हज़रत फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के ज़माने में एक “हसन” कव्वाल था जिसे अपनी लड़की की शादी करने के लिए रकम की ज़रूरत थी। उस ने हज़रत फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि से अर्ज़ किया कि मेरी लड़की की शादी है कुछ इनायत फरमाइए। यह सुन कर हज़रत ने फरमाय कि मैं तुझे क्या दूँ? मेरे पास क्या है? हसन कव्वाल ने अर्ज किया कि अगर आपके पास कुछ नहीं है तो यह कह दीजिए कि यह ईंट उठाले।
यह सुन कर हज़रत फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि खामोश रहे और फिर फरमाया कि उठाले। हसन ने वहाँ की पड़ी हुई एक ईंट को हाथ लगाया तो वह उसी वक़्त सोने की बन गई। उसके बाद उसने अर्ज़ किया क्या दूसरी भी उठालूँ? आपने फ़रमाया यही काफी है। वह उस पर भी न माना और फिर दूसरी ईंट का मुतालबा किया, उस का इसरार देख कर हज़रत ने फ़रमाया उसे भी उठाले मगर फिर कुछ न कहना उस ने कहा बेहतर है और दूसरी ईंट भी जैसे उठाई वह उसी वक़्त सोने की बन गई।
उसने फिर कहा हज़रत तीसरी भी उठालूँ? फ़रमाया अभी तो तूने इकरार किया था कि फिर कुछ न कहूँगा और फिर भी सवाल करता है? हसन ने अर्ज़ किया कि ज़रासा कह देनें में आप का क्या हर्ज है? उस पर आप ने हंस कर फरमाया कि अच्छा एक और उठाले। लिहाजा उसने तीसरी ईंट भी उठाली जो हाथ लगाते ही सोने की बन गई और वह तीनों ईंटें ले गया और बड़ी धूम से अपनी लड़की की शादी की। (बरकातुस्सालिहीन, हिस्सा 2 स०: 81)
और रिवायत है कि यही “हसन” कव्वाल जिस का जिक्र ऊपर की हिकायत में गुज़रा उसने एक रोज़ हज़रत गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि से अर्ज किया कि मैं ने हज़रत शैख बहाउद्दीन ज़करिया मुलतानी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की बहुत तारीफ़ सुनी है। जी चाहता है कि उनकी ज़ियारत करूँ। हज़रत गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने फ़रमाया कि जा उनकी ज़ियारत कर मगर कुछ बेअदबी न करना।
उसके बाद हसन कव्वाल मुलतान को रवाना हो गया। हज़रत बहाउद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैहि जहाँ तशरीफ़ रखते थे जब हज़रत बहाउद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की खिदमत में हाज़िर हुआ तो देखा कि हज़रत एक आलीशान मकान में तशरीफ़ फरमा हैं जहाँ उमदा-उमदा फर्श बिछे हुए हैं और एक जड़ाऊ पलंग भी बिछा हुआ है जो मख़्मली बिछौना और बेहतरीन तकिया से आरास्ता है।Shaikh Fariduddin Ganj Shakar ka Aqida.
हज़रत शैख उसी पर जलवा अफरोज़ हैं। यह देख कर हसन कव्वाल के दिल में ख़्याल गुज़रा कि यह क्या तसव्वुफ (तरीक़त) है कि ऐश व इशरत का सामान मौजूद है। फकीरी तो गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के यहाँ है, जहाँ एक बोरिया के सिवा कुछ नहीं है। शैख बहाउद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने अपने नूरे बातिन से हसन के दिल की बात मालूम कर ली और फरमाया कि ओ वेअदब ! हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का अक़ीदा।
क्या भाई फरीरूद्दीन ने तुझ से यह न कहा था कि बेअदबी न करना और तू फिर भी न माना। फिर शैख ने चाहा कि उसे उठा कर फेंक दें लेकिन उसी वक़्त मैदाने गैब से हज़रत फ़रीरूद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि का हाथ ज़ाहिर हो गया। लिहाज़ा शैख ने दरगुजर से काम लिया। दूसरी बार फिर उसे चाहा कि सज़ा दें तो इस बार भी वही हाथ आड़े आ गया।
उसके बाद तीसरी मरतबा फिर शैख ने उसे ज़क (सज़ा) देने का इरादा किया तो वह हाथ फिर दर्मियान में आ गया। फिर उसी हाथ से अवाज़ आई कि ऐ हसन ! तू इस हाथ को पहचानता है? हसन ने कहा उस हाथ पर कुर्बानं अगर यह हाथ न होता तो मैं आज ज़िन्दा न बचता। (बरकातुस्सलाम, हिस्सा 2, स०: 83)
