
मेहमान नवाज़ी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम बगैर मेहमान के खाना तनावुल न फरमाते थे।
आप अलैहिस्सलाम के घर कोई मेहमान न होता तो आप मेहमान की तलाश में एक दो मील दूर निकल जाते थे, जबतक मेहमान न मिलता खाना तनावुल न फरमाते।
मेहमान का आना रहमते खुदावन्दी के नुज़ूल का ज़रिया है। मेहमान ज़ेहमत नहीं बल्कि खुदा की रहमत लेकर आता है। जिस घर में मेहमान को खाना खिलाया जाता है, वहाँ खुदा की रहभत उमड़ आती है।
मेहमान खुद अपनी किस्मत का खाता है। इसलिए मेहमान के आने पर इज़हारे मसर्रत करना चाहिए। मेहमान को हिकारत की नज़र से देखना और उसके आने पर नाखुश होना इफलास व तंगदस्ती का सबब है।
हदीस :- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः “उस आदमी में कोई भलाई नहीं जो मेहमान नवाज़ नहीं। (अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 12) बगैर दावत किसी के घर जाना।
हदीस :- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः “जब तुम्हारे घर मेहमान आये तो उसकी ताज़ीम करो। (अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 12)
हदीसः- हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “जिस घर में खाना खिलाया जाता है, भलाई उसकी तरफ कोहान की तरफ जाने वाली छुरी से ज़्यादा तेज़ी के साथ दौड़ती है। (इब्ने माजा पेज 204)
हदीस :- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “मेहमान अपना रिज़्क लेकर आता है और खिलाने वालों के गुनाह लेकर जाता है, उनके गुनाह मिटा देता है।”(फतावा रज़बिया जिल्द 9, पेज 176)
हज़रत मालिक बिन फजाला रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि मैंने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अगर मैं किसी शख़्स के यहां जाकर मेहमान बन जाऊं और वह मेरी मेहमान नवाजी ना करें और मेरी जियाफत का हक़ अदा ना करें फिर वह शख़्स मेरे यहां कभी मेहमान बनकर आए तो क्या मैं उसकी मेहमान नवाजी करूं या उससे बदला लूं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः नहीं उससे बदला ना लो बल्कि उसकी मेहमान नवाजी करो।
ग़र्ज़ कि मेहमान नवाज़ी करने में बड़ी फज़ीलत है। हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:”जिस घर में मेहमान न आये, उसमें रहमत के फरिश्ते दाखिल नहीं होते। जब तुम्हारे घर कोई मेहमान आये तो उसके लिए तकल्लुफ न करो, जो कुछ हाज़िर हो उसके सामने पेश करो।”
हदीस :- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेहमान के लिए तकल्लुफ न करो क्योंकि जब तकल्लुफ करोगे तो उसके साथ दुश्मनी रखोगे और जो शख्स मेहमान से दुश्मनी रखेगा, वह खुदा के साथ दुश्मनी रखेगा और जो खुदा के साथ दुश्मनी रखेगा, उसका अंजाम बुरा होगा।”(अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 12-13)
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…