 20 साल थी।
आप जब मक्का की सरजमीं पर पहुँचे तो वहां की वादी जहां से आपका निकलना होता था अचानक से बहुत तेज़ बारिश शुरू हो गई और इतनी तेज बारिश हुई कि पास में एक नाला था वो भर गया और बहने लगा। इतने में एक छोटा मासूम सा बहुत ही खूबसूरत बच्चा कुछ बकरियों को चरा रहा था वो नाले के किनारे खड़ा था आपने उस बच्चे को देखकर कैफियत जान ली की वो छोटा सा खूबसूरत बच्चा इस नाले को पार करना चाहता है और उसको अपने ऊपर बिठा कर नाला पार कराया।
अज़ीज़ों एक बात पर गौर करो बाबा रतन लाल हिंदी ने जिस छोटे बच्चे को अपने ऊपर बिठा कर नाला पार कराया जिसके लिए आप ऊंठ बने वो बच्चा कोई और नही बल्कि ताजदारे मदीना, सैयदुल अम्बिया, इमामुल अम्बिया, महबूबे खुदा हमारे प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम थे। जब आपने प्यारे आक़ा अलैहिस्सलाम को अपने कंधे पर बिठाकर नाला पार कराया तो प्यारे आक़ा के मुबारक लब से निकला की अल्लाह तुम्हे बरकत दे,
खूबसूरत वाक़िआ:- 13 सौ साल बाद भी ज़िंदा।
ये जुमला सुनने के बाद वो बहुत खुश हुए आप पर अजीब कैफियत तारी हुई क्योंकि ऐसी मिठास आपने पहले कभी नही सुनी न ये लफ्ज़ आपने पहले कभी सुना था और वो बकरिया जो आप चरा रहे थे वो हज़रत हलीमा सादिया सलामुल्लाह अलैहा की बकरिया थी उस वक़्त आप अपनी दाई माँ हज़रत हलीमा सादिया सलामुल्लाह अलैहा के पास ही रहते थे। (आलासबा जिल्द अव्वल, बाब2)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….