सवाल :- नमाज़ किस पर फर्ज़ है ?
जवाब :- नमाज़ हर आकिल बालिग पर फ़र्ज़ है, इसकी फ़रज़ियत का इनकार करने वाला काफ़िर है और जो कस्दन (जानबूझ कर) नमाज़ छोड़े अगर्चे एक ही वक़्त की वह फासिक है और जो नमाज़ न पढ़ता हो कैद किया जाये यहाँ तक कि तौबा करे और नमाज़ पढने लगे।
सवाल :- नमाज़ की अहमियत और फ़ज़ीलत बयान कीजिये ?
जवाब : कुरआन मजीद और अहादीसे करीमा में जगह जगह इसकी फजीलतो अहमियत बयान की गई है, अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है यह किताब परहेज़गारों को (के लिये) हिदायत है जो गैब पर ईमान लाते और नमाज़ काइम रखते और हमने जो दिया उसमें से हमारी राह में ख़र्च करते हैं” (पाराः1, रूकूः1)
और फरमाता है नमाज़ काइम करो और ज़कात दो और रूकू करने वालों के साथ रूकू करो” (पाराः1, रूकू:5)
और फरमाता है तमाम नमाज़ों खुसूसन बीच वाली नमाज़ (अस्र) की मुहाफ्ज़त रखो और अल्लाह के हजूर अदब से खड़े हो ” (पाराः 2, रूकुः15)
नमाज़ का बिल्कुल छोड़ देना तो सख़्त हौलनाक चीज़ है। उसे कज़ा करके पढ़ने वालों के बारे में फरमाता है ” खराबी है उन नमाज़ियों के लिये जो अपनी नमाज़ से बेखबर है वक़्त गुज़ार कर पढ़ने उठते हैं” (पारा: 30, रूकुः32)
जहन्नम में एक वादी है जिसकी सख़्ती से जहन्नम भी पनाह माँगता है उसका नाम वैल है जान बूझ कर नमाज़ कज़ा करने वाले उसके मुस्तहिक हैं।
और फरमाता है “ उनके बाद कुछ नाख़लफ पैदा हुये जिन्होंने नमाज़ें ज़ाये कर दीं और नफ्सानी ख्वाहिशों की इत्तिबा की अन्क़रीब वह दौज़ख में गय्य का जंगल पायेंगें ” (पाराः16, रूकुः 7)
ग़य्य जहन्नम में एक वादी है जिसकी गर्मी और गहराई सबसे ज़्यादा है उसमें एक कुआँ है जिसका नाम हबहब है जब जहन्नम की आग बुझने पर आती है अल्लाह तआला उस कुएँ को खोल देता है जिससे वह बदस्तूर भड़कने लगती है।
अहादीसे करीमा मे भी नमाज़ की अहमियत और नमाज़ न पढ़ने पर सख्त वईदें सुनाई गई हैं। उनमें से कुछ हदीसें यहाँ ज़िक्र की जा रही हैं
हदीस :- हज़रत इब्ने उमर रजियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज़ों पर है इस बात की शहादत देना कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा मअबूद नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस के ख़ास बन्दे और रसूल है और नमाज़ काइम करना और ज़कात देना और हज करना और माहे रमज़ान के रोज़े रखना (बुखारी)
हदीस :- हज़रत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया बताओ तो किसी के दरवाज़े पर नहर हो वह उसमें हर रोज़ पाँच बार नहाये क्या उसके बदन पर मैल रह जायेगा? अर्ज़ की न, फ़रमाया यही मिसाल पाँच नमाज़ों की है कि अल्लाह तआला इसके सबब ख़ताओ को मिटा देता है।(बुखारी)
हदीस :- हज़रत उमर रजियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि एक साहब ने अर्ज़ की या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम! इस्लाम में सबसे ज़्यादा अल्लाह के नज़दीक महबूब क्या चीज़ है। फ़रमाया वक़्त में नमाज़ अदा करना और जिसने नमाज़ छोड़ दी उसका कोई दीन नहीं, नमाज़ दीन का सुतून है। (बैहकी)
हदीस :- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि नमाज़ दीन का सुतून है जिसने इसे काइम रखा उसने दीन को काइम रखा और जिसने इसको छोड़ दिया उसने दीन को ढा दिया। (मुनियतुल मुसल्ली)
हदीस :- फरमाने नबवी है कि हर चीज़ के लिये एक अलामत यानी पहचान होती है ईमान की अलामत नमाज़ है। (मुनियतुल मुसल्ली)
हदीस :- हज़रत अबू सईद रजियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जिसने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ी जहन्नम के दरवाज़े पर उसका नाम लिख दिया जाता है। (अबू नईम)
हदीस :- हज़रत नौफल इब्ने मुआविया रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते है कि जिसकी नमाज़ फौत हुई यानी छूट गई गोया (तो ऐसा है कि) उसके अहल व माल जाते रहे। (बुखारी)
सवाल :- नमाज़ की कितनी शर्तें हैं और कौन कौन सी ?
