इफ़तार का बयान । Iftar Ka Bayan

Iftar Ka Bayan
Iftar Ka Bayan

जब बंदा दिन भर सब्र व ज़ब्त का मुज़ाहेरा करके रोज़ा को मुकम्मल करता है और मगरिब का वक़्त आता है तो वह हलाल चीजें जो उसके लिए रोज़ा की हालत में हराम कर दी गई थीं अब फिर से हलाल हो जाती हैं, और मौला का बंदों पर इतना एहसान होता है कि माहे रमज़ानुल मुबारक में अपने बदों का रिज्क बढ़ा देता है, इस माह में अमीर हों या गरीब सारे लोग इफ्तारी के लिए अच्छे से अच्छा एहतमाम करते हैं।

अब इफ़्तार के तअल्लुक से चंद बातें पेश की जाती हैं ताकि मजीद एहतेमाम के साथ इफ्तार करने और दूसरों को इफतार कराने का जज़्बा हमारे दिलों पैदा हो।

इफतार का माना :-

लफ़्ज़ इफ्तार जिसका माना है आदत, इस माना के लिहाज़ से उसे इफ़्तार इसलिए कहेंगे कि इफ्तार के बाद इंसान को उसकी आदत के मुताबिक खाने पीने और दीगर आमाल करने की इजाज़त मिल जाती है जिन्हें वह हालते रोज़ा में नहीं कर सकता था।

या तो क़तरा से बना है जिसका माना है शिगाफ पड़ना, सुराख होना। इस माना के लिहाज़ से इफ़्तार को इसलिए इफ़्तार कहते हैं कि दो रोज़ों के दर्मियान इफ़्तार के ज़रिये शिगाफ हो जाता है।

इफतार के वक़्त दुआ का एहतेमाम :-

यह कभी आपने सोचा कि बंदा पाँचों वक़्त नमाज़ के बाद दुआ करता है, जुम्अतुल मुबारक की नमाज़ और बड़ी रातों में दुआ करता है लेकिन दुआ की कुबूलियत का जो यकीन और एहतेमाम माहे रमजान शरीफ़ में इफ़्तार के वक़्त होता है वह किसी और वक़्त में नहीं होता।

आप देखते होंगे कि एक रोज़ादार तिजारत की मंडी में अगर बैठा है तो वह इफ़्तार से चंद मिनट पहले सब काम छोड़ कर निहायत ही खुशुअ और खुज़ूअ के साथ मस्रूफे दुआ हो जाता है। इसी तरह घरों में खवातीन और बच्चे, मस्जिद में नमाज़ी और इमाम सबके सब दुआ में मरूफ हो जाते हैं। आखिर वक्ते इफ़्तार दुआ का इतना एहतेमाम क्यों किया जाता है?

वजह ज़ाहिर है कि सुबह सादिक से लेकर गुरूबे आफताब तक खुशिय्यते रब्बानी के तसव्वुर में डूब कर बंदे ने अपने वजूद को तीन चीज़ों से रोके रखा है, जो सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा की खातिर और अल्लाह के खौफ की वजह से उसके एहकाम की बजा आवरी में बंदा इखलास के साथ वह वक़्त गुजारता है, इसी लिए बंदे को पूरा यकीन होता है कि मैंने फरमांबर्दारी में कोई कमी नहीं की तो अब इफ़्तार के वक़्त में जो भी दुआ अपने रब से करूंगा मौला ज़रूर क़ुबूल फरमाएगा।

जैसा कि हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : तीन आदमियों की दुआ रद्द नहीं की जाती। रोज़ादार की इफ्तारी के वक़्त, आदिल बादशाह की और मज़लूम की दुआ। (तिर्मिजी व इब्ने माज़ा)

इफ़तार और नबी-ए-करीम की सुन्नते मुबारका :-

सुन्नत यह है कि इफ्तार में जल्दी की जाए यानी जूँ ही इफ़्तार का वक़्त हो जाए बिला ताखीर इफ्तार कर ली जाए। एक हदीस में है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः जब रात आए और दिन चला जाए और सूरज पूरे तोर पर छुप जाए तो अब रोज़ादार अपना रोज़ा इफ्तार करे। (बुखारीः जि.1, स. 262)

