फातिहा पढ़ने की फज़िलत।Fatiha Padhne ki Fazilat.

Fatiha padhne ki fazilat

बहोत से मुसलमान इसाले सवाब यानी फातिहा का तरीका नही जानते। उन्हे इस बात का भी इल्म नही है के जिस घर में फातिहा पढ़ी जाती है उस घर में अल्लाह ‘तआला की तरफ से खूब बरकते नाज़िल होती है,

सबसे पहले तो हमें ये जान लेना ज़रूरी है के फातिहा किसे कहते है ? और इसकी फ़ज़ीलत क्या है? और क्या ये अमल में लाना कुरआन और सुन्नत की रौशनी में सही है या नहीं?

लफ्ज़ फातिहा का मतलब है दुआ । कुरआन पाक की पहली सूरह अल-फातिहा है। जिस में अल्लाह तआला हम मुसलमानों को दुआ मांगने का सही तरीका सिखा रहे है।

बिल्किल वैसे ही फातिहा की दुआ पढ़ कर अपने क़रीबी रिश्तेदार जो इस दुनिया को छोड़ चुके है, उन्हे दुआ भेजने को भी फातिहा पढ़ना कहते है।Fatiha Padhne ki Fazilat.

जब मुसलमान कुछ पढ़ कर उसका सवाब अपने फौत शुदा माँ बाप या किसी क़रीबी को दुआ के ज़रिये पहुंचाता है, तो उसे इसाल-ए-सवाब यानी फातिहा पढ़ना कहते है।

मौत के बाद की हक़ीक़त से हम सब बेखबर है। जब इंसान मरता है वो सुकून, रौशनी, ठंडक और न जाने किन किन चीजों का मोहताज होता है।

ऐसे में जब उसके लिए उसका कोई अपना कुछ पढ़ कर सवाब भेजता है। तब जा कर उसकी रूह सुकून पाती है। फातिहा का तरीका सीखना हर मुसलमान के लिए बहुत ज़रूरी है। जिसे हम इसाले सवाब भी कहते है।

इसाले का मतलब है भेजना और सवाब का मतलब है
आमाल का बदला,यानी वो नेक और अच्छा काम जिसकी वजह से फौत शुदा मुसलमान को अल्लाह पाक की तरफ से रहमत व मगफिरत मिलती है।Fatiha Padhne ki Fazilat.

जिसके लिए फातिहा की दुआ की जाती है वो नबीये करीम(स.व)की तरफ से शफाअत का हक़दार भी बनता है। इससे इस बात का पता चलता है की, जो लोग दुनिया को छोड़ कर कब्र में है उनको फातिहा पढ़ना और सवाब भेजने को शरायी तौर पर इसाले-ए-सवाब कहते हैं।

हम इस छोटी सी दुन्यावि जिंदगी में इतना मशरूफ हो गए है के अपने प्यारे रिश्तेदार जो इस दुनिया से गुजर चुके है। उन्हें पूरी तरह से भूल गए हैं। जिसका नुकसान सिर्फ उन मरहूमीन को ही नही होता बल्कि उनको भी होता है जो अपने रिश्तेदारों के लिए फातिहा नहीं पढ़ते।

लेकिन उन्हे इस बात का इल्म नही है के उन्हे भी इस खुदगर्जी का नुकसान हो रहा है। दुनिया से गुज़र जाने वाले अपनो को हमारी दुआओं की सबसे ज्यादा ज़रूरत है। एक दुआ ही तो है जो इंतेकाल होने वालों तक सीधी तौहफे के शकल में मिलती है।

माँ के लिए दुआ ना करने वालों के रिज़्क़ में बे बरकती होती है। इंसान जब अपने माँ-बाप के हक में दुआ करना छोड़ देता है तब उसका रिज़क भी छूटने लगता है और बन्द हो जाता है।

दुआ यानी फातिहा के बारे में अल्लाह पाक हमे बता रहे है की अपने लिए दुआ करो और उनके लिए भी जो इस दुनिया से कूच यानी मौत का मज़ा चख चुके हैं।

और वो लोग जो उनके बाद आये अर्ज करते है के ऐ हमारे रब हमें बख़्श दे और हमारे भाईयों को जो हमसे पहले ईमान लाये और मोमिनो की तरफ से हमारे दिल में किना व हसद न पैदा होने दे ऐ हमारे परवरदिगार! तु बड़ा शफ़क़त करने वाला मेहरबान है।Fatiha Padhne ki Fazilat.

