निकाह ,मुबाशरत ,हमल, वलीमा के आदाब । Nikah Mubashrat Hamal Walima ke Adaab.

Nikah Mubashrat Hamal Walima ke Adaab.
Nikah Mubashrat Hamal Walima ke Adaab.

निकाह, मुबाशरत, हमल,बीवी की खुसूसियात,ज़ौजेन के हुकूक बीवी और इताअत गुज़ारी, वलीमा, निकाह का ख़ुत्बा निकाह के आदाब

निकाह के अहकाम :-

निकाह करने से निकाह करने वाले का असले मकसूद अल्लाह के हुक्म की तामील होना चाहिए जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद है:

तर्जुमा :- अपनी बेवाओं का निकाह कर दो, उसी तरह नेक लौडियों और गुलामों का निकाह कर दो।

दूसरी जगह इरशादे रब्बानी है:

तर्जुमा :- उन औरतों से निकाह करो जो तुम्हें पसन्द हो, दो दो तीन तीन चार चार। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशादे गिरामी है कि निकाह करो और अपनी औलाद बढ़ाओ, ख्वाह हमल साकित क्योंकि न हो जाए क्योंकि मैं अपनी कसरते उम्मत पर फख़र करने वाला हूँ। इन दोनों आयतों और हदीसों से साबित है कि ज़िना का डर हो या न हो निकाह करना बहरे सूरत वाजिब है।

इमाम अहमद की रिवायत की रू से अबू दाऊद के नज़दीक निकाह का मुतलकन वाजिब है। यानी ज़िना का डर हो या न हो पस वाजिब की अदाएगी की नीयत करने वाले के लिए हुक्मे खुदावंदी की तामील का सवाब होगा। इरशादे खुदावंदी की तामील के साथ साथ अपने दीन की तकमील और हिफाज़त भी मकसूद हो। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशाद है “जिसने निकाह कर लिया उसने अपना निस्फ दीन महफूज़ कर लिया। दूसरा फरमाने नबवी है “जब बन्दे ने निकाह कर लिया तो उसने अपना निस्फ दीन मुकम्मल कर लिया।”

निकाह के लिए ऐसी औरत का इंतेखाब करे जो आली नसब हो, कराबतदार न हो और ऐसी औरत में से हो जो कसीरून नस्ल मशहूर हैं यानी उस खानदान की हो जिस खानदान की औरत के ज़्यादा औलाद पैदा होती हों हज़रत जाबिर बिन अबदुल्लाह रज़ियल्लाहो अन्हो ने जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को बताया कि मैंने बेवा से शादी किया है तो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया तुमने दोशीज़ा से निकाह क्यों नहीं किया कि तूम्हारा बहलाव उससे होता और उसका तुम से।

कसीरून नस्ल होने की शर्त इसलिए है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमायाः बाहम निकाह करो नसलें बढ़ाओ, मैं तुम्हारी कसरत की वजह से दूसरी उम्मतों पर फख़र करूँगा अगरचे बच्चा कच्चा ही हो। बाज़ अहादीस में आया है कि ऐसी औरत से निकाह करो जो बहुत बच्चे पैदा करने बाली और ज़्यादा मेहनत करने वाली हो। मैं तुम्हारी कसरत पर फख़र करूँगा। औरत के कराबतदार यानी रिश्तेदार न होने की शर्त इस लिए है कि अगर बाहम नफ़रत व अदावत हो जाए तो उस कराबत को कत़अ न करना पड़े जिसको जोड़े रखने का हुक्म दिया गया है।

इसी लिए शरीअत ने निकाह के अन्दर दो बहनों को जमा करने से मना फरमाया है। ज़बान दराज, तलाक़ की ख्वास्तगार और बदन गुदवाने वाली औरत से भी निकाह न करना चाहिए निकाह करने के बाद औरत से खुश अखलाकी से पेश आए उसको दुख न दे और उस पर सख़्तीन करें की वो खुलअ की ख्वास्तगारी करें और अपने महर को खुलअ के बदले महसूब कर दे बीवी के वालिदैन को गाली न दे अगर ऐसा करेंगे तो उससे अल्लाह और अल्लाह के रसूल बेज़ार होंगे।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है की औरतों से भलाई करने का मेरा आखिरी हुक्म मानों वह तुम्हारे पास कैदी है बाज अहादीस में आया है कि जो शख़्स किसी औरत से महर के साथ निकाह करे और नीयत महर अदा करने की न हो तो वह क़यामत के दिन जानी की हालत आएगा, औरत अगर अपनी ज़बान दराज़ी से शौहर को दुख पहुँचाये तो मर्द को चाहिए किउस औरत से अलाहिदा हो जाए या अल्लाह की तरफ रूजू करे और तजर्रुअ व जारी के साथ दुआ करे, अल्लाह उसके काम को पूरा कर देगा और अगर उस रंज और दुख में सब्र करेगा तो रहे खुदा में जिहाद करने वाले की तरह होगा। अगर औरत ब रजा व रगबत जब्र के बगैर अपने कुछ माल शौहर को दे दे तो खुशी से लेना चाहिए। उसका खाना मर्द के लिए जाइज़ है।

बीवी पसन्द ना पसन्द करने का मसला :-

मुनासिब है कि निकाह से पहले औरत का चेहरा और ज़ाहिरी बदन देख ले यानी मुँह और हाथों को अच्छी तरह देख लें ताकि बाद को मुफारिकत या तलाक़ की नौबत न आए क्योंकि? तलाक़ और मुफारिकत अल्लाह तआला के नज़दीक मकरूह और ना पसन्दीदा है हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि अल्लाह तआला के नज़दीक मुबाह चीजों में तलाक़ सबसे ना पसन्दीदा चीज़ है।

औरत के चेहरे वगैरह को देख लेने के सिलसिले में असल दलील यह हदीस है, हुज़ूरे अकदस सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया अगर तुम में किसी के दिल में किसी औरत को पैग़ाम भेजवाने का इरादा अल्लाह तआला पैदा कर दे तो पहले उस औरत के चेहरे और दोनों हथेलियों को देख लेना चाहिए। यह सूरत आपस में मोहब्बत पैदा करने के लिए निहायत मुनासिब है।

हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जब तुम में कोई किसी औरत को निकाह का पयाम दे तो अगर उस औरत के उन आजा का देखना मुमकिन हो जो निकाह की तरफ रग़बत दिलाते हैं देख ले। हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहो अन्हो कहते हैं कि मैंने एक लड़की को निकाह का पैग़ाम दिया और छुप कर उतना हिस्सा भी देख लिया जिसने मुझे निकाह करने पर आमादा किया था। अबू दाऊद ने यह रिवायत अपनी सुनन में नक़्ल की है।

बीवी की खुसूसियात :-

औरत को दीनदारी और ज़ी फ़हम होना चाहिए। हज़रत अबू हरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो रिवायत करते हैं। की आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया औरत से निकाह चार खूबियों के पेशे नज़र किया जाता है दौलत, हुस्न, आली नसबी और दीनदारी। कामयाबी उस शख़्स की है जो महज़ दीनदारी की बिना पर औरत से निकाह करता है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने दीनदार औरत से निकाह करने की सराहत इस लिए फरमाई है कि दीनदार औरत शौहर की मददगार होती है और थोडी रोज़ी पर कनाअत कर लेती हैं। इसके बर ख़िलाफ़ दीनदारी से खाली औरतें गुनाह और मुसीबत में मुब्तला कर देती हैं। ऐसी औरतों से वही बचता है जिसे अल्लाह तआला बचाये।Nikah Mubashrat Hamal Walima ke Adaab.

अल्लाह तआला का इरशाद हैः यानी अब उनसे मुबाशरत करो और अल्लाह तुम्हारे लिए जो कुछ लिख दिया है उसकी तलब करो, इस आयते करीमा की तफ़सीर में अकसर मुफस्सिरीन ने कहा है कि मुबाशिरत से मुराद जिमाज़ और इबतगा से मुराद तलबे औलाद है, औरत के लिए भी यही मुनासिब है कि निकाह करने में उसका मकसूद भी अपनी इसमत का तहफ्फुज़, औलाद की तलब और अल्लाह की तरफ से दिया हुआ अजरे अज़ीम हो। वह इसी नीयत से शौहर की कुरबत में रहकर हमले विलादत और औलाद की परवरिश को सब्र से बरदाश्त करे। निकाह का बयान।

हज़रत ज़ियाद बिन मैमून ने हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहो अन्हो का कौल नक़्ल किया है कि मदीना की रहने वाली एक इत्र फरोश औरत जिसका नाम हौला था, हज़रत आईशा की खिदमत में हाजिर हुई और अर्ज किया, उम्मुल मोमिनीन मेरा शौहर फ्लॉ शख्स है। मैं हर रात इत्र लगाकर और सिंगार शबे ज़फाफ की दुलहन की तरह हो जाती हूँ। जब वह आकर अपने बिस्तर में लेट जाता है तो मैं भी उसके लिहाफ में घुस जाती हूँ। इन कामों से मेरा मकसूद अल्लाह तआला की रजामन्दी होता है मगर मेरा शौहर मेरी तरफ से मुँह फेर लेता है मेरे ख़्याल में उसको मुझ से नफ़रत है, हजरत आएशा रज़ियल्लाहो अन्हा ने फरमाया बैठ जाओ।

रसूलुल्लाह तशरीफ ले आयें उस असना में सरवरे काएनात सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम तशरीफ ले आए और फ़रमाया यह खुशबू कैसी है? क्या हौला आई है? क्या तुम ने इससे कुछ ख़रीदा है? हज़रत आएशा रज़ियल्लाहो अन्हा ने अर्ज किया या रसूलल्लह, बखुदा मैंने कुछ नहीं खरीदा है, फिर हौला ने अपना किस्सा अर्ज किया, हुज़ूर गिरामी ने फ़रमाया, जा उसकी बात सुन और उसका हुक्म मान! हौला ने अर्ज किया या रसूलल्लाह मैं ऐसा ही करूँगी मुझे इसका क्या सवाब मिलेगा? आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया जो औरत अपने खाविन्द की आरास्तगी और दुरुस्ती के लिए कोई चीज उठा कर रखती है,

उसके एवज उसको एक नेकी का सवाब मिलता है और उसका एक गुनाह माफ कर दिया जाता है और एक दर्जा बलन्द कर दिया जता है और जो हामला औरत हमल की कोई तकलीफ बरदाश्त करती है उसके लिए काइमुल लैल और साइमुन नहार और अल्लाह तआला की राह में जिहाद करने वाला अजर मिलता है और जब उसे दर्द ज़ेह लाहक होता है तो हर दर्द के एवज़ उसको एक जान (गुलाम) आज़ाद करने का सवाब मिलता है और जब बच्चा माँ की पिस्तान से दूध का चुसकी लेता है तो हर चुसकी के एवज उस औरत को इस कदर सवाब मिलता है जितना गुलाम को आज़ाद करने का।

जब औरत अपने बच्चे का दूध छुड़ाती है तो आसमान से निदा आती है ऐ औरत तूने माज़ी के सब काम पूरे कर दिए अब जो ज़माना बाकी है उसका काम शुरू कर। यानी पिछली ज़िन्दगी के सारे गुनाह माफ हो गए अब अज़ सरे नौ ज़िन्दगी शुरू कर।

हज़रत आएशा रज़ियल्लाहो अन्हा यह सुन कर अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह मर्दों का सवाब का क्या हाल है औरतों को तो इस कदर सवाब का हिस्सेदार बना दिया गया? यह सवाल सुनकर हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने तबस्सुम फरमाया और इरशाद किया की जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है अल्लाह तआला उसके लिए एक नेकी लिख देता है। जब मर्द प्यार से औरत के गले में हाथ डालता है उसके हक़ में दस नेकियाँ लिखी जाती हैं और जब वह औरत के साथ मुबाशरत करता है तो दुनिया व माफीहा से बेहतर हो जाता है। और जब गुस्ल (जनाबत) करता है बदन के जिस बाल पर से पानी गुज़रता है उस हर बाल के एवज़ उसकी एक नेकी लिखी जाती है और एक गुनाह कम कर दिया जाता है और एक दर्जा ऊँचा कर दिया जाता है और गुस्ल के एवज़ जो कुछ सवाब उसको दिया जाएगा वह दुनिया और माफीहा से बेहतर होगा। अल्लाह तआला उस पर फख़र करता है और फरिश्तों से कहता है कि मेरे बन्दे की तरफ देखो कि इस सर्द रात में गुस्ले जनाबत के लिए उठा है। इसे मेरे परवरदिगार होने का यकीन है। तुम भी इस बात पर गवाह रहना कि मैंने इसे बख़्श दिया।

