हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की जब वफात हुई एक हज़ार पचास साल की उम्र गुज़ारने के बाद, अल्लाह तआला ने पूछा ऐ मेरे पैग़म्बर ! बताईये आपने ज़िन्दगी को कैसा पाया? अर्ज़ किया परवदिगारे आलम ! यूँ महसूस हुआ कि जैसे एक मकान के दो दरवाज़े हैं।
मैं एक दरवाज़े से दाखिल हुआ और दूसरे दरवाज़े से बाहर निकल आया। एक हज़ार साल के बाद यूँ महसूस होता है। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की जब वफात हुई अल्लाह तआला ने पूछा मेरे प्यारे कलीम ! आपने मौत को कैसा पाया। फरमायाः ऐ अल्लाह! मुझे यूँ महसूस होता था कि एक बकरी ज़िन्दा है और ज़िन्दा हालत में उसकी खाल उतारी जा रही है।
जिस तरह ज़िन्दा बकरी को खाल उतारने की तकलीफ़ होती है मुझे मौत के वक़्त यूँ तकलीफ़ महसूस हुई। यह तकलीफ़ हमारे ऊपर भी आनी है। इसलिए कुरआन पाक में यह नहीं फरमाया कि तुम्हें मौत आयेगी, कुरआन पाक में फरमायाः
तर्जुमा : तुममें से हर किसी को मौत का ज़ायका चखना है। अब ज़ायका कभी कड़वा होता है कभी मीठा होता है।
मालूम नहीं हमारी मौत के वक़्त क्या मामला हो। हम परवर्दिगारे आलम से तमन्ना रखते हैं, फरियाद करते हैं, उम्मीद रखते हैं कि हमारी मौत को हमारे लिए मीठा जाम बना दे और हमें हर तरह की तकलीफों से महफूज़ फरमा दे।
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की जब मौत का वक़्त आने लगा। मलकुल्-मौत यानी मौत का फरिश्ता आये, अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के दोस्त! अल्लाह तआला ने आपको याद किया है और मैं आपकी रूह निकालने के लिए आया हूँ। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हैरान हुए फरमाने लगेः मलकुल्-मौत! तर्जुमा: क्या तुमने किसी ऐसे दोस्त को देखा है जो अपने दोस्त की रूह को कब्ज़ कर रहा हो।
मलकुल्-मौत अल्लाह रब्बुल्-इज़्ज़त के दरबार में पेश हुए। अर्ज़ कियाः ऐ मालिक! आपके खलील (दोस्त) ने यह बात कही है। अल्लाह तआला ने फरमाया। उनसे कहो क्या कोई दोस्त अपने दोस्त की मुलाकात को नापसन्द करता है? मौत के फरिश्ते ने आकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से यह बात कह दी। हज़रत इब्राहीम खलीलुल्लाह समझ गये कि मौत आयेगी तब अल्लाह की मुलाकात नसीब हो जायेगी।
कहने लगे ऐ मलकुल्-मौत! जल्दी कर मेरी रूह क़ब्ज़ कर ले। और मुझे अपने परवर्दिगार के साथ वासिल करवा दे। (यानी मुलाकात करने वाला बना दे)। इसलिए हदीस पाक में आता हैः मौत तो एक पुल की तरह है जो एक दोस्त को दूसरे दोस्त के साथ मिला देती है।
अगर हमने दुनिया में अल्लाह की फरमाँ बरदारी की होगी तो हम क़यामत के दिन अल्लाह से इस तरह मिलेंगे जिस तरह परदेस में गया हुआ कोई मुसाफिर मुद्दतों के बाद आये और वह मुहब्बत वालों के दरमियान पहुँचे तो लोग कैसे मिलते हैं। एक दफा गले मिलते हैं।
मुहब्बत का जज़्बा ठण्डा नहीं होता तो फिर गले मिलते हैं। हमने दो दोस्तों को देखा प्राईमरी स्कूल के दोस्त थे, बीस तीस साल के बाद मिले, एक बार गले मिलते हैं फिर गले मिलते हैं तीन-तीन, दफा गले मिलते हैं और कहते हैं कि ऐसी खुशी हो रही है कि बता नहीं सकते।
खूबसूरत वाक़िआ:-ज़िन्दगी की शाम
तो जैसे वे दोस्त एक दूसरे को मिले और मुहब्बत का जज़्बा इतना था कि मिलने से भी उस जज़्बे में कमी नहीं आ रही उसी तरह जो बन्दा दुनिया में अल्लाह के हुक्मों की फरमाँ बरदारी करेगा, कियामत के दिन जायेगा तो एक दोस्त की तरह अल्लाह के सामने पेश कर दिया जायेगा। अब जिस बन्दे ने दुनिया में तैयारी न की यह इनसान क़ियामत के दिन मुज्रिम बनाकर पेश कर दिया जायेगा।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
