23/06/2025
जुमा के दिन के आदाब। 20250618 133839 0000

जुमा के दिन के आदाब। Juma ke din ke aadaab.

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Juma ke din ke aadaab.
Juma ke din ke aadaab.

जुमा के दिन के आदाब।

जुमा के दिन सफ़ाई-सुथराई, नहाने-धोने और सजने-सँवरने का पूरा-पूरा एहतिमाम कीजिए ।

हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“जब कोई जुमा की नमाज़ पढ़ने आए तो उसे गुस्ल करके आना चाहिए ।” (बुखारी, मुस्लिम)

हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया -“हर मुसलमान पर खुदा का यह हक़ है कि वह हर हफ़्ते जुमा को गुस्ल करे, सिर और बदन को धोए ।”

हजरत अबू सईद रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“जुमा के दिन हर बालिग और जवान के लिए गुस्ल करना ज़रूरी है और मिस्वाक करना और ख़ुश्बू लगाना भी अगर मयस्सर हो ।” (बुखारी, मुस्लिम)

हज़रत सलमान रजियल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- “जो आदमी जुमा के दिन नहाया, धोया और अपनी ताक़त भर उसने पाकी व सफ़ाई का पूरा-पूरा एहतिमाम किया, फिर उसने तेल लगाया, ख़ुश्बू मली, फिर दोपहर ढले मस्जिद में जा पहुँचा और मस्जिद में जाकर सफ़ में बैठा दो आदमियों को एक-दूसरे से नहीं हटाया, फिर उसने नमाज़ पढ़ी जो उसके लिए मुक़र्रर थी, फिर जब इमाम मिम्बर की तरफ़ निकला वह चुपचाप बैठे खुतबा सुनता रहा तो उस आदमी के वो सारे गुनाह बख़्श दिए गए जो एक जुमा से दूसरे जुमा तक उससे हुए थे ।”(बुखारी शरीफ)

जुमा के दिन ज्यादा से ज्यादा ज़िक्र व तसबीह, कुरआन की तिलावत और दुआ, सदक़ा व खैरात, रोगियों का हाल-चाल पूछना, जनाजे की शिरकत, क़ब्रिस्तान की सैर और दूसरे नेक काम करने का एहतिमाम कीजिए ।

हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया -“सबसे बेहतर दिन, जिसपर सूरज उगा, वह जुमा का दिन है। इसी दिन हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पैदा हुए थे और इसी दिन वह जन्नत में दाखिल किए गए और इसी दिन वहाँ से निकाले गए (और ख़ुदा के खलीफ़ा बनाए गए) और इसी दिन क़यामत क़ायम होगी ।” (मुस्लिम शरीफ)

हजरत अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया -“पाँच अमल ऐसे हैं कि जो आदमी उनको एक दिन में करेगा, ख़ुदा उसको जन्नत वालों में लिख देगा।

* बीमार का हाल पूछना,

* जनाज़े में शरीक होना,

* रोज़ा रखना,

* जुमे की नमाज़ पढ़ना, और

* गुलाम को आज़ाद करना ।”

ज़ाहिर है पाँचों अमल का करना उसी वक़्त मुमकिन है जब जुमा का दिन हो ।(इब्ने हिब्बान)

हजरत अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु तआला अन्हु ही की एक रिवायत और है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “जो आदमी जुमा के दिन सूरा कहफ़ पढ़ेगा तो उसके लिए दोनों जुमों के दरमियान एक नूर चमकता रहेगा ।” (नसई)

हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया -“जो आदमी जुमा की रात में सूरा दुखान की तिलावत करे तो उसके लिए सत्तर हजार फ़रिश्ते इस्तिग़फ़ार करते हैं और उसके सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।” (तिरमिज़ी)

और नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- जुमा के दिन में एक ऐसी मुबारक साअत (घड़ी) है कि बन्दा उसमें जो भी माँगता है, वह क़बूल होता है।” (बुखारी)