इब्ने मुबारक बिन फुज़ाला ने इमाम हुसैन रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, औरतों के साथ भलाई करने की मेरी वसीयत मानों वह तुम्हारे पास कैद हैं, खुद मुखतार नहीं हैं, तुमने उनको अल्लाह तआला की अमानत के तौर पर हासिल किया है और अल्लाह के हुक्म से उनके शर्मगाहों को अपने लिए हलाल बनाया है।

अबादा बिन कसीर ने ब हवाला अब्दुल्लाह, उम्मुल मोमिनीन हज़रत मैमूना रज़ियल्लाहो अन्हा से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मेरी उम्मत के मर्दों में बेहतरीन मर्द वह हैं जो अपनी औरतों के साथ अच्छा सुलूक करता है और मेरी उम्मत की औरतो में सबसे बेहतर वोह औरत है जो अपने शौहर के साथ अच्छा सुलूक करती है। ऐसी औरत को रात दिन में ऐसे एक हजार शहीदों का सवाब मिलता है। जो खुदा के राह में सब्र के साथ शहीद होते हैं और उसके अज्र की उम्मीद अल्लाह से रखते है।

उन औरतों में से हर औरत जन्नत की हुरे ऐन पर ऐसी ही फज़ीलत रखती है जैसी मोहम्मद को तुममें से अदना मर्द पर। मेरी उम्मत की औरतों में वह औरत सब से बेहतर है जो अपरे शौहर की उसकी ख़्वाहिश के मुताबिक फरमांबरदारी करती है, गुनाहों के कामों के सिवा। फरमाया मेरी उम्मत के मर्दों में बेहतर वह मर्द है जो अपने अहल के साथ उसी तरह मेहरबानी से पेश आता है जिस तरह एक मां अपने बच्चे के साथ, ऐसे मर्द के लिए हर दिन रात में सब्र व शुक्र के साथ अल्लाह की राह में शहीद होने वाले सौ मर्दों का सवाब लिखा जाता है।Nikah Mubashrat Hamal Walima ke Adaab.

इस मौक़ा पर हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहो अन्हो ने अर्ज किया या रसूल्लाह यह किया बात है कि औरत को हजार शहीदों का सवाब और मर्द को सौ शहीदों का सवाब है हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि तुम को मालूम नहीं कि अजर और सवाब में औरत मर्द से बढ़कर है और अफज़ल है। जन्नत में अल्लाह तआला मर्द के दरजात में मजीद दरजात का इजाफा इस लिए फ़माएगा कि उसकी बीवी उससे खुश है और उसके लिए दुआ करती है।

क्या तुम को नहीं मालूम कि औरत के लिए शिर्क के बाद सबसे बड़ा गुनाह शौहर की नाफरमानी है, ख़बरदार कमज़ोरों के हक़ की बाबत अल्लाह से डरते रहो, अल्लाह तआला उन दोनों के बारे में बाज़ पुर्स करेगा। यतीम और औरत जिसने इन दोनों से भलाई की वह अल्लाह और उसकी रजामन्दी तक पहुंच गया और जिसने इन दोनों से बुराई की वह अल्लाह की ग़ज़ब का सज़ावार हो गया है। शौहर का हक़ बीवी पर ऐसा है जैसा मेरा हक़ तुम पर है जिसने मेरी हक़ तलफी की उस ने अल्लाह का हक़ ज़ाया किया और वह अल्लाह के गज़ब में मुब्तला होकर लौटा, उसका ठिकाना जहन्नम है और जहन्नम बहुत बुरी जगह है।

हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहो अन्हो के हवाले से हज़रत अबू जाफर बिन मोहम्मद बिन अली रजियल्लाहु अन्हु ने बयान किया कि मैं और चन्द बुजुर्ग सहाबा आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाजिर थे कि एक औरत आई और सलाम कहकर आप के सरहाने खड़ी हो गई और अर्ज किया या रसूलल्लाह यहां से काफी मुसाफत पर कुछ औरतें हैं मैं उनकी तरफ से एलची (नुमाइन्दा) बन कर आप की खिदमत में आई हूं और उन की तरफ से यह पैगाम लाई हूं कि मर्दों और औरतों का रब अल्लाह तआला है,

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम मर्दों के बाप थे और औरतों के भी, हव्वा मर्दों की भी मां थीं और औरतों की भी, मर्द जब भी राहे खुदा में मारे जाते हैं तो वह अपने रब के पास ज़िन्दा रहते है और उनको वहां रोजी दी जाती है और जख्मी हो जाते हैं तब भी उनके ऐसा ही सवाब है जैसा कि आप आगाह हैं और हम मर्दो पर (बंधी) बैठी रहती हैं और उनकी ख़िदमत में मशगूल रहती है तो क्या हमारे लिए भी कुछ अज़र है? रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मेरी तरफ से औरतों से सलाम कहना और उनसे कहना कि शौहर की इताअत और उस के हक़ का इकरार मर्दों के जिहाद के सवाब के बराबर है मगर तुम में से कम औरतें ऐसा करती हैं।

