
एक कुत्ता जिसको मालिक सूखा टुकड़ा डालता है वह अपने मालिक का इतना वफादार बनता है कि मालिक के घर का सारी रात जागकर पहरा देता है। मालिक खाना खा रहा होता है तो यह जूतों में बैठकर मालिक को देख रहा होता है, मालिक हड्डी फेंक दे तो खुशी से खा लेता है अगर कुछ न फेंके तो सब्र के साथ वहीं वक़्त गुज़ारता है।
उसकी ज़बान पर शिकायत के बोल नहीं आते। ओ बंदे ! तेरे परवरदिगार ने तुझे सुबह, दोपहर, शाम खाने को अता किया, तू मनमर्जी ग़िज़ाएं खाता है, फिर कोई छोटी-मोटी नागवारी पेश आ जाती है तो फौरन शिकवे करता है कि ओजी हमने तो बड़ी दुआएं मांगी हैं, सुनता नहीं।
हकीकत यह है कि आज हमारे अंदर तकब्बुर इतना भर चुका है कि हम जब कह रहे होते हैं कि अल्लाह तआला हमारी सुनता नहीं तो दूसरे लफ़्ज़ों में यूँ कह रहे होते हैं कि ऐ अल्लाह! हम ने प्लानिंग तो कर ली, प्रोग्राम तो बना लिया अब ऐ अल्लाह! इस पर अमल आप जल्दी-जल्दी कर लीजिए। अरे वह परवरदिगार है, उस परवरदिगार को हम ने अल्लाह हिफाज़त फरमाए हमने नौकर की तरह समझा हुआ है कि अब वह इस पर अमल करेगा।
उस परवरदिगार की शान है कि अगर वह चाहे तो बंदों की दुआओं को कुबूल कर ले और अगर वह न चाहे तो अपने अंबिया किराम की दुआओं को भी रद्द कर दे, उसे कोई रोकने वाला नहीं। वह अगर चाहे तो फासिक व फाजिर की दुआओं को कुबूल कर ले। वह बेपरवाह ज़ात है।
मेरे दोस्तो ! उसकी शाने बेनियाज़ी का जहूर होता है तो बलअम बाओर की पाँच सौ साल की इबादत के बावजूद उसको फटकार के रख देते हैं और जब उसकी रहमत की हवा चलती है तो फुजैल बिन अयाज़ रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि जो डाकुओं के सरदार थे, रब्बे करीम उसको वहाँ से उठाकर वलियों का सरदार बनाकर रख देते हैं। परवरदिगार बेनियाज़ जात है।
ऐसा न हो कि कभी उसकी बेनियाज़ी ज़ाहिर हो फिर तो हम तिगनी का नाच नाचते फिरेंगे। याद रखना कि जब अल्लाह तआला किसी से नाराज़ होते हैं तो पगड़ि़याँ उछल जाती हैं, दुपट्टे उतर जाते हैं फिर इंसान घर बैठे बिठाए ज़लील हो जाता है। बड़ी-बड़ी इज़्ज़तों वालों के चेहरे दिखाने के काबिल नहीं रहते। परवरदिगार नाराज़ न हो। अगर परवरदिगार नाराज़ हो जाए तो चलते फिरते भी वह बंदा मरा फिरता है। उसके अंदर का इंसान जिंदा नहीं होता। लोग खुद कहते हैं कि अब हम इतने जलील हो गए हैं कि मरे फिरते हैं, हमारी जिंदगी भी कोई ज़िंदगी है।औलाद की नेमत।
मेरे दोस्तो ! परवरदिगार कभी नाराज़ न हो, यह दुआएं मांगा करो। रब्बे करीम हमसे राज़ी रहना, हम पर मेहरबानी फरमाते रहना, हमारी कोताहियों की वजह से कहीं हम से नाराज़ न हो जाना। जब रब्बे करीम की रहमत की नज़र हट जाती है तो फिर बंदे की नाव हिचकोले खाने लग जाती है। फिर तो ईमान की हिफाज़त मुश्किल होती है। फिर तो इंसान को अपनी इज़्ज़त की हिफाज़त मुश्किल होती है।
हमें चाहिए कि जो नेमतें उसने दीं उनका शुक्र अदा करें और जो हमारे ऊपर नेमतें नहीं हैं हम उनको अल्लाह तआला से मांगते रहें, उसका दरवाज़ा खटखटाते रहें। एक वक़्त आएगा कि रब्बे करीम उस दरवाज़े को खोलेगा और हमें वे नेमतें अता फरमा देगा। लिहाज़ा इस सबक को अच्छी तरह दिमाग़ में बिठाने की ज़रूर है जब हम शुक्र अदा करना सीख लेंगे तो अल्लाह तआला अपनी नेमतों को और ज़्यादा कर देंगे। अल्लाह तआला हमें दुनिया की नेमतों से भी माला माल फरमाएंगे और अल्लाह तआला हमें रूहानी नेमतों से भी माला माल फरमाएंगे।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..