यह साअत यानी घड़ी कौन-सी है, इसमें उलेमा के बीच मतभेद है, इसलिए कि रिवायतों में अलग-अलग वक़्तों का जिक्र है। अलबत्ता उलेमा के दो क़ौल इनमें बहुत सही हैं : पहला : जिस वक़्त ख़तीब (खुतबा देनेवाला) खुतबे के लिए मिम्बर पर आता है, उस वक़्त से लेकर नमाज़ ख़त्म होने तक का वक़्त है । दूसरा: वह घड़ी जुमा के दिन की आखिरी घड़ी है जब सूरज डूबने लगे ।

मुनासिब यह है कि आप दोनों ही वक़्त निहायत अदब व आजिजी के साथ दुआ व फ़रियाद में गुज़ारें । अपनी दुआओं के साथ यह दुआ माँगिए तो अच्छा है-

अल्लाहुम-म अन-त रब्बी ला इला-ह इल्ला अन-त खलक-तनी व अना अब्दु-क व अना अला अह-दि-क व वअदि-क मस-त-तअतु अबूउ ल-क बिनिञ्-मति-क अलय-य व अबूउ बिज़म्बी फ़ग़फ़िरली फ़-इन्नहू ला यगफ़िरुज्जुनू-ब इल्ला अन-त अऊजुबि क मिन शर्रि मा स-नअतु ।

“ऐ अल्लाह ! तू ही मेरा रब है, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं, तूने मुझे पैदा फ़रमाया । मैं तेरा बन्दा हूँ और अपनी ताक़त भर तुझसे किए हुए वादों पर क़ायम हूँ। मैं तेरी नेमतों और तेरे एहसानों का इक़रार करता हूँ जो तूने मुझपर किए हैं और अपने गुनाहों को मानता हूँ, पर तू मेरी मग़फ़िरत फ़रमा, क्योंकि तेरे सिवा कोई नहीं जो गुनाहों का बख़्शनेवाला हो, और मैं अपने करतूत की बुराई से तेरी पनाह माँगता हूँ।”

जुमा की नमाज़ का पूरा-पूरा एहतिमाम कीजिए। जुमा की नमाज़ हर बालिग, सेहतमन्द, ठहरे हुए और होशमंद मुसलमान मर्द पर फर्ज़ है। अगर किसी जगह इमाम के अलावा दो आदमी भी हों तो जुमा की नमाज जरूर पढ़ें । नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“लोगों को चाहिए कि जुमा की नमाज़ हरगिज़ न छोड़ें, वरना खुदा उनके दिलों पर मुहर लगा देगा, फिर (हिदायत से महरूम होकर) वे ग़ाफ़िलों में से हो जाएँगे।”
(मुस्लिम शरीफ)

हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया-“जो आदमी नहा-धोकर जुमा की नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद में आया फिर उसने सुन्नत अदा की जो उसके लिए ख़ुदा ने तय की थी, फिर खामोश बैठा (खुतबा सुनता) रहा, यहाँ तक कि खुतबा पूरा हुआ, फिर इमाम के साथ फ़र्ज अदा किए तो उसके एक जुमा से लेकर दूसरे जुमा तक के गुनाह माफ़ हो जाते हैं और तीन दिन के और ज्यादा ।”

हजरत यजीद बिन मरयम रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि मैं जुमे की नमाज के लिए जा रहा था कि रास्ते में हज़रत इबाया बिन रिफ़ाआ रजियल्लाहु तआला अन्हु से मुलाक़ात हो गई । उन्होंने मुझसे पूछा, “कहाँ जा रहे हो ?” मैने कहा, “जुमा की नमाज पढ़ने जा रहा हूँ।” फ़रमाया, “मुबारक हो, तुम्हारा यह चलना खुदा की राह में चलना है।”

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“जिस बन्दे के पाँव ख़ुदा की राह में गर्द में सने, उसपर आग हराम है।”