जवाब :- नमाज़ की छः शर्तें हैं
(1) तहारतः यानि नमाज़ी के बदन उसके कपड़े और नमाज़ पढ़ने की जगह का पाक होना।
(2) सत्रे औरतः यानि बदन का वह हिस्सा जिसका छुपाना फर्ज़ है उसको छुपाना।
(3) इस्तिकबाले किब्लाः यानि नमाज़ मे किब्ले की तरफ मुँह करना।
(4) वक़्तः यानि जिस वक़्त की नमाज़ पढ़ी जाये उस नमाज़ का वक़्त होना।
(5) नियतः नियत दिल के पक्के इरादे को कहते है, जुबान से नियत करना मुस्तहब है।
6) तकबीरे तहरीमाः यानि अल्लाहु अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना।
सवाल :- नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा क्या है ?
जवाब :- नमाज़ पढ़ने का तरीक़ा यह है कि बा वुजू काबे की तरफ को मुँह करके दोनें पाँवों के पन्जों में चार उन्गल का फासला करके खड़ा हो और दानों हाथ कानों तक ले जाये इस हाल में कि अंगूठे कान की लौ से छू जायें और उंगलियाँ न मिली हुये रखे और न खूब खोले हुये बल्कि अपनी हालत पर हों और हथेलियाँ काबे की तरफ को हों फिर नियत करके अल्लाहु अकबर कहता हुआ हाथ नीचे लाकर नाफ के नीचे बाँध ले इस तरह कि दाहिनी हथेली की गद्दी बायीं कलाई के सिरे पर हो और बीच की तीन उंगलियाँ बायीं कलाई की पुश्त पर और अंगूठा और डुंगलिया कलाई के अगल बगल हों और सना यानि
“सुब्हा न कल्लाहुम्मा वबि हमदि क वतबा र कसमु क वतआला जददु क वला इला ह गैरुक”. पढ़े फिर तअव्वुज़ यानि अउजुबिल्लाह फिर तसमिया यानि बिस्मिल्लाह पढ़े, फिर सूरह फातिहा (अल्हम्द शरीफ) पढ़े
और ख़त्म पर आहिस्ता से आमीन कहे इसके बाद कोई सूरत या तीन आयतें पढ़े या एक आयत जो कि छोटी तीन आयतों के बराबर हो। अब अल्लाहु अकबर कहता हुआ रूकू में जाये और घुटनों को हाथ से पकड़े इस तरह कि हथेलियाँ घुटने पर हों और उंगलियाँ खूब फैली हों इस तरह नही कि सब उंगलियाँ एक तरफ हों और न इस तरह कि चार उंगलियाँ एक तरफ हों और एक तरफ सिर्फ अंगूठा। और पीठ बिछी हो और सर पीठ के बराबर हो ऊँचा नीचा न हो और कम से कम तीन बार
“सुव्हा न रब्बियल अज़ीम” पढ़े फिर “समि अल्लाहु लिमन हमिदह” कहता हुआ सीधा खड़ा हो जाये और अकेले नमाज़ पढ़ता हो तो इसके बाद “अल्लाहुम्मा रब्बना व लकल हम्द” कहे फिर अल्लाहु अकबर कहता हुआ सजदे में जाये इस तरह कि पहले घुटने ज़मीन पर रखे फिर हाथ फिर दोनों हाथों के बीच मे नाक फिर पेशानी रखे इस तरह कि पेशानी और नाक की हड्डी ज़मीन पर जमाये और बाजुओं को करवटों और पेट को रानों और रानों को पिन्डलियों से जुदा रखे और दोनो पाँवों की सब उंगलियो के पेट किबला-रू जमे हों और हथेलियाँ बिछी हों और उंगलियाँ किबले को हों और कम से कम तीन बार “सूबहा न रब्बियल अअला” कहे फिर सर उठाये फिर हाथ और दाहिना कदम खड़ा करके उसकी उंगलियाँ किबला रूख करे और बायाँ कदम बिछा कर खूब सीधा बैठ जाये और हथेलियाँ बिछा कर रानों पर घुटनों के पास रखे फिर अल्लाहु अकबर कहता हुआ सजदे में जाये और पहले की तरह सजदा करके फिर सर उठाये फिर हाथ को घुटने पर रखकर पंजो के बल खड़ा हो जाये और अब सिर्फ बिस्मिल्लाह पढ़ कर किरात शुरू करदे फिर पहले की तरह रूकू सजदा करके दाहिना कदम खड़ा करके और बायाँ कदम बिछा कर बैठ जाये और यह पढ़ेः
“अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस सलावातु वत तय्यिबातु अस्सलामु अलै क अय्युहन नबिय्यु व रहमतुल्लाहि व ब रकातुहू अस्सलामु अलैना व अला इबादिल लाहिस्सालिहीन अशहदु अल ला इला ह इल्लल्लाहु व अशहदु अन न मुहम्मदन अबदुहू वरसूलुह”. अब अगर दो से ज़्यादा रकअतें पढ़नी हैं तो उठ खड़ा हो और इसी तरह पढ़े मगर फ़र्ज़ी की इन रकअतों में सुरह फातिहा (अल्हम्द शरीफ) के साथ सूरत मिलाना ज़रूरी नहीं। अब पिछला अदा जिसके बाद नमाज़ ख़त्म करेगा उसमें तशहुहुद (अत्तहिय्यात) के बाद दुरूद शरीफ पढ़े। दुरूद शरीफ यह हैः
कुछ और मालुममात:-सीरत-ए-नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक नज़र में |
“अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यिदिना मुहम्मदिन व अला आलि सय्यिदिना मुहम्मदिन कमा सल्लै त अला सय्यिदिना इब्राही म व अला आलि सय्यिदिना इब्राही म इन न क हमीदुम मजीद अल्लाहुम्मा बारिक अला सय्यिदिना मुहम्मदिन व अला आलि सय्यिदिना मुहम्मदिन कमा बारक त अला सय्यिदिना इब्राही म व अला आलि सय्यिदिना इब्राही म इन न क हमीदुम मजीद”.
उसके बाद ये दुआ पढ़ें “अल्लाहुम्मा रब्बना आतिना फिद दुनया हसनतौं व फिर आख़िरति हसनतों व किना अज़ाबन नार”.
फिर दाहिने कन्धे की तरफ मुँह करके “अस्सलामु अलैयकुम व रहमतुल्लाह”. कहे फिर बायीं कन्धे की तरफ मुँह करके इसी तरह कहे।
यह तरीक़ा इमाम या अकेले मर्द के पढ़ने का है, मुक़तदी इसमें की कुछ बातों में अलग है जैसे इमाम के पीछे सूरह फातिहा या और कोई सुरत पढ़ना कि यह मुक़तदी को जाइज़ नहीं। इसी तरह औरतें भी कुछ बातों मे अलग हैं जैसे औरतें तकबीरे तहरीमा के वक़्त हाथ कानों तक न ले जायें बल्कि सिर्फ कन्धों तक उठायें हाथ नाफ़ के नीचे न बाँधें बल्कि बायीं हथेली सीने पर रख कर उसकी पीठ पर दाहिनी हथेली रखें, रूकू में ज़्यादा न झुकें बल्कि सिर्फ इतना झुकें कि हाथ घुटनों तक पहुँच जायें, पीठ सीधी न करें और न घुटनों पर ज़ोर दें, सजदे में जायें तो बाजू करवटों से मिला दें और पेट रान से और रान पिन्डलियों से और पिन्डलियाँ ज़मीन से और कअदे में बायें कदम पर न बैठें बल्कि दोनो पाँव दाहिनी तरफ निकालदें और सुरीन पर बैठें।
सवाल :- नमाज़ में कितने फर्ज़ हैं और कौन कौन से ?
