राहत-ए-क़ब्र की फज़ीलत :-
नेक और आबिद मोमिनीन जब मुनकिर नकीर के सवाल के जवाबात दे चुकेंगे तो उनके लिये हुक्म होगा कि उनकी क़ब्र को जन्नत की तरह कर दो और ताहद्दे नज़र वसी कर दो एक रिवायत है कि आसमानों से आवाज़ देने वाला आवाज़ देगा कि मेरे बन्दे ने सच कहा तो इसके लिये जन्नत का बिछौना बिछा दो और उसे जन्नती लिबास पहना दो।
एक और रिवायत है कि अल्लाह तआला की तरफ से फरिश्तों को हुक्म होगा कि इसके लिये जन्नत का दरवाज़ा खोल दो लिहाज़ा दरवाज़ा खोल दिया जायगा। और उस मोमिन के पास जन्नत की खुशबूदार राहत आमेज़ हवा आयेगी फिर उसकी क़ब्र का सत्तर मुरब्बा ज़राअ कुशादा कर दिया जायगा ज़राअ तक़रीबन डेढ़ फिट के बराबर होता है कि इसे फरिश्ते कहेंगे कि दुल्हन की तरह सो जा जिसे कोई बेदार करने वाला नहीं होता सिवाय उसके जो इसका अहल होता है इसके मोतआलिक़ हुजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की मोकम्मल हदीस का मतलब यह है।
हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब मैय्यत को क़ब्र में रख दिया जाता है तो मुर्दा अपनी क़ब्र में बैठता है उस वक़्त उसपर ना तो खौफ मोसल्लत होता है ना घबराहट फिर इस से दरियाफ़्त किया जाता है कि तू किन में से था वह जवाब देता है में मतबऐ इस्लाम था फिर सरकार की जानिब इशारा करके दरियाफ़्त करते हैं यह कौन हैं?
तो वह जवाब देता है कि यह ज़ात तो मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की है जो हमारे पास दलायल और बराहीन लेकर आये और हमने आपकी तस्दीक़ की फिर मुर्दे से सवाल होता है कि तूने अल्लाह को देखा वह जवाब देता है किसी शख्स के लायक़ यह बात नहीं कि वह अल्लाह को देखे।
फिर उसकी तरफ दोज़ख की एक खिड़की खोल दी जाती है जिससे यह मालूम होता है कि इसका बआज़ बआज़ को तोड़ रहा है उस वक़्त इससे कहा जाता है देख ले अल्लाह तआला ने तुझे इससे बचा लिया फिर उसके लिये जन्नत की जानिब की खिड़की खोल दी जाती हैं तो मुर्दा उसकी बहारों और तरोताज़गी को देखता है तो इससे कहा जाता है कि इस यक़ीन व ईमान की बिना पर यह तेरा ठिकाना है जिस पर तेरी ज़िन्दगी गुज़री और तुझे मौत आई और इसी यक़ीन पर इन्शाअल्लाह (रोज़ क़यामत) उठाया जायगा।
लेकिन हर बुरे आदमी को क़ब्र में जब उठाया जाता है तो क़ब्र में डरा और घबराया हुआ बैठता है जब उससे सवाल होता है कि तू किस दीन पर था तो वह कहता है मुझे मालूम नहीं और जब इससे सरकार सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के बारे में सवाल होता है तो कहता है कि जो कुछ इनके बारे में लोगों से सुनता था वही मैं भी कहता था फिर उसके लिये जन्नत की खिड़कियां खोली जाती हैं और वह जन्नत की बहारों को देखता है तो इससे कहा जाता है कि देख ले तुझे किन नेमतों से फेर दिया गया फिर उसके लिये जहन्नम की खिड़कियां खोली जाती हैं तो वह देखता है कि बआज़ को बआज़ खत्म कर रहा है।
