इमाम हुसैन (र.अ)मैदाने करबला।Imam Husain (r.a)Maidane karbla.

Imam hussain (r.a)maidane karbala

इब्ने ज़ियाद की तरफ़ से हुक्म दिया गया कि क़ाफ़िलाए अहले बैत को एक ऐसे मैदान में घेर कर ले जाओ जहां कोई किल्आ और पानी का चश्मा न हो ।

इस हुक्म के बाद हर ने मज़ाहमत की । येह 2 मुहर्रम 60 हिजरी का वाकआ है कि क़ाफ़िलाए अले बैत अपने आखरी मुस्तकिर या’नी ‘नैनवां’ के ‘मैदान करबो बला’ में ख़ैमाज़न हो गया ।

जुहैर बिन कैन (र.अ)ने कहा या इब्ने रसूलुल्लाह (स.व)आइन्दा जो वक्त आएगा, वोह इस से भी ज़ियादा सख़्त होगा, अभी लड़ना आसान है, इस रास्ते के बाद ख़ौफ़ो जैस आएंगे, हम इन के साथ लड़ न सकेंगे, लेकीन इस उस मुजरसमाए शराफ़्तो ईषार ने जवाब में फ़रमाया कि “मैं अपनी तरफ़ से लड़ाई की इब्तिदा न करूंगा” ।Imam Husain (r.a)Maidane karbla.

3 मुहर्रम 61 हिजरी को उमर बिन सा ‘द चार हज़ार फ़ौज के साथ आप के मुकाबिल आ खड़ा हुवा । उमर बिन साद ने कुर्रह बिन सअद हन्ज़ली को मुलाकात के लिये भेजा तो सख्यिदिना हुसैन (र.अ)ने फ़रमाया कि मुझे तुम्हारे शहरवालों ने ख़ुतूत लिख कर बुलाया है, अब अगर मेरा आना तुम को पसंद न हो तो मैं लौट जाता हूं ।

इब्ने सा’द इस जवाब से बहोत मुतअस्सिर हुवा और तमाम वाकेआ इब्ने ज़ियाद को लिख कर भेजा, उस ने जवाब दिया कि तुम हुसैन (र.अ)और उस के साथीयों से यज़ीद की बै’त लो। अगर वोह बै’त कर लें तो फिर देखा जाएगा।

इस के बाद ही दूसरा हुक्म यह पहुंचा कि काफ़िलाए अहले बैत पर पानी बंद कर दिया जाए। इस हुक्म पर इब्ने साद ने पांच सौ सवारों का एक दस्ता दरियाए फुरात पर पानी रोकने के लिए मुतअय्यन कर दिया। इस दस्ते ने सातवीं मुहर्रम से पानी रोक दिया ।Imam Husain (r.a)Maidane karbla.

अब्दुल्लाह बिन अबू हुसैन शामी ने सयिदिना हुसैन (र.अ)से मुखातिब होकर कहा हुसैन पानी देखते हो, कैसा आसमान के जिगर की तरह छलक रहा है लेकिन ख़ुदा की कसम तुम्हें एक कुतरा भी नहीं मिल सकता, तुम इसी तरह प्यासे मरोगे ।

इस के बाद 9 मुहर्रम को असर के वक्त उस ने फौज को तैय्यारी का हुक्म दे दिया, हज़रत हुसैन (र.अ)ने फ़रमाया कि मैं नमाज़ो दुआ के लिये एक रात की इजाज़त चाहता हूं ।

रात के वक्त हज़रत हुसैन (र.अ)ने अपने साथीयों को एक दर्दनाक खुत्बा दिया। आप ने फरमाया “इलाही ! तेरा शुक्र है कि तूने हमारे घराने को नुबुव्वत से मुशर्रफ़ फ़रमाया और दीन की समझ और कुरआन का फ़हम अता फरमाया ।

लोगो ! मैं नहीं जानता कि आज रूए ज़मीन पर मेरे साथीयों से अफ़ज़ल और बेहतर लोग भी मौजूद हैं या मेरे अहले बैत से ज़ियादा हमदर्द व ग़मगुसार किसी के अहले बैत हैं, अय लोगो ! ख़ुदा तुम्हें जजाए ख़ैर दे, कल मेरा और उन का फैसला हो जाएगा,Imam Husain (r.a)Maidane karbla.

गौरो फिक्र के बाद मेरी राए है कि रात के अंधेरे में ख़ामोशी से निकल जाओ और मेरे अहले बैत को साथ ले जाओ। मैं ख़ुशी से तुम्हें तुम सब को रुख़सत करता हूं, मुझे कोई शिकायत न होगी, येह लोग सिर्फ मुझे चाहते हैं और मेरी जान ले कर तुम से ग़ाफ़िल हो जाएंगे ।”

हज़रत सख्यिदिना हुसैन(र.अ)के इन अल्फ़ाज़ से अहले बैत फर्ते बेकरारी से तड़प उठे और सब ने बिलइत्तिफाक आप से वफादारी और जांनिसारी का अहद किया। जब वफादारों की गर्म जोशीयां ख़त्म हुईं तो नमाज़ के लिये सफ़े आरास्ता

की गईं, सय्यिदिना हुसैन (र.अ)और उन के रुफ्का सारी रात नमाज़, रात नमाज़, इस्तिगफार, तिलावते कुरआन, दुआ व तज़ररुअ में मश्गूल रहे और दुश्मन के तैग बकफ सवार रात भर लश्करे हुसैन(र.अ)के गिर्द चक्कर लगाते रहे ।

10 मुहर्रम 61 हिजरी को जुम्आ के दिन नमाज़े फ़जर के बाद उमरो बिन सा’द चार हज़ार सवारों को लेकर निकला। हज़रत हुसैन (र.अ)ने भी अपने असहाब की सफें काइम की, लश्करे हुसैन (र.अ)महज़ गिनती के सवारों और चंद पैदल अफ़राद पर मुश्तमिल था ।Imam Husain (r.a)Maidane karbla.

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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