22/12/2025
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हज़रत लूत अलैहिस्सलाम का वाक़िआ | Hazrat loot alaihissalam Ka waqia.

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Hazrat loot alaihissalam Ka waqia.
Hazrat loot alaihissalam Ka waqia.

हज़रत लूत व इब्राहीम अलैहिस्सलाम

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के भतीजे हैं और उनका बचपन हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ही की निगरानी में गुज़रा और उनकी नशवनुमा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ही की तरबियत में हुई।

मिस्र से वापसी

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम और उनकी बीवी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की हिजरतों में हमेशा उनके साथ रहे हैं और जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम मिस्र में थे, तो उस वक़्त भी यह हम सफ़र थे। मिस्र से वापसी पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम फ़लस्तीन में आबाद हुए और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने शर्के उर्दुन के इलाक़े में सुकूनत अख्तियार की। इस इलाक़े में दो मशहूर बस्तियां सदूम और आमूरा थीं।

क़ौमे लूत

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने जब शर्के उर्दुन (ट्रांस जॉर्डन) के इलाक़े में सदूम में आकर क़ियाम किया तो देखा कि यहां बाशिंदे फ़वाहिश और मासियतों में इतने पड़े हुए हैं कि दुनिया में कोई बुराई ऐसी न थी जो उनमें मौजूद न हो। दूसरे ऐबों और फ़हश कामों के अलावा यह क़ौम एक ख़बीस अमल में मुब्तला थी, यानी अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशों को पूरा करने के लिए वे औरतों के बजाए अमरद लड़कों से इख़्तिलात करते थे।

दुनिया की क़ौमों में उस वक़्त तक इस अमल का क़तई रिवाज न था। यही बदबख़्त क़ौम है जिसने इस नापाक अमल की ईजाद की और इससे भी ज़्यादा शरारत, ख़बासत और बेहयाई यह थी कि वे अपनी बदकिरदारी को ऐब नहीं समझते थे और ऐलानिया फ़खर व मुबाहात के साथ उसको करते रहते थे।

तर्जुमा-‘और (याद करो) लूत का वाक़िया जब उसने अपनी क़ौम से कहा, क्या तुम ऐसे फ़हश काम में लगे हुए हो जिसको दुनिया में तुमसे पहले किसी ने नहीं किया, यह कि बेशक तुम औरतों के बजाए अपनी शहवत को मर्दों से पूरी करते हो, यक़ीनन तुम हद से गुजरने वाले हो।’ (अल-आराफ़ 7 : 80-81)

हज़रत लूत और तब्लीगे हक़

इन हालात में हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने उनको उनकी बेहयाइयों और ख़बासतों पर मलामत की और शराफ़त और तहारत की जिंदगी की एबत दिलाई और नर्मी के साथ जो मुम्किन तरीक़े हो सकते थे, उनसे उनको समझाया और पिछली क़ौम की बदआमालियों के नतीजे बताकर इबरत दिलाई, मगर उन पर बिल्कुल असर न हुआ, बल्कि कहने लगे-

तर्जुमा- ‘लूत की क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि कहने लगे इन (लूत और उसके ख़ानदान) को अपने शहर से निकाल दो। ये बेशक बहुत ही पाक लोग हैं। (आराफ़ 7: 72)

‘बेशक ये पाक लोग हैं’, क़ौमे लूत का यह मज़ाक़िया जुम्ला था, गोया हज़रत लूत अलैहिस्सलाम और उनके ख़ानदान पर तंज़ करते और उनका ठठ्ठा उड़ाते थे कि बड़े पाकबाज़ हैं, इनका हमारी बस्ती में क्या काम या मेहरबान नसीहत करने वाले की मेहरबान नसीहत से ग़ैज़ व ग़ज़ब में आकर कहते थे कि अगर हम नापाक और बेहया हैं और वे बड़े पाकबाज़ हैं, तो इनका हमारी बस्ती से क्या वास्ता, इनको यहां से निकलो।

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने फिर एक बार भरी महफ़िल में उनको नसीहत की और फ़रमाया, ‘तुमको इतना भी एहसास नहीं रहा है कि यह समझ सको कि मर्दों के साथ बेहयाई का ताल्लुक़, लूट-मार और इसी क़िस्म की बद-अख़्लाक़ियां बहुत बुरे आमाल हैं, तुम यह सब कुछ करते हो और भरी महफ़िलों और मज्लिसों में करते हो और शर्मिंदा होने के बजाए बाद में उनका ज़िक्र इस तरह करते हो कि गोया ये कारे नुमायां हैं जो तुमने अंजाम दिए हैं।