हजरत साबित बिन अनस रज़िअल्लाहु अन्हु का बयान है, मुझे औरतों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की खिदमत में भेजा मैंने ख़िदमते अक्दस में हाजिर हो कर औरतों की तरफ से अर्ज किया या रसूलल्लाह! क्या मर्द बुजुर्गी में बढ़ गये है और खुदा की राह में जिहाद करने का अज़र पा गए हम औरतों के लिए किसी ऐसे अमल का तजकिरा नहीं है जिसके बाइस हम अल्लाह की राह में जिहाद करने वालों के अमल की बराबरी कर सकें। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया घर में बैठ कर तुम में से हर एक का काम काज करना खुदा की राह में जिहाद करने वालों के अमल के बराबर है।

हज़रत इमरान बिन हिसीस रज़ियल्लाहो अन्हो फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से दरियाफ्त किया गया की क्या औरतों पर भी जिहाद फ़र्ज़ है फरमाया हां उनका जिहाद गैरत है, वह अपने नफ्सों से जिहाद करती हैं पस अगर वह सब्र करें तो वह जिहाद करने वाली हैं और अगर वह (रोज़ी की कमी व बेशी पर) राज़ी रहेंगी तो वह गोया जिहाद की तैयारी करने वाली है पस औरतों के लिए दोहरा अज़र है। लिहाज़ा मर्द और औरत दोनों के लिए मुनासिब है कि वह सवाब मिलने पर एतकाद रखें। मियां बीवी पर लाज़िम है कि अक्द और जिमाअ के वक़्त के उस सवाब पर भी एतकाद रखें जिस का जिक्र हदीस में आ चुका है।

ज़ौजेन के हुकूक :-

मियां बीवी में से हर एक का हक़ दूसरे पर वाजिब है इस का सबूत इस आयत से होता है तर्जमाः-जैसा तुम्हारा हक़ औरतों पर है ऐसा ही उनका हक़ भी मर्दों पर है। यह बात इस लिए है कि दोनों अल्लाह तआला के फरमां बरदार बन जायें। औरत को यह एतकाद भी रखना चाहिए कि उस के लिए इन्तज़ाम खाना दारी और शौहर की इताअत जिहाद से बेहतर है। हदीस शरीफ में आया है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया औरत के लिए शौहर या कब्र से बेहतर कोई चीज़ नहीं है।

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने यह भी इरशाद फरमाया हां मिसकीन है मिसकीन है वह मर्द जिसकी बीवी न हो, अर्ज़ किया गया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ख्वाह वह मर्द गनी हो आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया हां अगरचे वह माल के लिहाज से गनी हो फिर इरशाद फरमाया मिसकीन है मिसकीन है वह औरत जिस का शौहर न हो. अर्ज किया गया ख्वाह वह मालदार हो हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया अगरचे माल के लिहाज से गनी हो। हमबिस्तरी के चन्द आदाब।

निकाह जुमेरात या जुमा को करना मुसतहब है सुबह की बजाये शाम के वक्त निकाह करना औला व अफज़ल है, ईजाब व कुबूल से पहले खुतबए निकाह पढ़ना मसनून है अगरचे बाद में भी पढ़ा जा सकता है। निकाह में इख़्तियार है कि खुद करे या वकील के मारफत करे, निकाह हो चुके तो हाज़िरीन के लिए यह अल्फ़ाज़ कहना मुसतहब है तर्जमाः-अल्लाह तुम को बरकत दे और तुम पर अपनी रहमत नाजिल फरमाये नेकी और तंदुरुस्ती के साथ तुम को इकट्ठा रखे।

निकाह के बाद :-

निकाह के बाद अगर औरत के घर वाले मोहलत तलब करें तो उनको मोहलत दे दी जाए ताकि इस मुद्दत में वह दुल्हन का सामान दुरूस्त कर लें (जहेज़, सामान आराईश और जेवरात वगैरह)

जब औरत मर्द के घर आये तो इस रिवायत पर अमल करें जिस के रावी हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहो अन्हो हैं वह फरमाते हैं कि एक शख़्स ने उनसे बयान किया कि मैंने एक दोशीज़ा से निकाह कर लिया है और मुझे डर है कि वह मुझे पसन्द नहीं करेगी या न करे, हज़रत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहो अन्हो ने फरमाया है मोहब्बत अल्लाह की तरफ से होती है और नफ़रत शैतान की जानिब से जब तुम बीवी के पास जाओ तो सबसे पहले उसको कहो कि वह तुम्हारे पीछे दो रकाअत नमाज़ पढ़े नमाज़ के बाद तुम इस तरह दुआ करनाः

इलाही मेरे लिये मेरे अहल में बरकत अता फरमा, मुझ से मेरे अहल के लिये बरकत दे, ऐ अल्लाह मुझे इससे और उसको मुझसे रोजी दे। या अल्लाह जब तू हमको यकजा करे या अलग करे तो हुसूले खैर ही के लिये करना। जब बीवी से मुबाशरत करे कि यह दुआ पढ़ेः

आली मर्तबा, अज़मत वाले अल्लाह के नाम से शुरू करता हूं इलाही अगर तूने मुकद्दर कर दिया है कि मेरी पुश्त से यानी कोई औलाद बर आमद हो तो उसको पाकीज़ा नस्ल बना, इलाही शैतान को मुझ से दूर रख और जो औलाद तू मुझे रोज़ी करे उससे भी शैतान से दूर रख।

जिमाअ से फ़रागत के बाद बगैर लब हिलाये दिल में यह दुआ पढ़ेः बिस्मिल्लाह उस अल्लाह के लिये तारीफ है जिसने आदमी को मिट्टी से पैदा किया फिर उसके लिये (बाहम मोहब्बत पैदा करने के लिये) रिश्ता और सुसराल को बनाया और तेरा रब हर चीज़ पर कादिर है।

इस मजमून कि असल वह हदीस है जो कुरैब ने इब्ने अब्बास से रिवायत की है कि आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जब तुम अपनी बीवी के साथ यकजा होने का इरादा करो तो कहो ऐ अल्लाह हमें और उस बच्चे को जो हमें अता करना है, शैतान से दूर रखना है अगर उनके मुकद्दर में बच्चा की विलादत है तो शैतान उस बच्चे को कभी ज़रर नहीं पहुंचा सकेगा।Nikah Mubashrat Hamal Walima ke Adaab.

