
जनाजे के साथ क़ब्रिस्तान भी जाइए और मैय्यत के दफ़नाने में शरीक रहिए और कभी वैसे भी क़ब्रिस्तान जाया कीजिए, इससे आख़िरत की याद ताज़ा होती है और मौत के बाद की ज़िन्दगी के लिए तैयारी का जज्बा पैदा होता है।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक जनाजे के साथ क़ब्रिस्तान तशरीफ़ ले गए और वहाँ एक क़ब्र के किनारे पर बैठकर आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इतना रोए कि जमीन तर हो गई, फिर सहाबा रजियल्लाहु तआला अन्हुम को खिताब करते हुए फ़रमाया-“भाइयो ! इस दिन की तैयारी करो।”(इब्ने माजा)
एक बार क़ब्र के पास बैठकर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“क़ब्र हर दिन बड़ी भयानक आवाज़ में पुकारती है कि ऐ आदम की औलाद ! क्या तू मुझे भूल गई, मैं तन्हाई का घर हूँ, मैं अनजानेपन और वहशत की जगह हूँ, मैं कीड़े-मकोड़े का मकान हूँ, मैं तंगी और मुसीबत की जगह हूँ। उन खुशनसीबों के अलावा, जिनके लिए खुदा मुझको कुशादा फ़रमा दे, मैं सारे इनसानों के लिए ऐसी ही तकलीफदेह हूँ।” और नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “क़ब्र या तो जहन्नम के गढ़ों में से एक गढ़ा है या जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ है।”(तबरानी)
क़ब्रिस्तान जाकर सबक़ लीजिए और सोच की तमाम ताक़तें समेटकर मौत के बाद की ज़िन्दगी पर सोच-विचार की आदत डालिए। एक बार हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु क़ब्रिस्तान में तशरीफ़ ले गए। उनके साथ हज़रत कुमैल रजियल्लाहु तआला अन्हु भी थे। क़ब्रिस्तान पहुँचकर हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने एक नज़र क़ब्रों पर डाली और फिर क़ब्रवालों से ख़िताब करते हुए फ़रमाया-“ऐ क़ब्र के बसनेवालो! ऐ खंडहरों में रहनेवालो! ऐ वहशत और तन्हाई में रहनेवालो ! कहो, तुम्हारी क्या खैर व खबर है? हमारा हाल तो यह है कि माल बाँट लिए गए, औलादें यतीम हो गईं। बीवियों ने दूसरे शौहर कर लिए, यह तो हमारा हाल है। अब तुम भी तो अपनी कुछ खैर-ख़बर सुनाओ।”
फिर हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कुछ देर खामोश रहे। इसके बाद हजरत कुमैल रजियल्लाहु तआला अन्हु की ओर देखा और फ़रमाया-“कुमैल ! अगर इन क़ब्रों में रहनेवालों को बोलने की इजाज़त होती तो यह कहते : बेहतरीन तोशा सामाने सफ़र परहेज़गारी है।” यह फ़रमाया और रोने लगे, देर तक रोते रहे फिर बोले- “कुमैल ! क़ब्र अमल का सन्दूक़ है और मौत के वक़्त ही यह बात मालूम हो जाती है।”
क़ब्रिस्तान में दाखिल होते वक़्त यह दुआ पढ़िए – अस्सलामु अलैकुम अलद्दियारि मिनल मूमिनी-न वल मुस्लिमी-न व इन्ना इनशा-अल्लाहु बिकुम लाहिकू-न अस-अलुल्ला-ह लना व लकुमुल आफ़ियह।
“सलामती हो तुमपर ऐ इस बस्ती के रहनेवालो ! इताअत गुज़ार मोमिनो ! इनशाअल्लाह हम भी बहुत जल्द तुमसे आ मिलनेवाले हैं। हम अपने और तुम्हारे लिए खुदा से दुआ करते हैं कि वह अपने अज़ाब और ग़ज़ब से बचाए।”
क़ब्रिस्तान में ग़ाफ़िल और लापरवाह लोगों की तरह हँसी-मज़ाक़ और दुनिया की बातें न कीजिए। क़ब्र आख़िरत का दरवाज़ा है। इस दरवाज़े को देखकर वहाँ की चिन्ता अपने ऊपर ग़ालिब करके रोने की कोशिश कीजिए।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“मैंने तुम्हें क़ब्रिस्तान जाने से रोक दिया था कि तौहीद का अक़ीदा तुम्हारे दिलों में पूरी तरह घर कर जाए लेकिन अब अगर तुम चाहो तो जाओ, क्योंकि क़ब्र आखिरत की याद ताज़ा करती हैं।” (मुस्लिम)
क़ब्रों को पक्की बनाने और सजाने से बचिए। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का जब आख़िरी वक़्त आ गया, दर्द की तकलीफ़ से आप बेइन्तिहा बेचैन थे। कभी आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम चादर मुँह पर डालते और कभी उलट देते। इसी गैर मामूली बेचैनी में हज़रत आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा ने कान लगाकर सुना तो मुबारक ज़बान पर ये अल्फाज़ थे-“यहूदियों और ईसाइयों पर खुदा की लानत ! इन्होंने अपने पैग़म्बरों की क़ब्रों को इबादतगाह बना लिया।”
क़ब्रिस्तान जाकर मुर्दों के लिए ईसाले सवाब कीजिए और खुदा से माफ़िरत की दुआ कीजिए।
हजरत सुफ़ियान रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि जिस तरह जिन्दा इनसान खाने-पीने के मुहताज होते हैं, उसी तरह मुर्दे दुआ के बहुत ज़्यादा मुहताज होते हैं।
खूबसूरत वाक़िआ:-मैय्यत और दफ़न के सुन्नत तरीक़े।
तबरानी की एक रिवायत में है कि ख़ुदा जन्नत में एक नेक बन्दे का दर्जा ऊँचा करता है तो वह पूछता है : पालनहार ! मुझे यह दर्जा कहाँ से मिला ? खुदा फ़रमाता है कि तेरे लड़के की वजह से कि वह तेरे लिए इसतिग़फ़ार करता रहा।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….