इसके बाद इससे कहा जाता है यह तेरा ठिकाना है और यह इस शक की बिना पर है जिस पर तूने ज़िन्दगी गुज़ारी और तुझे मौत आई और इस पर इन्शाअल्लाह क़यामत के दिन उठाया जायेगा। (इब्ने माजा)
क़ब्र मोमिन के लिये राहत का मुक़ाम है क्योंकि मोमिन की क़ब्र को जन्नत के बागीचों में से एक बागीचा की मानिन्द बना दिया जाता है और मोमिन आलमे बरज़ख में क़यामत तक जन्नत के नज़ारों से लुत्फ अन्दोज़ होता रहता है गरज़ कि मौत के आने से मोमिनों को दुनिया के दुखों से नजात मिल जाती है और क़ब्र में उसे मोकम्मल राहत नसीब हो जाती है फिर क़यामत के रोज़ हमेशा के लिये जन्नतुल फिरदौस में दाखिल कर दिया जायगा।
हज़रत मसरूक़ रज़ियल्लाहो अन्हो का क़ौल है कि मोमिन के लिये क़ब्र से ज्यादा बेहतर जगह और कोई नहीं क्योंकि क़ब्र में वह दुनिया के तमाम गमों से महफूज़ हो जाता है और अल्लाह तआला के अज़ाब से भी नजात पा जाता है। क़ब्र में जाने की तैयारी और नसीहत।
जन्नत की खुश ख़बरी :-
हज़रत जाफर रज़ियल्लाहो अन्हो बयान करते हैं कि मैंने साबित से सुना उन्होंने हाम्ममीमअस्सजद तिलावत की यहाँ तक कि वह इस आयत पर पहुंचे। “इन्नलज़ी ना क़ालू रब्बुनल्लाहो सुम्मस तक़ामू ततनज्ज़लू अलैहि मुल मलायक तू अल्लाह तखाफू वला तहज़नू” (बेशक जिन लोगों ने कहा कि अल्लाह हमारा रब है फिर वह इस पर जम गये हम उनके पास फरिश्ते भेजते हैं कि अब तुम ना ख़ौफ करो ना कोई ग़म फिर वह यहाँ ठहर गये और फरमाया कि हमें यह हदीस पहुंची है कि मोमिन बन्दा जब इसकी क़ब्र से उठाया जाता है तो इस वक़्त वह दोनों रिश्ते इसके पास आते हैं जो दुनिया में इसके साथ रहे थे वह कहते हैं कि अब तु ना कोई ख़ौफ कर और ना ग़म तेरे लिये इस जन्नत की खुशखबरी है जिसका तुझसे वादा किया गया था अल्लाह तआला उसे ख़ौफ से अमान अता फरमायगा और उसकी आँख ठन्डी करेगा जबकि क़यामत के दिन की मोसीबत लोगों को ढांक लेगी। मदहोश कर देगी मोमिन आँख की ठन्डक (अमन) में होंगे। इसलिये कि अल्लाह ने उन्हें अपना रास्ता दिखाया वह इस पर चलते रहे और इसलिये कि दुनिया में उन्होंने अल्लाह की रज़ामन्दी के काम किये।
क़ब्र का कुशादह होना :-
हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मोमिन अपनी क़ब्र में सत्तर हाथ के सब्ज़हज़ार में फिरता रहता है और चौदहवीं के चांद की तरह उनकी क़बूर रौशन रहती है।
हज़रत अली बिन मोईद ने हज़रत मआज़ से रिवायत किया उन्होंने कहा कि मैंने हज़रत आईशा रज़िअल्लाहु अन्हा से पूछा कि आप बताईये मैय्यत के साथ क्या होता है? तो आपने फरमााय अगर वह मोमिन है तो उसकी क़ब्र चालीस हाथ खोल दी जाती है।
हज़रत आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि जब नजाशी का इन्तिकाल हुआ तो हम उसकी क़ब्र पर मुसलसल नूर देखते थे। (अबू दाऊद)
एक क़ब्र का मंज़र :-