जवाब : नमाज़ में सात फ़र्ज़ हैं
(1) तकबीरे तहरीमाः यानि अल्लाहु अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना।
(2) कियामः यानि नमाज़ में खड़ा होना उसकी कम से कम हद यह है कि अगर हाथ फैलाये तो घूटनों तक न पहुँचें, इतनी देर खड़ा होना फ़र्ज़ है जितनी देर में फर्ज़ की मिकदार किरात की जा सके।
(3) किरातः यानि नमाज़ में कुरान शरीफ का इस तरह पढ़ना कि तमाम हुरूफ अपने मख़रज (जहाँ से हर्फ निकलता है उसे मख़रज कहते हैं) से सही तौर से अदा किये जायें कि हर हर्फ अपने गैर से सही तौर पर मुमताज़ (जुदा) हो जाये।
(4) रूकुः यानि इतना झुकना कि हाथ बढ़ाये तो घुटनों तक पहुँच जायें यह रूकू का अदना (सबसे कम) दर्जा है रूकू का कामिल दर्जा यह है कि पीठ सीधी बिछा दे।
(5) सुजूदः यानि हर रकअत में दो सजदे करना इस तरह कि पेशानी, नाक, दोनों हाथ की हथेलियाँ, दोनों घुटने और दोनों पाँवों की उंगलियाँ और नाक की हट्टी ज़मीन से लग जायें। पेशानी का ज़मीन पर जमना सजदे की हकीकत है।
(6) कअदए अख़ीराः यानि आखिरी कअदा कि जिसके बाद सलाम फेरकर नमाज़ पूरी की जाती है।
(7) खुरूजे बिसुनएहीः यानि अपने इरादे से नमाज़ खत्म करना।
सवाल :- नमाज़ में क्या क्या चीजें वाजिब हैं ?
जवाब :- नमाज़ में यह चीजें वाजिब है। तकबीरे तहरीमा में लफ्ज़े अल्लाहु अकबर कहना, अल्हम्दु पढ़ना उसकी हर एक आयत मुस्तकिल वाजिब है उनमें एक आयत का छोड़ना बल्कि एक लफ्ज़ का छोड़ना भी वाजिब का छोड़ना है, सूरत मिलाना यानि एक छोटी सूरत या तीन छोटी आयतों का अल्हम्दु शरीफ के बाद पढ़ना या एक या दो आयतें जो छोटी तीन आयतों के बराबर हों पढ़ना, सूरह फातिहा का सूरत से पहले होना, किरात के बाद फौरन रूकू करना, एक सजदे के बाद दूसरा सजदा करना, तादीले अरकान (इत्मिनान से अरकान अदा करना) यानि रूकू व सुजूद में व कियाम व जलसें में कम अज़ कम एक बार सुब्हानल्लाह कहने की मिकदार ठहरना, कौमा यानि रूकू से सीधा खड़ा होना, जलसा यानि दानों सजदों के दरमियान सीधा बैठना, कअदए ऊला अगर्चे नमाज़ नफ्ल हो, दोनें कअदों में पूरी अत्तहिय्यात पढ़ना इसी तरह जितने कअदे करने पड़ें सब में पूरी अत्तहिय्यात वाजिब है, एक लफ़्ज़ का छोड़ना भी वाजिब का छोड़ना होगा, लफ़्ज़े अस्सलामु दो बार वाजिब अलैकुम वाजिब नहीं, वित्र में दुआए कुनूत पढ़ना, तकबीरे कुनूत यानि दुआऐ कुनूत से पहले तकबीर कहना, हर फर्ज़ व वाजिब का उसकी जगह पर होना, रूकू का हर रकअत में एक ही बार होना, यानि एक से ज़्यादा रूकू न करना, सुजूद का दो बार ही होना यानि दो से ज़्यादा सजदे न करना।
सवाल :- नमाज़ में क्या क्या चीजें सुन्नत हैं ?
