Salam karne ki Ahmiyat.
इस्लामी शरीयत में सलाम करने की बड़ी अहमियत हैं सलाम करना सुन्नत हैं और इसका जवाब देना वाजिब हैं अल्लाह के प्यारे रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा को सलाम आम करने की तालीम दी।
सलाम (अस्सलामो अलैकुम) कहना हमारी इस्लामी पहचान हैं आज जबकि हमारी इस्लामी पहचान खत्म होती जा रही हैं चेहरों से सुन्नते (दाढ़ी) खत्म होती जा रही हैं अपने जान पहचान वालो को तो पहचाना जा सकता हैं
लेकिन अपने दूसरे दीनी भाइयो की पहचान मुश्किल हो चुकी हैं। ऐसे नाज़ुक माहौल में अगर हम सलाम को भी अपने समाज से रुखसत कर देंगे तो कितना बड़ा सितम होगा।Salam karne ki Ahmiyat.
सलाम एक दुआ हैं जो हम अपने किसी दीनी भाई को देते हैं और जवाब में खुद भी उसकी तरफ से दुआ पाते हैं आपने अपने मिलने वाले से अस्सलामो अलैकुम कहा तो मतलब यह हुआ की ऐ मेरे दीनी भाई आप पर सलामती हो, मुसलमान भाइयों के हुक़ूक़।
अल्लाह आपको सलामत रखे आपकी ये दुआएं सुनकर सामने सामने वाला भी आपको दुआएं देते हुए जवाब देता हैं
वाअलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहे व बरकतहु मतलब यह हैं की ऐ मुझे सलामती की दुआ देने वाले मेरे भाई तुम पर भी अल्लाह की सलामती हो अल्लाह पर तुम पर रहम फरमाए अपनी रहमतो और बरकतो से नवाज़े!
लेकिन आज के इस दौर में हम सलाम का मतलब व मकसद भूल बैठे हैं और इसे एक तरह की रस्म समझ लिया हैं और जब कोई हकीकत रस्म बन जाती हैं फिर उसकी बरक़तें खत्म हो जाती हैं , Salam karne ki Ahmiyat.
आज के माहौल में तो लोग यह समझ बैठे हैं की सलाम करना तो छोटो और गरीबो का हक़ हैं बड़े और बड़ो को सलाम करना ज़रूरी नहीं हाल यहाँ तक हो गया है की बड़े लोग छोटो को सलाम करना अपनी तौहीन समझने लग गए हैं इसलिए जब कोई छोटा उन्हें सलाम करता हैं तो सीधे मुँह जवाब में वालेकुम सलाम कहना भी मुनासिब नहीं समझते।
बहरहाल सलाम करने के फायदे बेशुमार हैं हज़रात आदम अलैहिस्सलाम ने फ़रिश्तो को सलाम किया और फ़रिश्तो ने जवाब दिया यह ज़रूरी नहीं की हम जिसे पहचानते हो उसे ही सलाम करे जी नहीं,
अपने हर दीनी भाई को चाहे उसे पहचानते हो या नहीं इस रिश्ते से की वह आपका दीनी भाई हैं आपको सलाम ज़रूर करना चाहिए और सलाम के लिए कम से कम अस्सलामो अलेकुम तो कहना ही चाहिए। औलाद की तरबियत कैसे करें?
आज कल का ज़माना बड़ा तेज़ रफ़्तार ज़माना हैं ज़िन्दगी एक मशीन की तरह हो गयी हैं किसी को फुर्सत नहीं इसलिए रास्ता चलते हाथ उठाकर मुसकुराकर सर झुकाकर सलाम करने की रस्मे निभाई जा रही हैं Salam karne ki Ahmiyat.,
इससे इतना तो समझा जा सकता हैं की सामने वाले ने मुझे सलाम किया या मेरे सलाम का जवाब दिया लेकिन इससे सलाम की बरक़तें हासिल नहीं होगी लेकिन क्या किया जाये फुरसत नहीं हाँ शिकायत ज़रूर दूर हो जाएगी की फलां
शख्स मेरे सामने से गुज़रा लेकिन सलाम नहीं किया क्यूंकि अब तो खाली रस्मे निभाने का ज़माना ही रह गया हैं हक़ीकते तो रुखसत होती जा रही हैं।
सलाम करना तौहीन नहीं बल्कि इज़्ज़त हैं समझदार लोगो की नज़र में भी और अल्लाह और रसूल की नज़रो में भी सलाम करने वाला कौम की नज़रो में कबीले एहतराम होता हैं सलाम सादगी की पहचान हैं,
अगर कोई बड़ा आदमी जो किसी भी ऐतबार से बड़ा हो उम्र दौलत इल्म किसी भी ऐतबार से अगर लोगो से सलाम करने में पहल करे तो लोग उसे अदब व एहतराम की नज़रो से देखेंगे और अगर वही आदमी सलाम न करे तो कहेंगे की कितना घमंडी आदमी हैं सलाम करने की भी तौफीक नहीं इसे! मैय्यत को सवाब पहुंचाना।
बहरहाल सलाम हर ऐतबार से हमारे लिए रहमत हैं दीन के ऐतबार से भी और दुनिया के ऐतबार से भी इसलिए हम सभी को अपनी इस्लामी शान बनाये रखने के लिए अपने रसूल के फरमान की रौशनी में सलाम को आम करना चाहिए।Salam karne ki Ahmiyat.
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…