जुमा की अज़ान सुनते ही मस्जिद की तरफ़ दौड़ पड़िए । कारोबार और दूसरे काम बन्द कर दीजिए और पूरी यकसूई के साथ खुतबा सुनने और नमाज़ अदा करने में लग जाइए । और जुमा से फारिग हो जाएँ तो फिर कारोबार में लग जाइए । कुरआन में है-“मोमिनो ! जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए अज़ान दे दी जाए तो जल्द खुदा के जिक्र की तरफ़ दौड़ो और खरीदना-बेचना छोड़ दो । अगर तुम्हारी समझ में आ जाए तो तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है। फिर जब नमाज़ हो चुके तो जमीन में अपने-अपने कामों के लिए फैल जाओ और ख़ुदा के फज़्ल में से अपना हिस्सा ढूँढ लेने में लग जाओ और ख़ुदा को खूब याद करो, ताकि तुम कामयाबी पाओ ।” (कुरआन, 62:9-10)

इन आयतों से मोमिन को जो हिदायतें मिलती हैं वो इस तरह हैं- (1) मोमिन को पूरी सोच और और समझ के साथ जुमा की नमाज का एहतिमाम करना चाहिए और अजान की आवाज सुनते ही सब कुछ छोड़कर मस्जिद की तरफ़ दौड़ पड़ना चाहिए ।

(2) जुमा की अजान सुनने के बाद मोमिन के लिए यह जायज नहीं कि वह कारोबार करे या किसी और दुनियावी कारोबार में फँसा रहे और ख़ुदा से ग़ाफ़िल दुनियादार बन जाए ।

(3) मोमिन की भलाई का राज़ यह है कि वह दुनिया में खुदा का बन्दा और गुलाम बनकर रहे और जब भी खुदा की तरफ से पुकार आए, तो वह एक वफ़ादार और बात माननेवाले गुलाम की तरह, अपनी सारी दिलचस्पियों से मुँह मोड़कर और दुनिया के तमाम फ़ायदों को ठुकराकर, ख़ुदा की पुकार पर दौड़ पड़े और अपने अमल से यह एलान करे कि तबाही और नाकामी यह नहीं कि दीन के तक़ाज़ों पर दुनिया के फ़ायदों को कुरबान कर दे, बल्कि नाकामी और तबाही यह है कि आदमी दुनिया बनाने की धुन में दीन को तबाह कर डाले ।

(4) दुनिया के बारे में सोचने का यह अन्दाज़ सही नहीं है कि आदमी उसकी तरफ़ से आँखें बन्द कर ले और ऐसा दीनदार बन जाए कि दुनिया के लिए बिलकुल नाकारा साबित हो, बल्कि कुरआन हिदायत देता है कि नमाज़ से फ़ारिग़ होते ही ख़ुदा की ज़मीन में फैल जाओ और खुदा ने अपनी ज़मीन में रोज़ी पहुँचाने के लिए जो भी ज़रिए और वसीले जुटा रखे हैं, उनसे पूरा-पूरा फ़ायदा उठाओ और अपनी काबिलियतों को पूरी तरह खपाकर अपने हिस्से की रोज़ी खोजो। इसलिए कि मोमिन के लिए न यह सही है कि वह अपनी जरूरतों के लिए दूसरों का मुहताज रहे और न यह सही है कि वह अपने से मुताल्लिक़ लोगों की जरूरतें पूरी करने में कोताही करे और वे परेशानी और मायूसी के शिकार हों ।

(5) आख़िरी अहम हिदायत यह है कि मोमिन दुनिया के धंधों और कामों में इस तरह न फँस जाए कि वह अपने खुदा से ग़ाफ़िल हो जाए। उसे हर हाल में यह याद रखना चाहिए कि उसकी ज़िन्दगी की असल पूँजी और सही जौहर खुदा का जिक्र है। हजरत सईद बिन जुबैर रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं, “ख़ुदा का जिक्र सिर्फ यह नहीं है कि ज़बान से तसबीह’ व तहमीद और तकबीर व तहलील के बोल अदा किए जाएँ बल्कि हर वह आदमी अल्लाह के जिक्र में लगा हुआ है जो खुदा की इताअत के तहत अपनी ज़िन्दगी का निज़ाम तामीर करने पर लगा हुआ हो ।”

