अल्लाह तआला ने शैतान को क्यों पैदा किया ? Allah taala ne shaitaan ko kyon paida kiya ?

Allah taala ne shaitaan ko kyon paida kiya ?
Allah taala ne shaitaan ko kyon paida kiya ?

अल्लाह तआला हकीमे मुतलक है और हर काम हिकमत से खाली नहीं होता। अल्लाह तआला ने जो कुछ भी पैदा फरमाया है, मब्नी बर हिकमत है किसी चीज़ को भी देखीये तो यूं कहिये।

ऐ हमारे रब तूने उसे बेकार नहीं बनाया हज़रत इमाम गजाली अलैहिर्रहमह ने कीमिया-ए-सआदत में लिखा है कि एक मर्तबा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने छत पर छिपकली को देखा और खुदा से पूछा, या इलाही, तूने छिपकली को क्यों बनाया, अल्लाह तआला ने इरशाद फरमायाः मूसा ! तुम से पहले यह छिपकली मुझ से यही पुछ रही थी कि इलाही तूने मूसा को क्यों बनाया?

मेरे कलीम ! मैंने जो कुछ बनाया है, मब्नी बर हिकमत ही पैदा फरमाया है!

” हर चीज़ अपनी ज़िद से पहचानी जाती है, यनी मिठास जभी मअलूम हो सकती है, जब कड़वाहट भी हो, सेहत की कद्र उसी वक़्त मालूम हो सकती है। जब कि बीमारी भी हो, खुश्बू का इल्म उसी वक़्त हो सकता है जब कि बदबू भी हो, एक पहलवान अपनी हिम्मत व ताक़त का मुज़ाहिरा उसी वक़्त कर सकता है जबकि उस के मकाबिल में कोई दूसरा पहलवान भी हो,

पहलवान किसी दूसरे पहलवान को गिराकर ही पहलवान कहलाता है अगर मकाबिल में कोई पहलवान ही न हो तो वह गिरायेगा किसे? और अगर गिरायेगा किसी को नहीं तो पहलवान कहलायेगा कैसे? इस लिये ज़रूरी है कि पहलवान से टक्कर लेने वाला भी कोई हो, टकराने वाले की वजह से पहलवान के कमालात का इज़्हार हो सकेगा !

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मोजिज़ात हम पढ़ते सुनते आए हैं, आप के असा मुबारक का साँप बन जाना और फिरऔन के हज़ारों जादूगरों के बनाए हुए साँपों को एक बार ही निगल जाना और आप के दस्ते मुबारक का चमक उठना वगैरह इन मोजिज़ात व कमालात का जुहूर भी न होता, यअनी उन मुअजिज़ाते की ज़रूरत ही न पड़ती, इन मुञ्जिज़ात और मूसा अलैहिस्सलाम के कमालात के इज़्हार के लिए एक मुन्किर का वुजूद ज़रूरी जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की मुखालिफत करता, और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के कमालात का इज़्हार होता, चुनांचे अल्लाह तआला ने फिरऔन को पैदा फरमाया, और उसने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की मुखालिफत की और उसकी मुखालिफ़्त के बाइस् हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मोजिज़ात व कमालात का जुहूर हुआ।

हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर आग का ठंडा हो जाना, और इतने बड़े आतिश कदह का बाग व बहार बन जाना, सब जानते हैं, इस मोजिज़े का सबब कौन था? और यह मोजिज़ा किस की वजह से जुहूर में आया? साफ जाहिर है कि नमरूद की वजह से, इसलिए कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर ईमान लाने वालों से तो यह तवक्कुअ हो ही नहीं सकती थी। कि वह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए कोई आतिश कदह तैयार करते, यह बात कैसे मुम्किन थी कि कोई मुसलमान अपने पैग़मबर को जलाने का ख़्याल तक भी दिल में लाता, फिर इस का मुज़ाहिरा किस तरह होता?

इस मुज़ाहिरे के लिए सिर्फ यही सूरत थी कि कोई मुन्किरे खलील होता, और वह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की मुखालिफ्त में इतना बढ़ता कि आप के जलाने के लिए एक अज़ीम आतिश कदह तैयार करना पड़ता। और अल्लाह तआला अपने पैग़मबर पर उस आतिश कदह को बाग़ व बहार बनाकर अपनी कुदरत और अपने पैग़मबर के मुजिज़े का मुज़ाहिरा फरमाता, चुनाँचि अल्लाह तआला ने नमरूद को पैदा फरमाया, और कमालाते खलील का इज़हार हुआ।

इसी तरह हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अक्सर मुञ्जिज़ात “अबू जेहल” की वजह से ज़ाहिर हुए, चाँद का दो टुकड़े होना, कंकरियों का कलिमा पढ़ना, दरख़्तों और पत्थरों का ख़िदमते आलिया में हाज़िर हो हो कर सलात-व-सलाम अर्ज़ करना, अबू जेहल की मुखालिफ्त और उस के इनकार की वजह से था, अबू जेहल जिस कदर हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की मुखालफत करता, उसी कदर हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के मुञ्जिज़ात जुहूर पज़ीर होते, गोया अबू जेहल को जो पैदा किया गया तो यह भी अबस (बेकार) नहीं, बल्कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कमालात व मुञ्जिज़ात के जुहूर के लिए उसे पैदा किया गया। राहत-ए-क़ब्र की फज़ीलत

