हारून रशीद और जुबैदा का अजीब वाक्या। Harun Rasheed aur Jubaida ka Ajeeb Waqia.

Harun Rasheed aur jubaida ka ajeeb waqia

एक रात हारून रशीद और उसकी बीवी जुबैदा में कुछ बहस व तकरात हो गई । इत्तिफाकन जुबैदा के मुंह से निकल गया । ऐ दोज़खी!

हारून अलरशीद ने ये सुनकर कहा के अगर मैं दोज़खी हूँ तो तुझे तलाक़ है और उसी वक्त एक दूसरे से अलग हो गए। लेकिन चूंकि हारून अलरशीद को जुबैदा से बड़ी मोहब्बत थी। इसलिए उसकी जुदाई से बहुत बेचैन हुआ और जुमला उलमा व फज्ला को जमा करके इस मसले का फतवा चाहा।

मगर किसी ने इसका जवाब ना दिया और सब ने मुत्तफिक होकर ये कहा के इस बात का खुदा ही को इल्म है के हारून अलरशीद दोज़खी है या बहिश्ती । एक लड़का उन उलमा की जमात से खड़ा हुआ और कहने लगा अगर इजाज़त हो तो मैं जवाब दूं। हज़रत बिलाल हब्शी रज़ि० का इस्लाम लाना।

सब लोग हैरान रह गए के जब इतने बड़े बड़े उलमा इस मसले का जवाब में आजिज़ हैं। फिर ये लड़का क्या जवाब देगा। हारून अलरशीद ने उस लड़के को अपने रूबरू बुलाया ओर कहा के तुम ही जवाब दो।Harun Rasheed aur Jubaida ka Ajeeb Waqia.

उस लड़के ने कहा के आपको मेरी ज़रूरत है या मुझे आपकी? हारून अलरशीद ने कहा के मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। ये सुनकर उस लड़के ने कह के फिर आप तख़्त से नीचे उतर आईये और मुझे तख्त पर बैठ कर जवाब देने दीजिए।

इसलिए के उलमा का रूत्वा बुलंदतर है हारून अल रशीद ने कहा। बहुत अच्छा और तख़्त से नीचे उतर आया और वो लड़का तख़्त पर बैठ गया और तख़्त पर बैठकर हारून अलरशीद से मुखातिब हुआ की पहले आप मेरे एक सवाल का जवाब दें की क्या आप कभी किसी गुनाह से बावजूद उसकी कुदरत रखने के सिर्फ खुदा के खौफ की वजह से गुनाह करने से बाज़ भी रहा हूँ,

ये सुनकर लड़के ने कहा मैं फतवा देता हूँ के आप दोज़खी नहीं बल्के अहले बहिश्त में से हैं। सारे उल्मा पुकार उठे के किस दलील से? उस लड़के ने जवाब दिया की कुरआन मजीद की इस आयत से के अल्लाह तआला फ़रमाता हैः

व अम्मा मन ख़ाफा मक़ामा रब्बीही व नहा अन्ननफ़्सा अनिल हवा फइनल जन्नाता हियल मावा यानी जिस शख्स ने के गुनाह का क़सद किया और फिर खुद के खौफ से उससे बाज़ रहा, पस उसकी जगह जन्नत है । “Harun Rasheed aur Jubaida ka Ajeeb Waqia.

सारे उल्मा ये सुनकर वाह वाह करने लगे और कहा के जो लड़कपन में इस कद्र हमो ज़का का मालिक है वो बड़ा होकर नहीं मालूम किस दर्जे का आलिम होगा । ये लड़का कौन था? ये हज़रत इमाम शाफई रहमत – उल्लाह अलेह थे। (तज़करत – उल – औलिया, सफा 256 ) दाना बहलोल का एक अजीब वाक्या।

जिन्होंने बड़े होकर इल्मो फज्ल का ताजदार बनना हो । उनका बचपन भी दूसरे से मुमताज़ व अफ्ज़ल होता है। फिर जो लोग बड़े होकर भी दीन से कोई मस ना रखे और अगर इमाने दीन की मुबारक शानों में कोई गुस्ताख़ी करें तो किस कद्र जहालत की बात है ।

इन वाकियात को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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