अल्लाह रब्बुल ईज्ज़त इरशाद फ़रमाता है- तर्जुमा :- तो अब उन से सोहबत करो और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो ।(तर्जुमा :- कन्जुल ईमान, पारा 2, सूरए बक्र, आयत 187 )
इस बात का हमेशा ख्याल रखे कि जब कभी भी हमबिस्तरी का इरादा हो तो येह जान ले के कही औरत हैज़ (माहवारी) की हालत में तो नहीं है ? चुनाँचे औरत से साफ साफ पूछ ले।
अगर औरत हैज़ की हालत में हो तो हरगिज़ हरगिज़ सोहबत न करें क्योंकि इस हालत में औरत से हमबिस्तरी करना बहुत बड़ा गुनाह है ।Hambistari ka tariqa.
औरत का फर्ज़ है कि अगर वोह हैज़ की हालत में हो तो बे झिझक अपने शौहर को बता दें । अक्सर औरतें शादी की पहली रात (सुहाग रात) को शर्म की वजह से बताती नहीं हैं या कह भी दें तो मर्द सब्र नहीं कर पाते और हमबिस्तरी कर बैठते है,
और फिर इस जल्दबाज़ी की सज़ा उम्र भर डॉक्टरों और हकीमों की फीस की शक्ल में भुगत्ते फिरते हैं । लिहाजा मर्द और औरत दोनों को ऐसे मौकों पर सब्र से काम लेना चाहिये । कुछ मर्द मतलब प्रस्त होते है उन्हें सिर्फ अपने मतलब से ही लेना होता है
ये दूसरे की खुशी का कोई अहमियत नहीं देते.. वोह येह ही वसूल अपनी बीवी के साथ भी रखते है चुनानचे जब वोह सोहबत का इरादा करते हैं तो यह नहीं देखते कि औरत सोहबत करना चाहती है या नहीं, वह कही किसी बीमारी या दुख दर्द में मुबतेला तो नहीं है।Hambistari ka tariqa.
इन सब से उन्हें कोई मतलब नहीं होता वोह बेसबरी के साथ औरत पर टूट पड़ते हैं और अपना मतलब पूरा कर लेते है । इस हरकत से औरत की निगाह में मर्द की इज्ज़त कम हो जाती है और वोह मर्द को मतलब प्रस्त समझने लगती है, साथ ही सोहबत का वोह लुत्फ हासिल नहीं हो पता ।
हदीस:- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया– “तुम में से जो कोई अपनी बीवी के पास जाए तो पर्दा कर ले और गधों की तरह न शुरू हो जाए” ।
(इब्ने माजा, जिल्द 1 बाब नं. 616, हदीस नं. 1990, सफा 538 )
हदीस:- हज़रत इमाम गज़ाली रजिअल्लाहो तआला अन्हो रिवायत करते हैं कि सरकारे आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्ला, ने इरशाद फ़रमाया- ” मर्द को न चाहिये कि अपनी औरत पर जानवर की तरह गीरे, हमबिस्तरी से पहले कासिद (पैगाम पहुँचाने वाला) होता है”।Hambistari ka tariqa.
सहाबा -ए-किराम ने अर्ज़ किया “या रसूलुल्लाह ! वोह कासिद क्या है ? आप ने इरशाद फ़रमाया”वोह बोस व किनार (चूम्मन, Kiss) वग़ैरा है” यानी हमबिस्तरी से पहले चुम्मन वगैरा से औरत को राजी करें। ( कीम्या-ए-सआदत, सफा नं. 266)
हदीस :- उम्मुल मोमिनीन हज़रत आएशा रजिअल्लाहो तआला अन्हा से रिवायत है कि रसूले अकरम सल्लल्लम तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया- -“जो मर्द अपनी बीवी का हाथ उसको बहलाने के लिए पकड़ता है, अल्लाह तआला उसके लिए एक नेकी लिख देता है,
जब मर्द प्यार से औरत के गले में हाथ डालता है उसके हक में दस नेकियाँ लिखी जाती है, और जब औरत से हमबिस्तरी करता है तो दुनिया और जो कुछ उसमें है उन सबसे बेहतर हो जाता है” ।(गुन्यतुत्तालेबीन, सफा 113)
हमबिस्तरी से पहले खुद बे चैन न हो जाए अपने आप पर पूरा इतमिनान रखे जल्दबाजी न करे पहले बीवी से प्यार मुहब्बत की बात चीत करे फिर बोस व किनार (चूम्मन, Kiss) वग़ैरा से उसको राजी करे और इसी दौरान दिल ही दिल में येह दुआ पढ़े-
दुआ :- बिस्मिल्लाहिल अलीयुल अज़ीमे अल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर तर्जमा :- अल्लाह के नाम से जो बुजुर्ग व बरतर अजमत वाला है अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत बड़ा है ।Hambistari ka tariqa.