जुमा की नमाज के लिए जल्द से जल्द मस्जिद में पहुँचने की कोशिश कीजिए और शुरू वक़्त में जाकर पहली सफ़ में जगह हासिल करने का एहतिमाम कीजिए ।

हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“जो आदमी जुमा के दिन बड़े एहतिमाम के साथ इस तरह नहाया जैसे पाकी हासिल करने के लिए नहाते हैं (यानी एहतिमाम के साथ पूरे जिस्म पर पानी पहुँचाकर खूब अच्छी तरह बदन को साफ़ किया), फिर शुरू वक़्त में मस्जिद जा पहुँचा तो गोया कि उसने एक ऊँट की कुरबानी की और उसके बाद दूसरी साअत में पहुँचा तो गोया गाय (या भैंस) की कुरबानी की और उसके बाद तीसरी साअत में पहुँचा तो गोया उसने सींगवाला मेंढा (दुंबा) कुरबान किया और उसके बाद चौथी साअत में पहुँचा तो गोया उसने ख़ुदा की राह में एक अंडा सदक़ा दिया। फिर जब खतीब खुतबा देने निकल आया तो फ़रिश्ते मस्जिद का दरवाजा छोड़कर खुतबा सुनने और नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद में आ बैठते हैं।(बुखारी, मुस्लिम)

हज़रत इरबाज़ बिन सारिया रजियल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं-“नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पहली सफ़वालों के लिए तीन बार इसतिग़फ़ार फ़रमाते थे और दूसरी सफ़वालों के लिए एक बार ।”(इब्ने माजा, नसई)

और हज़रत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं-“लोगों को पहली सफ़ का अज्र व सवाब मालूम नहीं है। अगर पहली सफ़वालों का अज्र व सवाब मालूम हो जाए तो लोग पहली सफ़ के लिए कुरआ (पर्ची) डालने लगें ।” (बुखारी, मुस्लिम)

जुमा की नमाज़ जामा मस्जिद में पढ़िए और जहाँ जगह मिल जाए वहीं बैठ जाइए । लोगों के सिरों और कंधों पर से फाँद-फाँदकर जाने की कोशिश न कीजिए, इससे लोगों को जिस्मानी तकलीफ़ भी होती है और दिली कोफ़्त (तकलीफ़) भी, और उनके सुकून, यकसूई और तवज्जोह में भी खलल पड़ता है ।

हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु तआला अन्हु बयान फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है- “जो आदमी पहली सफ़ को छोड़कर दूसरी सफ़ में इसलिए खड़ा हो कि उसके भाई (मुसलमान) को कोई तक़लीफ़ न पहुँचे, तो अल्लाह तआला उसको पहली सफ़वालों से दो गुना अज्र व सवाब अता फरमाएगा ।” (तबरानी)

हजरत सलमान रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया-“जो आदमी जुमा के दिन नहाया-धोया और अपने बस-भर उसने पाकी-सफ़ाई का भी एहतिमाम किया, फिर तेल लगाया, खुश्बू लगाई और दोपहर ढलते ही मस्जिद में जा पहुँचा और दो आदमियों को एक-दूसरे से नहीं हटाया यानी उसने उनके सिरों और कंधों पर से फ़ाँदने, सफ़ों को चीरकर गुजरने या दो बैठे हुए नमाजियों के बीच में जा बैठने की ग़लती नहीं की, बल्कि जहाँ जगह मिली, वहीं खामोशी से सुन्नत नमाज़ वगैरह अदा की, जो भी खुदा ने उसके हिस्से में लिख दी थी, फिर जब खतीब मिम्बर पर आए तो खामोश (बैठा ख़ुतबा सुनता) रहा हो तो ऐसे आदमी के वे सारे गुनाह बख़्श दिए गए जो एक जुमा से लेकर दूसरे जुमा तक उससे हुए।”(बुखारी)