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अहमद जाफई रज़ियल्लाहो अन्हो ने अपनी सनद से बयान किया मैं कुफा में एक नौजवान की नमाज़ जनाज़ा में शरीक हुआ अब जो मैं उसकी क़ब्र दुरूस्त करने को दाख़िल हुआ तो ईंटे लगाते हुए एक ईंट गिर गई तो मुझे अन्दर काबा और तवाफ का मंज़र नज़र आया। (शरह अस्सदूर)
हिकायत :-
हज़रत अबू ग़ालिब रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि शाम में एक शख़्स की मौत का वक़्त आ गया तो उसने अपने चचा से कहा कि अगर मुझको अल्लाह मेरी माँ की तरफ लौटा दे तो बताइये वह मेरे साथ क्या सुलूक करेगी? वह कहने लगे कि बखुदा वह तुम को जन्नत में दाखिल कर देगी। तो उस शख़्स ने कहा कि अल्लाह मुझ पर वालिदह से भी ज़्यादा मेहरबान है।
फिर उस नौजवान का इन बातों के बाद विसाल हो गया तो मैं उसके चचा के साथ क़ब्र में दाखिल हुआ तो अचानक एक ईंट गिर पड़ी तो उसका चचा कूद कर आगे बढ़ा फिर रूक गया मैंने कहा क्या है? तो उसने जवाब दिया इसकी क़ब्र नूर से मुनव्वर है और जहाँ तक मेरी नज़र की रसाई हुई वहाँ तक कुशादह है। (इब्ने अबीअददुनिया)
क़ब्रिस्तान का गोशा गोशा मोमिन के लिये बनाओ सिंगार करता हैः-
हज़रत इब्ने उमर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रहमते आलम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब किसी मोमिन की वफात होती है तो कब्रिस्तान का गोशा गोशा उसके लिये बनाओ सिंगार करता है और हर गोशा यही आरज़ू करता है कि यह मेरे पास दफ़न हों लेकिन जब किसी काफिर की मौत होती है तो क़ब्रिस्तान में तारीकी पैदा हो जाती है और क़ब्रिस्तान का गोशा गोशा अल्लाह तअला से पनाह मांगकर फरीयाद करता है कि यह बदबख़्त मेरे पास दफ़न न किया जाय। (हकीम तिर्मिज़ी, इब्ने असाकर, इब्ने अदी, इब्ने मन्दह)
Raahat-e-Qabr ki Fazeelat.
क़ब्र से ख़ुश्बू का आना :-
हज़रत अबू नईम ने मुगैरह बिन हबीब से रिवायत किया कि अब्दुल्लाह बिना ग़ालिब दानी एक जंग में शहीद हो गये जब उनको दफ़न किया गया तो उनकी क़ब्र से मुश्क की महक आई।
एक मर्तबा उनके किसी भाई ने उनको ख़्वाब में देखा तो दरियाफ़्त किया कि तुम्हारे साथ क्या बरताव हुआ? कहा कि बहुत अच्छा फिर पूछा क्या ठिकाना मिला? कहा जन्नत फिर पूछा किस समय से? कहा कि हुस्ने यक़ीन और तहज्जुद की नमाज़ और प्यासा रहना, फिर पूछा कि खुशबू तुम्हारी क़ब्र में कैसे आती है? कहा यह तिलावत और रोज़ा की वजह से है।(शरह अस्सदूर)
शहादत का ईनाम :-
हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक अराबी हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के सामने शहीद हो गये तो आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम उसके सराहने आलमे मोसर्रत में बैठे और मुस्कुराहट फरमाई और उससे मुँह मोड़ लिया तो आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम से इस सिलसिले में सवाल किया गया। आपने फरमाया कि खुश होना तो इसलिये था कि मैंने देखा कि अल्लाह तआला ने इसका मर्तबा किस क़दर बुलन्द फरमाया और मेरा मुँह फेरना इसलिये हुआ कि उसकी बीवी हव्वा उसके पास है।