एक और हदीष में है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया “दीन उस वक़्त तक गालिब रहेगा जब तक लोग इफ्तार में जल्दी करते रहेंगे क्योंकि यहूद व नसारा इफ़्तार में ताखीर करते थे।” (अबू दाऊदः स. 321)

एक और हदीस में है कि रसूले अकरम नूरे मुजस्सम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः अल्लाह तआला फरमाता है कि मुझे अपने बंदों में सबसे ज्यादा पसंद वह है जो इफ़्तार में जल्दी करने वाला हो।(तिर्मिजीः जि.1, स. 150)

इफ़तार की फज़ीलत :-

हज़रत शम्सुद्दीन दारानी फ़रमाते हैं कि मैं दिन को रोज़ा रखुं और रात को हलाल लुक्मा से इफ्तार करूँ मुझे ज़्यादा महबूब है कि रात दिन नवाफिल पढ़ते गुज़ारू। किन चीजों से रोज़ा टूट जाता है ?

किस चीज़ से इफतार करे :-

हज़रत सलमान बिन आमिर रज़ियल्लाहो अन्हु से रिवायत है कि रसुलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः जब तुम में कोई रोज़ा इफ्तार करे तो खजूर या छुआरे से इफ्तार करे कि वह बरकत है और अगर न मिले तो पानी से कि वह पाक करने वाला है। (तिर्मिजीः 149, इब्ने माजाः123)

साईंन्स क्या कहती है?

हकीम मुहम्मद तारिक महमूद चुगताई “सुन्नते नबवी और जदीद साईन्स” में लिखते हैंः चूँकि दिन भर रोज़े के बाद तवानाई कम हो जाती है इसलिए इफ़तारी ऐसी चीज़ से होनी चाहिए जो जूद हज़म और मुक़व्वी हो।

इस के अलावा और जोहर (Peroxides) भी पाया जाता है। सुबह सहरी के बाद शाम तक कुछ खाया पिया नहीं जाता और जिस्म की कैलोरी (Calories) या हरारे मुसलसल कम होते रहते हैं इसके लिए खजूर एक ऐसी मोतदिल और जामे चीज़ है जिससे हरारत एतिदाल में आ जाती है और जिस्म गूनांगू अमराज से बच जाता है। अगर जिस्म की हरारत को कन्ट्रोल न किया जाए तो मंदरजा जैल अमराज पैदा होने के खतरात होते हैं:

लो ब्लड प्रेशर (Low Blood Pressure), फ़ालिज (Paralysis),

लकवा (Facial Paralysis) और सर का चकराना वगैरा।

गिज़ाईयत की कमी की वजह से खून की कमी के मरीज़ों के लिए इफ़्तार के वक़्त फोलाद (Iron) की अशद जरूरत है और वह खजूर में कुदरती तोर पर मुयस्सर है।

बाज़ लोगों को खुश्की होती है ऐसे लोग जब रोज़ा रखते हैं तो उनकी खुश्की बढ़ जाती है, इसके लिए खजूर चूँकि मोतदिल है इसलिए वह रोज़ादार के हक़ में मुफ़ीद है।

गर्मियों के रोज़े में रोज़ादार को चूंकि प्यास लगी होती है और वह इफ़्तार के वक्त अगर फौरन ठंडा पानी पी ले तो मेदे में गैस, तबखीर और जिगर की वरम (Liver Inflamation) का सख़्त खतरा होता है, अगर यही रोज़ादार खजूर खा कर पानी पी ले तो वेशुमार खतरात से बच जाता है। (हिस्सा अव्वल स. 186)

इफ्तार के बाद की दुआ :-

इफ्तार करने के बाद यह दुआ पढ़े ” तर्जुमा : ऐ अल्लाह मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तुझ पर ईमान लाया और तुझ पर भरोसा किया और तेरे दिए हुए से इफ़्तार किया तो तू मुझ से इसको कुबूल फरमा।

इफ़तार कराने की फज़ीलत :-

निसाई व इब्ने खज़ीमा जैद विन खालिद जहनी से रावी हैं कि फरमाया जो रोज़ादार का रोजा इफ्तार कराए वा गाजी का सामान कर दे तो उसे भी उतना ही सवाब मिलेगा। (निसाई शरीफ)

अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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