हमल के ज़माने में :-

हमल जाहिर होने पर मर्द को लाज़िम है कि औरत कि ग़िजा को हराम और हराम के शुबा से भी पाक रखे ताकि बच्चे की पैदाईश इस बुनयिद पर हो कि शैतान की वहां तक रसाई ही न हो सके बल्कि ज़्यादा बेहतर यह है कि हलाल की गिज़ा की पाबन्दी ज़फाफ यानी अव्वल रोज़ की मुबाशरत ही से की जाए ताकि वह खुद और उस की बीवी और बच्चे (पैदा होने वाले) दुनिया में शैतान की दसतरस से और आख़िरत में दोज़ख से महफूज़ रहें।

अल्लाह तआला का इरशाद है।
तर्जुमाः ऐ ईमान वालो! अपनी जानों और घर वालों को दोजख से बचाओ। इस के अलावा बच्चा नेकोकार और वालिदैन का फरमांबरदार और अल्लाह का मुतीअ होता है और यह सब कुछ पाक साफ गिजा की बरकत है।

जिमाअ के बाद :-

जिमाअ से फारिंग होने के बाद औरत के पास से हट जाए और बदन को धोकर नजासत दूर करे और वुजू करे बशर्ते कि यह है कि दोबारा जिमाअ का कस्द हो, अगर कस्द न हो तो गुरुल करे, नापाकी की हालत के ना सोये ऐसा करना मकरूह है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से ऐसा ही मरवी है, अलबत्ता अगर शदीद सर्दी की वजह से नहाना दुशवार हो या हम्माम दूर हो पानी दूर हो या गुस्ल करने में कुछ खौफ हाएल हो तो बगैर गुस्ल के सो जाए और उस वक़्त तक बगैर गुस्ल रहे जब तक यह उज्र दूर न हो जायें (मवाकेअ फराहम होते हुए गुस्ल करे।

जिमाअ के वक्त :-

जिमाअ के वक़्त क़िब्ला रू न हो, पोशीदा जगह पर मुजामेअत करे यानी किसी की नज़र सामने न हो यहां तक की छोटे बच्चे के सामने भी न हो, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से मरवी है आप ने इरशाद फरमाया कि जब तुम में से कोई अपनी बीवी से कुरबत करे तो परदा कर ले, बे परदा होगा तो मलाएका हया की वजह से बाहर निकल जायेंगे और शैतान आ जायेंगे अगर कोई बच्चा हुआ तो शैतान की उसमें शिर्कत होगी, बुजुर्गाने सल्फ से मनकूल है कि जिमाअ के वक़्त अगर बिस्मिल्लाह न पढ़ें तो इस सूरत में मर्द के शर्मगाह से लिपट जाता है और उस मर्द की तरह वह भी जिमाअ करता है।

जिमाअ से पहले औरत को जिमाअ की तरफ रागिब करना मुस्तहसन है अगर ऐसा ना किया जाए जो औरत को ज़रर पहुंचने का अन्देशा है जो अकसर और अदावत और जुदाई तक पहुचा देता है।

उज़्ल करना :-

शर्मगाह से बाहर इंजाल करना जाएज़ नहीं है, अगर औरत आज़ाद है तो उसकी इजाज़त लेना जरूरी है और अगर वह किसी की बांदी हो तो उसके आका की इजाज़त जरूरी है। अगर खुद अपनी बांदी है तो इजाजत लेने की जरूरत नहीं उसको खुद इख्तियार है। एक शख़्स ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होकर अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह मेरी एक बांदी है जो हमारी खिदमतगार भी है मैं उससे मुजामेअत करता हूं मगर उसका हामला होना मुझे पसंद नहीं है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अगर चाहो तो उज़्ल कर लिया करो लेकिन जो उसके लिए मुकद्दर हो चुक है उस को ज़रूर मिलेगा। हमल के दौरान हमबिस्तरी करना।

जिमाअ से परहेज़ :-

हैज़ व निफास की हालत में जिमाअ से परहेज़ करना चाहिए एक कौल के लिहाज़ से हैज का खून खत्म होने के बाद गुस्ल से पहले जिमाअ नहीं करना चाहिए और निफास की सूरत में निफास के चालीस रोज गुजरने से पहले अगर खून का आना बन्द हो गया है तब भी जिमाअ न करना मुस्तहब है, औरत को अगर गुस्ल के लिए पानी न मिले तो तयम्मुस कर ले। अगर हैज़ निफास की इस मुद्दत के अन्दर जिमाअ किया तो एक रिवायत के ब मौजिब एक या निस्फ दीनार बतौर कफ़्फ़ारा खैरात करे और दूसरी रिवायत्त के लिहाज़ से (कफ्फारा मुकर्रर नहीं। बल्कि) अल्लाह से तौबा और इस्तिगफार करे और आइन्दा ऐसा न करने का अहद करे।

औरत के गैर मखसूस मकाम में जिमाअ नहीं करना चाहिए, आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया है कि मलऊन है वह शख़्स जो औरत से लिवातत करता है।

औरत की ख़्वाहिशे जिमाअ :-

अगर मर्द को जिमाअ की ख्वाहिश न हो तब भी तर्के जिमाअ जाएज नहीं है क्योंकि इस मामला में औरत का भी हक़ है। और तर्के जिमाअ से औरत को जरर पंहुंचने का अंदेशा है क्योंकि औरत की ख्वाहिश जिमाअ मर्द की ख़्वाहिश से बहुत ज़्यादा होती है, हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो तआला अन्हो की रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया “औरत की ख़्वाहिलं जिमाअ मर्द की ख़्वाहिश जिमाअ से (99) दर्जा जाएद है मगर अल्लाह ने उस पर हया के मुसल्लत फरमा दिया है यह भी कहा गया है कि शहवत यानी ख़्वाहिशे जिमाअ के दस हिस्से हैं उसमें नौ हिस्सा औरतों के लिए है और एक मर्दों के लिए।

