मियां बीवी या पति पत्नी के बीच किसी भी वजह से हो रहे मनमुटाव या झगड़े की वजह से उनके बीच के रिश्ते को तोड़ने को तलाक़ कहा जाता हैं।सीधी ज़बान में कहे तो मियां बीवी के बीच के रिश्ते को ख़त्म करने उसे तोड़ने को तलाक़ कहा कहा जाता है।
इस्लाम में तलाक़ को जायज़ करार दिया हैं क्यूंकि तलाक एक ऐसा फैसला हैं जिसमें अगर मियां बीवी दोनों आपस में साथ रहने से खुश नहीं हैं तो इस्लाम उन्हें इजाज़त देता हैं की आप तलाक़ लेकर एक दूसरे के बिना भी ख़ुशी से रह सकते हैं। क़ुरान और हदीस की रौशनी में तलाक़ का बयान काफी तफ्सील में बताया गया हैं।
लेकिन आजकल के दौर में तलाक़ को मर्दो ने एक दस्तूर सा बना लिया हैं। उन्हें पता ही नहीं की तलाक़ कब देना हैं? और क्यों देना हैं? आजकल के मर्द जब मर्ज़ी चाहे तलाक़ दे देते हैं, ये भी नहीं सोचते की इससे एक औरत की किस तरह ज़िन्दगी बर्बाद हो सकती हैं।Teen Talaq kya hai kyon kab aur kaise de.
क्यों होते हैं इतने तलाक?
तलाक एक ऐसा शब्द बन गया हैं जिससे मर्द इस शब्द का फ़ायदा उठा कर औरत पर ज़ुल्म करता है, मर्द को जब औरत पर गुस्सा आता हैं या कहे किसी बात से पर औरत से झगड़ा हो जाता हैं तो वह इस तलाक शब्द का इस्तेमाल करके औरत को डराता हैं। उसे लगता हैं की यह शब्द अगर बोल दिया तो ये चुप हो जाएगी और मुझ से बहस नहीं करेगी।हमारे नबी (स.व)का निकाह।
आजकल सुनने में आता हैं की बीवी ने अच्छा खाना नहीं बनाया तो तलाक़ दे दिया। मायके में ज़्यादा रुक गयी तो पोस्ट कार्ड से तलाक भेज दिया और न जाने कैसी कैसी तलाक की वजह सुनने में आती हैं जिसे सुनकर हैरत होती हैं की इतनी छोटी सी बात पर तलाक दे दिया।
हम मानते हैं की मिया बीवी में कभी कभी मनमुटाव हो जाते हैं। उसकी कुछ भी वजह हो सकती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं की एकदम से तलाक देकर अपने रिश्ते को ख़त्म कर दिया जाये। जो लोग ऐसे मज़ाक में या छोटी छोटी बातों पर तलाक दे देते हैं उन पर अल्लाह की बहुत लानत बरसती हैं।Teen Talaq kya hai kyon kab aur kaise de.
ऐसे लोग गुस्से में तलाक तो दे देते मगर कुछ देर बाद या कुछ दिनों बाद अपने द्वारा लिए तलाक के फैसले को लेकर पछताते हैं। तलाक कोई मामूली बात नहीं है बल्कि यह ज़िन्दगी का एक बहुत भयानक हादसा हैं। जायज़ कामों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा नापसंद काम तलाक है।
एक बार में ही तीन तलाक देने वालों पर अल्लाह तआला ने लानत फ़रमाई हैं। क़ुरान और हदीस की रौशनी में तलाक के बारे में बड़ा तफ्सील से बयान दिया गया हैं।
तलाक़ देने का तरीक़ा ।
तलाक का शरई तरीका ये है की अगर किसी बात से शौहर बीवी में झगड़ा हो जाये या शौहर फैसला कर ले की अब बीवी के साथ नहीं रहना है तो एक बार ठन्डे दिमाग से सोचे और आपस में सुलह की कोशिश करे।
अगर तलाक ही चाहिए तो उसका तरीका यह है की जब बीवी हैज़ (औरत का मासिक धर्म) से पाक हो जाये तो उसे एक तलाक दे दे,हो सकता हैं बीवी अपनी गलती सुधार ले या आदमी का गुस्सा ठंडा हो जाये और दोनों वापिस एक हो जाना चाहे।Teen Talaq kya hai kyon kab aur kaise de.