इसके बाद जब मर्द, औरत, हमबिस्तरी का इरादा कर लें तो कपड़े जिस्म से अलग करने से पहले एक मरतबा “सूरए इख्लास” पढ़े- कुल हुवल्लाहो अहद 0 अल्लाहुस समद 0 लम-य-लिद ० वलम यूलद वलम य कुल्लाहु कुफुवन अहद 0
सूरए इख्लास पढ़ने के बाद यह दुआ पढ़े-
दुआ :- बिस्मिल्लाहि अल्लाहुम्मा जननिबनश शैताना व जननि बिश शैताना म रजकतना।
हदीस :- हजरत इब्ने अब्बास रजिअल्लाह तआला अन्हु से रिवायत है के रसूले अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैह व सल्लम ने इरशाद फरमाया– “जो शख्स इस दुआ को हमबिस्तरी के वक्त पढ़ेगा
(वही दुआ जो उपर लिखी गई) तो अल्लाह उस पढ़ने वाले को अगर औलाद अता फरमाए तो उस औलाद को शैतान कभी भी नुकसान नही पहुँचा सकेगा ” (बुखारी शरीफ, जिल्द 3 सफा नं. 85. तिर्मिजी शरीफ, जिल्द 1 सफा 557)
होशियार : इस हदीस की तशरीह (अर्थ, Explanation) में हजुर गौसे आज़म शेख अब्दुल कादिर जीलानी व हजरत मुहक्किके इस्लाम शेख अब्दुल हक़ मोहदिस दहलवी, और आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ रजिअल्लाहो तआला अन्हम इरशाद फरमाते है-
अगर कोई शख्स हमबिस्तरी के वक्त दुआ न पढ़े यानी शैतान से पनाह न माँगे तो उस शख्स की शर्मगाह से शैतान लिपट जाता हैं और उस मर्द के साथ शैतान भी उसके औरत से हमबिस्तरी करने लगता है।Hambistari ka tariqa.
और जो औलाद पैदा होती है वोह न फरमान, बुरी आदतों वाली, बेगैरत, बद्दीन, होती है शैतान की इस दखल अन्दाज़ी की वजह से औलाद में तबाहकारी आ जाती है” ।(गुन्यातुत्तालबीन, सफा 116, अश्अतुल लम्आत, फतावा-ए रजवीया, जिल्द 9 सफा 461)
हदीस : “बुखारी शरीफ” के एक हदीस में है की हज़रत सअद बिन ऊबादा रजिअल्लाहू तआला अन्हु ने फरमाया-
“अगर मैं अपनी बीवी के साथ किसी को देख लूँ तो तलवार से उस का काम तमाम कर दूँ”।
उन की इस बात को सुन कर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया- – “लोगों तुम्हें सआद की इस बात पर तअज्जुब आता है हालांकि मैं उन से बहुत ज़्यादा गैरत वाला हूँ और अल्लाह तआला मुझ से ज़्यादा ग़ैरत वाला है”। (बुखारी शरीफ, जिल्द 3. बाब नं. 137. सफा नं. 104)
क्या आप गवारा करेगे कि आप की बीवी के साथ आप के अलावा भी कोई और मर्द हमबिस्तरी करे । यकीनन अगर आप में ग़ैरत का ज़रा सा भी ज़र्रा मौजूद है तो आप यह हरगिज़ गवारा नहीं करेंगे ।Hambistari ka tariqa.
फिर भला बताइये आप कैसे गवारा कर लेते है कि आप की बीवी के साथ शैतान मरदूद भी हमबिस्तरी करे ! लिहाज़ा इस मुसीबत से बचने के लिए जब भी हमबिस्तरी करे तो याद करके यह दुआ पढ़ लिया करें ।
गालेबन आज कल ज्यादा तर इस्लामी भाई एैसे होंगे जो हमबिस्तरी के वक्त दुआ नहीं पढ़ते । शायद यही वजह है कि औलादें बे गैरत, ना फरमान और दीन से दूर नज़र आ रही हैं ।
हमारा और आप का रोज़ मरह का मुशाहिदह है कि मसलन औलद से बाप कहता है बुजुर्गों की मजारात पर हाज़िर होना चाहिये, बेटा बुजुर्गों की मज़ारों पर जाने को जिना और कत्ल कर देने से ज्यादा बुरा समझता है ।
बाप का अकीदह है कि रसूलुल्लाह हमारे आका व मौला है, बेटा रसूले अकरम को अपना बड़ा भाई कहता हुआ नज़र आ रहा है, गर्ज के दुनियावी मामला हो या फिर दीनी, औलाद अपने बाप से बागी नज़र आती है। अल्लाह तआला मुसलमानों को तौफीक दें ।
इन हदीसो को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…