एक माज़ूर का हजे बैतुल्लाह का सफ़र।Ek Mazoor ka Haje Baitullah ka Safar.

20240514 203809

हज़रत मालिक बिन दीनार रह० फ़रमाते हैं कि गर्मी का मौसम था और इतनी गर्मी थी कि परिन्दे भी पेड़ों के साए में छिपकर बैठ गए थे।

सूरज आग बरसा रहा था। कोई जानदार बाहर नज़र नहीं आ रहा था। इतने में मुझे किसी ज़रूरी काम से बाहर निकलना पड़ गया। मैंने देखा कि एक नौजवान जो दोनों पैरों से मुहताज है। वह अपने कुल्हों के बल ज़मीन के ऊपर घिसटता घिसटता आ रहा है।

मैं हैरान हुआ। जब क़रीब आया तो मैंने देखा कि उसका चेहरा गर्मी की वजह से लाल हो चुका था और उसके कपड़े पसीने से तर हो चुके थे। मैंने सलाम किया, उसने सलाम जवाब दिया। तार्रुफ़ हुआ। पूछा कहाँ जा रहे हो ।Ek Mazoor ka Haje Baitullah ka Safar.

जवाब दिया हज के लिए जा रहा हूँ। मैंने उसे कहा कि देखो तुम मेरे घर के अन्दर थोड़ा आराम कर लो। जब गर्मी ज़रा कम होगी असर के वक्त तो फिर चल पड़ना वह कहने लगा कि मालिक बिन दीनार आप तो पाँव के बल चलते हो,

सफ़र जल्दी तय होता है मैं तो कूल्हों के बल घिसट घिसट कर चल रहा हूँ मुझे वक्त ज्यादा लगता है। मुझे डर है कि कहीं ऐसा न हो कि सफ़र लम्बा है, मुझे वक्त ज्यादा लग जाए और कहीं हज के दिन ही न निकल जाएं। इसलिए मैं रास्ते में रुक नहीं रहा।

मैंने कहा ऐ अल्लाह के बन्दे ! तुम रुक जाओ हम सवारी का इन्तेज़ाम कर देते हैं। तुम बजाए पैदल जाने के सवारी पर सवार होकर चले जाओ। कहते हैं कि जब यह कहा तो उस नौजवान ने गुस्से की नज़र से मेरी तरफ देखा और कहने लगा मालिक दीनार मैं तुम्हें अकलमंद समझता था।

आज पता चला कि तुम अकल से बिल्कुल कोरे हो। मैंने कहा वह कैसे ? अर्ज़ किया कि तुम बताओ अगर किसी गुलाम ने अपने मालिक का जुर्म किया हो, नाफरमानी की हो और फिर वह सोचे कि अपने मालिक को मनाने के लिए जाऊँ । अब बताओ उस गुलाम को सवार होकर जाना अच्छा लगता है या पैदल?Ek Mazoor ka Haje Baitullah ka Safar.

अपने मालिक की ख़िदमत में तो आजिज़ी के साथ पेश होना अच्छा लगता है। मालिक बिन दीनार रह० फरमाते हैं कि मुझे उसकी बात ने हैरान कर दिया। ख़ैर वह तो चला गया और मैं बात भूल गया। फ़रमाते हैं कि मैंने उसी साल हज किया और जब मैं शैतान को कंकरियाँ मारकर वापस लौटा तो मैंने देखा कि एक जगह मजमा जमा है।

मैंने पूछा क्या है। कहने लगे एक नौजवान है दुआएं मांग रहा है और उसकी दुआएं ऐसे इश्क़ व मुहब्बत में डूबी हुई हैं। की लोग खड़े सुन रहे हैं। मैंने कहा ज़रा मुझे भी देखने दो। रास्ता लिया, जब देखा कि तो वही नौजवान ‘दुआएं कर रहा था।

और कह रहा था कि ऐ अल्लाह तेरी मेहरबानी शामिले हाल हो जाए, मैंने तेरे घर का तवाफ़ किया, हजरे असवद को भी बोसा दिया, मैंने मकामे इब्राहीम पर भी सज्दे किए, काबे के गिलाफ़ को पकड़कर भी दुआएं मांगी, अल्लाह वक़ूफ़े अरफात में भी हाज़िर हुआ, मुज़दलफा में भी हाज़िर हुआ।Ek Mazoor ka Haje Baitullah ka Safar.

ऐ मालिक मैंने शैतान को भी कंकरियाँ माकर अपनी दुश्मनी का इज़हार भी कर दिया। ऐ अल्लाह अब क़ुर्बानी का वक्त आ गया है। सब गुंजाइश वाले लोग खड़े हैं ये जाएंगे और जानवरों को क़ुर्बान करेंगे और मालिक तू जानता है कि मेरे पास तो एहराम के कपड़ों के सिवा कुछ और नहीं ।

ऐ अल्लाह आज मैं अपनी जान आपके नाम पर क़ुर्बान करना चाहता हूँ। मेरे मालिक मेरी इस कुर्बानी को कुबूल कर लीजिए। कहते हैं मजमे के सामने उसने यह बात कही और कलिमा पढ़ा और उसकी रूह परवाज़ कर गई। अल्लाह के चाहने वाले ऐसे भी गुज़रे हैं।

अल्लाह की मुहब्बत में जान देने वाले और अल्लाह के नाम पर जान देने वाले, अल्लाहु अकबर ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

Sharing Is Caring:

Leave a Comment