नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबा किराम में हया वाली सिफ्त ऐसी कूट-कूटकर भर दी थी कि उनकी निगाहें गैर की तरफ उठती ही नहीं थीं।
इसलिए हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर में एक औरत यमन से चली और मदीना अकेली आई। उसने महीनों का सफ़र किया, वह रात को भी कहीं ठहरती होगी, उसके पास माल भी था, उसे जान और अपनी इज़्ज़त व नामूस का भी ख़तरा था।
हज़रत उमर फारूक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को पता चला तो आपने उन्हें बुलवाया। पहले यह पूछा कि अकेली क्यों आई हो? उसके कोई उज़ पेश किया। फिर आपने एक सवाल पूछा कि तुम जवान उम्र औरत हो, तुमने अकेले सफर किया, आबादियों से भी गुज़रीं, वीरानों से भी गुज़रीं, तुम्हें जान व माल व इज़्ज़त व आबरू का भी ख़तरा था।
यह बताओ तुमने यमन से मदीना तक के लोगों को किस हाल में पाया? उसने जवाब दिया कि ऐ अमीरुल मोमिनीन! मैं यमन से चली और मदीना तक पहुँची और मैंने रास्ते के सब लोगों को ऐसे पाया कि जैसा ये सब के सब एक माँ-बाप की औलाद होते हैं। उन सबकी निगाहें इतनी पाकीज़ा थीं कि जवान उम्र औरत सैकड़ों मील का सफर करती थी और उसे अपनी इज़्ज़त व आबरू का कोई ख़तरा नहीं हुआ करता था।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
खूबसूरत वाक़िआ:जन्नत कहाँ है? Jannat kaha hai?
