
हज़रत तमीम दारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जब नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मबऊस हुए उस वक़्त मैं शाम में था। मैं अपनी किसी ज़रूरत से सफर में निकला तो रास्ते में रात हो गई मैंने कहा मैं आज रात इस वादी के बड़े सरदार यानी जिन्न की पनाह में हूँ। ज़मान-ए-जाहिलियत में अरबों का ख़याल था कि हर जंगल और हर वादी पर किसी न किसी जिन्न की हुकूमत होती है जब मैं बिस्तर पर लेटा तो एक मुनादी ने आवाज़ लगाई, वह मुझे नज़र नहीं आ रहा था।
उसने कहा तुम अल्लाह की’ पनाह मांगो क्योंकि जिन्नात अल्लाह के मुक़ाबले में किसी को पनाह नहीं दे सकते, मैंने कहा अल्लाह की क़सम ! तुम क्या कह रहे हो? उसने कहा अनपढ़ों में अल्लाह की तरफ से आने वाले रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ज़ाहिर हो चुके हैं, हमनें ख़जूँ (मक्का में) मकाम पर उनके पीछे नमाज़ पढ़ी है और हम मुसलमान हो गये हैं और हमने इत्तिबा इख़्तियार कर ली है और अब जिन्नात के तमाम मक्र व फ्रेब ख़त्म हो गये हैं।
अब वह आसमान पर जाना चाहतें हैं तो उनको सितारे मारे जाते हैं तुम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास जाओ जो रब्बुल आलमीन के रसूल हैं और मुसलमान हो जाओ। हज़रत तमीम दारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं मैं सुब्ह को देर अय्यूब की बस्ती में गया और वहाँ एक पादरी को सारा क़िस्सा सुनाकर उससे इसके बारे में पूछा। उसने कहाः जिन्नात ने तुमसे सच कहा है वह नबी-ए-हरम (मक्का) में ज़ाहिर होंगे और हिजरत करके हरम (मदीना) जाएंगे।
वह तमाम अंबिया अलहिमुस्सलाम से बेहतर हैं कोई और तुमसे पहले उन तक न पहुँच जाए, इसलिए जल्दी जाओ। हज़रत तमीम दारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं मैं हिम्मत करके चल पड़ा और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर मुसलमान हो गया।
इब्ने हश्शाम ने उमरो व सबा के दर्मियान दो एक नाम और बढ़ाए हैं। शाम के रहने वाले थे, क़बीला लख़्म से नस्बी ताल्लुक़ था और मज़हबन ईसाई थे। इस्लाम लाने के बाद से जितने ग़ज़वात पेश आएं सबमें शरीक हुए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कफाफ (गुज़ारा) के लिए शाम में क़िरया ऐनों का एक हिस्सा आपको दे दिया था, और उसकी तहरीरी सन्द भी लिख दी थी।
मगर दयारे महबूब की मुहब्बत ने वतन की मुहब्बत फरामोश कर दी, चुनांचे एहदे नब्वी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के बाद खुल्फा-ए-सलासा के ज़माने के आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मदीने ही में रहे, हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत के बाद मिल्ली फित्ना व फसाद शुरू हुआ तो आप बादिले ना-ख़्वास्ता मदीना छोड़कर अपने वतन शाम चले गए। आप जब शाम से मदीना आए तो आप अपने साथ कुछ क़न्दीलों और थोड़ा सा तेल भी लेते आए।क़यामत की 72 निशानियाँ।
मदीना पहुँच कर क़न्दीलों में तेल डालकर मस्जिद नब्वी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में लटका दें और जब शाम हुई तो उन्होंने उन्हें जला दिया। इससे पहले मस्जिद में रोशनी नहीं होती थी।
आंहज़रत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ लाए और मस्जिद को रोशन पाया तो पूछा कि मस्जिद में रौशनी किसने की है, सहाब-ए-किराम ने हज़रत तमीम रजियल्लाहु अन्हु का नाम बताया। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बेहद खुश हुए, उनको दुआएं दी और फरमाया, अगर मेरी कोई लड़की होती मैं तमीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से उसका निकाह कर देता। इत्तिफाक़ से उस वक़्त नोफल बिन हारिस मौजूद थे।
उन्होंने अपनी बेवा साहबज़ादी उम्मे मुगीरा को पेश किया, आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उस मज्लिस में उम्मे मुगीरा से हज़रत तमीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का निकाह कर दिया। फतहुल बारी में है कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने तरावीह बा-जमाअत क़ाइम की तो मर्दों का इमाम अबी बिन कअब रज़ियल्लाहो अन्हो को और औरतों का इमाम तमीम दारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को मुक़र्रर किया।
एक मर्तबा रूह बिन ज़न्बाअ तमीम दारी रजियल्लाहु तआला अन्हु की ख़िदमत में गये तो देखा कि घोड़े के लिए जौ साफ कर रहे हैं और घर के तमाम लोग आपके चारों तरफ बैठे हुए हैं। रूह ने अर्ज़ किया, क्या इन लोगों में से कोई ऐसा शख़्स नहीं है जो इस काम को कर सके ? आपने फरमायाः यह ठीक है लेकिन मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सुना है किः जब कोई मुसलमान अपने घोड़े के लिए दाना साफ करता है और फिर उसको खिलाता है तो हर दाने के बदले उसे एक नेकी मिलती है।
इसलिए मैं खुद अपने हाथ से काम करता हूँ ताकि सवाब से महरूम न रह जाऊं ।
उन्होंने एक बहुत क़ीमती जोड़ा ख़रीदा था, जिस रोज़ उनको शबे क़द्र की तवक़्को होती थी उसे उस रोज़ पहनते थे। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के ज़मान-ए- ख़िलाफ़त में एक मर्तबा मुक़ामे हिरा में आग लगी। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हज़रत तमीम दारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास आए और उनसे वाकिया बयान किया। हज़रत तमीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु वहाँ गये और बेख़तर आग में घुस गये और उसे बुझाकर सही सालिम वापस चले आए। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आपको खैर अहले मदीना (मदीना के सबसे अच्छे और नेक आदमी) फरमाया करते थे।
(हयातुस्सहाबा, हिस्सा 3, पेज 649, सयरुस्सहाबा, हिस्सा 4, पेज 140)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..