27/10/2025
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सुनहरी ज़िन्दगी से तौबा तक| Sunahri zindagi se tauba tak.

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अब तो मुझे सिर्फ जन्नत चाहिये अजीब किस्सा:

मुहम्मद बिन सिमांक फरमाते हैं कि बनी उमय्या में मूसा इब्ने मुहम्मद बिन सुलैमान हाशमी सबसे ज़्यादा अय्याश और बे-फिक्र था। रात-दिन खाने-पीने पहनने और खूबसूरत बाँदियों के साथ मशगूल होने और आराम-तलबी और शरीर पालने के सिवा कोई काम दीन व दुनिया का नहीं करता था। और शक्ल व सूरत के एतिबार से भी अल्लाह तआला ने उसे इस दर्जे अच्छा बनाया था कि देखने वाला बे-इख़्तेियार सुब्हानल्लाह बोल उठता था।

चेहरा ऐसा रोशन था जैसे चौदहवीं रात का चाँद । ग़रज़ यह कि अल्लाह तआला ने उसको हर तरह की दुनिया की नेमत अता की थी, साल भर में तीन लाख तीन हज़ार दीनार लगभग एक अरब इक्यासी करोड़ अस्सी लाख रुपये की आमदनी थी। उसने बालाखाना यानी चौबारा अपने रहने के लिए बना रखा था और उसके दोनों तरफ खिड़कियाँ थीं।

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एक तरफ की खिडकी तो मेन रास्ते की तरफ खुलती थी जिससे शाम को बैठकर आने-जाने वालों की सैर करता था और दूसरी तरफ की खिड़की बाग में थी। उस तरफ बैठकर बाग़ से दिल बहलाता था, और उस बालाखाने के अन्दर एक हाथी दाँत का कुब्बा चाँदी की मेखों से जड़ा हुआ और सोने से मुलम्मा किया हुआ था, और उसमें एक बहुत ही कीमती तख़्त था,

उसपर वह बैठता और बदन पर बहुत ही कीमती कपड़े और सरपर मोतियों का जड़ाऊ अमामा (पगड़ी) होता, इधर-उधर भाई-बिरादर और मज़लिस के यार-दोस्तों का जमघटा और पीछे गुलाम व खादिम खड़े रहते और कुब्बे से बाहर गाने वाली औरतें रहतीं।

कुब्बे में और उन औरतों में एक पर्दा लटका हुआ था! जब चाहता उन्हें देखता और जब राग को दिल चाहता तो पर्दा हिला देता वे गाना शुरू कर देतीं, और जब बन्द करना चाहता तो पर्दे की तरफ इशारा कर देता वे चुप हो जाती थी। मतलब यह कि इसी काम में उसकी रात गुज़रती थी। रात को मजलिस के यार-दोस्त अपने-अपने घर चले जाते थे और जिसके साथ चाहता था तन्हाई का वक़्त गुज़ारता था और सुबह को शतरंज और नरद (चौसर की बाजी) खेलने वालों का अखाड़ा जमता।

कोई उसके सामने बीमारी या मौत या किसी ऐसी चीज़ का जिससे ग़म पैदा हो ज़िक्र न करने पाता। अजीब-अजीब किस्से और वाकिआत जिनसे हंसी और दिल्लगी हो उसके सामने होतीं और हर रोज़ नई-नई पोशाकें और तरह-तरह की खुशबूएँ इस्तेमाल करता, इसी हाल में उसे सत्ताईस साल गुज़र गए।

एक रात का किस्सा है कि वह अपने मामूल के अनुसार अपनी मस्ती में मशगूल था और कुछ हिस्सा रात का गुज़रा था कि एक बहुत ही दर्दनाक आवाज अपने गाने वालों की आवाज़ जैसी सुनी और उसके सुनने से उसके दिल पर एक चोट-सी पड़ी और अपनी उस तफरीह को छोड़कर उसकी तरफ ध्यान लगाया और गाने वालों को हुक्म दिया कि गाना बन्द करो और कुब्बों की खिड़की से वह आवाज़ सुनने के लिए मुँह निकाला।