खुतबा नमाज़ के मुक़ाबले में हमेशा छोटा पढ़िए, इसलिए कि खुतबा असल में सिर्फ याद देहानी है जिसमें आप लोगों को ख़ुदा की बन्दगी और इबादत पर उभारते हैं। और नमाज़ न सिर्फ़ इबादत है, बल्कि सबसे अहम इबादत है, इसलिए यह किसी तरह सही नहीं कि खुतबा तो लम्बा-चौड़ा दिया जाए और नमाज़ जल्दी-जल्दी छोटी-सी पढ़ ली जाए।

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“नमाज को लम्बा करना और खुतबे को छोटा करना इस बात की निशानी है कि खुतबा देनेवाला सूझ-बूझ रखता है। अतः तुम नमाज लम्बी पढ़ो और खुतबा छोटा दो ।(मुस्लिम)

खूबसूरत वाक़िआ:-पाकी और सफ़ाई अधा ईमान है।

खुतबा निहायत खामोशी, तवज्जोह, यकसूई, आमादगी और क़बूल किए जाने के जज्बे के साथ सुनिए और खुदा और रसूल के जो हुक्म मालूम हों, उनपर सच्चे दिल से अमल करने का इरादा कीजिए।

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“जिस आदमी ने गुस्ल किया, फिर जुमा की नमाज पढ़ने आया और आकर अपने मुक़द्दर की नमाज पढ़ी, फिर खामोश (बैठकर निहायत तवज्जोह और यकसूई के साथ) खुतबा सुनता रहा यहाँ तक कि खुतबा देनेवाला खुतबे से फारिग़ हुआ, फिर उसने इमाम के साथ फ़र्ज नमाज अदा की, तो उसके वो सारे गुनाह बख़्श दिए गए जो उससे एक जुमा से दूसरे जुमा तक हुए, बल्कि तीन दिन के ज्यादा गुनाह भी बख़्श दिए गए।” (मुस्लिम)

एक दूसरी रिवायत यह है कि जब खुतबा देनेवाला खुतबा देने के लिए निकल आए, तो फिर न कोई नमाज पढ़ना सही है और न बात करना सही है।

दूसरा खुतबा अरबी में पढ़िए, अलबत्ता पहले खुतबे में मुक़्तदियों को कुछ ख़ुदा व रसूल के हुक्म, जरूरत के मुताबिक़ कुछ नसीहत व हिदायत और याददेहानी का एहतिमाम अपनी भाषा में भी कीजिए ।

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने जुमा में जो खुतबे दिए हैं उनसे यही मालूम होता है कि खुतबा देनेवाला हालात के मुताबिक़ मुसलमानों को कुछ नसीहत व हिदायत दे और यह मक़सद उसी वक़्त पूरा हो सकता है जब ख़ुतबा देनेवाला सुननेवालों की भाषा में उनसे बात करे ।

जुमा के फ़र्जों में सूरा अल-आला और सूरा ग़ाशियह पढ़ना या सूरा मुनाफ़िकून और सूरा जुमुआ पढ़ना बेहतर और मस्नून है। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अकसर यही सूरतें जुमा में पढ़ा करते थे ।

जुमा के दिन ज़्यादा से ज्यादा नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर दुरूद व सलाम भेजने का खुसूसी एहतिमाम कीजिए ।

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“जुमा के दिन मुझपर ज्यादा से ज्यादा दुरूद भेजा करो । उस दिन दुरूद में फ़रिश्ते हाज़िर होते हैं और यह दुरूद मेरे हुज़ूर में पेश किया जाता है ।” (इब्ने माजा)

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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