बीवी के हुक़ूक़ जो मर्द के जिम्मे है।Biwi ke huqook jo mard ke jimme hai.

biwi ke huqooq jo mard ke jimme hai

जानना चाहिए कि निकाह की वजह से जो दुनिया व आख़िरत के फ़ायदे हासिल होते हैं, वह मियाँ- बीवी में मुहब्बत और इत्तफ़ाक़ हो तब हासिल होते हैं,

मुहब्बत और इत्तफ़ाक़ का ज़रिया यह है कि एक-दूसरे के हकूक़ मालूम हों और उनको अदा भी करते हों। इसलिए बतौर नमूना कुछ हकूक़ लिखे जाते हैं ताकि मालूम करके अमल किया जाये।Biwi ke huqook jo mard ke jimme hai.

अल्लाहतआला ने इरशाद फ़रमाया ऐ ईमान वालो ! तुम अपने को और अपने घरवालों को उस आग से बचाओ जिसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं और रसूले करीम (स० ) फ़रमाते हैं कि- हर एक तुममें अपने मातहत पर अख्तियार रखता है। इसलिए हर एक से पूछा जायेगा कि तुम्हारे सुपुर्द जो चीजें थीं उनमें तुमने क्या किया।

जैसे कि औरत के जिम्मे मर्द का घर होता है और उसके बच्चों पर भी अख्तियार होता है और उससे भी घरवालों के बारे में पूछताछ होगी कि तुमने अपने घर वालों के हक़ अदा किये है या नहीं ?

कुरआन व हदीस बतला रहे हैं कि मर्दों और औरतों के जिम्मे कुछ हुकूक़ हैं जिनके बारे में उनसे पूछताछ होगी तो हर मर्द और औरत के लिए यह बात जरूरी हुई कि अपने को और अपनी औलाद को दोजख की आग से बचाये और उनको शरह के खिलाफ़ कामों से रोकने की कोशिश करें।Biwi ke huqook jo mard ke jimme hai.

अब हम अपनी हालत में गौर करें कि इन हुक्मों के साथ क्या बर्ताव कर रहे हैं और इनको अल्लाह व रसूल के हुक्मों के मुवाफिक अदा करते हैं या नहीं ? तो ग़ौर करने से मालूम होता है कि न तो मर्द ही उन हकूक़ को अदा करते हैं जो उन के ज़िम्मे हैं और न औरतें अदा करती हैं।

औरतें बस इतना समझती हैं कि मर्दों को खिला दिया, पिला दिया और अगर कोई बच्चा हुआ तो उसको खिला पिला दिया, और उनको यह ख़बर नहीं होती कि हमारी आमदनी कितनी है और कहाँ खर्च करने की ज़रूरत है और कितना खर्च करना चाहिए।

न खर्च करने का ख़याल न औलाद को दीन सिखाने का ख़याल इसी तरह मर्दों को इस का खयाल नहीं होता कि दुनिया के हकूक़ के साथ औरतों के दीनी हकूक़ भी हमारे
जिम्मे हैं। घर में आ कर यह तो पूछते हैं कि खाना तैयार हुआ है या नहीं।

मगर यह कभी नहीं पूछते कि तुमने नमाज़ भी पढ़ी है या नहीं। मगर जब मर्द ही बेनमाज़ है तो औरतों को नमाज़ी कैसे बनायें और बाज़ मर्द ऐसे हैं कि औरतों के दुनियावी हुकूक़ भी अदा नहीं करते। बीवी से बिल्कुल बेफ़िक्र रहते हैं। यहाँ
तक कि घर में भी नहीं सोते और बीवी के इस हुकूक से ग़ाफिल हैं।

हालांकि रात को उसके पास घर में सोना भी उस का शरेई हक़ है। बाज़ मर्द औरतों से बोलते भी नहीं। बाज़ इनमें से ऐसे भी हैं कि जो बुजुर्ग और दीनदार भी कहलाते हैं और किसी बुजुर्ग से मुरीद भी हैं। नमाज़ रोज़े के और ज़िक्र के पाबन्द हैं।Biwi ke huqook jo mard ke jimme hai.

