
काबा की तरफ मुंह करके खड़े हो जाइए और नमाज़ की नियत करके दोनो हाथ कंधों तक ऊपर उठाइए, मगर हाथ आंचल से बाहर न निकालिए, हथेलियाँ काबे की तरफ कर लीजिए, अब धीरे से अल्लाहु अक्बर कहती हुई दोनों हाथ सीने पर बांध लीजिए। दाहिने हाथ की हथेली को बाएं हाथ की हथेली की पुश्त पर रखिए, निगाह सज्दे की जगह पर रखिए और यह पढ़िए : सुब्हानका अल्लाहुम्मा वबि-हम्दिका व तबारकस्मुका व तआला जदुका वला इलाहा गैरुका०
तर्जुमा :- ऐ अल्लाह! मैं तेरी पाकी बयान करती हूँ और तेरी तारीफ करती हूँ और बरकत वाला है और तेरा नाम और ऊंची है तेरी शाद और तेरे सिवा कोई माबूद नहीं है।
इसके बाद यह पढ़िए- अऊजु बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम०
तर्जुमा :- शैतान मरदूद से मैं अल्लाह की पनाह मांगती हूँ।
फिर पढ़िए :- बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम०
तर्जुमा – मैं अल्लाह के नाम से शुरू करती हूँ जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।
कुरआन पढ़ना- अब अलहम्दु पूरी सूरः पढ़िए और आमीन कहिए। इसके बाद बिस्मिल्लाह पढ़कर कोई और सूरः या कुरआन मजीद की कम से कम एक बड़ी या तीन छोटी आयतें पढ़िए।
रूकूअ- अब अल्लाहु अक्बर कहकर रुकूअ कीजिए यानी झुक जाइए। हाथ की उंगलियों को मिलाकर दोनों घुटनों पर मज़बूती से रखिए और दोनों पैर के टखने को भी मिला दीजिए। रूकूअ में निगाह अपने कदमों पर रखिए और कम-से-कम तीन बार कहिए- सुब्हा-न रब्बियल अज़ीम०
तर्जुमा – पाकी बयान करती हूँ मैं अपने बड़े मर्तबे वाले परवरदिगार की।
फिर समअिल्लाहु लिमन हमिदह०
तर्जुमा – सुन ली अल्लाह ने उसकी बात, जिसने अल्लाह की तारीफ की।
रब्बना ल-कल हम्दु० तर्जुमा – ऐ हमारे पालने वाले, सब तारीफ तेरे ही लिए है।
अब इसके बाद फिर अल्लाहु अक्बर कहती हुई सज्दे में जाइए और कम से कम तीन बार कहिए। सुब्हा-न रब्बियल आला०
तर्जुमा – पाकी बयान करती हूँ मैं अपने सबसे ऊँचे मर्तबे वाले परवरदिगार की।
सज्दा :- सज्दे में जाते वक़्त पहले घुटना, फिर दोनों हाथ ज़मीन पर रखिए और उंगलियों को खूब मिला लीजिए। दोनों हाथों को बीच में पहले नाक, फिर पेशानी, ज़मीन पर रख दीजिए। दोनों पांवों को दाहिनी तरफ निकाल दीजिए और खूब सिमट कर इस तरह सज्दा कीजिए कि पेट और रान दोनों मिल जाएं और बाहं को भी पहलू की पसलियों से मिला लीजिए। सज्दे में निगाह अपनी नाक पर रखिए, फिर अल्लाहु अक्बर कहते हुए उठकर बायें चूतड़ पर बैठ जाइए और दोनों पावों को दाहिनी तरफ बाहर निकाल दीजिए, और उंगलियों को खूब मिला लीजिए। यह एक सज्दा हुआ ।
अब फिर अल्लाहु अक्बर कहती हुई इसी तरह दूसरा सज्दा कीजिए और कम से कम तीन बार सुब्हा-न रब्बियल आला कहिए और अल्लाहु अक्बर कहती हुई सीधी खड़ी हो जाइए। उठते वक़्त ज़मीन पर हाथ टेककर के न उठिए। यह एक रक्अत नमाज़ हुई।