बीवी का कफन :-
हज़रत राशिद बिन सआद रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि एक शख़्स की बीवी फौत हो गई तो उसने ख़्वाब में बहुत सी औरतें देखीं लेकिन उसकी बीवी उसमें न थी उसने इस औरत के न आने की वजह पूछी तो वह कहने लगी कि तुमने उसके कफ़न मे कोताही की इसलिये वह आने में शर्म महसूस करती है वह शख़्स बारगाह रिसालत मआब मे हाज़िर हुआ और वाक़िया अर्ज़ किया तो आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया किसी सक़ह आदमी का ख्याल रखना इत्तफाक़न एक अंसारी की मौत का वक़्त आ गया इसने अंसारी से कहा कि मैं अपनी बीवी का कफ़न देना चाहता हूँ अंसारी ने कहा कि अगर मुर्दा मुर्दे को पहचान सकता है तो मैं पहुंचा दूंगा।
चुनांचे वह शख़्स दो जाफरानी रंग के कपड़े लाया और अंसारी के कफ़न में रख दिया अब जो रात को ख्वाब में देखा तो वह औरत वह कपड़े पहने खड़ी है। यह हदीस अगरचे मुरसल है लेकिन इसकी अस्नाद में कुछ हर्ज नहीं।(शरह अस्सदूर) खुलफाए राशिदीन की ख़िलाफत।
हिकायत :-
एक मर्तबा ईमाम अहमद की क़ब्र के पास एक क़ब्र खोदी तो मुर्दे के सीने पर फूल रखे हुए थे और वह हिल रहे थे उन्होंने अपनी तारीख में रिवायत किया कि बसरह में एक टीला गिर गया उसमें हौज़ की तरह एक जगह थी इसमें सात आदमी मदफून थे उनमें से हर एक का कफ़न और बदन दुरूस्त था और मुश्क की खुशबू महक रही थी उनमें से एक नौजवान था जिस के सर पर बाल थे और उसके होंठ तर थे गोया कि उसने अभी कुछ पिया है। उसकी आँखों में सुर्मा लगा हुआ था उसकी कोख में तलवार का एक निशान था तो बाज़ लोगों ने उसका बाल लेना चाहा तो वह बाल ज़िन्दा इंसान के बाल की तरह मज़बूत था। (शरह अस्सदूर)
क़ब्र में अच्छी हालत का होना :-
हज़रत मोहम्मद बिन मोखालिद रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि मेरी वालिदा का इन्तक़ाल हो गया तो मैं उनको क़ब्र में उतारने के लिये उतरा तो मैंने देखा कि पास वाली क़ब्र से कुछ हिस्सा खुल गया है तो मुझे एक शख़्स नज़र आया जो नया कफ़न पहने हुए था और उसके सीना पर चम्बेली के फूलों का एक गुल्दस्ता रखा था मैंने उसे उठाया तो वह बिलकुल तरो ताज़ा थे मेरे साथ दूसरे हज़रात ने भी सूंघा फिर हमने उसको वहीं रख दिया और इस सूराख को बन्द कर दिया।(शरहअस्सदूर)
क़ब्र में नेक लोगों के मुक़ामात :-
मक़बूलाने बारगाहे हक़ में से बाज़ ने हुज़ूर समदियत में दुआ की कि मौला मौत के बाद की जगह मुझे दिखा दे चुनांचे एक शब उन्होंने ख़्वाब मे मनाज़िर मोलाहज़ा किये। क़ियामत क़ायम है क़ब्रे शक़ हैं इन क़ब्रों में कोई फर्श सुन्दस पर कोई हरीर पर, कोई फर्श दिबा पर, कोई
शानदार तख़्त पर, कोई फूलों की सेज पर आराम कर रहा है। किसी का यह हाल है कि रो रहा है और कोई खुशी से हंस रहा है।
साहिब ख़्वाब बुजुर्ग ने अर्ज़ किया मौला! अगर तू चाहता तो सबको एक सां अज़ाज़ व एकराम से नवाज़ता उसी वक़्त अहले क़बूर में से एक ने चीख कर कहा ऐ फ़्लाँ यह जो तू देख रहा है आमाल के दरजात हैं. अच्छे अख़लाक़ वाले और नेक हज़रात फर्श सुन्दस पर हैं हरीर व दीबा पर जिनको देख रहे हो वह शहीदाने मिल्लत हैं फूलों की सेज पर आराम फरमा रोज़हदार हज़रात हैं और तुम जिन्हें हंसते हुए देख रहे हो यह सच्ची तौबह वाले हैं और यह जो रो रहे हैं यह गुनहगार हैं और बुलन्द दरजात में वह लोग जो खुदा ही के लिये बाहम मोहब्बत रखने वाले हैं।
हज़रत अल्लाहमा याफी अलैहिर्रहमान ने इस वाक़िया की तौज़ीह में तवील और इल्मी तक़रीर फरमाई है इसी में है कि तिर्मिज़ी की हदीस में रब तआला का इरशाद है। खुदा के वास्ते मोहब्बत करने वालों के लिये नूर के मिम्बर रखे जायेंगे जिस पर अंबिया और शोहदा रशक करेंगे और मूता में इरशाद रब्बुल आलमीन है। जो लोग मेरे लिये मोहब्बत करते हैं मेरे लिये मिल बैठते हैं मेरे लिये एक दूसरे की जियारत करते हैं और मेरे लिये खर्च करते हैं इन पर मेरी मोहब्बत वाजिब है।
इन दोनों अहादीस से वाज़िह हुआ कि असहाबे मरातिब से मुराद तख़्त नशीन हज़रात है यह अज़ीम दर्जा है और इसी के साथ साथ खुश ऐशी और रब तअला का कुर्ब और जमाले रब्बानी की रूयत भी है जो यक़ीनन तमाम नेमतों से बड़ी नेमत है अल्लाह तआला उनकी नेमतें फजूंतर करे आमीन! और यह सवाल कि यहाँ मुतहाबीन का तख़्त पर होना और हदीस में मिम्बर नूर पर होना मजकूर है तो इसका जवाब यह है कि मिम्बर क़ियामत में होंगे और तख़्त क़ब्र में इन्शाअल्लाहुलअज़ीज़ ।(रौज़तुररियाहीन)
हिकायत :-
हज़रत मंसूर बिन अम्मार अलैहिररहमा ने एक जवाँसाल को नमाज़ पढ़ते हुए देखा वह ख़ौफ से लरज़ रहा था और उसकी नमाज़ का तरीक़ा अहले खुशू जैसा था। हज़रत मंसूर ने सोचा यकीनन यह कोई वली अल्लाह है जब वह नमाज़ ख़त्म कर चुका तो उन्होंने सलाम किया और कहाँ “तुम्हें मालूम है कि जहन्नम में एक वादी “लज़ा” है जो खाल खैखेंच लेगी वह उस शख़्स को पकड़ लेगी जिसने रू-कशी की होगी, बे रूखी से पेश आया होगा और माल जमा करके उठा रखा होगा।” यह बाते सुनकर नौजवान गश खाकर गिर पड़ा फिर कुछ देर बाद उसे होश आया और उसने कहा कुछ और भी सुनाओ। मंसूर बिन अम्मार ने यह आयात तिलावत कीं।
तर्जुमा :- ऐ ईमान वालों खुद को और अपने अहलो अयाल को उस आग से बचाओ जिसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं इस पर सख्त मिज़ाज क़वी फरिश्ते मोतयीअन हैं वह अल्लाह का कोई हुक्म नहीं टालते जो हुक्म होता है बजा लाते हैं।(अत्तहरीम, 6)
यह आयात सुनकर वह शख़्स गिर पड़ा और इन्तक़ाल कर गया मैंने देखा कि उसके सीने पर क़लमे कुदरत से तहरीर है। तर्जुमा तो वह पसन्दीदा ऐश में होगा, आलीशान जन्नत में जिसके फलों के गुच्छे झुके हुए हैं। (अल्हाक़्क़ह 21)