मैंने एक जुमा में हुज़ूर अलैहिस्सलाम के लुआबे देहन शरीफ की बरकात बयांन करते हुए यह हदीस बयान की जंगे उहुद में हज़रत अबूजर रजियल्लाहु अन्हु की एक आँख शहीद हो गई, वह हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए, तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी आँख में अपना लुआबे देहन शरीफ लगाया ! तो उनकी आँख को पहली आँख से ज़्यादा खुबसूरत और रौशन कर दिया। (हुज्जतुल्ला-हिलआलमीन सः 424)

यह हदीस सुनकर मुन्किरीन ने इस हदीस का इन्कार कर दिया, और कहा ऐसा कोई वाकिआ नहीं हुआ, मैने कुतुबे अहादीस् का मुतालआ किया, तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लुआबे देहन शरीफ की इस किस्म की बरकतों पर मुश्तमिल मुतअद्दिद और हदीसें भी मिल गईं, जिन में सहाबा किराम की आँखों का दुखना और बीनाई का लौट आना मजकूर था, मैने अगले जुमा में सुनाया कि लो, तुम एक हदीस का इंकार कर रहे थे, वह भी सुनो, उसके इलावा और चंद वाकिआत भी सुनो,

फिर मैने यह सारे ईमान अफरोज़ वाकिआत कुतुबे अहादीस से सुनाए और मुंकेरीन का शुकरिया भी अदा किया कि अगर तुम इंकार न करते तो मैं कुतुबे अहादीस का मुतालआ न करता और यह जो चंद और वाकिआत भी अहादीस में से मुझे मिल गए हैं, तो अब मैं बजाए सिर्फ एक वाकिआ के यह सारे वाकिआत बयान किया करूँगा!

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जितने भी कमालात हैं, हर कमाल का एक न एक मुंकिर भी खुदा ने पैदा फरमाया है, मसलन हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम पर नुबुव्वत का ख़त्म हो जाना और आप का खातमुन्नबिय्यीन होने पर जिस कद्र आयात व अहादीस वारिद हैं, उन के याद करने और बयान करने के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के उस कमाल का कोई मुंकिर होना ज़रूरी था, अगर कोई मुंकिरे ख़त्मे नुबूव्वत न होता तो न कोई आयाते ख़त्मे नुबुव्वत को याद करता न बयान करता, और यह जुमला आयात व अहादीस बिगैर बयान किये रह जातीं, इसलिए खुदा तआला ने मुंकिरीने ख़त्मे नुबुव्वत भी पैदा फरमाए और बेकार पैदा नहीं फरमाए बल्कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के कमाले ख़त्मे नुबुव्वत को चमकाने के लिए पैदा फरमाए !

इसी तरह हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के उलूम व इख़्तियारात और तमाम कमालात पर जितनी आयात व अहादीस मुबारका शाहिद हैं, उन का जो आए दिन तक़रीरों में और तहरीरों में बयान होता रहता है, वह इन मुंकिरीने कमालात की बदौलत है, मालूम हुआ कि यह सब मुंकिरीन अबस (बेकार) पैदा नहीं फरमाए गए, बल्कि यही हक़ीक़त है कि “रब्बना मा खलक-त हाज़ा बातिला” हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के सब्र व शुक्र और आप के अज़्म व इस्तिक्लाल के डंके बज रहे हैं, लेकिन उन कमालाते हुसैन का सबब कौन था वही मुन्किरे हुसैन यज़ीद, हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की शान चमकाने के लिए यज़ीद को पैदा किया गया, अगर यज़ीद न होता तो न कोई इस क़दर जुल्म व सितम के पहाड़ तोड़ता और न इमाम पाक के सब्र व शुक्र और अज़्म इस्तिकलाल का जुहूर होता!

इसी तरह जुमला मुन्किरीने अम्बिया व औलिया किराम और मुंकिरीने सहाबा व अहले बैते इज़ाम और मुंकिरीने इमामने दीन का वजूद भी हिकमत से खाली नहीं। यह मुंकिरीन उन नुफूसे कुदसीया का इंकार करते हैं और उनके गुलाम की शानों का इंज़्हार करतें हैं।

जिस कदर इंकार ज़्यादा होता है इसी कदर उनकी बुलंद व बाला शानों का इज़्हार ज़्यादा होता है मशहूर है कि नूर तारीकी में चमकता है जितनी गहरी तारीकी होगी उतनी ही चमक तेज़ होगी, नेकी के जुहूर के लिए बदी का वुजूद और अच्छाई के ज़ाहिर होने के लिए बुराई का वुजूद ज़रूरी है।