दिली निय्यत कीजिये के इसका सवाब मेरे मरहूम माँ या फलां को पहुंचे। फिर कोई भी इबादत जैसे नमाज़, कुरआन पाक की तिलावत, ज़िक्र ए इलाही, ऐतकाफ में बैठना,
उमरह या हज कर के दुआ के ज़रिये इसका सवाब आप अपने इंतेक़ाल हुए रिश्तेदार को भेज सकते हैं।

जो कोई तमाम मोमिन मरदों और औरतों के लिए दुआए मगफिरत करता है, अल्लाह अजज्वाजल उसके लिए हर मोमिन मर्द ओ औरत के इवज़ एक नेकी लिख देता है।

ऐसी जगह पेड़ लगाना जहाँ मुसाफिर बैठ कर आराम कर सके। ऐसे शख्स की मदद करना जो अपनी ग़ैरत की वजह से भीख ही मांगता। ऐसी जगह कुँवा या नहर खुदवाना जहा पानी की ज़रूरत हो।

मस्जिद बनने में किसी भी तरह की मदद करना, वग़ैरह ।
और दिल ही दिल में इसकी निय्यत करना के इसका सवाब मय्यत को पहुंचे।

तो यकीन जानिए के जब तक इसका फायेदा दुनिया के मख़लूकों को मिलेगा इसका सवाब भी ता-क़यामत तक उस इंतेक़ाल हुए इंसान को मिलता रहेगा जिसके नाम से ये काम करवाया गया है। इंशा अल्लाह

हज़रत सा’अद बिन इबादह र. अ. बयान करते है के उन्होंने कहा, या रसूल लुल्लाह !साद की वालीदह फौत हो गयी। पास किस चीज़ का सदक़ा करना अफज़ल है? आप ने फरमाया पानी का। उन्होंने कुँवा खुदवाया और कहा ये कुँवा साद की माँ के लिए है।

किसी ज़रूरत मंद ग़रीब मिस्कीन की मदत करना भी इसाले सवाब में शुमार है। सदक़ा खैरात भी अपने इंतेक़ाल हुए माँ, बाप, भाई, बहन को तौफह भेजने का आसान तरीका है।Fatiha Padhne ki Fazilat.

किसी ग़रीब को कपड़े, खाना, पैसे, या ऐसी चीज़ जिसकी उसे ज़रूरत हो, दे कर भी फातिहा यानी दुआ का हक़दार हो सकता है।

फातिहा का तरीका:- किसी भी वक्त फातिहा पढ़ कर इसाले सवाब पहुंचा सकते है।अच्छी तरह वुज़ू बना लीजिये फिर किसी पाक साफ जगह पर बैठ कर दुरूद-ए- इब्राहीम तीन बार पढ़ना है।

उसके बाद सूरह अल फातिहा एक बार पढ़ना है।
फिर सूरह अल-बक़राह का पहला रुकु एक बार पढ़ना है।
अब आयतुल कुर्सी एक बार पढ़ना है उसके बाद सूरह अल-बकराह की आखरी दो आयत एक बार पढ़ना है।

फिर सूरह अल-काफ़िरुन एक बार पढ़ना है।
अब सूरह इखलास तीन बार पढ़ना है
फिर सूरह अल-फलक एक बार पढ़ना है।

उसके बाद सूरह अल-नास एक पढ़ना है।
फिर जो भी सूरतें और अयात आप पढ़ना चाहें पढ़
सकते है।आखिर में दुरूद-ए-इब्रहीमि तीन बार पढ़ना है।