इन्तिक़ाल की तीसरी शब मंसूर बिन अम्मार ने उस नौजवान को ख़्वाब में देखा कि वह एक मुरस्सा तख़्त पर बैठा है और सर पर ताज चमक रहा है उन्होंने पूछा कि अल्लाह तआला ने तेरे साथ क्या मामला किया? जवाब दिया रब्बे करीम ने मुझे बख़्श दिया और अहले बद्र का सवाब अता किया बल्कि और ज़्यादा। इसलिये कि हज़रात अहले बद्र तो शमशीर कुफ्फार से शहीद हुए थे और मैं कलामे रब्बानी से शहीद हुआ। रहमतुल्लाह तआला अलैह । (रौज़तुररियाहीन)
क़ब्र में तख़्त और नहर का जारी होना :-
परहेज़गार और साहिब नज़र हज़रात में से एक ने बयान किया कि मैंने एक क़ब्र खोदी तो देखा कि बगल में क़ब्र के अन्दर एक शख्स तख़्त पर बैठा तिलावत कुरआन कर रहा है और जिस तख़्त पर वह बैठा है उसके नीचे एक नहर जारी है इस मंज़र को देख कर मैं बेहोश हो गया। मुझे कई रोज़ बाद होश आया तो मैंने लोगों को सारा माजरा सुनाया एक शख़्स ने कहा मुझे इस क़ब्र तक ले चलो मगर जब मैं इसके बाद शब में सोया तो साहिब क़ब्र ने ख़्वाब में आकर डाँटा कि ख़बरदार जो किसी को मेरी क़ब्र का पता बताया। मैंने अपने इरादे से तौबा की और किसी को इस क़ब्र के बारे में नहीं बताया। (रोज़तुर रियाहीन)
अहले क़बूर का आने वाले से हाल दरियाफ़्त करना :-
शैख अबू मोहम्मद अब्दुल्लाह इब्ने असअद याप्यी रज़ियल्लाहो अन्हो फरमाते हैं। मैंने ख़्वाब में एक खुली क़ब्र देखी जो अन्दर से निहायत कुशादह थी और इसमें सिर्फ तख़्त के चारों पाये नज़र आ रहे थे जिस पर कोई मौजूद था मैंने कहा अहले दुनिया कैसे अजीब हैं मुर्दों के लिये क़ब्र में तख्त बिछाते हैं और अपने आराम व आशायश को मौत के बाद नहीं छोड़ते मेरी यह बात सुनकर सरीरआराये तख़्त ने ऊपर आने को कहा मैं ज़ीना जैसी एक चीज़ के ज़रिये ऊपर गया तो क्या देखता हूँ कि तख़्त पर मेरी वालिदा आराम फरमाँ हैं उन्होंने बड़ी ही मेहर व मोहब्बत और शफ्क़्क़त से मुझे सलाम किया। मेरा एक भाई ज़िन्दा था उसके हालात पूछे और जो भाई वालिदा की वक़्त ज़िन्दा थे मगर इस ख़्वाब से पहले वफात पा चुके थे माँ ने उनके बारे में नहीं पूछा फिर मुझे रुख़्सत किया।
शैख फरमाते हैं इससे पता चलता है कि मरने वालों का हाल मुर्दों को मालूम होता है और जो लोग दुनिया से मर के वहाँ जाते हैं मुर्दे यहाँ वालों के अहवाल दरियाफ़्त करते हैं अपनी माँ के इस ख़्वाब का असर मेरे दिल पर सोल्हा साल तक रहा।(रौजुररियाहीन)
फकीह मोहीउद्दीन तिबरी से आरिफे वक़्त शैख इस्माईल बिन मोहम्मद हज़रमी ने एक बार दरियाफ़्त किया। क्या तुम्हारा कलामे मूता (मुर्दों का बात करना) पर ईमान है? उन्होंने जवाब दिया, जी, बेशक, फरमाया यह क़ब्र वाला मुझसे कहता है कि मैं जन्नत के अदना लोगों में से हूँ।
हिकायत :-
शैख़ अली रूदबारी रज़ियल्लाहु अन्हु की ख़ानकाह में दुरवेशों की एक जमात आकर क़याम पज़ीर हुई इनमें से एक दुरवेश बीमार हो गया इसके साथी तीमारदारी कर कर के थक गये और उसकी अलालत लम्बी होती गई। दुरवेश के साथियों ने एक दिन शैख़ से उसके तूले मर्ज़ की शिकायत की शैख ने उसकी ख़िदमत अपने जिम्माली अगरचि नफ़्स बीच में हायल होना चाहता था मगर आपने उसकी मोखालफत की और उसकी तीमारदारी के लिये क़सम खाली।
