15/07/2025
औलाद की नेमत। 20250604 134825 0000

औलाद की नेमत। Aulad ki Nemat.

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Aulad ki Nemat.
Aulad ki Nemat.

इससे एक कदम और आगे बढ़ाइए कि रब्बे करीम ने औलाद की नेमत अता फरमाई। इसकी क़दर व कीमत ज़रा उनसे पूछिए जो बेऔलाद होते हैं। उस औरत से पूछिए जिसकी शादी को कई साल गुज़र गए हों और उसको औलाद की नेमत नहीं मिली, उसके दिल में कितनी तमन्ना होती होगी कि अल्लाह तआला मुझे भी औलाद अता करता, मैं भी औलाद वाली हो जाती, मेरे घर में भी कोई खेलने वाला बच्चा होता, मेरा घर भी आबाद होता, मेरा घर भी मुझे बाग़ की तरह लगता मगर उसके दिल की तमन्ना पूरी नहीं होती।

कितनी औरतों को देखा जिन्हें शौहर का प्यार नसीब है, घर में माल व दौलत भी नसीब है, बड़ी कोठी भी है मगर उनके पास औलाद नहीं। कहती हैं जी हमें यह घर खाने को आता है। इतना बड़ा घर किस काम का जब इसमें खेलने के लिए अल्लाह तआला ने कोई औलाद ही नहीं दिया। उस माँ के दिल में कितनी हसरत होती होगी ज़रा पूछिए तो सही।

उस माँ की हसरत का अंदाज़ा इससे लगाइए कि यह अगर रात को तहज्जुद के लिए उठती है तो यह अल्लाह तआला के सामने सज्दे में जाकर औलाद मांगती है। जब दुआ के लिए हाथ उठाती है तो उसकी सबसे पहली दुआ औलाद के बारे में होती है। लोग मीठी नींद सो रहे होते हैं और यह तहज्जुद की नमाज़ पढ़कर अल्लाह से एक नेमत मांगती है जो उसे हासिल नहीं,

कभी कुरआन पाक की तिलावत करती है तो तिलावत करने के बाद यह अल्लाह तआला से दुआ मांगती है, रब्बे करीम ! मुझे औलाद की. नेमत अता फरमा, कभी किसी अच्छी महफिल या मजलिस का पता चला, यह वहाँ पहुँचती है और दुआ मांगती है कि ऐ अल्लाह ! यह तेरे नेक लोगों की महफिल है, अपने नेक बंदों की बरकत से मुझे औलाद की नेमत अता फरमा। यह औरत हज पर गई, उसने काबा शरीफ गिलाफ पकड़कर यह दुआ मांगी, ऐ रब्बे करीम ! औलाद की नेमत अता फरमा, उसने मकामे इब्राहीम पर नफ़्ल पढ़े तो उसने दुआ मांगी रब्बे करीम ! औलाद की नेमत अता फरमा।

जहाँ उसे कुबूलियत के आसार नज़र आते हैं वह अपने वही दुखः अल्लाह तआला के सामने रोती है। हर वक़्त वह फरियादें करती है। उसको कोई पढ़ने की तस्बीह बताए, उसे कोई रातों को जांगकर वज़ीफा करना बताए, यह रातों को जागकर वज़ीफा करने के लिए तैयार, बेचारी वुज़ू करके घंटों मुसल्ले पर बैठी पढ़ती रहेगी।

उसे घर में कोई दिलचस्पी नज़र नहीं आती। इतना बड़ा घर उसे वीरान लगता है। उसके दिल की हसरत का अंदाज़ा लगाइए। उसके पास माल भी है, हुस्न व जमाल भी है, शौहर का प्यार भी है, दुनिया की इज़्ज़त भी है मगर ये सब चीजें उसको मामूली नज़र आती हैं क्योंकि अल्लाह तआला ने उसे औलाद की नेमत अता नहीं की होती। अगर यह माल देकर औलाद खरीद सकती तो भला यह अपना सब कुछ लुटा न देती, अगर मेहनत करके औलाद कहीं से ला सकती तो यह पहाड़ों की चोटियों पर भी जाने से पीछे न हटती।