चंद साल गुज़रे, 12 रबीउल अव्वलं शरीफ के रोज़ हमारे कस्बे में हस्बे मामूल जुलूसे मीलादुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तैयारी मुकम्मल थी, लेकिन इत्तिफाक ऐसा हुआ कि मैन जुलूस निकलने के वक़्त मूसला धार बारिश होने लगी। बारिश इतने ज़ोर की थी कि गली कूचे सब पानी से भर गए, मुसलमानाने कोटली जुलूस निकालने के लिए बिल्कूल तैयारी थी, लेकिन बारिश ने रूकावट पैदा कर दी,

बारिश थमने का नाम ही न लेती थी चुनाँचि अकसर अहबाब की राय यह हुई कि इस बार जुलूस न निकाला जाए क्योंकि सूरत ही ऐसी न थी कि जुलूस निकल सकता लेकिन एक बात ऐसी हो गई, जिस से जुलूस मूसला धार बारिश होते में निकला, बात यह हुई कि मुंकिरीने जुलूस ने कहीं यह कह दिया कि जुलूस बिदअत है और खुदा को मंजूर नहीं कि इस जुमले ने कुछ ऐसा असर किया, कि सब ने मिल कर मुझ से कहाः मौलवी साहिब ! अब अगर ओले भी पड़ने लगें तो परवाह नहीं, चलिए आगे चलिए और मूसला धार बारिश में जुलूस की क्यादत कीजिए, क़ब्र में जाने की तैयारी और नसीहत। 

बखुदा उस रोज़ का जुलूस भी एक यादगार जुलूस था, पिछले तमाम सालों से ज्यादा लोग इस जुलूस में शामिल हुए, आसमान पर से पानी बरस रहा था, और इसी आलम में जुलूस निकल रहा था गली कूचों में पिंडलियां पानी में डूबी हुई चल रही थी, ज़बानों से दरूद, सलाम के नगमात जारी, नअरये. तकबीर व रिसालत की गूंज ऊपर से बादलों की कड़क और पानी जारी, चारों तरफ पानी ही पानी और जुलूस की रवानगी मुंकिरीन को पानी पानी कर रही थी इस रोज़ अगर मुंकिरीन इतनी बात न करते कि जुलूस निकालना खुदा ही को मंजूर नहीं तो यह हक़ीक़त मेंहै कि जुलूस निकालने का इरादा मुल्तवी हो चुका होता, मालूम हुआ कि मुंकिरीन का वुजूद अबस् पैदा नहीं किया गया।

बल्कि वही हक़ीक़त है कि एक बुजुर्ग का वाकिआ पढ़ा था कि आपने एक मज्लिस में फरमाया ” अल्लाह तआला इन काफिरों को सलामत रख्खे कि यह हमारे लिए नेअमत हैं।

हाज़ेरीन ने दरयाफ्त किया हुजूर काफिर हमारे लिए नेअमत कैसे हो गए? फरमाया वह ऐसे कि मुसलमान अगर मैदाने जिहाद में किसी काफिर को मारे तो गाजी और काफिर के हाथों मारा जाए तो शहीद और ग़ाज़ी व शहीद होना बहुत बड़ा दर्जा है लेकिन यह दर्जा मिला, किस की वजह से काफ़िर के वुजूद से, अगर काफिर ही न हों तो हम न ग़ाज़ी बन सकते न शहीद मअलूम हुआ कि काफिर भी हमारे लिए नेअमत हैं, कि उनकी वजह से हम गाजी भी बनते हैं और शहीद भी खुदा उन्हें सलामत रखे।

इस तम्हीद के बाद सुनिये फिरऔन को हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की मुखालिफत के लिए पैदा किया गया, नमरूद को इब्राहीम अलैहिस्सलाम की मुखालिफत के लिए और अबूजेहल को हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मुखालिफ्त के लिए पैदा किया गया, और शैतान को अल्लाह तआला ने अपनी मुखालफत के लिए पैदा किया।

यही वजह है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम इस आलम से तशरीफ ले गए तो अबू जेहल भी न रहा, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम तशरीफ ले गए तो नमरूद भी गया, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तशरीफ ले गए तो फिरऔन भी चल दिया, इमाम हुसैन तशरीफ ले गए, तो यज़ीद भी न रहा, लेकिन खुदा तआला अभी तक है तो शैतान भी अभी तक है खुदा अज़ली व अबदी है,

उसकी न इब्तिदा न इन्तिहा, उस ने अपना मुखालिफ भी पैदा फरमाया तो दीगर तमाम मुंकिरीन से उसे ज़्यादा उमर दी और इन्न-क मिनल – मुंतज़ेरीन’ फरमाकर उसे ढीले दे दी और इख़्तियारात भी बड़े वसी दे दिये ताकि वह अपने ज़ोर लगाकर देख ले, खुदा के जो बंदे हैं वह उसी के होकर रहे हैं, कभी शैतान के न बनेंगे, शैतान ने उमरे दराज़ और इख़्तियारात वसी पाकर खुदा के मुकाबले में बाक़एदा एक महाज़ खोल लिया, और अपनी गिरोह तैयार करने के लिए कोशिशें करने लगा, चुनाँचे शैतान की इस कोशिश से जो बद नसीब अफ़ाद थे, उसके दाव में फंसते चले गए और इब्तिदा से लेकर आज तक दो गिरोह नज़र आने लगे !

अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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