दुरवेश कुछ दिनों बाद इन्तक़ाल कर गया। गुस्ल व कफ़न और नमाज़ जनाज़ा के बाद शैख ने क़ब्र में उतरकर जब उसके कफ़न का सर बन्द खोला तो दुरवेश ने दोनों आँखें खोल दीं और कहाँ “बखुदा मैं अपनी वजाहत से रोज़े क़यामत आपकी मदद करूंगा जैसे अपनी नफ़्स की मोखालफत में आपने मेरी मदद की” (रौजुररियाहीन) सहाबियात का इश्के रसूल ।
ईमाम बुख़ारी रहमतुल्लाहि अलैहि की वफात का वाक्या :-
ईमाम बुख़ारी रहमतुल्लाहि अलैहि की जब वफात हुई और आपकी नमाज़ जनाज़ा अदा कर दी गई और आप को क़ब्र में रख दिया गया तो आपको क़ब्र में उतारते ही क़ब्र की मिटटी कस्तूरी की तरह महकने लगी लोग एक मुद्दत तक आपकी क़ब्र पर आते रहे और वह मिट्टी लेकर उसकी खुशबू पर तआजुब करते रहे। एक शख़्स ने बताया कि मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को देखा कि आप के साथ सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हु की जमाअत भी है आप यहाँ क़ब्र की जगह ही खड़े हैं मैंने आपकी ख़िदमत में सलाम पेश किया आपने मुझे सलाम का जवाब दिया मैंने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ! आपके यहाँ तशरीफ फरमा होने की क्या वजह है?
तो आपने फरमाया कि मोहम्मद विन इस्माईल रहमतुल्लाहि अलैहि (बुखारी) का इन्तज़ार कर रहा हूँ वह शख्स बयान करते हैं कि चन्द दिनों के बाद ही मुझे ख़बर मिल गई कि इमाम बुखारी रहमतुल्लाहि अलैहि का इन्तिक़ाल हो गया है। बाद में पता चला कि आपकी वफात का वक़्त वही है जिस वक़्त मैंने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की ख़्वाब में ज़ियारत की थी।(मिरक़ात जि. 1)
क़ब्र का सरसब्ज़ व शादाब होना :-
हज़रत उमर बिन ज़र से रिवायत है कि जब मुसलमान को क़ब्र में दाखिल किया जाता है तो वह उसको पुकार कर कहती है कि फरमाबरदार है या नाफरमान है अगर वह नेक होता है तो क़ब्र के गोशे से एक पुकारने वाला पुकार कर कहता है कि ऐ क़ब्र! तू इस पर सरसब्ज़ व शादाब हो जा और इसके लिये रहमत बन जा क्योंकि यह अल्लाह का सबसे अच्छा बन्दा था और अब यह बुजुर्गी का हक़दार है।(इब्ने अबीअदुनिया)
मोमिन का क़ब्र में खुश होना :-
एक तवील हदीस के साथ हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से यह भी मरवी है कि मोमिन को जब बताया जाता है कि अल्लाह तेरे लिये बजाये जहन्नम के जन्नत लिख दी है तो वह खुशी से कहता है कि मुझे इजाज़त दो ताकि मैं अपने घर वालों को बता कर आ जाऊँ लेकिन फरिश्ते इसको यहीं ठहरने का हुक्म देते हैं और काफिर को बताया जाता है कि अल्लाह तआला ने तेरे लिये बजाय जन्नत के जहन्नम कर दिया है।(अहमद बे हक़ी)
मोमिन और मुनाफिक़ का फर्क :-
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जो शख़्स जिस हालत पर दुनिया से रुख़्सत हुआ है इसी पर उठेगा यानी मुसलमान ईमान पर और मोनाफिक़ अपने नफाक़ पर उठाया जायगा। (तिबरानी)
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…