तर्जुमा-‘क्या तुम वही नहीं हो कि तुम मर्दों से बदअमली करते हो, लोगों की राह मारते हो और अपनी मज्लिसों में और घर वालों के सामने फ़हश काम करते हो।'(अल-अंकबूत 29/29)

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क़ौम ने इस नसीहत को सुना तो ग़म व गुस्से से तिलमिला उठी और कहने लगी, लूत ! बस ये नसीहतें और इबरतें ख़त्म कर और अगर हमारे उन आमाल से तेरा ख़ुदा नाराज़ है तो वह अज़ाब लाकर दिखा, जिसका ज़िक्र करके बार-बार हमको डराता है और अगर तू वाक़ई अपने क़ौल में सच्चा है तो हमारा और तेरा फ़ैसला अब हो जाना ही जरूरी है।

तर्जुमा – ‘पस उस (लूत) की क़ौम का जवाब इसके सिवा कुछ न था कि वे कहने लगे, तू हमारे पास अल्लाह का अज़ाब ले आ, अगर तू सच्चा है।'(अल-अंकबूत 29/29)

हज़रत इब्राहीम और अल्लाह के फ़रिश्ते

इधर यह हो रहा था और दूसरी तरफ़ हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के साथ यह वाक़िया पेश आया कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जंगल में सैर कर रहे थे। उन्होंने देखा कि तीन लोग खड़े हैं। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम बड़े मुतवाज़े और मेहमान नवाज़ थे और हमेशा उनका दस्तरख़्वान मेहमानों के लिए फैला रहता था, इसलिए इन तीनों को देखकर वह बहुत खुश हुए और उनको अपने घर ले गए और बछड़ा ज़िब्ह करके तिक्के बनाए और भून कर मेहमानों के सामने पेश किए, मगर उन्होंने खाने से इंकार किया। यह देखकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने समझा कि ये कोई दुश्मन हैं जो दस्तूर के मुताबिक़ खाने से इंकार कर रहे हैं और कुछ डरे कि ये आख़िर कौन हैं?

मेहमानों ने जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बेचैनी देखी तो उनसे हँस कर कहा कि आप घबराएं नहीं! हम अल्लाह के फ़रिश्ते हैं और क़ौमे लूत की तबाही के लिए भेजे गए हैं, इसलिए सदूम जा रहे हैं।

जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को इत्मीनान हो गया कि ये दुश्मन नहीं हैं, बल्कि अल्लाह के फ़रिश्ते हैं, तो अब उनके दिल की रिक़्क़त, हमदर्दी का जज़्बा और मुहब्बत व शफ़क़त की फ़रावानी ग़ालिब आई और उन्होंने क़ौम लूत की ओर से झगड़ना शुरू कर दिया और फ़रमाने लगे कि तुम उस क़ौम को कैसे बर्बाद करने जा रहे हो, जिसमें लूत-जैसा अल्लाह का बरगज़ीदा नबी मौजूद है और वह मेरा भतीजा भी है और मिल्लते हनीफ़ का पैरो भी?

फ़रिश्ते ने कहा, हम यह सब कुछ जानते हैं, मगर अल्लाह का यह फ़ैसला है कि क़ौमे लूत अपनी सरकशी, बदअमली, बेहयाई और फ़श बातों पर इसरार की वजह से ज़रूर हलाक की जाएगी और लूत और उसका ख़ानदान इस अज़ाब से महफूज़ रहेगा, अलबत्ता लूत की बीवी क़ौम की हिदायत और उनकी बद-आमालियों और बदअक़ीदगियों में शिरकत की वजह से क़ौमे लूत ही के साथ अज़ाब पाएगी।