मगर यह नेमत यह है कि रब्बे करीम जिसे चाहते हैं अता फरमा देते हैं और जब वे नहीं करता तो दुनिया के डाक्टरों की डाक्टरी धरी की धरी रह जाती है। सब हकीमों की हिकमत धरी की धरी रह जाती है। कहते हैं मियाँ-वीवी में कोई नुक्स भी नहीं मगर मेरे मौला की मर्जी नहीं, सालों गुज़र जाते हैं मगर सालों के बाद भी औलाद नहीं होती। यहाँ तक कि जवानी गुज़रने के करीब हो जाती है मगर दिलों की हसरतें दिल में रह जाती हैं, फिर भी दुआएं मांग रही होती हैं।

अरे! मेरी और आपकी तो बात क्या करनी ये वह नेमत है जिसके लिए अंबियाए किराम अलैहिमुस्सलाम ने भी दुआएं मांगी। कुरआन गवाही देता है। अल्लाह के नबी हैं और उसके मकबूल बंदे हैं मगर अल्लाह तआला ने उनको औलाद अता नहीं की। उनके दिल में भी अल्लाह तआला ने वह मुहब्बत डाल दी।झूठे नबी के सामने सच्चे ईमान की जीत।

हज़रत ज़क्रिया अलैहिस्सलाम का वाकिआ है। बाल सफेद हो गए, हड्डियाँ कमज़ोर हो चुकीं और खाल लटक चुकी मगर अल्लाह ने औलाद के बारे में दिल में एक तमन्ना पैदा कर दी थी। लिहाज़ा अल्लाह तआला से दुआएं मांगते थे। वक़्त के नबी हैं उनकी कैसी मक़बूल दुआएं होती होंगी मगर उम्र गुज़र गई दुआएं मांगते हुए।

जवानी बुढ़ापे में बदल गई। आख़िर दुआ मांगते हुए कहते हैं परवरदिगार अब तो मेरी हड्डियाँ भी वोसीदा हो गयीं, परवरदिगार मेरे काले बाल सफेद हो गए, ऐ मेरे मौला! तू मेरी इस दुआ को कुबूल फमा ऐ अल्लाह ! मैंने सारी ज़िंदगी तेरा दरवाज़ा खटखटाया, परवरदिगार! मायूस अब भी नहीं हूँ, इस बुढ़ापे में भी मेरे दिल में यह उम्मीद ज़रूर है। रब्बे करीम ! तेरा दर कभी न कभी खुलेगा और तू मुझे नेमत अता फरमाएगा। इतनी दुआ मांगते हैं।

रब्बे करीम ने दुआ को कुबूल फरमा लिया और इस बुढ़ापे में औलाद की नेमत अता फरमा दी। इसलिए वह नेमत जिसके लिए वक़्त के अंबिया किराम भी दुआ करते रहे तब अल्लाह करीम ने उन्हें यह नेमत अता फरमाई। मेरे दोस्तो! हम में से कितने नौजवान हैं जिनकी शादी होती है और दो चार साल के अंदर ही अल्लाह तआला उनको बेटा अता कर देते हैं, बेटियाँ भी अता कर देते हैं। एक से ज्यादा औलाद होती है।

यह रब्बे करीम की हम पर कितनी रहमत है, घरों के अंदर ये बच्चे खेलते नज़र आते हैं। यह कितना प्यार हम से कर रहे होते हैं। कभी बेटी प्यार करती है, कभी बेटा प्यार करता है, कोई हमें अब्बू कह रहा होता है, कभी कोई ज़िद्द करता है, कभी कोई पास आकर खाने खा रहा होता है। मेरे दोस्तो! यह अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की कितनी बड़ी नेमत है जो रब्बे करीम ने हमें अता फरमा दी है। हम तो दुनिया का सारा माल खर्च कर देते तो भी यह नेमत नहीं मिल सकती थी। हमें अल्लाह तआला का कितना शुक्र अदा करना चाहिए।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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