
एक रोज़ हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम मस्जिद से बाहर तशरीफ़ लाये तो आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने देखा कि शैतान दरवाज़े पर खड़ा है हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया तुम यहाँ क्यूँ आए हो? कहने लगा, खुदा के हुक्म से आया हूँ ताकि आप अगर कुछ पूछें तो मैं जवाब दूँ।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमया, अच्छा यह बताओ कि तुम मेरी उम्मत को नमाज़ बा जमाअत से क्यों रोकते हो? शैतान ने जवाब दिया, मुहम्मद आप की उम्मत जब नमाज़ पढ़ने को निकलती है तो मुझे सख़्त बुख़ार हो जाता है, और जब तक यह नमाज़ से फारिग नहीं हो जाती है, मैं बुखार में मुब्तला रहता हूँ।
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा, अब यह बताओ कि तुम मेरी उम्मत को कुरआन पढ़ने से क्यों रोकते हो, शैतान ने जवाब दिया, या मुहम्मद ! जब वह कुरआन पढ़ते हैं तो मैं सिक्के की तरह पिघलने लगता हूँ।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर दरियाफ़्त फरमाया कि तुम मेरी उम्मत को जिहाद से क्यूँ रोकते हो, शैतान ने जवाब दिया या मुहम्मद ! आप के गुलाम जब जिहाद के लिए निकलते हैं तो मेरे कदमों में बेड़ियाँ डाल दी जाती हैं, और जब तक वह वापस नहीं आते, मैं असीर रहता हूँ।
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर पूछा, अच्छा अब यह बताओ कि तुम मेरी उम्मत को सदका व खैरात करने से क्यूँ रोकते हो? शैतान ने जवाब दिया या मुहम्मद ! आप के गुलाम जब सदका व खैरात का इरादा ही करते हैं तो मेरे सर पर आरा रख दिया जाता है, कि जो मुझे यूँ काट कर रख देता है जैसे लकड़ी को ! (रूहुल ब्यान-स.4 जि1)
शैतान के लिए नेक काम बड़े ही तकलीफ देह हैं, यह मलऊन नेक काम न खुद करता है और न यह चाहता है कि कोई दूसरा भी करे, नमाज़ बा जमाअत अदा करने से मलऊन को बुख़ार हो जाता है और नमाज़ पढ़ने से रोकने या नमाज़ बा जमाअत से बाज़ रखने के लिए बे नमाज़ी और तारिके जमाअत को उज्र भी कुछ ऐसा सिखाता है कि मुझे बुखार हो जाता है,
इस लिए मैं मस्जिद में नहीं आता उलमा किराम जो नमाज़ के दाई और नमाज़ बा जमाअत पढ़ने की ताकीद करते रहते हैं, उन उलमा किराम को देख कर अगर कोई शख़्स मुलहिदाना जोश में आकर दिली बुग्ज़ व इनाद का बुखार निकालने लगे तो समझ लीजिए कि उसे भी इलहाद का बुखार हो रहा है, कुरआन पाक की तिलावत से मुसलमानों के दिल तो ख़शियते इलाही (अल्लाह के डर) से मोम हो जाते हैं, चुनांचि खुदा फरमाता है- “यानी रब से डरने वाले कुरआन सुनते हैं तो यादे खुदा की रग़बत में उनके बाल खड़े हो जाते हैं और उन की खालें और दिल नर्म पड़ जाते हैं।” लड़कियों का पैदा होना बाइसे रहमत है।
मगर शैतान जिस वक़्त कुरआन सुनता है तो जिस तरह सिक्का आग में पिघलता है इसी तरह यह अदावत व जलन की आग से पिघलने लगता है, आज भी अगर कोई शख़्स कुरआन न सुन सके और अपने सुनाने वालों को देख कर सुन कर जलन में सिक्के की तरह पिघलने लगे तो समझ लीजिए शैतान मार्का सिक्का है!
इला-ए-कलिमतुल-हक के लिए जिहाद के लिए निकलना शैतान को बेड़ियाँ पहना देने के मुतरादिफ है, गोया मुजाहिदीन या ग़ाज़ियाने हक शैतान को कैद कर
देते हैं, 1947 ई0 के जिहाद में कौम ने जिस इत्तिहाद, इत्तिफाक ईसार्, खुलूस और कुर्बानी का मज़ाहिरा किया वह इस हकीकत पर शाहिद है कि हमारे शेरे दिल मुजाहिदों ने शैतान को जकड़ कर रख दिया था, और कौम नेकियों की तरफ माएल हो गई थी,
सदका व खैरात, मस्लन फातिहा व ईसाल व सवाब् की तक़ीबात् शैतान के लिए आरा थीं, यह जहाँ कहीं ईसाल स्वाब व फातिहा की मज्लिस देखता है तो मलऊन यूँ कट जाता है, जैसे आरा से लकड़ी कट जाती है लिहाज़ा इस मलऊन को आरा के नीचे ले आना चाहिए, जो लोग सदका व खैरात का इंकार करते हैं वह गोया शैतान को बचाना चाहते हैं।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…