
हज़रत नूह अलैहिस्सलाम जब कश्ती में सवार हुए तो आप ने कश्ती में एक अंजान बूढ़े को देखा आप ने उसे पहचान लिया कि यह शैतान है, फरमाया तुम यहाँ क्यूँ आए हो? उसने जवाब दिया, मैं तुम्हारे यारों के दिलों पर काबू पाने को आया हूँ ताकि उनके दिल मेरे साथ हों और जिस्म तुम्हारे साथ हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने फरमाया ऐ दुश्मने खुदा !
निकल जा यहाँ से शैतान ने कहा, जनाब पाँच चीजें हैं, जिस से मैं लोगों को हलाक करता हूँ उन में से तीन तुम से न कहूँगा और दो तुम्हें बताऊँगा हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को वही हुई कि उस से कहो तीन की मुझे हाजत नहीं, वह दो बयान कर, शैतान ने कहा, उनहीं दो से मैं आदमियों को हलाक करता हूँ, एक तो हसद कि उसी की वजह से मैं मलऊन हुआ और शैतान मरदूद कहलाया, दूसरे हिर्स (लालच) कि आदम के लिए तमाम जन्नत मुबाह करदी गई, मगर मैंने हिर्स दिलाकर उन से अपना काम निकाल लिया !(तलबीसे इब्लीस)
हसद और हिर्स शैतान के दो ख़तरनाक हथियार हैं, उनसे वह आदमियों को गुमराह व तबाह करना चाहता है, और उसी हसद की वजह से जो उसे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ज़ात से था, वह खुद तबाह व बरबाद और मलऊन-व-मरदूद हुआ और अब उसी अपने हथियार से बनी आदम को गुमराह करने के दरपे है,
चुनाँचि जब भी अल्लाह का कोई नबी तशरीफ लाया, उस कमबख्त ने उनका हसद दिलों में पैदा करके लोगों को काफिर बना दिया, इसी तरह यह हासिदीन फिर मुसलमानों के भी कुफ्र इख़्तियार करने की ख़्वाहिश करने लगे, चुनाँचि खुदा फरमाता है कि बहुत किताबियों ने चाहा कि काश तुम्हें ईमान के बद कुफ्र की तरफ फेर दें।
“हसदम-मिन इन्दि अंफुसिहिम’ अपने दिलों के हसद से (पः1, रू:13)
यूँही इस ख़बीस् ने सुहाबा किराम और अहले बैत इज़ाम अलैहिमुस्सलाम का हसद भी कई दिलों में पैदा करके उन्हें अपना साथी बना लिया, और उसी तरह का यह ख़तरनाक हथियार आज तक चल रहा है,क़त्ल का अज़ाब।Qatl ka azaab.
बुज़रगाने दीन और औलिया-ए-किराम की अज़मतों को देख देख कर अंगुश्त नुमाईयाँ और चेह मिगोईयाँ करने वाले शैतान के इसी मुहलिक हथियार ही के शिकार हैं जो उन हज़रात का अच्छा खाना पीना और अच्छा पहनना तक देख कर जल भुन जाते हैं और हज़ार किस्म की बातें बनाने व सुनाने लगते हैं शबे बरात को अगर कोई मुसलमान घर में हलवा पकाले तो यह हसद होता है कि हलवे की सूजी भुनें हासिद खुद जल भुन जाता हैं इसी खतरनाक हथियार से बचने के लिए खुदा ने आयत ‘व मिन शर्रि हासिदिन इज़ा हसद’ नाज़िल फमाई थी,
दूसरा उस का मुहलिक हथियार “हिर्स’ है इस हिर्स से आदमी हुकूकुल्लाह व हुकूकुल- इबाद दबाकर बैठ जाता है, हलाल व हराम की तमीज़ नहीं करता, आजकल जो दुनिया भर में रिश्व्त, ख्यानत, गबन सूद, इस्मग्गलिन वगैरह जितने जराइम हैं, सब इस हिर्स की वजह से हैं,
लेनि यह नुकता भी याद रखना चाहिए कि जिस तरह “हिर्स” और “तम” दोनों लफज़ नुकतों से खाली हैं, इसी तरह तालेअ व हरीस भी बिल आख़िर खाली के खाली रह जात हैं!
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…