किताबों में लिखा है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में एक औरत आयी। कहने लगी हज़रत ! दुआ के लिए आयी हूँ मेरे बच्चे ज़िन्दा नहीं रहते, बचपन लड़कपन में ही मर जाते हैं।
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने पूछा कितनी उम्र में? कहने लगी, कोई सौ साल का होकर मर जाता है कोई दो सौ साल का होकर मर जाता है और कोई तीन सौ साल का होकर मर जाता है।
वह मुस्कुराये फरमाने लगे अल्लाह की बन्दी क़यामत के करीब एक ऐसा वक़्त भी आयेगा जबकि इनसान की उम्र ही सौ साल से थोड़ी होंगी। जब उन्होंने यह बात कही तो औरत हैरान होकर देखने लगी, कहने लगी, ऐ अल्लाह के नबी ! जिन लोगों की उम्र ही सौ साल से थोड़ी होंगी क्या वे दुनिया में रहने के लिए मकान बनायेंगे?
फरमाया मकान भी बनायेंगे शादी-विवाह भी करेंगे, कारोबार भी करेंगे। यह सुनकर उस औरत ने एक ठण्डी साँस ली। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने पूछाः क्यों ठण्डी साँस ली? वह कहने लगी ऐ अल्लाह के नबी! अगर मैं भी उस वक़्त में होती जब उम्र ही सौ साल से थोड़ी होंगी, इतना थोड़ा वक़्त तो मैं एक सज्दे में ही गुज़ार देती।
हमारी ज़िन्दगी तो इतनी मुख़्तसर है। नबी अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया मेरी उम्मत की उम्र साठ और सत्तर के दरमियान होंगी। यानी कोई तो पैदा होते ही मरेगा और कोई सौ साल से ऊपर जाकर मरेगा। लेकिन जब औसत (Average) निकालेंगे, तो Gross Average इस उम्मत का साठ से सत्तर बनेगा।
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अब वे औरतें जो इस वक़्त चालीस साल से ऊपर की उम्र को पहुँच चुकी हैं, वे अच्छी तरह सुन लें कि वे अपनी ज़िन्दगी का दूसरा आधा हिस्सा गुज़ार रही हैं। पहला आधा हिस्सा गुज़ार चुकीं। यानी वे अपनी ज़िन्दगी का ज़ोहर और अस्र का वक़्त गुज़ार रही हैं। ज़ोहर और अस्र के बाद सूरज डूबते हुए देर नहीं लगती। तो हमें चाहिए कि हम आख़िरत की डटकर तैयारी करें।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
