कुरआन मजीद सच्ची किताब है।Quraan majeed sachchi kitaab hai.

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कुरआन मजीद सच्ची किताब है,इस किताब को नाज़िल करने वाला ख़ुद परवदिगार है। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपने बारे में इर्शाद फ़रमाते हैं उससे ज़्यादा सच्ची बात भला किस की हो सकती है। दूसरी जगह फ़रमाया कह दीजिए अल्लाह ने सच कहा है। लिहाज़ा जिस ज़ात का यह कलाम है वह सबसे ज़्यादा सच्ची जात है।

इस कलाम को आगे पहुँचाने वाले जिब्राईल अलैहिस्सलाम हैं जिनकी अमानत व दयानत की गवाही खुद अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त युं कह रहे हैं अमानत कहते है कि अगर कोई चीज़ किसी ने सुपुर्द की हो तो उसे हू-बहू आगे पहुँचा देना।

लिहाज़ा इस आयत में अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने जिब्राईल अमीन की सदाक्त व अमानत की गवाही खुद दी है। जिस हादी बरहक रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह कलाम अता किया गया उनके बारे में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं आप तो अख़लाक़ के आला मर्तबे पर फाएज़ हैं।

यह वह ज़ात है जिसकी आँख ऐब से पाक है। लिहाज़ा फ़रमाया जो अपनी मर्जी से लब कुशाई नहीं फरमाते वह अपनी ख़्वाहिश से नहीं बोलते। किस्सा मुख़्तसर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त भी सच्चे, लाने वाले जिब्राईल अमीन भी सच्चे और साहिबे क़ुरआन पैग़म्बरे इस्लाम भी सच्चे। बस सच्चे का कलाम, सच्चे के ज़रिए, सच्चे तक पहुँचा।

कुरआन मजीद अल्लाह तआला की अमानत है परवरदिगार की यह अमानत उसके बंदों तक ठीक-ठीक पहुँच चुकी है। जिस तरह ये अल्फाज़ अल्लाह तआला ने नाज़िल फरमाएं हैं उसी तरह इसके मायने भी अल्लाह तआला ने बयान फ़रमा दिए हैं। लिहाज़ा ‘वही’ नाज़िल होने के इब्तिदाई दौर में जब क़ुरआनी आयतें उतरती थीं।तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम याद करने में जल्दी फ़रमाते थे। अल्लाह तआला ने इर्शाद फ़रमाया ! आप अपनी ज़बान को जल्दी न हिलाइए। कुरआन का जमा करवाना हमारे ज़िम्मे हैं।

कुरआन मजीद का जमा करवाना भी अल्लाह तआला ने अपने ज़िम्मे ले लिया और इसका बयान करना भी अपने ज़िम्मे ले लिया। यह नुक्ता बड़ा अहम है। जिस तरह कुरआन मजीद के अल्फाज़ अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की ज़िम्मेदारी से उसके बंदों तक पहुँचे है।

उसी तरह उनके मायने व मतलब भी अल्लाह तआला के महबूब ने अल्लाह तआला के हुक्म से पहुँचा दिए। अब क़ुरआन दो तरह से हमारे पास मौजूद है। उसके अल्फाज़ भी ‘वही’ उसके मायने भी ‘वही’। किसी वंदे को यह इजाज़त नहीं है कि कुरआन मजीद को पढ़कर अपनी तबियत से माइने निकाले क्योंकि साहिबे कलाम ही अपने कलाम को बेहतर समझता है।

यह कहाँ का इंसाफ है कि बात किसी और की हो और मुराद हम अपनी बयान करते फिरें। लिहाज़ा अल्फ़ाज़ भी वही एतेबार के काबिल हैं जो अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने नाज़िल फरमाए और मायने भी वही बेहतर एतिबार के काबिल जो अल्लाह तआला के महबूब ने बताए ।

कुरआन के समझने में गलती आजकल कुछ लोग अरबी दानी के नशे में क़ुरआन मजीद में अपनी मंशा ढूंढना शुरू कर देते हैं हालाँकि क़ुरआन मजीद में अल्लाह तआला की मंशा ढूंढना चाहिए किसी बंदे की मंशा को नहीं। जिसने यह नुक्ता समझ लिया वह आजकल के बड़े-बड़े फितनों से महफूज़ हो गया क्योंकि कुरआन मजीद के माइने अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने खुद अपने महबूब के ज़रिए अपने बंदों तक पहुँचा दिए हैं।

अब कुरआन की तफ्सीर वही कहलाएगी जो सहाबा किराम ने नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सीखी और यूँ ऊपर से नीचे तक उम्मत में चली आई हो। लिहाज़ा जो उलूम नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि से हमें मिल चुके हैं उन्हीं उलूम को आगे पहुँचाने का नाम तफ़्सीर है।

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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