
टिकट फ्री, सीट यक़ीनी
अहलियत व शराइत : नाम: अब्दुल्लाह इब्ने आदम।
उर्फियत : इंसान।
क़ौमियत : मुसलमान।
शिनाख्त : मिट्टी।
पता : रूए ज़मीन।
सफर की तफ्सीलात : रवानगी अज़ न फोदगाह, दुनिया मन्ज़िल राहे आख़िरत ।
दौराने सफर : कुछ लम्हें जिसमें चंद लम्हात के लिए दो मीटर ज़मीन के नीचे क़ियाम ।
ज़रूरी हिदायात : तमाम सफर करने वालों से दरख्वास्त है कि वह उन लोगों को अपनी नज़र में रखें जो उनसे पहले आख़िरत की तरफ सफर कर गये हैं। इसी तरह हर लम्हा उनकी नज़र जहाज़ के पायलट, हज़रत मुलकुल मौत की तरफ रहनी चाहिए ज़्यादा तफ्सीलात के लिए इन ज़रूरी हिदायात को बगौर पढ़ लें जो किताबुल्लाह और सुन्नते रसूल में दी गई हैं।
अगर इस सिलसिले में कुछ सवालात सामने हों। तो जवाब के लिए उलमा-ए-उम्मत से राब्ता करें, उड़ान के दौरान आक्सीजन की कमी की सूरत में आक्सीजन मास्क खुद बखुद आपके सामने गिर जाएगा, माफ कीजिए।
मास्क नहीं गिरेगा बल्कि सारे पर्दे निगाहों के सामने से हट जाएंगे और यक़ीनन फिर आप हर क़िस्म की आक्सीजन से बेनियाज़ हो जाएंगे।
ज़ादे राह : हर मुसाफ़िर अपने साथ कुछ मीटर सफ़द लट्ठा और थोड़ी-सी रूई ले सकता है लेकिन वह सामान जो तराजू में पूरा उतरेगा वह नेक आमाल, सद्क-ए- जारिया, सालेह औलाद और वह इल्म होगा जिससे उसके बाद वाले नफा हासिल कर सकेंगे, उससे ज़्यादा सामाने सफर लाने की कोशिश की गई तो उसके ज़िम्मेदार आप होंगे।
तमाम मुसाफिरीन से दरख्वास्त है कि वह उड़ान के लिए हर वक़्त तैयार रहें। उड़ान के बारे में ज़्यादा मालूमात के लिए फौरी तौर पर अल्लाह की किताब और सुन्नते रसूल से राबिता काइम किया जाए, इस सिलसिले में रोज़ाना पाँच वक़्त मस्जिद की हाज़िरी फायदेमन्द होगी।
आपकी सहूलत के लिए दोबारा अर्ज़ है कि आपकी सीट रिज़र्व हो चुकी है और इस सिलसिले में किसी से दोबारा पूछताछ की ज़रूरत नहीं है, उम्मीद है कि आप सफर के लिए तैयार होंगे, हम आपको इस मुबारक सफ़र पर खुश आम्दीद कहते हैं, हमारी नेक दुआएं आपके साथ हैं।
खुदा आपका हामी व नासिर है।
खूबसूरत वाक़िआ: बीवी के मुँह में लुक्मा देने पर सदके़ का सवाब।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….