
प्यारी इस्लामी बहनों,
शौहर से मोहब्बत रखना और हर जायज़ बात में उसका कहा मानना सिर्फ एक फ़र्ज़ नहीं, बल्कि अल्लाह और उसके रसूल की रज़ा का रास्ता है। जब एक बीवी अपने शौहर की इज्ज़त करती है, उसका साथ देती है, तो उसका घर जन्नत का एक टुकड़ा बन जाता है। अल्लाह खुश होता है, रसूल-ए-पाक सलल्लाहो अलैहि वसल्लम की रहमतें बरसती हैं, और दुनिया में इज़्ज़त व नेकनामी नसीब होती है।
लेकिन जब बीवी अपने शौहर से नाराज़गी रखती है, उसकी बात नहीं मानती, बेवजह झगड़ा करती है तो याद रखिए, इससे शैतान खुश होता है। वो शैतान जो इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है, जो हर घर को तोड़ना चाहता है। ऐसे घरों में फिर ना सुकून होता है, ना बरकत, सिर्फ ज़िल्लत और परेशानियाँ होती हैं ,अक़्लमंद और समझदार बीवियाँ हमेशा मोहब्बत और समझदारी से रिश्तों को निभाती हैं।
इसलिए, अपने शौहर से अच्छी तरह पेश आना, हक़ अदा करना और रिश्ते को मोहब्बत, एहतराम और वफ़ा से सँवारना हर बीवी के लिए सबक़ है ताकि घर जन्नत बन जाए और ज़िन्दगी सुकून से भरी हो।
(1) देखो, शौहर और बीवी का एक ऐसा रिश्ता है कि सारी उम्र इसी में काटनी पड़ती है। अगर दोनों में मुहब्बत और इत्तफ़ाक रहा तो यह बड़ी इज़्ज़त और राहत की चीज़ है और अगर इसमें फ़र्क़ आया तो यह बड़ी कुल्फ़त और मुसीबत है। याद रखो, अपने शौहर के साथ खाली मुहब्बत काफ़ी नहीं बल्कि उसके मर्तबे का खयाल रखो। उठने बैठने में, बातचीत करने में भी उसका अदब करना ज़रूरी है। चाहे वह कितना भी हँसी-मजाक करता हो।
(2) उसकी आमदनी के मुवाफ़िक़ ख़र्च करो।
(3) अगर कोई तुम्हारे ख़िलाफ़ हो, उसकी सहार करो और हमेशा खुशी जाहिर करो।
(4) हमेशा बेजा खर्च से बचो ।
(5) जो कुछ मिले, जुड़े, अपना घर समझ कर चटनी रोटी भी हो तो खा कर गुज़ारा करो।
(6) किसी बात में ज़िद न करो।
(7) कभी गुस्से में आकर उसकी शिकायत न करो ।
(8) अगर उसको तुम्हारी किसी बात पर गुस्सा आ गया तो ऐसी बात न कहो कि उसका गुस्सा और बढ़े।
(9) अगर वह तुमसे ख़फ़ा हो जाये तो तुम नाक-मुँह चढ़ा कर न बैठ जाओ। बल्कि आजिज़ी से अपना क़सूर माफ़ कराओ चाहे तुम्हारा क़सूर हो या न हो और क़सूर माफ़ कराने में अपनी इज़्ज़त समझो ।
(10) घर की चीज़ों को सलीक़े से रखो। यह न हो कि हर जगह पड़ी रहें।
(11) किसी काम में हीला-बहाना मत करो।
(12) झूठ हरगिज़ न बोलो कि झूठ बोलने से गुनाह भी होता है और ऐतबार भी उठ जाता है।
(13) अगर वह गुस्से में आकर कुछ बुरा-भला कहे तो उस की सहार करो। जवाब मत दो। तुम देखोगी कि गुस्सा उतरने के बाद वह खुद शर्मिंदा होगा। अगर तुम भी गुस्सा करोगी और उसे बदनाम करोगी तो बात बढ़ जायेगी और जितना तुमसे बोलता था इतना भी नहीं बोलेगा। फिर सिवाय लड़ाई-झगड़े के और रोने धोने के कुछ न होगा।रिज़्क़ में बरकत का राज़।
(14) अपने आदमी को बस में करने की आसान तदबीर यह है कि उसका कहना माना जाये। जिस तरफ़ को वह चलाये, चले। फिर उसकी जान व माल सब तुम्हारे वास्ते हैं।
(15) उसके साथ जुबानदराजी करना या उसकी बराबरी करना बड़ी ग़लती है। भला ख़याल करो कि तुम्हारा बाप रुतबे के लिहाज़ से क्या तुम्हारे बराबर हो सकता है? हरगिज़ नहीं। तो शौहर का रुतबा तो बाप से भी ज्यादा है। अल्लाह व रसूल ने उसका रुतबा तुम्हारे मुक़ाबले में बड़ा बनाया है। रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का फ़रमान है कि “उस औरत की नमाज़ क़बूल नहीं होती कि जिसका शौहर उससे नाराज़ हो ।” (तिरमिज़ी)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..