इसी तरह दूसरी रक्अत भी पढ़िए । मगर सुब्हा-न-कल्लाहुम-म और आजुजुबिल्लाह न पढ़िए, बिस्मिल्लाह कहकर अल-हम्दु पूरी और कोई दूसरी सूरः या कुरआन मजीद की कम से कम एक बड़ी आयत या तीन छोटी आयतें पढ़िए । बाकी सब कुछ पहली रक्अत की तरह पढ़िए ।
बैठना :- दूसरी रक्अत का आख़िरी सज्दा कर लेने के बाद बैठने का जो तरीका बताया गया है, उसी तरीके पर बैठ जाइए। बैठने की हालत में निगाह अपनी गोद पर रखिए और अत्तहिय्यात पढ़िए। अत्तहिय्यात यह हैः
अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस्-सला-वातु वत्तय्यिबातु अस्सलामु अलै-क अय्युहन- नबिय्यु व रहमतुल्लाहि व ब – र कातुहू० अस्सलामु अलैना व अला इबा-दिल्लाहिस्-सालिहीन अश्हदु अल्ला इला-ह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्-न मुहम्मदन अबदुहू व रसूलुहू ।
तर्जुमा :- जुबान से, बदन से और माल से जो इबादतें होती हैं, वह अल्लाह ही के लिए हैं। ऐ नबी ! आप पर सलाम हो और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें हों, हम पर और अल्लाह के नेक बन्दों पर भी सलाम हो, मैं गवाही देती हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और गवाही देती हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके बन्दे और रसूल हैं।
अत्तहिय्यात पढ़ते वक़्त जब अश्हदु अल्ला इला-ह पर पहुचिए तो किनारे की दो उंगलियों को मोड़कर बीच की उंगली और अंगूठे का किनारा मिला लीजिए और अश्हदु अल्ला इला-ह कहते वक़्त शहादत की उंगली ऊपर उठाइए और इल्लाहु कहते वक़्त झुका दीजिए।
अगर दो ही रक्अत वाली नमाज़ है, तो अत्तहिय्यात के बाद दरूद शरीफ पढ़िए। दरूद शरीफ यह है :- अल्ला-हुम्-म सल्लि अला मुहम्मदिंव व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लै-त अला इब्राही-म व अला आलि इब्राही-म इन्-न-क हमीदुम्-मजीद० अल्लाहुम्-म बारिक अला मुहम्मदिंव व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक्-त अला इब्राही-म व अला आलि इब्राही-म इन्-न-क हमीदुम्- मजीद०
तर्जुमा – ऐ अल्लाह ! रहमत नाज़िल कर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलाद पर, जैसे रहमत नाज़िल की तूने हज़रत इब्राहीम और हज़रत इब्राहीम की औलाद पर। बेशक तू तारीफ के लायक, बड़ी बुजुर्गी वाला है। ऐ अल्लाह! बरकत नाज़िल कर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलाद पर, जैसे बरकत नाज़िल की तूने हज़रत इब्राहीम और हज़रत इब्राहीम की औलाद पर। बेशक तू तारीफ के लायक, बड़ी बुजुर्गी वाला है।
दुरुद शरीफ के बाद यह दुआ पढ़िए ।
दुआ :- अल्लाहुम्-म इन्नी ज़लम्तु नफ्फ़सी जुल्-मन कसीरंव-वला यग़फिरुज़- जुनू-ब-इल्ला अन्-त फग़-फिर ली मग़फि-र-तम मिन इन्दि-क वर-हमूनी इन्-न-क अन्-तल ग़फूरुर्रहीम ०