फातिहा पढ़ने के बाद दोनो हाथों को उठा कर दुआ के लिए अल्लाह तआला के सामने फैला लीजिये।
आँखें दुआ के लिए उठे हाथों पर रखिये, बहुत से लोग दुआ करते वक़्त आँखों को बन्द कर लेते है। ऐसा करना गलत है।

फिर अल्लाह तआला से रो कर गिड़गिड़ा कर इस तरह से दुआ मांगियेः ऐ अल्लाह पाक ! जो कुछ भी मैंने पढ़ा है इसकी तिलावत में ज़ेर, ज़बर, पेश किसी भी क़िस्म की कोई भी कोताही हुई हो।’ तो मुझ गरीब को अपने शान-ए-रहीमि से दर-गुज़र फरमा और इसे अपनी बारगाह में कुबूल फरमा ।

कुरआन पाक का सवाब अपने प्यारे मेहबूब नबी हज़रत मुहम्मद (स.व)की रूह मुबारक को आता फरमा ।और फिर आपकी आल औलाद, आप की अज़वाज-ए-मुताहहरात, अहल-ए-बैत, सहाबा ए-किराम रिज़वान उल्लाही ‘

अलयहिम अजम’ईन, तबा ताबा’इन को, तमाम अंबिया किरम अ.स. औलिया इकराम, बुजुरगान-ए-दीन की रूहों को पहुंचा। अब जिनके लिए फातिहा पढ़ रहे है यानी जिस मरहूम को आप सवाब पहुंचाना चाहते है, उनका नाम लेकर बिलखुसूस कह कर उन्हे सवाब पहुंचाइये।

फिर क़यामत तक आने वाली हज़रत मुहम्मद की तमाम उम्मत की रूह को सवाब पेश कीजिये। ईन्शा अल्लाह, इसका सवाब आपको भी मिलेगा और उनको भी मिलेगा।

और अगर ऐसा कोई काम किया जाए जिससे अल्लाह पाक के मखलूक को फायदा पहुंचे और उनके दिल से दुआ निकले, तो इसका सवाब क़यामत तक उन्हे मिलता रहेगा जिसके लिए ये काम किया गया और उस भी जिसने ये नेक काम किया। अमीन

ईन्शा अल्लाह आपके गुनाह भी बख़्श दिये जायेंगे।
इमाम अहमद इब्न हम्बल रहमतुल्लाह अलेह ने फरमाया,
“जब तुम कब्रिस्तान जाओ तो सूरह फातिहा और मा औजातीन (सूरह फ़लक़ और सूरह नास) और सुरह इखलास पढ़ो और इनका सवाब अहले कबूर (कब्र वालों) को पहुंचाव, बिला सुबह वो उन्हें पहुँचता है।”

हज़रत मुहम्मद मुस्तफा का इरशाद-ए-मुबारक है,
मुर्दे का हाल कब्र में डूबते हुए इंसान की मानिंद है के वो शिद्दत से इंतेज़ार करता है की माँ या बाप या किसी दोस्त की दुआ उसको पहुंचे और जब किसी की दुआ उसे पहुंचती है तो उसके नज़दीक वो दुनिया और इसमे जो कुछ है इससे बेहतर होती है।Fatiha Padhne ki Fazilat.

इंसान के जीते जी और मर जाने के बाद उसकी औलाद ही होती है, जो उसका सहारा बनती है। मरने से पहले उसकी देखभाल कर के, और मरने के बाद उसके लिए दुआ कर के ।
इसलिए हमे चाहिए के अपने बच्चो को दुन्यावि तालीम के साथ साथ दीनी तालीम भी दी जाए। जिससे हमे भी सवाब मिलता रहे और हमारे बच्चो को भी इसका अज्र मिले,अमीन।

फातिहा पढ़ने की फ़ज़ीलत को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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