बगैर उज़र के चार माह से ज्यादा औरत से अलग रहना जाएज़ नही अगर चार माह से ज़्यादा मुद्दत गुज़र जाये तो औरत जुदाई का मुतालबा कर सकती है। अगर मर्द सफर में छः माह से ज्यादा रहे तो और औरत उसको वतन वापस बुलाने और मर्द कुदरत रखने के बावजूद जाने से इन्कार करे उस सूरत में औरत हाकिम से तफरीक (अलाहिदगी) की ख्वाहिश करे तो हाकिम दोनों में तफरिक करा दे।

‘हज़रत उमर रज़िअल्लाहो तआला अन्हो ने जिहाद के सफर पर जाने वालों के लिए में मुद्दत मुकर्रर फरमायी थी यानी चार माह सफर में रहे और चार माह घर पर रहे दो दो माह सफर में आमद व रफ़्त के रखे गये थे।

बुराई से बचाव :-

अगर गैर औरत को देखकर उसका हुस्न पसन्द आये उसकी तरफ रगबत हो। तो घर आकर अपनी बीवी से कुरबत करे ताकि जोशे सहवानी का हैजान खत्म हो जाये एक रिवायत में आया है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि अगर किसी को कोई अजनबी औरत अच्छी लगे तो अपनी बीवी से कुरबत करे क्योंकि औरत की शक्ल में शैतान उसके सामने आने जाने लगता है। अगर अपनी बीवी न हो तो अल्लाह की तरफ रूजू करे और उसी से गुनाह से महफूज़ रखने की दरख्वास्त करे, शैतान मरदूद से उसी की पनाह मांगे।

राज़ की बातों का बयान न करना :-

अपनी बीवी से जिमाअ करने की हालत व कैफियत का किसी से तज़किरा करना मर्द के लिए जाएज़ नहीं, न औरत के लिए जाएज़ है कि वह किसी दूसरी औरत से इसका ज़िक्र करे यह रज़ालत और छिछोरापन है अकलन व शरअन भी बुरा है हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो अल्लाहो तआला अन्हो से एक तवील हदीस मरवी है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मर्दो की तरफ मुतवज्जह हो कर फ़रमाया कि क्या तुम में कोई शख़्स ऐसा है कि जो बीवी से जिमाअ करता है और दरवाज़ा बन्द कर लेता है और अपने ऊपर परदा डाल लेता है और अल्लाह तआला के हुक्म के मुताबिक परदे में छुप जाता है, सहाबा किराम रज़ियल्लाहो अन्हुम ने अर्ज किया जी हां या रसूलुल्लाह ऐसे लोग हैं, तब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया क्या तुम में कोई ऐसा शख्स भी है कि जो अपने इस फेअल को लोगो में बयान करता फिरे कि मैंने ऐसा किया! वैसा किया।

यह सुन कर लोग ख़ामोश हो गये, इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने औरतों की तरफ मुतवज्जा होकर फ़रमाया क्या तुम में कोई औरत ऐसी है जो (इस राज़ को) बयान करती है औरतें ख़ामोश रहीं लेकिन एक जवान औरत ज़ानू के बल खड़े हो कर और आगे बढ़कर अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ऐसी बातें मर्द भी करते है और औरतें भी करती हैं। तब आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो मर्द या औरतें ऐसी बाते करती हैं उनकी मिसाल ऐसी है कि जो एक शैतान एक शैतानिया से किसी गली में मिला और उससे जिमाअ कर लिया और लोग उनको देखते रहे ख़बरदार !! मर्दों की खुशबू वह है जिस की बू फैलती है रंग जाहिर नहीं होता और औरतों की खुशबू एक ऐसी चीज़ है जिस का रंग तो नुमाया होता है मगर बू नहीं फैलती।

Nikah Mubashrat Hamal Walima ke Adaab.

शौहर की इताअत गुज़ारी :-

अगर कोई मर्द अपनी बीवी को अपनी ख़्वाहिश पूरी करने (जिमाअ) के लिए बुलाये और वह न माने तो वह अल्लाह की ना फरमान होगी और उस पर गुनाह होगा। हजरत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो फरमाते है कि आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जो औरत अपने शौहर को उसके काम (जिमाअ) से रोक देती है उस पर दो कीरात गुनाह होता है और जो मर्द अपनी औरत की हाजत पूरी नही करता उस पर एक कीरात गुनाह होता है।

बाज़ हदीसो में वारिद है कि अगर शौहर अपनी हाजत पूरी करने के लिए औरत को बुलाये तो उसे फौरन आ जाना चाहिए ख़्वाह वह तंवर पर ही क्यों न हो हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो की रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः अगर तुम में से कोई अपनी बीवी को बिस्तर पर बुलाये और वह न आये और मर्द तमाम रात ग़म व गुस्से में बसर करे तो फरिश्ते सुबह तक उस औरत पर लानत भेजते रहते हैं।

शौहर का मरतबा :-

हज़रत कैस बिन सअद रज़ियल्लाहो अन्हो का बयान है कि मैं हीरा गया वहां मैंने लोगों को देखा की वो अपने बादशाह को सजदा करते हैं, जब मैं मदीना मुनव्वरा लौट कर आया और ख़िदमते गिरामी हाज़िर हुआ तो मैंने कहा या रसूलल्लाह ! आप तो सजदा किये जाने के ज़्यादा मुस्तहिक है हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया बताओ कि अगर तुम मेरी कब्र की तरफ से गुज़रोगे तो क्या मेरी कब्र को सजदा करोगे? मैंने अर्ज किया कि नहीं! फरमाया तो ऐसी सूरत में मुझे भी सजदा न करो, फिर हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर मैं चाहता कि किसी को सजदा किया जाये तो औरतों को हुक्म देता कि वह अपने शौहरों को सजदा किया करें क्योंकि अल्लाह तआला ने औरतों पर मर्दों के बहुत से हुकूक मुकर्रर फरमाये हैं। हालते हैज़ में औरत अछूत क्यों?