अपने नज़दीक जन्नत खरीद रहे हैं, मगर बीवी के हुकूक से ग़फ़िल हैं। याद रखो, बीवी का यह भी हक़ है कि एक वक़्त में उससे बातचीत भी की जाये और उसकी तकलीफ़ की और आराम की बातें सुनी जायें और दिल्लगी की बातों से उसको खुश किया जाये। मगर इस हक़ से दुनियादार और दीनदार सब ही ग़ाफ़िल हैं।

बाज़ मर्द बात-बात में औरतों की ख़ताएँ निकालते हैं और इसी वजह से बोलना छोड़ देते हैं, बल्कि घर में सोना भी छोड़ दिया जाता है। क्या आप यह चाहते हैं कि बीवी पर भी ऐसा रोब जमायें जैसा कि नौकरों पर जमाया करते हैं। यह निहायत संगदिली है।

गौर तो कीजिए, क्या आप अपने दोस्तों पर ऐसा रौब जमा सकते हैं जैसा कि नौकरों पर जमाया जाता है? हरगिज नहीं और अगर आप ऐसा करेंगे तो सारे दोस्त आपको छोड़ कर अलग हो जायेंगे दोस्तों के साथ नौकरों सा बर्ताव कोई अकलमन्द आदमी नहीं कर सकता।

देखो, तजुर्बे की बात है कि जिस वक़्त आदमी पर कोई मुसीबत आती हैं तो यार-दोस्त अलग हो जाते हैं और माँ-बाप तक भी आदमी को छोड़ देते । मगर बीवी हर हालत में मर्द का साथ देती है और बीमारी में जैसी है। राहत बीवी से पहुँचती है, किसी भाई से भी नहीं पहुँचती।

इससे साफ़ जाहिर है कि बीवी के बराबर दुनिया में मर्द का कोई दोस्त नहीं। फिर क्या यह सितम नहीं है कि मर्द उनको नौकरों के बराबर करना चाहते हैं और क्या यह जुल्म नहीं है कि इनको पाँव का जूता समझा जाये।

भाइयों ! उनको तो अपने घर का चिराग़ और आबादी का ज़रिया समझना चाहिए। क्या यह ग़जब नहीं है कि अगर बीवी किसी वक़्त बातचीत में बतौर नाज़ कोई बात कह दे तो उसको यह सजा दी जाती है कि बातचीत और मिलना-मिलाना सब छोड़ दिया जाता है और गाली-गलौच से पेश आते हैं ।

और उसको घर से धक्के दिये जाते हैं और बेकस व मजलूम को घर से बाहर निकाल कर कह देते हैं कि चली जा जहाँ तेरा दिल चाहे और वह बेकस सिवाय रोने के कुछ नही कर सकती। हालांकि उसका एक हक यह भी है कि उसके साथ हँसी और दिल्लगी और उसके नाज नखरे को गवारा किया जाये और उसकी बदतमीजी को बर्दाश्त किया जाये।Biwi ke huqook jo mard ke jimme hai.

इन हुकूक़ को मर्दों ने बिल्कुल ही छोड़ दिया है। यूँ चाहते हैं कि औरतें बाँदियों की तरह ताबेदार होकर रहे और हमारी किसी बात का उलट जवाब न दें। बाज मर्द यह चाहते हैं कि औरतें हमारी तरह तमीज़दार और सलीक़ेमन्द होकर रहे और जब किसी औरत से कोई बात बदतमीज़ी की हो जाती हैं तो उस पर सख्त सजा दी जाती है।

याद रखो. एक हक़ औरतों का यह भी है कि उन की बदतमीजी को बर्दाश्त किया जाये। हदीस शरीफ़ मे है कि औरत टेढ़ी पसली से पैदा हुई है। इसलिए उस की आदतों में टेढ़ापन लाज़मी है।

