28/10/2025
qiyamat ke din sabse bada gareeb

कियामत के दिन सबसे बड़ा ग़रीब।Qiyamat ke din sabse bada Gareeb.

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हज़रत अबू हुरैरा(र.अ)से रिवायत है कि आंहज़रत (स.व)ने एक बार अपने सहाबा से सवाल फरमाया, क्या तुम जानते हो कि गरीब कौन है?

सहाबा ने अर्ज़ किया हम तो उसे गरीब समझते हैं कि जिसके पास दिरहम (रुपया-पैसा) और माल व अस्बाब न हो। इसके जवाब में आंहज़रत सैयदे आलम (स.व) ने इर्शाद फ़रमाया कि बेशक मेरी उम्मत में से (हकीकी) मुफ़्लिस वह है जो कियामत के दिन नमाज़ और रोज़े और ज़कात लेकर आएगा यानी उसने नमाज़ें भी पढ़ी होंगी,

रोज़े भी रखे होंगे और ज़कात भी अदा की होगी और इन सबके बावजूद इस हाल में हश्र के मैदान में आयेगा कि किसी को गाली दी होगी और किसी पर तोहमत लगायी होगी और किसी का नामुनासिब और नाहक मारा होगा।

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और चूंकि क़ियामत का दिन इंसाफ और सही फैसलों का दिन होगा इसलिए उस शख्स का फैसला इस तरह किया जाएगा कि जिस-जिस को उसने सताया होगा और जिस-जिस का हक मारा होगा सबको उसकी नेकियां बांट दी जायेंगी कुछ नेकियां इस हक़दार को दे दी जाएंगी।

फिर अगर हुकूक पूरा न होने से पहले उसकी नेकियां ख़त्म हो जाएं तो हक़दारों के गुनाह उसके सिर डाल दिए जाएंगे। फिर उसको दोज़ख़ में डाल दिया जाएगा।(मुस्लिम शरीफ)

हज़त अब्दुल्लाह बिन उनैस (र.अ)से रिवायत है कि आंहज़रत सैयदे आलम (स.व)ने फरमाया कि कियामत के दिन अल्लाह अपने बन्दों को जमा फ़रमाएगा जो नंगे, बेख़ला और बिल्कुल खाली हाथ होंगे।

फिर ऐसी आवाज़ से पुकारेंगे जिसे हर दूर वाले इसी तरह सुनेंगे जैसे क़रीब वाले सुनेंगे और उस वक़्त ये फरमायेंगे कि मैं बदला देने वाला हूं, मैं बादशाह हूं। आज किसी दोज़ख़ी के हक में यह न होगा कि दोज़ख़ में चला जाए और किसी जन्नती पर उसका ज़रा भी कोई हक हो जब तक कि मैं उसका बदला न दिला दूं?

यहां तक कि अगर एक चपत भी जुल्म से मार दिया था तो उसका बदला भी दिला दूंगा। रिवायत करने वाले कहते हैं कि हमने अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल ! बदला कैसे दिलाया जाएगा हालांकि हम नंगे, बेख़ला और बिल्कुल खाली हाथ होंगे ?

जवाब में सरवरे आलम ने इर्शाद फरमाया कि नेकियों और बुराइयों से लेन-देन होगा।

हज़रत अबू हुरैरा (र.अ)से रिवायत है कि जिसने अपने ख़रीदे हुए गुलाम को जुल्म से एक कोड़ा भी मारा था, क़ियामत के दिन उसको बदला दिलाया जाएगा।

मां-बाप भी हक छोड़ने पर राज़ी न होंगे
हज़त अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद (र.अ)ने फ़रमाया कि रसूले करीम (स.व)ने इर्शाद फ़रमाया कि अगर मां-बाप का अपनी औलाद पर क़र्ज़ होगा तो जब कियामत का दिन होगा तो अपनी औलाद से उलझ जाएंगे

कि ला हमारा क़र्ज़ अदा कर। वह जवाब देगा कि मैं तो तुम्हारी औलाद हूं। वे इस जवाब का कुछ असर न लेंगे और मांग पूरी करने पर इसरार करते रहेंगे बल्कि यह तमन्ना करेंगे कि काश! इस पर हमारा और भी ज़्यादा कर्ज़ होता ।

हज़रत उक्बा बिन आमिर(र.अ)से रिवायत है कि आंहज़रत सैयदे आलम (स.व)ने इर्शाद फ़रमाया कि क़ियामत के दिन सबसे पहले मुद्दई व मुद्दआ अलैह दो पड़ोसी होंगे।

कियामत के दिन सभी का हिसाब होगा। हर मज़्लूम के हक में इंसाफ होगा।

हज़रत अबू हुरैरा (र.अ रिवायत फ़रमाते हैं कि आंहज़रत (स.व)ने इर्शाद फरमाया कि तुम ज़रूर-ब-ज़रूर हक वालों को उनके हक क़ियामत के दिन अदा करोगे यहां तक कि बे-सींगों वाली बकरी को जिसे दुनिया में सींगों वाली बकरी ने मारा था सींगों वाली बकरी से बदला दिलाया जाएगा।
( मुस्लिम शरीफ)

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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