सूरए फील और अबाबील का वाकिआ।Surah feel aur ababeel ka waqia.

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सूरह फील और अबाबील का वाकिआ हमारे नबी-ए-करीम (स.व) के दादा अब्हुदुल मुत्तलिब के दौर मे पेश आया हुज़ूरे अक्दस(स.व)के दादा अब्दुल मुत्तलिब का असली नाम शैबा है। येह बड़े ही नेक नफ़्स और आबिदो जाहिद थे। गारे हिरा में खाना पानी साथ ले कर जाते और कई कई दिनों तक लगातार खुदा की इबादत में मसरूफ़ रहते ।

रमज़ान शरीफ़ के महीने में अकसर गारे हिरा में एतिकाफ़ किया करते थे, और खुदा के ध्यान में गोशा नशीन रहा करते थे। रसूलुल्लाह (स.व)का नूरे नुबुव्वत इन की पेशानी में चमक्ता था और इन के बदन से मुश्क की खुश्बू आती थी ।

अहले अरब खुसूसन कुरैश को इन से बड़ी अकीदत थी। मक्का वालों पर जब कोई मुसीबत आती या कहत पड़ जाता तो लोग अब्दुल मुत्तलिब को साथ ले कर पहाड़ पर चढ़ जाते और बारगाहे खुदा वन्दी में इन को वसीला बना कर दुआ मांगते थे तो दुआ मक़बूल हो जाती थी।

येह लड़कियों को ज़िन्दा दरगोर करने से लोगों को बड़ी सख्ती के साथ रोकते थे और चोर का हाथ काट डालते थे। अपने दस्तर ख़्वान से परिन्दों को भी खिलाया करते थे इस लिये इन का लकब मुतइमुत्तीर (परिन्दों को खिलाने वाला) है। शराब और जिना को हराम जानते थे। और अकीदे के लिहाज़ से मुवहिद थे।

ज़मज़म शरीफ़ का कुंआं जो बिल्कुल पट गया था आप ही ने उस को नए सिरे से खुदवा कर दुरुस्त किया, और लोगों को आबे ज़मज़म से सैराब किया। आप भी काबे के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन हुए। अस्हाबे फील का वाक़िआ आप ही के वक्त में पेश आया। एक सौ बीस बरस की उम्र में आप की वफात हुई ।

हुज़ूरे अकरम (स.व)की पैदाइश से सिर्फ पचपन दिन पहले यमन का बादशाह अबरहा हाथियों की फ़ौज लेकर काबा ढाने के लिये मक्का पर हमलावर हुवा था।

इस का सबब येह था कि अबरहा ने यमन के दारुस्सल्तनत सन्आ में एक बहुत ही शानदार और आलीशान गिरजा घर बनाया और येह कोशिश करने लगा कि अरब के लोग बजाए खान काबा के यमन आ कर इस गिरजा घर का हज किया करें ।

जब मक्का वालों को येह मालूम हुवा तो क़बीलए किनाना का एक शख्स गैजो ग़ज़ब में जल भुन कर यमन गया, और वहां के गिरजा घर में पाखाना फिर कर उस को नजासत से लतपत कर दिया।

जब अबरहा ने येह वाकिआ सुना तो वोह तैश में आपे से बाहर हो गया और खानए काबा को ढाने के लिये हाथियों की फौज ले कर मक्का पर हमला कर दिया। और उस की फ़ौज के अगले दस्ते ने मक्का वालों के तमाम ऊंटों और दूसरे मवेशियों को छीन लिया उस में दो सौ या चार सौ ऊंट अब्दुल मुत्तलिब के भी थे।

अब्दुल मुत्तलिब को इस वाकिए से बड़ा रन्ज पहुंचा। चुनान्वे आप इस मुआमले में गुफ्तगू करने के लिये उस के लश्कर में तशरीफ़ ले गए । जब अबरहा को मालूम हुवा कि कुरैश का सरदार इस से मुलाकात करने के लिये आया है तो उस ने आप को अपने खेमे में बुला लिया।

और जब अब्दुल मुत्तलिब को देखा कि एक बुलन्द कामत, रोबदार और निहायत ही हसीनो जमील आदमी हैं जिन की पेशानी पर नूरे नुबुव्वत का जाहो जलाल चमक रहा है तो सूरत देखते ही अबरहा मरऊब हो गया। और बे इख़्तियार तख़्ते शाही से उतर कर आप की ताज़ीमो तक्रीम के लिये खड़ा हो गया ।

और अपने बराबर बिठा कर दरयाप्त किया कि कहिये : सरदारे कुरैश ! यहां आप की तशरीफ़ आवरी का क्या मक्सद है? अब्दुल मुत्तलिब ने जवाब दिया कि हमारे ऊंट और बकरियां वगैरा जो आप के लश्कर के सिपाही हांक लाए हैं आप उन सब मवेशियों को हमारे सिपुर्द कर दीजिये ।

येह सुन कर अबरहा ने कहा कि ऐ सरदारे कुरैश ! मैं तो येह समझता था कि आप बहुत ही हौसला मन्द और शानदार आदमी हैं। मगर आप ने मुझ से अपने ऊंटों का सवाल कर के मेरी नज़रों में अपना वकार कम कर दिया। ऊंट और बकरी की हक़ीक़त ही क्या है?

