यह सौ फीसद पक्की बात है कि जहाँ निकाह नहीं होगा वहाँ बदकारी होगा। इसलिए शरीअत ने निकाह की अहमियत को वाज़ेह किया है।
आज जिस समाज में निकाह से फरार इख़्तियार करते हैं यानी निकाह करने से बचते हैं, आप देखिये वहाँ जिन्सी तस्कीन के लिए बदकारी (देह व्यापार) के अड्डे खुले होते हैं ।
इस्लामी शरीअत ने इस बात को नापसन्द किया कि इनसान गुनाहों भरी ज़िन्दगी गुज़ारे। इसलिए कहा गया कि तुम निकाह करो ताकि तुम्हें अपने आपको पाकबाज़ रखना आसान हो जाये।Nikah aur Mehar ki Ahmiyat.
अगर निकाह का हुक्म न दिया जाता तो मर्द औरत को सिर्फ एक खिलौना समझ लेते। औरत अपने लिए कोई मकाम न रखती, उसकी ज़िम्मेदारी उठाने वाला कोई न होता। शरीअत ने कहा, अगर तुम चाहते हो कि इकट्ठे रहो तो तुम्हें उसकी ज़िम्मेदारियों का बोझ भी उठाना पड़ेगा। निकाह का बयान।
निकाह एक मुआहिदा है जो मियाँ और बीवी में तय पाता है। इस मुआहिदे में अगर कोई औरत अपनी तरफ से कुछ शर्तें रखना चाहे तो शरीअत के हिसाब इसकी गुंजाईश है।
मिसाल के तौर पर वह कहे कि मुझे अच्छे मकान की ज़रूरत है, मुझे महीने के इतने ख़र्च की ज़रूरत है। वह कहे कि मैं निकाह तब करूँगी अगर तलाक़ का हक़ मुझे दिया जाये। शरीअत ने उसको इजाजत दी है कि वह निकाह से पहले अपनी शर्तों को मनवा सकती है।
लेकिन जब निकाह हो गया और तलाक़ का हक़ मर्द के पास है या मर्द अपनी मर्जी से ख़र्चा देगा तो अल्लाह की बन्दी अब रोने का क्या फायदा। शरीअत ने निकाह को एक मुआहिदा कहा जबकि हमें उसकी अहमियत का पता ही नहीं होता।Nikah aur Mehar ki Ahmiyat.
आज कल लड़की वाले अपनी सादगी में मारे जाते हैं। मेहर लिखने का वक्त आया तो किसी ने कहा पाँच सौ रुपये, किसी ने कहा पचास काफ़ी हैं। ओ खुदा के बन्दो! पचास काफी नहीं क्योंकि यह एक बच्ची की ज़िन्दगी का मामला है इसे ऐब न समझें।
अगर तुम समझते हो कि कोई बात निकाह से पहले तय कर लेना बेहतर है तो शरीअत ने तुम्हें इसकी इजाज़त दी है।लड़के वालों की यही चाहत होती है कि लड़की वाले मेहर न ही लिखवायें तो बेहतर है। क्यों? ज़िम्मेदारी जो होती है।निकाह से पहले लड़की देखना।
सुनिये और दिल के कानों से सुनिये कि मेहर के मामले में तीन सुन्नतें हैं। आदमी को अपनी हैसियत के मुताबिक इन तीनों में से किसी एक सुन्नत पर अमल कर लेना चाहिए।Nikah aur Mehar ki Ahmiyat.
1:- मेहरे फातिमी, यानी सैय्यादा हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा का हक्के मेहर या फिर सैयदा हज़रत आयशा सिद्दीका का जो हक्के मेहर नबी अलैहिस्सलाम ने अदा फरमाया, उसको बाँध लिया जाये तो यह भी सुन्नत है।
2:- मेहरे – मिस्ल । लड़की के करीबी रिश्तेदारों में आम तौर पर लड़कियों का जो मेहर रखा जाता है उसको “मेहरे मिस्ल” कहा जाता है। उनके बराबर उसका मेहर बाँधना भी सुन्नत है।
3:- लड़की की अक्लमन्दी, नेकी और शराफत को सामने रखते हुए उसके निकाह का मेहर बाँधा जाये, यह भी सुन्नत है। शरीअत ने तीन विकल्प दिये हैं, इनमें से किसी एक को पसन्द कर ले, उसे सुन्नत का सवाब मिलेगा।’
निकाह के वक़्त मेहर मुकर्रर करते हुए कहते हैं कि मेहर ‘मुअज्जल‘ होगा या “मवज्जल” होगा। उजलत का लफ़्ज़ आपने पढ़ा होगा। उजलत का मतलब है जल्दी, तो “मुअज्जल” का मतलब है जल्दी अदा करना। गोया मियाँ बीवी के इकट्ठे होने ( मुलाकात होने) से पहले मेहरे-मुअज्जल अदा करना ज़रूरी है। शौहर नहीं अदा करेगा तो गुनाहगार होगा।Nikah aur Mehar ki Ahmiyat.
मेहर की दूसरी क़िस्म “मवज्जल” है। इसका मतलब है “तलव के वक़्त” यानी जब बीवी उसको तलब करे वह शौहर से ले सकती है,शौहर को ज़ेबा नहीं देता कि हक्के मेहर माफ करवाने के लिए बीवी पर दबाव डाले। हाँ अगर कोई बीवी मेहर की रकम वापस लौटाये तो कुरआन की रू से उस रकम में बरकत होती है ।
हाँ अगर वे बीवियाँ खुशदिली से छोड़ दें तुमको उस मेहर में का कोई हिस्सा, तो तुम उसको खाओ मज़ेदार और अच्छी चीज़ समझकर। बिस्मिल्लाह की बरकतें,
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ऐसी रकम से शहद ख़रीदते और पानी में मिलाकर मरीज़ों को पिताले थे।
शरीअत ने निकाह की तरहीर (ऐलान और प्रचार) करने का हुक्म दिया है। निकाह का प्रचार करो शोहरत करो गुपचुप निकाह न करो।
सुन्नत यह है कि जुमे का दिन हो, जुमे के मजमे में निकाह करे या कोई और बड़ा मजमा हो, उस वक्त निकाह करे। दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलायें ताकि सबके इल्म में आ जाये कि आज के बाद यह लड़का और लड़की अपने नये घर की बुनियाद रख रहें हैं।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…