हज़रत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के सामने कुछ लोग फख़र (गर्व) के तौर पर अपने नसब की बड़ाई बयान करने लगे। हज़रत सलमान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि मैं तो अपने बारे में यह कहता हूँ कि नापाक नुतफे से पैदा किया गया और मरकर बदबूदार लाश बन जाऊँगा।
उसके बाद मुझे क़यामत के दिन इन्साफ की तराज़ू के पास खड़ा किया जायेगा, अगर उस वक़्त मेरी नेकियाँ भारी निकलीं तो मैं शरीफ हूँ अगर मेरी नेकियाँ गुनाहों के मुकाबले में हल्की रह गईं तो मैं ज़लील हूँ। शराफत और ज़िल्लत का फैसला वहीं होगा।
हज़रत इमाम जैनुल-आबिदीन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को किसी ने गाली दी तो जवाब में इरशाद फरमाया कि भाई ! मैं अगर दोज़ख से बच गया तो तेरे बुरा कहने से मेरा कुछ नहीं बिगड़ता, और अगर खुदा न करे दोज़ख में जाना पड़ा तो जो कुछ तूने कहा मैं उससे भी ज़्यादा बुरा हूँ।
यह इमाम जैनुल-आबिदीन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कौन थे? यह हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पोते और शहीदे कर्बला हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के बेटे थे। रोज़ाना हज़ार नफिल नमाज़ अदा करते थे और हर किस्म की इबादत में आगे-आगे रहते थे।
उन्होंने नसब पर फख्र न किया बल्कि आखिरत का फिक्र करके गाली देने वाले को नर्मी से जवाब दिया, जिसका अभी ज़िक्र हुआ।
जो लोग नसब पर फख्र करते हैं उनको बड़ाई का सुबूत भी तो देना चाहिये। और जब उन हज़रात से अपना नसबी जोड़ मिलाते हैं जो दीनदारी में बड़े थे तो खुद दीनदार बनकर अपने बड़ों और बाप-दादा के तरीके पर अग्रसर होना लाज़िमी है।
नेक आमाल से ख़ाली, दुनिया से मुहब्बत, आखिरत से गफलत और बेफिक्री, गैर-कौमों की शक्ल व सूरत और लिबास व हैयत इख़्तियार करना और अपने बुजुर्गों की शक्ल व सूरत और लिबास से नफरत करना और फिर भी उन बुजुर्गों से नसब जोड़ना नादानी है।
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अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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