अगर उसको सीधा करना चाहोगे तो टूट जायेगी। बस इससे नफा उठाना है तो टेढ़ेपन ही के साथ नफा उठाते रहो और मुनासिव भी यही है कि औरतों में थोड़ी-सी बदतमीजी भी हो क्योंकि ज्यादातर बदतमीज़ वही होती है जो सीधी-सादी होती हैं और ऐसी औरत पारसा होती है और जो बड़ी तमीज़दार और सलीक़ामन्द होती है,

वह बहुत चालाक होती हैं। शर्म व हया भी उनमें कम होती है और जो सीधी-साधी है वह अपने मर्द की ताबेदार और जाँनिसार होती हैं। यहाँ तक देखा गया है कि वह खुद बीमार है उठने बैठने की ताक़त नहीं, मगर उसी हालत में अगर कहीं मर्द बीमार हो गया तो अपनी बीमारी को भूल जाती हैं।Biwi ke huqook jo mard ke jimme hai.

अब उनको किसी तरह चैन नहीं पड़ती। हर वक़्त मर्द की खिदमत में लगी रहती हैं। और यह तो रोज़मर्रा की बात है कि औरतें खुद खाना आखीर में खाती हैं और सबसे पहले मर्दों को खिलाती हैं और बाज़ दफ़ा आखीर में कोई मेहमान आ गया तो खुद भूखी रहेंगी और वह खाना मेहमान के वास्ते भेज देंगी।

अगर उसके खाने के बाद कुछ बच गया तो खा लिया वर्ना फ़ाक़ा कर लिया। अगर मर्द कभी आधी रात को सफ़र से आ गया तो उसी वक़्त अपना आराम छोड़कर उसके लिए खाना पकायेंगी और उसकी ख़िदमत में लग जायेंगी। तो इस तरह की औरतें जो मर्द पर मर मिटें ज्यादातर वही होती है जो थोड़ी बदतमीज़ भी हों।

तमीज़दारों में यह बातें नहीं होती। अगर आप यह कहें कि औरतों की बदतमीज़ी से दिल तो दुखता है, तकलीफ़ होती है तो इसका ईलाज यह भी तो हो सकता है कि उनको दीन की किताबें पढ़ाओ या सुनाओ। इल्मेदीन से उनकी आदतें दुरुस्त हो जायेंगी। खुदा का ख़ौफ़ दिल में पैदा होगा।

मर्द के हुक़ूक़ मालूम होंगे। बाक़ी यह उम्मीद मत रखो कि वह बिल्कुल तुम जैसी हो जायेंगी। क्योंकि उनमें जो पैदाइशी कजी है वह नहीं जा सकती। इसलिए मर्द को इतना सख्त मिज़ाज नही होना चाहिए कि बीवी की ज़रा-ज़रा सी बदतमीज़ी पर गुस्सा किया करे।

बाज़ मर्द ऐसे ज़ालिम होते हैं कि खुद तो खूब बने-ठने रहते हैं और बीवी को भंगियों की तरह रखते हैं। न उनके कपड़ों का ख़याल और न खाने के लिए रोटी और दाल बल्कि एक-एक पैसे से उनको तंग रखते हैं। यह बड़ी हक़ तल्फ़ी और ज़ुल्म है। बाज़ मर्द ऐसी गन्दी तबियत के होते हैं कि बदकार औरतों में अपना मुँह काला करते हैं ।

और उनके घरों में हूरों की सि बीवियाँ मौजूद होती हैं, उनकी तरफ रुख भी नहीं करते। मगर हिन्दुस्तान की औरतें सादिर व शाकिर हैं कि वह रोने-धोने के सिवा और कुछ नहीं करतीं। किसी के सामने अपने मर्द का ऐब नहीं खोलती ग़रज कि इन खूबियों का बदला यह है कि बीवियों पर रहम करो और उनके हुकूक़ जाए करके दोज़ख न खरीदो ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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