23/06/2025
लेरियन हेगी की इस्लाम तक की सफ़र एक सच्ची कहानी। 20250620 001605 0000

लेरियन हेगी की इस्लाम तक की सफ़र – एक सच्ची कहानी। Lerian hegi ki Islam tak ki Safar-ek sacchi kahani.

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Lerian hegi ki Islam tak ki Safar-ek sacchi kahani.
Lerian hegi ki Islam tak ki Safar-ek sacchi kahani.

लेरियन हेगी बारे में :-

लेरियन हेगी एक ईसाई धर्मगुरु (Father/Priest) थे। उन्होंने कई साल तक चर्च में काम किया, पादरी रहे, मठ में रहे और लोगों को धर्म की शिक्षा दी। लेकिन फिर उन्होंने एक बड़ा फ़ैसला लिया—इस्लाम कुबूल कर लिया। अब उनका नाम है सईद अब्दुल लतीफ़।

उनकी यह यात्रा एक आम बदलाव नहीं, बल्कि दिल और आत्मा की गहराई से जुड़ी हुई थी। उन्होंने इसे “घर वापसी” जैसा बताया—यानि एक ऐसी जगह पहुँचना जहाँ दिल को सुकून मिलता है।

बचपन और शुरुआत :-

लेरियन हेगी अमेरिका के एक ईसाई परिवार में पैदा हुए। शुरू से ही उन्हें धर्म में दिलचस्पी थी, खासकर रूहानियत (spirituality) में।

पहले उन्होंने रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च को अपनाया। फिर उन्होंने ईस्टर्न कैथोलिक चर्च ज्वाइन किया और मठ यानी मठ का मतलब – धर्मिक साधना की जगह में रहने लगे। वो Father Hilarion Heagy के नाम से मशहूर थे।

धर्म में मेहनत और गहरी सोच :-

लेरियन हेगी बहुत ही पढ़े-लिखे, सोचने-समझने वाले इंसान थे। वे हमेशा सच्चाई और अल्लाह की तलाश में रहते थे। उन्होंने: धार्मिक किताबें पढ़ीं। अलग-अलग धर्मों का अध्ययन किया।

खुद से सवाल पूछे—क्या मैं सही रास्ते पर हूँ? क्या मुझे वह सुकून मिला जो रूह चाहती है? उनका मन हमेशा किसी गहरी चीज़ की तलाश में लगा रहता था।

इस्लाम की ओर झुकाव :-

कई सालों तक लेरियन हेगी को इस्लाम की ओर खिंचाव महसूस होता रहा। उनका कहना था: “मैं बहुत सालों से इस्लाम की तरफ खिंचता चला जा रहा था। अब समय आ गया था कि मैं पूरा कदम उठाऊँ।”

उन्होंने बताया कि जब उन्होंने इस्लाम अपनाया, तो ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं अपने घर लौट आया हूँ। ये उनका असली सुकून था।

इस्लाम कुबूल करने का दिन :-

साल 2023 की शुरुआत में उन्होंने अपने ब्लॉग में यह एलान किया कि: “मैंने इस्लाम कुबूल कर लिया है और अब मेरा नाम सईद अब्दुल लतीफ़ है।”

यह खबर सोशल मीडिया और इस्लामी वेबसाइट्स पर तेजी से वायरल हो गई । कई मुसलमानों ने उनका खुले दिल से स्वागत किया और उन्हें मुबारकबाद दी।

उन्होंने इस्लाम क्यों चुना?

लेरियन हेगी ने इस्लाम को क्यों चुना? इस बारे में उन्होंने खुद कई बातें बताईं:

(1) तौहीद – एक अल्लाह का यक़ीन, इस्लाम में सिर्फ एक अल्लाह को माना जाता है—ना कोई बेटा, ना बेटी, ना साझेदार। यह बात उन्हें बहुत साफ़ और सच्ची लगी।

(2) नबी मोहम्मद ﷺ की सीरत,उन्होंने पैगंबर मुहम्मद ﷺ की जिंदगी का गहराई से अध्ययन किया और बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने देखा कि कैसे इस्लाम ने इंसानियत, भाईचारा, और खुदा से जुड़ने का सच्चा रास्ता बताया है।

(3) क़ुरआन की तालीम,कुरआन की आयतों ने उनके दिल को छू लिया। उन्होंने कहा कि कुरआन के अल्फ़ाज़ दिल तक पहुँचते हैं और इंसान को बदल देते हैं।

(4) अंदरूनी शांति (Inner Peace) बहुत सालों तक चर्च में रहने के बावजूद उन्हें दिल का सुकून नहीं मिला। इस्लाम अपनाने के बाद पहली बार उन्होंने रूहानी सुकून महसूस किया।

इस एलान के बाद क्या हुआ?

जब उन्होंने इस्लाम अपनाया तो: इस्लामी दुनिया में उनका तहे दिल से स्वागत हुआ। कई वेबसाइट्स, न्यूज़ चैनल्स, और सोशल मीडिया पर यह खबर वायरल हुई। लेकिन कुछ ईसाई समुदायों ने इस पर नाराज़गी भी जताई।

उन्होंने कहा कि: “मैं जानता हूँ कि कुछ लोग इस फैसले से नाराज़ होंगे, लेकिन मेरे लिए यह रूह की आवाज़ है, और मैं उसे अनदेखा नहीं कर सकता।”

इस्लाम अपनाने के बाद की ज़िंदगी

अब वह अमेरिका में एक मुसलमान के तौर पर अपनी नई जिंदगी जी रहे हैं। वे: इस्लामी तालीमात सीख रहे हैं। मुसलमानों से मिल रहे हैं। अपनी पुरानी जिंदगी से कुछ अलग, लेकिन सुकूनभरी जिंदगी बिता रहे हैं।

उन्होंने कहा: “यह जिंदगी एक तोहफा है, और इस्लाम ने मुझे वह रास्ता दिखाया जिससे मैं अपने रब को पा सकूं।”

लोगों के लिए सीख

लेरियन हेगी की यह कहानी हमें कुछ खास बातें सिखाती है: सच्चाई की तलाश कभी बंद नहीं होनी चाहिए , कभी-कभी इंसान को सच पाने में सालों लग जाते हैं, लेकिन जो दिल से तलाश करता है, उसे एक दिन रास्ता जरूर मिल जाता है।

धर्म बदलाव कोई मज़ाक नहीं, ये एक गंभीर, सोच-समझ का फैसला होता है। और अगर कोई इसे सच्चे दिल से करता है, तो वह काबिल-ए-सत्कार है।

इस्लाम एक खूबसूरत, सच्चा और रहमतों से भरा मज़हब है जो भी इंसान खुले दिल से इस्लाम को समझेगा, वो उसकी खूबसूरती को जरूर महसूस करेगा।

Father Hilarion Heagy, जो एक ईसाई पादरी थे, अब सईद अब्दुल लतीफ़ बन चुके हैं। उनकी यह सफ़र यह साबित करती है कि: सच्चाई की तलाश में मजहब कोई दीवार नहीं बनता।

दिल की आवाज़ सुनकर लिया गया फैसला सबसे मजबूत होता है।

इस्लाम हर उस इंसान को गले लगाता है जो सच्चे दिल से उसमें आना चाहता है।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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