मैं तो आप के काबा को तोड़ फोड़ कर बरबाद करने के लिये आया हूं, आप ने उस के बारे में कोई गुफ़्तगू नहीं की ! अब्दुल मुत्तलिब ने कहा कि मुझे तो अपने ऊंटों से मतलब है काबा मेरा घर नहीं है बल्कि वोह खुदा का घर है। वोह खुद अपने घर को बचा लेगा।

मुझे काबे की ज़रा भी फिक्र नहीं है। येह सुन कर अबरहा अपने फ़िरऔनी लहजे में कहने लगा कि ऐ सरदारे मक्का ! सुन लीजिये ! मैं काबे को ढा कर उस की ईंट से ईंट बजा दूंगा, और रूए ज़मीन से इस का नामो निशान मिटा दूंगा क्यूं कि मक्का वालों ने मेरे गिरजा घर की बड़ी बे हुर्मती की है

इस लिये मैं इस का इन्तिकाम लेने के लिये काबे को मिस्मार कर देना ज़रूरी समझता हूं। अब्दुल मुत्तलिब ने फ़रमाया कि फिर आप जानें और खुदा ‘जाने। मैं आप से सिफारिश करने वाला कौन ? इस गुफ़्तगू के बाद’ अबरहा ने तमाम जानवरों को वापस कर देने का हुक्म दे दिया ।

और अब्दुल मुत्तलिब तमाम ऊंटों और बकरियों को साथ ले कर अपने घर चले आए और मक्का वालों से फ़रमाया कि तुम लोग अपने अपने माल और मवेशियों को ले कर मक्का से बाहर निकल जाओ। और पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ कर और दरों में छुप कर पनाह लो।

मक्का वालों से येह कह कर फिर खुद अपने खानदान के चन्द आदमियों को साथ ले कर खानए काबा में गए और दरवाज़े का हल्का पकड़ कर इन्तिहाई बेक़रारी और गिर्या व ज़ारी के साथ दरबारे बारी में इस तरह दुआ मांगने लगे कि

ऐ अल्लाह ! बेशक हर शख्स अपने अपने घर की हिफ़ाज़त करता है। लिहाजा तू भी अपने घर की हिफ़ाज़त फ़रमा, और सलीब वालों और सलीब के पुजारियों (ईसाइयों) के मुकाबले में अपने इताअत शिआरों की मदद फ़रमा ।

अब्दुल मुत्तलिब ने येह दुआ मांगी और अपने खानदान वालों को साथ ले कर पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए और खुदा की कुदरत का जल्वा देखने लगे । अबरहा जब सुबह को काबा ढाने के लिये अपने लश्करे जर्रार और हाथियों की कितार के साथ आगे बढ़ा और मकामे मगमस में पहुंचा तो खुद उस का हाथी जिस का नाम महमूद था एक दम बैठ गया।

हर चन्द मारा, और बार बार ललकारा मगर हाथी नहीं उठा । इसी हाल में कहरे इलाही अबाबीलों की शक्ल में नुमूदार हुवा और नन्हे नन्हे परिन्दे झुंड के झुंड जिन की चोंच और पन्जों में तीन तीन कंकरियां थीं समुन्दर की जानिब से हुरमे काबा की तरफ आने लगे ।

अबाबीलों के इन दल बादल लश्करों ने अबरहा की फ़ौजों पर इस जोर शोर से संगबारी शुरू कर दी कि आन की आन में अबरहा के लश्कर, और उस के हाथियों के परखचे उड़ गए।

अबाबीलों की संगबारी खुदा वन्दे क़हार व जब्बार के कहरो ग़ज़ब की ऐसी मार थी कि जब कोई कंकरी किसी फ़ील सुवार के सर पर पड़ती थी तो वोह उस आदमी के बदन को छेदती हुई हाथी के बदन से पार हो जाती थी ।

अबरहा की फौज का एक आदमी भी जिन्दा नहीं बचा और सब के सब अबरहा और उस के हाथियों समेत इस तरह हलाक व बरबाद हो गए कि उनके जिस्मों की बोटियां टुकड़े टुकड़े हो कर ज़मीन पर बिखर गई ।

चुनान्चे कुरआने मजीद की “सूरए फील” में खुदा वन्दे कुद्दूस ने इस वाकए का ज़िक्र करते हुए इर्शाद फ़रमाया कि : कि यानी ऐ महबूब आप के रब ने उन हाथी वालों का क्या हाल कर डाला क्या उन के दाऊं को तबाही में न डाला और उन पर परिन्दो की टुकड़ियां भेजीं ताकि उन्हें कंकर और पत्थरों से मारें तो उन्हें चबाए हुए भुस जैसा बना डाला।

जब अबरहा और उस के लश्करों का यह अन्जाम हुवा तो अब्दुल मुत्तलिब पहाड़ से नीचे उतरे और खुदा का शुक्र अदा किया। उनकी इस करामत का दूर दूर तक चर्चा हो गया और तमाम अहले अरब इन को एक खुदा रसीदा बुजुर्ग की हैषिय्यत से काबिले एहतिराम समझने लगे।

सूरए फील को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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