ग़रज़ हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के हक़ पहुंचाने, भलाइयों का हुक्म देने और बुराइयों से मना करने का क़ौम पर मुतलक़ कुछ असर न हुआ और वह अपनी बद-अख़्लाक़ियों पर वैसे ही जमी रही। हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने यहां तक गैरत दिलाई कि तुम इस बात को नहीं सोचते कि मैं रात-दिन जो इस्लाम और सीधे रास्ते की दावत और पैग़ाम के लिए तुम्हारे साथ हैरान व परेशान हूं, क्या कभी मैंने इस कोशिश का कोई मुआवज़ा तलब किया, क्या कोई उजरत मांगी, किसी नज़ व नियाज़ का तलबगार हुआ। मेरी नज़रों में तो तुम्हारी दीनी व दुन्यवी फ़लाह व सआदत इस के सिवा और कुछ भी नहीं है, मगर तुम हो कि ज़रा भी तवज्जोह नहीं करते।

मगर उनके अंधेरे दिलों पर इस कहने का तनिक भर भी असर न हुआ और वे हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को ‘निकाल देने’ और पत्थर मार-मार कर हलाक कर देने की धमकियां देते रहे। जब नौबत यहां तक पहुंची और उनकी बुरी किस्मत ने किसी तरह अख़लाक़ी जिंदगी पर आमादा न होने दिया, तब उनको भी वही पेश आया जो अल्लाह के बनाए हुए क़ानूने जज़ा का यक़ीनी और हतमी फ़ैसला है, यानी बद किरदारियों और इसरार की सज़ा बर्बादी या हलाकतः। गरज अल्लाह के फ़रिश्ते हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास से रवाना होकर सदूम पहुंचे और लूत अलैहिस्सलाम के यहां मेहमान हुए। ये अपनी शक्ल व सूरत में हसीन व खूबसूरत और उम्र में नवजवान लड़कों की शक्ल व सूरत के थे।

हजरत लूत अलैहिस्सलाम ने उन मेहमानों को देखा तो घबरा गए और डरे कि बदबख़्त क़ौम मेरे इन मेहमानों के साथ क्या मामला करेगी, क्योंकि अभी तक उनको यह नहीं बताया गया था कि ये अल्लाह के पाक फ़रिश्ते हैं।

अभी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम इस हैस-बैस में थे कि क़ौम को ख़बर लग गई और लूत अलैहिस्सलाम के मकान पर चढ़ आए और मुतालबा करने लगे कि तुम इसको हमारे हवाले करो। हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने बहुत समझाया और कहा, क्या तुम में कोई भी ‘सलीमुल फ़िरत इंसान’ (रजुलुर्रशीद) नहीं है कि वह इंसानियत को बरते और हक़ को समझे? तुम क्यों इस लानत में गिरफ़्तार हो और नफ़्सानी ख़्वाहिश पूरी करने के लिए फ़ितरी तरीक़ा छोड़कर और हलाल तरीक़ों से औरतों को जीवन-साथी बनाने की जगह इस मलऊन बेहयाई पर उतर आए हो? ऐ काश! मैं ‘रुक्ने शदीद’ की ज़बरदस्त हिमायत कर सकता !

हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की इस परेशानी को देखकर फ़रिश्तों ने कहा, आप हमारी ज़ाहिरी शक्लों को देखकर घबराइए नहीं, हम अज़ाब के फ़रिश्ते हैं और अल्लाह के क़ानून ‘जज़ा-ए-आमाल’ का फ़ैसला इनके हक़ में अटल है, वह अब इनके सर से टलने वाला नहीं। आप और आप का ख़ानदान अज़ाब से बचा रहेगा, मगर आपकी बीवी बेहयाओं के साथ रहेगी और तुम्हारा साथ न देगी।

आख़िर अज़ाबे इलाही का वक़्त आ पहुंचा, रात शुरू हुई तो फ़रिश्तो के इशारे पर हज़रत लूत अलैहिस्सलाम अपने ख़ानदान समेत दूसरी ओर से निकल कर सदूम से रुख़्सत हो गए और बीवी ने उनका साथ देने से इंकार कर दिया और रास्ते से ही लौट कर सदूम वापस आ गई, रात का आख़िर आया तो पहले तो एक हौलनाक चीख़ ने सदूम वालों को तह व बाला कर दिया और फिर आबादी का तख़्ता ऊपर उठाकर उलट दिया गया और ऊपर से पत्थरों की बारिश ने उनका नाम व निशान तक मिटा दिया और वही हुआ जो पिछली क़ौम की नाफ़रमानी और सरकशी का अंजाम हो चुका है।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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