और “खज़ीनतुलअसफिया” के मुसन्निफ फ़रमाते हैं कि एक टुकड़ा ज़मीन हज़रत फीरूद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि का जाती ज़रख़रीद था। किसी शख़्स ने हाकिम रिपाल पुर की अदालत में मुकद्दमा दायर किया और झूठा दावा किया कि वह ज़मीन मेरी है। हाकिम ने हज़रत गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि को जवाब देही के लिए तलब किया तो हज़रत ने कहला भेजा कि इस बारे में शहर वालों से मालूमात कर लो।
शहर वाले खूब जानते हैं कि यह ज़मीन किस की मिल्कियत (जाएदाद) है, हाकिम ने जवाब दिया कि इस मुकद्दमा का इस तरह लापरवाही से फैसला नहीं हो सकता। आप खुद आएं या अपना वकील भेज कर मुकद्दमा की पैरवी कराएं। और यह भी समझ लें कि बेगैर सनद और गवाह के यह मुआमला हल न हो सकेगा।
हज़रत गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने फरमाया कि उस शिकस्ता सर यानी गर्दन टूटे हुए से कह दो कि न हमारे पास सनद है और न गवाह हैं, हमारे कहने का एातेबार नहीं है, तो खुद उस ज़मीन से पूछ लिया जाए, वह खुद बतादेगी। यह सुन कर हाकिम हैरान हुआ और हज़रत की बात का इम्तिहान करने के लिए उस ज़मीन पर पहुंचा और उसके साथ पाक पटन के बाशिन्दों का ज़बरदस्त हुजूम भी था।
हाकिम ने मुद्दई से कहा कि ज़मीन से पूछ तो किस की मिल्कियत (जाएदाद) है? जब मुद्दई ने ज़मीन से पुछा कि तेरा मालिक कौन है? तो कुछ जवाब न आया। फिर हज़रत के एक खादिम ने बुलन्द आवाज़ से कहा कि ऐ ज़मीन ! फ़रीरूद्दीन गंज शकर का हुक्म है कि सच बता कि तू किस की मिल्क है? उसी वक़्त ज़मीन से आवाज़ आई कि मैं ख़्वाजा फरीरूद्दीन की मिल्कियत हूँ।Shaikh Fariduddin Ganj Shakar ka Aqida.
यह सुन कर मुद्दई शर्मिंदा हुआ और हाकिम भी हैरत में पड़ गया। वापस होते हाकिम की घोड़ी का कदम उलझ गया जिस की वजह से वह मुंह के बल गिर पड़ा और उसकी गर्दन टूट गई और हज़रत गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि का इरशाद शिकस्ता सर सही हुआ। (बरकातुस्सलाम, हिस्सा 2, स०: 84)
और रिवायत है कि हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि एक लम्बे सफ़र से वापस हो कर मुलतान पहुंचे तो हज़रत बहाउद्दीन जकरिया मुलतानी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि से मुलाक़ात हुई तो उन्होंने आपसे दर्याप्त फरमाया कहाँ तक तरक्की कर ली? जवाब दिया कि अगर आपकी कुर्सी को इशारा करूं तो वह आपके साथ हवा में उड़ने लगे। यह कहना था कि कुर्सी ने बुलन्द होना शुरू किया तो हज़रत ज़करिया उसे हाथ से दवा कर नीचे ले आए।(सवानिह हज़रत बाब फरीदुद्दीन, स०ः 52)
और “खजीनतुलअसफिया” के मुअल्लिफ लिखते हैं कि हज़रत ख़्वाजा फरीदुद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के गंज शकर मशहूर होने की वजह यह है कि एक सौदागर ऊँटों पर शकर लाद कर मुलतान से दिल्ली जा रहा था। रास्ते में जब पाक पटन पहुंचा तो हज़रत ख़्वाजा साहिब ने दर्याफ़्त फरमाया कि ऊँटों पर क्या है? सौदागर ने मज़ाक के तौर पर जवाब दिया नमक है।
यह सुन कर हज़रत ख़्वाजा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने फरमाया कि बेहतर है नमक ही होगा। जब सौदागर मन्ज़िले मकसूद पर पहुंचा तो ऊँटों पर शकर की बजाए नमक ही मिला। चुनाँचे उसी वक़्त वापस हुआ और ख़्वाजा अलैहिर्रहमह से माफी मांगने लगा। ख़्वाजा साहिब ने फ़रमाया कि शकर थी तो शकर ही हो जाएगी। इश्क़ व मुहब्बत के चंद बिखरे मोती।
चुनाँचे वह नमक फिर शकर बन गया। बेरम खाँ ने इस वाकिए को नज़म में भी किया था जिसका तर्जुमाः यह हैः “हज़रत ख़्वाजा फरीदुद्दीन नमक की कान, शकर का जहान और खुश्की व तरी के शैख हैं जो शकर से नमक बना देते हैं और नमक से शकर।” (बरकातुस्सलाम, हिस्सा 1, स०: 85)
हज़रत फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने इन वाकिआत से अपना यह अक़ीदा साबित कर दिया कि खुदा-ए-तआला ने मुझे दुनिया में तसर्रूफ की बेपनाह ताक़त अता फरमाई है।Shaikh Fariduddin Ganj Shakar ka Aqida.
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…