औरतों के हुकूक :-

हज़रत हकीम बिन माविया कुशैरी रहमतुल्लाह अलैहि कहते हैं कि मेरे वालिद ने आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से दरयाफ्त किया कि हम पर हमारी बीवीयों का क्या हक़ है? आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब तुम खाना खाओ तो औरत को भी अपने साथ खिलाओ। तुम पहनो तो उसे भी पहनाओ। (मार से) उसके चेहरे को न बिगाड़ो उससे अलाहिदगी इख़्तियार न करो अगर औरत नशूज (कुरबत और मुजामेअत से इन्कार) पर अड़ी हुई है या राज़ी भी हो तो झगड़े और नागवारी के साथ तो अव्वल शौहर उसे नसीहत करे अल्लाह के अज़ाब से डराये अगर वह फिर भी अपनी ज़िद पर कायम रहे तो ख़्वाबगाह में उसको तन्हा छोड़ दें और तीन रोज़ से कम तक कलाम करना भी तर्क कर दे इस तरह अगर वह बाज़ आ जाये तो फब्बेहा वरना फिर उसको मारने का हक़ है लेकिन इस तरह कि जर्ब का निशान न उभरे दुर्रे या कोड़े न मारे क्योंकि औरत को मारने से गरज़ उस का हलाक करना नहीं है बल्कि मकसूद यह है कि वह सरताबी से बाज आ जाये और फरमा पजीर बन जाये अगर इस तरह भी वह बाज़ न आये तो फिर औरत अपने करावतदारों से एक शख़्स और मर्द अपने अज़ीज़ों से एक शख़्स को अपना वकील और पंच मुकर्रर कर ले और दोनों पंच मामला गौर करे और जैसी मसलेहत हो ख़्वाह सुलह या तफरीके माल के साथ हो या बगैर माल के अपना फैसला दे दें उनका फैसला जौजेन के लिए कतई होगा। (दोनों को इस की तामील करनी होगी)

दावते वलीमा :-

दावते वलीमा कब करना चाहिए शादी का वलीमा मुस्तहब है। सुन्नत यह है कि कम अज़ कम एक बकरी ज़िब्ह की जाये वलीमे में हर किस्म का खाना देना जायज़ है (यानी किसी खाने की तख़्सीस नहीं है) अगर पहले दिन वलीमा की दावत दी जाये तो कबूल करना वाजिब है दूसरे दिन की दावत कबूल करना मुस्तहब है और तीसरे दिन मुबाह मगर तीसरे दिन की दावत कबूल करना एक तरह का सुबुकपन है।

कम अज़ कम एक बकरी जिव्ह करने की दलील यह है कि आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने हज़रत अब्दुर्रहमान रज़ियल्लाहो अन्हो से फ़रमाया था। कि वलीमा करो ख़्वाह एक ही बकरी का (इस सिलसिला में) यह भी फरमाया था कि अव्वल दिन वलीमा करना हक़ है दूसरे दिन करना शोहरत और इसके बाद सुबकी का बाइस।

हज़रत इब्ने उमर रजिअल्लाहो अन्हो से यह हदीस मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जिस को शादी के दिन वलीमा की दावत दी जाये वह कबूल कर ले अगर रोज़ा न हो तो खाना खा ले और रोज़ादार हो तो बगैर खाये वापस चला आये। (शिरकत बहरहाल करे)

निकाह में छुहारे लुटाना :-

निकाह के बाद छुहारे लुटाना मकरूह है क्योंकि इसमें छिछोरापन है कम जर्फी और सिफला पन का अन्दाज़ पाया जाता है लूट ही हिरसे नफ़्स है इस लिए इससे बचना औला है और अज़रूये तकवा व परहेज़गारी इसको तर्क करना ही मुनासिब है मगर एक दूसरी रिवायत में इसको मकरूह नहीं बताया गया है क्योंकि रिवायत में आया है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने एक ऊँट की कुरबानी फरमायी और गरीबों और मिस्कीनों को बुला कर फरमाया जो चाहे इसका गोश्त काट कर ले जाये, निछावर में और इसमें कोई फर्क नहीं है सबसे बेहतर यह है कि हाजरीन में तकसीम कर दे इस लिए यह फेअल ज़्यादा पसन्दीदा, निहायत हलाल और परहेज़गाराना अमल है।

निकाह का तरीका और शरायत :-

निकाह के शरायत यह हैं कि पहले वली आदिल मौजूद हो, गवाह भी आदिल हो, जौजैन हम कुफू भी हो, कोई मुरतद न हो, औरत इद्दत में न हो, गरज कोई मानेअ न हो। निकाह करने वाला औरत से निकाह की रजामन्दी हासिल करे, बशर्ते कि उस पर जब्र न किया गया हो यह शर्त इस सूरत में है कि औरत रांड हो या ऐसी बाकरा जिसका बाप ज़िन्दा न हो या उसके तरफदारो ने उसको महर की तादाद बता दी हो ।

Nikah Mubashrat Hamal Walima ke Adaab.

जब औरत इज़्न दे दे तो निकाह ख़्वां खुतबा (निकाह) पढ़े और अल्लाह से खुद भी इस्तिगफार करे मुस्तहब यह है कि औरत के वली से खुत्बा पढ़वाया जाये फिर वली को चाहिए कि निकाह करने वाले से कहे कि मैंने अपनी लड़की की या बहन की (जैसी भी सूरत है) तेरे निकाह में दी है जिसका नाम यह है इसके बाद तय शुदा मिकदार महर की बताए उसके जवाब में नाकेह कहे कि मैनें यह निकाह कबूल किया, जो शख़्स अरबी नही जानता उसका निकाह उसी की ज़बान (मादरी ज़बान) में पढ़ाया जाये। जो शख़्स अच्छी तरह अरबी नहीं जानता निकाह के लिए उस का अरबी सीखना ज़रूरी है या नही इस सिलसिला में दो कौल हैं एक रिवायत है कि नाकेह को अरबी ज़बान सीखना लाज़िम है और दूसरी रिवायत में लाज़िम नहीं है। नाकेह को अरबी ज़बान सीखना लाज़िम है और दूसरी रिवायत में लाज़िम नहीं है।