जवाब :- नमाज़ में यह चीजें सुन्नत हैं. तकबीरे तहरीमा के लिये हाथ उठाना और हाथों की उंगलियाँ अपने हाल पर छोड़ना, तकबीर के वक़्त सर न झुकाना और हाथेलियों और उंगलियों के पेट का काबे की तरफ होना, तकबीर से पहले हाथ उठाना इसी तरह तकबीरे कुनूत व तकबीराते ईदैन में कानो तक हाथ ले जाने के बाद तकबीर कहना, औरत को सिर्फ काँधों तक हाथ उठाना, इमाम का अल्लाहु अकबर, समिअल्लाहु लिमन हमिदह और सलाम बुलन्द आवाज़ से कहना, तकबीर के बाद हाथ लटकाए बगैर फौरन बाँध लेना, सना, तअव्वुज़ और तसमिया पढ़ना और आमीन कहना और इन सबका आहिस्ता होना, पहले सना पढ़ना फिर तअव्वुज़ फिर तसमिया और हर एक के बाद दूसरे को फौरन पढ़ना, रूकू में तीन
बार सुव्हा न रब्बियल अज़ीम कहना और घुटनों को हाथों से पकड़ना और उंगलियाँ खूब खुली रखना, औरत को घुटने पर हाथ रखना, और उंगलियाँ खुली हुई न रखना, रूकू की हालत में पीठ खूब बिछी रखना, रूकू से उठने पर हाथ लटका हुआ
छोड़ देना, रूकू से उठने में इमाम को “समि अल्लाहु लिमन हमिदह” कहना और मुक़्तदी को रब्बा वल्कल हम्द कहना और अकेले पढ़ने वाले को दोनों कहना,
सजदे के लिये और सजदे से उठने के लिये अल्लाहु अकबर कहना, सजदे में कम से कम तीन बार सुबहान रब्बियल आला कहना, सजदा करने के लिये पहले घुटना फिर हाथ फिर नाक फिर पेशानी ज़मीन पर रखना और सजदे से उठने के लिये पहले पेशानी फिर नाक फिर हाथ फिर घुटना ज़मीन से उठाना, सजदे में बाजु करवटों से और पेट रानों से अलग होना और कलाइयाँ ज़मीन पर न बिछाना, औरत का बाजू करवटों से, पेट रान से, रान पिन्डलियों से और पिन्डलियाँ ज़मीन से मिला देना, दोनों सजदों के दरमियान बैठना और हाथों को रानों पर रखना, सजदों मे हाथों की उंगलियाँ काबे की तरफ होना और मिली हुई होना, पाँवों की दसों उंगलियों के पेट ज़मीन पर लगना, दूसरी रकअत के लिये पन्जों के बल घुटनों पर हाथ रखकर उठना, कअदें में बायाँ पाँव बिछा कर दोनों सुरीन उस पर रखकर बैठना, दाहिना कदम खड़ा रखना, और दाहिने कदम की उंगलियाँ किब्ला रूख होना, औरत को दोनों पाँवों दाहिनी जानिब निकाल कर बायीं सुरीन पर बैठना, दाहिना हाथ दाहिनी रान पर और बायाँ हाथ बायीं रान पर रखना और उंगलियों को अपनी हालत पर छोड़ना, शहादत पर इशारा करना, कअदए अख़ीरा में अत्तहिय्यात के बाद दुरूद शरीफ और दुआए मासूरह पढ़ना।
सवाल :- नमाज़ में क्या क्या चीज़े मकरूह हैं ?
जवाब :- नमाज़ में यह चीजें मकरूह हैं. कपड़े बदन या दाढ़ी के साथ खेलना, कपड़ा समेटना जैसे सजदे मे जाते वक़्त आगे या पीछे से उठा लेना, कपडा लटकाना यानि सर या काँधे पर इस तरह डालना कि दोनों किनारे लटकते हों, किसी आस्तीन का आधी कलाई से ज़यादा चढ़ाना, दामन समेट कर नमाज़ पढ़ना, मर्द का जोड़ा बाँधे हुये नमाज़ पढ़ना, उंगलियाँ चटकाना, उंगलियों की कैंची बाँधना, कमर पर हाथ रखना, आसमान की तरफ निगाह उठाना, मर्द का सजदे मे कलाइयों का बिछाना, किसी शख़्स के मुँह के सामने नमाज़ पढ़ना, कपड़े में इस तरह लिपट जाना कि हाथ भी बाहर न हों, पगड़ी इस तरह बाँधना कि बीच सर पर न हो, नाक और मुँह को छुपाना, जिस कपड़े पर जानदार की तस्वीर हो उसे पहन कर नमाज़ पढ़ना,तस्वीर का नमाज़ी के सर पर यानि छत पर होना या लटकी हुई होना या सजदे की जगह पर होना कि उस पर सजदा किया जाये, नमाज़ी के आगे या दाहिने या बायें या पीछे तस्वीर का होना इस तरह कि लटकी हुई हो या दीवार वगैरह में मनकूश हो, उल्टा कुरआन मजीद पढ़ना, किरात को रूकू में खत्म करना, इमाम से पहले मुक़्तदी का रूकू व सुजूद वगैरह में जाना या उससे पहले सर उठाना। यह तमाम बातें मकरूहे तहरीमी हैं।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