कभी तो वह आवाज़ कान में आ जाती और कभी न आती। अपने गुलामों को आवाज़ दी कि इस आवाज़ देने वाले को यहाँ ले आओ और खुद शराब के नशे में चूर था। गुलाम उसकी तलाश के लिए निकले और आहिस्ता-आहिस्ता उस तक पहुँचे। देखा कि एक जवान है, बहुत ही कमज़ोर है, उसकी गर्दन बिल्कुल सूख गयी है और रंग पीला और होंठ खुशक, बिखरे बाल, पेट और पीठ दोनों एक और दो फटी पुरानी चादरें ओढ़े हुए नंगे पाँव मस्जिद में खड़ा अपने पाक परवर्दिगार के सामने मुनाजात कर रहा है।

उन्होंने उसे मस्जिद से निकाला और ले गये और कुछ बातचीत उससे न की। उसे लेजाकर सामने खड़ा कर दिया। उसने देखकर पूछा यह कौन है? सबने कहा, हुज़ूर यह वही आवाज़ वाला है जिसकी आवाज़ आपने सुनी। पूछा यह कहाँ था? कहा कि मस्जिद में खड़ा हुआ नमाज़ में कुरआन पढ़ता था। उससे पूछा तुम क्या पढ़ रहे थे। कहा, मैं अल्लाह का कलाम पढ़ रहा था। कहा, ज़रा हमको भी सुनाओ, उसने अऊजु बिल्लाह और बिस्मिल्लाह के बाद सूरः मुतफ्फिफीन की आयत नम्बर बाईस से लेकर अट्ठाईस तक पढ़ीं जिनका तर्जुमा यह है।

तर्जुमाः यानी बेशक बन्दे आराम में होंगे। तख़्तों पर बैठे (सैर) देख रहे होंगे। तू पहचानेगा उनके चेहरों पर ताज़गी नेमत की। उनको पिलाई जाएगी खालिस शराब जो मुहर बन्द होगी। उसकी मुहर (बजाए मोम के) मुश्क की होगी। और उस शराब में रग़बत में रग़बत करने वालों को चाहिये कि रग़बत करें और उसमे तस्नीम मिली हुई होगी। वह एक चश्मा है जिससे मुकरब अल्लाह के खास और क़रीबी बन्दे पियेंगे।

ये आयतें पढ़कर और तर्जुमा सुनाकर उसने कहाः अरे धोखे में पड़े हुए वहाँ की नेमतों का क्या बयान है। वह कहाँ और तेरा यह कुब्बा और मजलिस कहाँ वहाँ तख़्त हैं उनपर बिछौने ऊँचे-ऊँचे होंगे और उनके स्तर इस्तब्रक के होंगे और सब्ज़ कालीनों और कीमती बिछौनों पर तकिया लगाए हुए बैठे होंगे।

और वहाँ दो नहरें बहती हैं। उसमें हर मेवे की दो किस्में हैं, न वहाँ के मेवे कभी ख़त्म होंगे न उनसे कोई जन्नती को रोकने वाला होगा। जन्नत की ऐश में रहेंगे और वहाँ कोई बेहूदा बात न सुनेंगे और उसमें ऊँचे-ऊँचे तख़्त हैं और आबखोरे (प्याले) रखे हुए हैं और तकिये एक लाईन में रखे हुए हैं और मख़मली निहालचे (छोटे-छोटे खूबसूरत बिस्तर और गद्दे) बिखरे पड़े होंगे। हमेशा साये और चश्मों में रहेंगे और जन्नत के फल हमेशा रहने वाले हैं। यह सब तो मुत्तकियों (परहेज़गारों) के लिए है।

