माँ-बाप को तकलीफ़ देने की सज़ा।Maa baap ko taqleef dene ki saza.

20240405 150156

अल्लाह रब्बुल-इज्ज़त नें इरशाद फ़रमाया कि- तुम अपने माँ-बाप के साथ अच्छा बर्ताव किया करो। अगर तुम्हारे सामने उनमें एक या दोनों बूढ़े हो जायें तो उनके सामने ‘हूँ’ भी न करना।

और न उनको झिड़कना और उनसे अदब के साथ बात करना और उनके सामने आजिज़ी से झुके रहना और उनके लिए यूँ दुआ करते रहना कि ऐ मेरे रब उन दोनों पर रहमत फ़रमाइए जैसा कि उन्होंने मुझको बचपन में पाला है।

और हुज़ूर पुरनूर (स०) फ़रमाते हैं कि जो शख्स अपने माँ-बाप को तकलीफ़ देगा, जन्नत उस पर हराम है। माँ-बाप को खुश रखना, अल्लाह तआला को खुश रखना है और उनको नाराज़ करना अल्लाह तआला को नाराज़ करना है।Maa baap ko taqleef dene ki saza.

एक दिन नबी (स०) ने हल्काये असहाब में यह लफ़्ज़, दोहराये तीन बार कि नाक उसकी कट गयी। असहाब ने अर्ज़ की कि वह कम्बख्त है कौन, तौक़ीर जिसकी हज़रते बारी में घट गयी।

इरशाद यूँ हुआ कि वह फ़रज़न्द नाख़लफ़, घर जिसके जन्नत आयी, आकर पलट गयी। माँ-बाप के बुढ़ापे का न हो जिसे खयाल, उस ना सईद बेटे की क़िस्मत उलट गयी।

हुज़ूरे अकरम (स०) की ख़िदमत में एक शख्स ने अर्ज़ की- या रसूल अल्लाह ! मुझे कोई ऐसी नसीहत कीजिए जो दुनिया व आखिरत में काम आये। आपने फ़रमाया- तुम्हारे माँ-बाप ज़िन्दा है ? कहा हाँ ,हज़ूर (स.व)ने फ़रमाया- तुम उनकी खिदमत किया करो। उनको एक लुकमा खिलाने के बदले तुमको जन्नत में एक महल मिलेगा।Maa baap ko taqleef dene ki saza.

एक और शख्स ने अर्ज़ की— या रसूल अल्लाह। मैं अपनी माँ की खिदमत भी करता हूँ। रोटी कपड़ा भी देता हूँ। मगर वह मुझसे लड़ती रहती है। अब जो आपका हुक्म हो वह करूँ।

हजूर (स०) ने फ़रमाया— तुम अपनी माँ की खिदमत करो। क़सम है अल्लाह तआला की अगर तुम अपने बदन का गोश्त का टुकड़ा भी अपनी माँ को खिला दोगे तो चौथाई हक़ भी उसका अदा न होगा। क्या तुमको मालूम नहीं कि जन्नत माँ और बाप के क़दमों के नीचे है।

माँ-बाप का यह मर्तबा सुनकर उस शख्स ने रोकर कहा, या रसूल अल्लाह (स०) ! आप सच फ़रमाते हैं क़सम है मुझको उस खुदा की जिसने आपको सच्चा रसूल बनाया है! अब मैं अपनी माँ की खूब ताबेदारी करूंगा। बस वह अपनी माँ के पास आया और उसके पाँव चूम कर कहा,

अम्मी जान! मुझको अल्लाह के रसूल(स.व)ने यही हुक्म दिया है कि अपनी माँ की खिदमत करो और उसको राजी रखो। माँ ने खुश होकर बेटे को गले से लगा लिया और अल्लाह व रसूल (स०) की तारीफ़ की,

पिसर माँ-बाप का लखते जिगर है,सरूरे जिस्म व जाँ नूरे नज़र है। अगर दम भर न वह उनको नज़र आये, जहाँ उनके लिए तारीक हो जाये।जुदा गर उनसे बेटा एक दम हो,जुदाई में बहुत-सा उनको ग़म हो।Maa baap ko taqleef dene ki saza.

अगर बेटे पे कोई सदमा आ जाये, पदर-ए-मादर के तन से जां निकल जाये,पिलाया दूध अपना तुमको माँ ने, खिलाये बाप ने माकूल खाने,लड़कपन से बड़ा तुमको किया है, जवाने खुश अदा तुम को किया है।

तुम उनके वास्ते नूरे बसर हो, सरापा रहमते जान व जिगर हो। तुम्हे इल्मो हुनर सिखला दिया है, पहुँचाना था जहाँ पहुँचा दिया है।वह खिदमत तुम्हारी करते रहे हैं.तुम्हारे वास्ते मरते रहे हैं।

जब ऐसा हक़ है माँ और बाप का,करो तुम ऐ पिसर हक़ उनका अदा । ज़बां पर लाओ मत ऐसी हिकायत, करे मादर पदर जिससे शिकायत । करोगे जो ख़िदमत माँ-बाप की, दोनों जहाँ में इज़्ज़त तुमको मिलेगी।Maa baap ko taqleef dene ki saza.

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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