खुतबए निकाह :-

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद का खुत्बा पढ़ना मुस्तहब है, एक रिवायत में आया है कि इमाम अहमद बिन हंबल निकाह की मजलिस में जाते और वहां हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद का ख़ुत्बा नहीं पढ़ा जाता तो आप उस मजलिस को छोड़कर चले आते मुझे हज़रत इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहो अन्हो का खुत्बा मुनदर्जा जैल सिलसिलए रिवायत से पहुंचा है। ग़ुस्ल कब फर्ज़ होता है।

शैख इमाम हिब्तुल्लाह बिन मुबारक बिन मूसा सकफी ने बगदाद में बहवालए काजी मुज़फ़्फ़र हिनाद बिन इब्राहीम बिन मुहम्मद बिन नसर नस्फी बयान फ़रमाया काज़ी मुज़फ़्फ़र ने बहवालए काज़ी अबू उमर कासिम बिन जाफर बिन अब्दुल वाहिद हाशमी बसरी बयान फरमाया और काज़ी अबू उमर ने बहवालए मोहम्मद बिन अहमद लोलवी से और लोलवी ने बहवालए अबू दाऊद और अबू दाऊद ने बहवालए मोहम्मद बिन सुलैमान अंबारी मुफ़्ती और मोहम्मद बिन सुलैमान बहवालए वकीअ और वकीअ ने इस्राफील से सुना और इस्राफील ने अबू इस्हाक से और अबू इस्हाक ने अबीइल हूस से बहवालए अबू ऊबैदा और अबू ऊबैदा ने बहवालए हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद बयान किया। हज़रत इब्ने मसऊद ने रज़ियल्लाहो अन्हो फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने हम को यह खुत्बा निकाह सिखाया।

तर्जुमाः-अल्लाह के लिए ही तमाम तारीफें हैं, हम उसी की हम्द व सना करते हैं और उसी से मदद मांगते हैं और उसी से माफी चाहते हैं। अपने नफ़्सों और अपनी बद आमालियों से उसकी पनाह मांगते हैं जिसको वह हिदायत कर दे उसको कोई गुमराह नहीं कर सकता और जिसको वह गुमराह छोड़ दे उसको राहे रास्त पर लाने वाला कोई नहीं है मैं शहादत देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और गवाही देता हूं कि मोहम्मद अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं ऐ लोगों अपने उस रब से डरो जिसने तुमको एक शख़्स से पैदा किया उसी से उसके जोड़े को पैदा किया और दोनों से बहुत मर्द और औरतें पैदा कीं।

और अल्लाह से डरो जिस के वास्ते से तुम से सवाल करते हो (रिश्ता मांगते हो) सिला रहमी के कतअ करने से बचते रहो बिला शुबा अल्लाह तुम्हारा निगरां है ऐ अहले ईमान अल्लाह से डरो और पक्की बात कहो अल्लाह तुम्हारे आमाल तुम्हारे लिये दुरूस्त कर देगा और तुम्हारे गुनाह माफ फरमा देगा जो अल्लाह और उसके
रसूल का हुक्म मानेगा उसको बड़ी कामयाबी हासिल होगी। मुस्तहब है कि इसके बाद यह पढ़े

अपनी बेवाओ और नेकोकार, गुलामों और बांदियों का निकाह कर दो अगर वह मिसकीन वफादार हैं तो अल्लाह अपने फ़ज़ल से उनको गनी कर देगा अल्लाह बड़ी कशाईश वाला है और खूब जानने वाला है वह जिस को चाहता है बेहिसाब रिज़्क देता है।

इस मजकूरा खुत्बा के अलावा अगर कोई यह खुत्बा पढ़े तो इसका पढ़ना भी जाएज़ है। अल्लाह तआला के लिए सना है जो अपने इनामात में यगाना व यकता और बख़्शिश में बड़ा सखी है अपने नामों से मुमताज़ है अपनी बुजुर्गी में यकता व अकेला है बयान करने वाले उस की शान बयान नहीं कर सकते और ना उसकी सिफात का इज़हार करने वाले हक्के नअत अदा कर सकते हैं।

अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं वह वाहिद बेनियाज़ है वही माबूद है उसके मिस्ल कोई चीज नहीं, वह खूब सुनता और देखता है, बा बरकत है वह अल्लाह जो गालिब है और गुनाहों का बख़्शने वाला है उसने मुहम्मद को बरहक बरगुज़ीदा और ख़राबियों से पाक नबी बना कर भेजा, आप रौशन चिराग और चमकता दमकता नूर थे आप ने वह पैगाम पहुंचा दिया जिसके पहुंचाने के लिए आप भेजे गए थे। आप पर और उनकी तमाम आल पर दुरूद व सलाम हो। यह तमाम उमूर अल्लाह के हाथ में हैं।

वही उनके रास्तों पर उन को चलाता और मुनासिब मकामात जारी फरमाता है वह जिस चीज़ को पीछे कर दे उसको कोई आगे बढ़ाने वाला नहीं है और जिस चीज़ को आगे कर दे उसको कोई पीछे करने वाला नहीं है बगैर अल्लाह के हुक्म और तकदीर के दो भी जमा नहीं हो सकते हर फैसले का पहले से अन्दाजा है और हर अन्दाजे मुद्दत लिखी हुई है अल्लाह जिस बाकी रखता है उसी के पास असल किताब है।

खुत्वा पढ़ने के बाद कहे कि अल्लाह के हुक्म और उस के कज़ा व कुद्र के मुताबिक फ्लां दिन फलां (नाम ले) तुम्हारी खातून (बहन या बेटी) से निकाह करना चाहता है और बरमती बातिर तुम्हारी इस खातून से निकाह करने आया है यह मुर्कुररा महर भी अदा कर चुका है पस तुम इस दरख्वास्त गुज़ार से जो निकाह का तालिब है निकाह कर दो। अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है:

तर्जमाः-तुम अपनी बेवाओ, गुलामों और बांदियों में से जो नेक हैं उनका निकाह कर दो अगर वह मोहताज हैं तो अल्लाह तआला अपने फ़्ल से उन्हें मालदार कर देगा यकीनन अल्लाह कशाईश वाला और जानने वाला है।
ख़ुत्बा से फारिग होने के बाद मजकूरा बाला तरीक़े से निकाह बाधं दे।

अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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