मालिकों और गुलामों का इन्साफ।Maliko aur Gulamo ka insaaf.

maliko aur gulamo ka insaaf

हज़रत आइशा (र.अ)रिवायत फरमाती हैं कि रसूलुल्लाह (स.व)की ख़िदमत में एक शख़्स आकर बैठ गया। उसने अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के रसूल ! बिला शुब्हा मेरे कुछ गुलाम हैं जो मुझसे झूठ बोलते हैं और मेरी ख़ियानत करते हैं और मेरी नाफरमानी करते हैं यह तो उनकी तरफ़ से है और मेरी तरफ से यह है कि मै उनको गालियां देता हूं और सज़ा में मारता भी हूं। अब मुझे आप यह बताए कि आख़िरत में मेरा और उनका क्या मामला होगा?

आप (स.व)ने इरशाद फ़रमाया कि जब कियामत का दिन होगा तो तेरे गुलामों को ख़ियानत और नाफरमानी और झूठ बोलने का और तेरे सज़ा देने का हिसाब होगा। अगर तेरी सज़ा उनके कुसूरों के बराबर होगी तो मामला बराबर रहेगा, न तुझे कुछ उनकी तरफ से मिलेगा, न तुझ पर कुछ बोझ पड़ेगा और अगर तेरी सज़ा उनकी हरकतों से ज़्यादा होगी तो उस ज़्यादा सज़ा का उनको तुझे बदला दिलाया जाएगा।

Maliko aur Gulamo ka insaaf.

हज़रत आइशा (र.अ)फरमाती हैं कि नबी (स.व)का यह इरशाद सुनकर वह शख़्स रोता और चीख़ता हुआ वहां से चला गया। रसूलुल्लाह (स.व)ने उससे फ़रमाया क्या तू अल्लाह तआला का यह इरशाद नहीं पढ़ता जिसमें तेरे मामले का साफ़ ज़िक्र किया गया है

और हम कियामत के दिन इंसाफ की तराजू कायम करेंगे सो किसी पर ज़रा-सा भी जुल्म न होगा और अगर कोई अमल राई के दाने के बराबर भी होगा तो हम उसे ज़ाहिर करेंगे और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं।’

यह सुनकर उस शख्स ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपने और इन गुलामों के हक में इससे बेहतर कुछ नहीं समझता कि उनको अपने से जुदा कर दूं। आपको गवाह बनाकर कहता हूं कि वह सब आज़ाद हैं। (मिश्कात शरीफ)

Maliko aur Gulamo ka insaaf.

जिन्नों को ख़िताब करके अल्लाह जल्ला शानुहू सवाल फ़रमायेंगे जैसा कि सूरः अबिया में फ़रमाया : और जिस दिन अल्लाह इन सबको जमा करेगा और फ़रमायेंगा ऐ जिन्नों की जमाअत! तुमने इंसानों में से बड़ी जमाअत बस में कर ली थी।’

आगे फ़रमाया : और कहेंगे जिन्नों के दोस्त आदमियों में से कि ऐ हमारे रब ! फ़ायदा उठाया हम में एक ने दूसरे से और हम पहुंच गये अपने उस मुकर्रर वक़्त को जो आपने हमारे लिऐ मुकर्रर फ़रमाया ।

दुनिया में तो लोग बुत वगैरह पूजते हैं, वे सच में ख़बीस जिन्न व शैतान ही की पूजा करते हैं, इस ख़्याल से कि वे हमारे काम निकालेंगे, उन की नियाज़ें चढ़ाते हैं और उनके आस-पास नाचते और गाते-बजाते हैं। इस्लाम से पहले यह भी क़ायदा था कि आड़े वक़्त में जिन्नों से मदद तलब किया करते थे,

जब आख़िरत में जिन्न और उनकी पूजा करने वाले पकड़े जाएंगे तो मुश्रिक कहेंगे कि हमारे परवरदिगार! वह तो हमने वक़्ती कार्रवाई कर ली थी और मौत का वादा आने से पहले-पहले दुनिया की ज़रूरतों के लिऐ हम एक-दूसरे से काम निकालने के कुछ उपाय कर लिया करते थे।

Maliko aur Gulamo ka insaaf.

आगे फरमाया : अल्लाह तआला का इर्शाद होगा कि दोज़ख़ है तुम्हारा ठिकाना । उसमें हमेशा रहोगे मगर हां, जो अल्लाह चाहे’ । बेशक तेरा रब हिकमत वाला और जानने वाला है और इसी तरह हम साथ मिला देंगे गुनहगारों को एक-दूसरे से उनके आमाल की वजह से।’

फिर आगे फ़रमाया : ‘ऐ जिन्नो और इंसानों की जमाअत ! क्या तुम्हारे पास तुम में से रसूल नहीं आये थे जो तुमको मेरी आयतें सुनाते थे और उस दिन के पेश आने से डराते थे। जिन्न व इंसान इकरार करते हुए अर्ज़ करेंगे कि हमने अपने गुनाह का इकार कर लिया और उनको दुनिया की ज़िंदगी ने धोखा दिया और इकरारी होंगे कि वे काफ़िर थे।’

इस आयत से साफ़ ज़ाहिर है कि जिन्नों और इंसानों से इकट्ठा ख़िताब और सवाल होगा कि रसूल तुम्हारे पास पहुंचे या नहीं? सवाल के जवाब में जुर्म का इकरार करेंगे और यह मानेंगे कि हां! रसूल हमारे पास आये थे।

सच में हम ही मुजरिम हैं। इस आयत में है कि अपने काफिर होने का इकरार करेंगे और कुछ आयतों में है कि ‘मा कुन्ना मुश्रिकीन’ (हम मुश्रिक न थे) कहेंगे। इस शुब्हे का जवाब यह है कि पहले इंकार करेंगे और फिर आमालनामों और गवाहियों के ज़रिए इकारर कर लेंगे और यह इंसान का कायदा है कि पहले जुर्म मानने से इंकार करते है।

फिर जब इस तरह जान छूटती नज़र नहीं आती तो यह समझकर शायद इकरार करने ही से खलासी हो जाए, इक्रार कर लेता है लेकिन वहां काफिर व मुश्रिक की खलासी न होगी ।

Maliko aur Gulamo ka insaaf.

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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