एक तलाक देने की सूरत में शौहर अगर चाहे तो बिना निकाह किये उसे दोबारा रख सकता हैं।अगर फिर भी तलाक ही चाहते हैं तो दोबारा जब औरत दूसरे मासिक धर्म से पाक हो जाये तो फिर दूसरा तलाक दे दे।
अब भी अगर शौहर और बीवी दोनों एक साथ रहना चाहते हैं तो शौहर इद्दत के अंदर या उसके बाद बीवी की मर्ज़ी से उसे वापिस रख सकता हैं।उसके बावजूद भी अगर तलाक ही एक आखरी फैसला हैं तो तीसरे महीने औरत जब महावारी से पाक हो जाये तो आखरी तलाक दे दें तो उस केस में तलाक हो जाती हैं। इस तरह यह तीन तलाकें हो गयी।
अब बीवी शौहर के लिए हराम हो गयी। अब अगर वह साथ में रहना चाहते हैं तो इस्लाम में एक रास्ता बताया हैं जिसे हलाला कहते हैं। लेकिन यह इतना शर्मनाक और वाहियात तरीका हैं की कोई भी मर्द उसे सोच कर अपनी बीवी को कभी तलाक देने का ख्याल अपने मन में नहीं लाएगा।
हलाला क्या हैं ?
रसुलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं हलाला करने वाले और हलाला कराने वाले दोनों पर अल्लाह की लानत हैं। हलाला यह हैं की तलाक पाने के बाद औरत इद्दत के दिन पुरे करे और फिर किसी और मर्द से निकाह कर ले और उसके साथ रहे। उसका दूसरा शौहर उससे हमबिस्तरी करे। फिर अगर वह चाहे तो अपनी ख़ुशी से उसे तलाक दे सकता हैं।
इस तरह औरत दूसरे शौहर की इद्दत गुज़ार कर अब अगर चाहे तो पहले शौहर से फिर से निकाह कर सकती हैं। ज़रा सोचिये कौन गैरत मंद मर्द ऐसा चाहेगा की उसकी बीवी किसी और के साथ हमबिस्तरी करे। ऐसे मर्दो को तलाक से पहले यह भी सोचना चाहिए आपकी बीवी एक पराये मर्द के साथ कैसे वह सब चीज़े करेगी?हज़रते खदीजा (र.अ)से हज़रत आइशा (र.अ)का गैरत.
क्या बीतेगी उस औरत पर? आखिर तलाक जैसा कदम उठाया ही क्यों जाये अगर दोनों आपस में वापिस से रहना चाहते हैं। क्यूंकि हलाला में बिना हमबिस्तरी करे अगर तलाक दे दिया तो वह हलाला नहीं माना जायेगा। इस केस में बीवी अपने पहले शौहर से निकाह नहीं कर सकती।Teen Talaq kya hai kyon kab aur kaise de.
तलाक को लेकर हमारी नसीहत |
मिया और बीवी के पाक रिश्ते की कद्र की जाये और गुस्से में या नादानी में तलाक जैसा कदम न उठाये की बाद में पछताना पड़े।यह भी हो सकता है मिया और बीवी दोनों में से कोई एक ख़राब हो। मतलब उसमे काफी बुराई मौजूद हो या फिर दोनों ही एक जैसे हो।
दोनों आपस में ही एक दूसरे को पसंद नहीं करते हो या ऐसा हो की औरत के रंग मिज़ाज,अख़लाक़ सही नहीं हो या आदमी शराबी, मवाली या औरत को मारता पीटता हो। इस केस में अगर आपस में रिश्ता नहीं बन रहा हो तो फिर आप तलाक ले सकते हैं।
लेकिन अगर ऐसा कुछ नहीं हैं तो फिर तलाक का फैसला लेते समय दस बार सोचे और फिर अपना फैसला ले क्यूंकि यह ज़िन्दगी ख़राब करने वाला फैसला हैं।ऐसा फैसला लेने से पहले आपसी रिश्ते सुधारें।आपसी झगडे को ख़त्म करे। रिश्तेदारों से पहले सलाह मशवरा ले तब जाकर तलाक का फैसला लिया जाये।
मिया बीवी दोनों को चाहिए की आपस में मिलजुल कर रहे। एक दूसरे से ज़बान दराज़ी से न करे। दोनों में से कोई एक गुस्से में कुछ बोल रहा है तो दूसरा चुप हो जाये क्यूंकि ख़ामोशी ऐसी चीज़ है जो बिगड़ते रिश्तो को वापिस जोड़ सकती है।
हमारी हर मर्द और औरत मिया बीवी से यही गुज़ारिश हैं की आपस में प्यार से रहे, ख़ुशी से रहे और ज़िन्दगी भर एक दूसरे के हमसफ़र बने रहे।
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम (स.व) से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।
इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…