अब काफिरों की सुनिये ! उनके लिए आग है और आग भी ऐसी कि जिसमें हमेशा-हमेशा रहेंगे और अज़ाब कभी हल्का न किया जाएगा। उसी में ना-उम्मीद पड़े रहेंगे और जब उन्हें मुँह के बल घसीटेंगे तो उनसे कहा जाएगाः यह अज़ाब चखो, यानी उन पर तरह-तरह का अज़ाब होगा।

जब उस हाशमी ने यह सुना तो बे-इख़्तियार उठा और उस जवान से लिपटकर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा और अपने सब लोगों से कहा कि मेरे पास से चले जाओ और खुद उस जवान को लेकर घर के सहन में आकर एक बोरिये पर बैठ गया और अपनी जवानी के बेकार जाने पर अफ़सोस और हसरत और नफ़्स को मलामत करता रहा और वह जवान नसीहत करता रहा।

खूबसूरत वाक़िआ:जन्नत कहाँ है? Jannat kaha hai?

सुबह तक दोनों इसी में लगे रहे। हाशमी ने अल्लाह तआला से अहद किया कि कभी हक तआला की नाफरमानी न करूँगा और अपनी तौबा को उसने सबके सामने ज़ाहिर कर दिया और मस्जिद में बैठ रहा। हर वक़्त अल्लाह की इबादत में रहने लगा और तमाम सोना-चाँदी कपड़े बेचकर सदका कर डाले और तमाम नौकर-चाकर अलग कर दिए। और हड़पी हुई तमाम जायदादें उनके मालिको को वापस कर दीं और कुल जायदाद, बाँदी गुलाम बेच डाले और जिसको आज़ाद करना चाहा आज़ाद कर दिया और मोटे कपड़े पहन लिए और जौ की रोटी खाने लगा।

फिर तो यह हालत हो गयी कि सारी रात जागकर गुज़ारता। दिन को रोज़ा रखता और बड़े-बड़े नेक आदमी उसकी ज़ियारत को आते और उससे कहते कि भाई अपने नफ़्स को इतनी सख़्ती में न रख, कुछ आराम भी दे। अल्लाह तआला करीम व रहीम है, थोड़े से काम की भी कद्रदानी फरमाता है। वह जवाब देता भाईयो ! मैंने बड़े-बड़े गुनाह किए हैं। रात-दिन अल्लाह की नाफरमानी में रहा हूँ और यह कहकर खूब रोता।

आखिरकार पैदल नंगे पाँव और बदन पर एक बहुत मोटा कपड़ा पहने हुए हज के लिए गया और सिवाए एक प्याले और तोशेदान के कोई चीज़ साथ न ली। इसी हालत में चलते-चलते मक्का को पहुँचा और हज किया और वहीं रहा और मर गया। मक्का में रहने के ज़माने में यह हालत थी कि रात को हजरे-अस्वद के पास जाकर रोता चिल्लाता और कहता कि ऐ मेरे परवर्दिगार !

ऐ मेरे मौला ! मेरी सैकड़ों तन्हाईयाँ गफलत में गुज़र गईं और कितने ही साल गुनाहों में बरबाद हो गए। ऐ मेरे मौला! मेरी नेकियाँ तो सब जाती रहीं और हसरत व नादामत बाकी रह गई। अब जिस दिन आपसे मिलूंगा और मेरा आमालनामा खोला जाएगा और दफ़्तर के दफ़्तर गुनाहों और बुराईयों के ज़ाहिर होंगे, उस रोज़ क्या होगा और किस तरह मुँह दिखाऊँगा।

ऐ मेरे मौला! अब मैं तेरे सिवा किससे कहूँ और किसकी तरफ दौड़ु़? किस पर भरोसा करूँ? मेरे मौला ! मैं इस काबिल तो हूँ नहीं कि जन्नत का सवाल करूँ मैं तो आपके असीम दरिया-ए-रहमत और आपके फल व अता के बादल से यह सवाल करता हूँ कि मेरी ख़ताओं को बख़्श दीजिए। आप ही मग़फिरत वाले हैं।(रौजुर्रयाहीन मिन हिकायातिस्सालिहीन इमाम याई यमनी)

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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