एक बार हज़रत उबई बिन काब रज़ियल्लाहु अन्हु बैठे थे। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको बुलाकर फरमाया कि मुझे सूरत सुनाओ।
हदीस पाक का मफहूम है कि मुझे हुक्म हुआ है कि मुझे सूरः बैय्यन: सुनाओ। वह बड़े समझदार थे। चुनाँचे आगे से पूछने लगे, ऐ अल्लाह के महबूब ! क्या अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने मेरा नाम लेकर फ़रमाया है? कुरआन मजीद सच्ची किताब है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया हाँ अल्लाह तआला ने तुम्हारा नाम लेकर फ़रमाया कि उबई बिन काब से कहो कि क़ुरआन सुनाए । महबूब ! आप भी सुनेंगे और मैं ( परवरदिगार) भी सुनूंगा। यह सुनकर उबई बिन काब रज़ियल्लाहु अन्हु की आँखों में आँसू आ गए। उनका यह रोना खुशी का रोना था ।
( दवाए दिल 142, खुत्बात जुलफुक्कार 11/218)Quraan Majeed sunne ki khowahish.
कुरआन सुनने के लिए मुश्ताक फरिश्ते भी. एक सहाबी अपने घर के अंदर तहज्जुद में कुरआन मजीद पढ़ रहे थे । तबियत ऐसी मचल रही थी कि जी चाह रहा था कि ज़रा ऊँची आवाज़ से पढ़ें मगर क़रीब ही एक घोड़ा बंधा हुआ था और चारपाई पर बच्चा लेटा हुआ था।
महसूस किया कि जब ऊँचा पढ़ता हूँ तो घोड़ा बिदकता है। लिहाज़ा दिल में ख़ौफ पैदा हुआ कि कहीं बच्चे को नुकसान न पहुँचा दे। फिर आहिस्ता पढ़ना शुरू कर देते। सारी रात यही मामला होता रहा।
जब तहज्जुद मुकम्मल की और दुआ के लिए हाथ उठाए तो क्या देखते हैं कि कुछ सितारों की तरह रोशनियाँ हैं जो उनके सरों पर आसमान की तरफ वापस जा रही हैं। यह उन रोशनियों को देखकर हैरान हुए। सुबह हुई तो वह सहाबी नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए।
अर्ज किया कि ऐ अल्लाह ! के महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मैंने रात को तजज्जुद इस अंदाज़ से पढ़ी कि बच्चे के ख़ौफ़ की वजह से आहिस्ता पढ़ता था और जी चाहता था कि ज़रा आवाज़ के साथ पढूँ । मगर दुआ के वक्त मैंने कुछ रोशनियाँ आसमान की तरफ जाते देखीं।
अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त के महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया कि वह रब्बे करीम के फरिश्ते थे जो तुम्हारा कुरआन सुनने के लिए अर्शे रहमान से नीचे उतर आए थे। अगर तुम ऊँची आवाज़ से क़ुरआन पढ़ते रहते तो आज मदीना के लोग अपनी आँखों से फ़रिश्तों को देख लेते, सुबहान अल्लाह । (खुत्बात ज़ुलफ़ुक़्कार 3 / 216 )Quraan Majeed sunne ki khowahish.
एक बार नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ लाए। तहज्जुद का वक़्त था। एक तरफ देखा कि हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु नफ़्लें पढ़ रहे हैं और आहिस्ता कुरआन मजीद पढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ़ सैय्यदना उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ज़रा ऊँची आवाज़ से क़ुरआन मजीद की तिलावत फरमा रहे हैं।
तहज्जुद में दोनों तरह पढ़ने की इजाज़त है। जब दोनों गुलाम पढ़ चुके तो हाज़िरे ख़िदमत हुए। नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा, अबूबक्र ! तुम आहिस्ता क्यों पढ़ रहे थे? अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के नबी ! मैं उस ज़ात को क़ुरआन सुना रहा था जो सीनों के भेद भी जानती है। कुरआन शरीफ की कुछ खास सूरह और पढ़ने के फायदे।
मुझे भला ऊँचा पढ़ने की क्या ज़रूरत थी? फिर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछा, ऐ उमर ! तुम ऊँचा क्यों पढ़ रहे थे? अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के नबी ! मैं सोए हुओं को जगा रहा था। शैतान को भगा रहा था। सुबहान अल्लाह ! कुरआन पढ़ा जाता था शैतान उन जगहों से भाग जाया करता था।
अल्लाह तआला की रहमतें नाज़िल होती थीं। आज भी अगर कोई इंसान इस क़ुरआन को मुहब्बत से पढ़ेगा तो अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की रहमतें उतरेंगी और उसकी बरकत से सीने रोशन हो जाएंगे। इसलिए फ़रमाया जाता है कि यह कुरआन इंसानों को अंधेरों से रोशनी की तरफ ले जाता है।Quraan Majeed sunne ki khowahish.
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…