तर्जुमा – ऐ अल्लाह ! बेशक मैंने अपनी जान पर बड़ा जुल्म किया और तू ही गुनाहों को बख़्शता है। तू बख़्श दे, मेरे लिए अपने पास से माफी और रहम कर मेरे ऊपर। बेशक तू ही बहुत बख़्शने वाली मेहरबान है।
इसके बाद पहले दाहिनी तरफ, फिर बायीं तरफ मुँह फेरकर कहिए: अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह०
तर्जुमा- आप पर सलाम हो और खुदा की रहमत ।कुर्बानी के जानवर का बयान।
सलाम करते वक़्त यह ख़्याल कर लीजिए कि मैं फरिश्तों को सलाम कर रही हूँ। अब हाथ उठाकर जो आप का जी चाहे अल्लाह से दुआ मांगिए और दुआ ख़त्म करने के बाद दोनों हाथ मुँह पर फेर लीजिए।
यह दो रक्अत वाली नमाज़ की तर्कीब थी। अगर तीन या चार रक्अत वाली नमाज़ है तो ख़ाली अत्तहिय्यात पढ़कर फौरन खड़ी हो जाइए। दुरूद न पढ़िये, बाकी रक्अतें इसी तरह पूरी कर लीजिए।
याद रखिए! फर्ज़ नमाज़ की तीसरी और चौथी रक्अत में अल्हम्दु के बाद सूरः नहीं पढ़ी जाती है, ख़ाली अल्हम्दु पढ़कर रूकूअ और सज्दा कर लीजिए और आख़िरी रक्अत के बाद रूकूअ और सज्दा कर लीजिए और आख़िरी रक्अत के बाद बैठकर फिर अत्तहिय्यात पढ़िए और इसके बाद दुरूद शरीफ और दुआ पढ़कर सलाम फेरिए और हाथ उठाकर दुआ मांगिए।
वित्र की नमाज़ :-
अल्लाहुम्-म इन्ना नस्तईनुका व नस्तगफिरुका व नुअमिनु बिका वनतवक्कलु अलैक व नुस्नी अलैकल खैर, व नशकुरुक वला नक- फुरुक व नख़-लउ व नत-रुकु मंययफजुरुक, अल्लाहुम्-म इय्या-क नबुदु व-ल-क नुसल्ली व नस्जुदु व इलै-क नस्-आ व नह-फिटु व नरजू रह-म-त-क व नख़शा अज़ा-ब-क इन्-न अज़ा-ब-क बिल कुफ्फारि मुल-हिक०
तर्जुमा – ऐ अल्लाह! हम तुझ से मदद चाहते हैं और तुझ से माफी मांगते हैं और तुझ पर ईमान लाते हैं और तुझ पर भरोसा रखते हैं, और तेरी बहुत अच्छी तारीफ करते हैं और तेरा शुक्र अदा करते हैं और तेरी नाशुक्री नहीं करते हैं और हम अलग कर देते हैं और छोड़ देते हैं उस आदमी को, जो तेरी नाफरमानी करे। ऐ अल्लाह! हम तेरी इबादत करते हैं और तेरे ही लिए नमाज़ पढ़ते हैं और सज्दा करते हैं और तेरी ही तरफ दौड़ते हैं और लपकते हैं और तेरी रहमत की उम्मीद रखते हैं और तेरे अज़ाब से डरते हैं। बेशक तेरा अज़ाब काफिरों को मिलने वाला है।
अगर दुआ-ए-कुनूत याद न हो तो याद कर लीजिए और जब तक दुआ-ए-कुनूत याद न हो, उसके बदले यह दुआ पढ़िएः
रब्बना आतिना फिदुन्या ह-स-न-तंव-व फिल आख़िरति ह-स-न-तंव-व व किना अज़ा-बन्नारि०
दुआ-ए-कुनूत पढ़ने के बाद अल्लाहु अक्बर कहकर रूकूअ कीजिए और फिर सज्दा कीजिए और तीसरा रक्अत पूरी करके बैठकर अत्तहिय्यात, दुरूद शरीफ और दुआ पढ़कर सलाम फेरिए।औरतों की नमाज़।
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…